११
اَرَاَيْتَ اِنْ كَانَ عَلَى الْهُدٰىٓۙ ١١
- ara-ayta
- أَرَءَيْتَ
- क्या देखा आपने
- in
- إِن
- अगर
- kāna
- كَانَ
- हो वो
- ʿalā
- عَلَى
- हिदायत पर
- l-hudā
- ٱلْهُدَىٰٓ
- हिदायत पर
तुम्हारा क्या विचार है? यदि वह सीधे मार्ग पर हो, ([९६] अल-अलक: 11)Tafseer (तफ़सीर )
१२
اَوْ اَمَرَ بِالتَّقْوٰىۗ ١٢
- aw
- أَوْ
- या
- amara
- أَمَرَ
- वो हुक्म देता हो
- bil-taqwā
- بِٱلتَّقْوَىٰٓ
- तक़्वा का
या परहेज़गारी का हुक्म दे (उसके अच्छा होने में क्या संदेह है) ([९६] अल-अलक: 12)Tafseer (तफ़सीर )
१३
اَرَاَيْتَ اِنْ كَذَّبَ وَتَوَلّٰىۗ ١٣
- ara-ayta
- أَرَءَيْتَ
- क्या देखा आपने
- in
- إِن
- अगर
- kadhaba
- كَذَّبَ
- उसने झुठलाया
- watawallā
- وَتَوَلَّىٰٓ
- और उसने मुँह मोड़ा
तुम्हारा क्या विचार है? यदि उस (रोकनेवाले) ने झुठलाया और मुँह मोड़ा (तो उसके बुरा होने में क्या संदेह है) - ([९६] अल-अलक: 13)Tafseer (तफ़सीर )
१४
اَلَمْ يَعْلَمْ بِاَنَّ اللّٰهَ يَرٰىۗ ١٤
- alam
- أَلَمْ
- क्या नहीं
- yaʿlam
- يَعْلَم
- वो जानता
- bi-anna
- بِأَنَّ
- कि बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- yarā
- يَرَىٰ
- देख रहा है
क्या उसने नहीं जाना कि अल्लाह देख रहा है? ([९६] अल-अलक: 14)Tafseer (तफ़सीर )
१५
كَلَّا لَىِٕنْ لَّمْ يَنْتَهِ ەۙ لَنَسْفَعًاۢ بِالنَّاصِيَةِۙ ١٥
- kallā
- كَلَّا
- हरगिज़ नहीं
- la-in
- لَئِن
- अलबत्ता अगर
- lam
- لَّمْ
- ना
- yantahi
- يَنتَهِ
- वो बाज़ आया
- lanasfaʿan
- لَنَسْفَعًۢا
- तो हम ज़रूर घसीटेंगे (उसे)
- bil-nāṣiyati
- بِٱلنَّاصِيَةِ
- पेशानी के (बालों से )
कदापि नहीं, यदि वह बाज़ न आया तो हम चोटी पकड़कर घसीटेंगे, ([९६] अल-अलक: 15)Tafseer (तफ़सीर )
१६
نَاصِيَةٍ كَاذِبَةٍ خَاطِئَةٍۚ ١٦
- nāṣiyatin
- نَاصِيَةٍ
- पेशानी
- kādhibatin
- كَٰذِبَةٍ
- जो झूठी है
- khāṭi-atin
- خَاطِئَةٍ
- ख़ताकार है
झूठी, ख़ताकार चोटी ([९६] अल-अलक: 16)Tafseer (तफ़सीर )
१७
فَلْيَدْعُ نَادِيَهٗۙ ١٧
- falyadʿu
- فَلْيَدْعُ
- पस चाहिए कि वो पुकारे
- nādiyahu
- نَادِيَهُۥ
- अपनी मजलिस को
अब बुला ले वह अपनी मजलिस को! ([९६] अल-अलक: 17)Tafseer (तफ़सीर )
१८
سَنَدْعُ الزَّبَانِيَةَۙ ١٨
- sanadʿu
- سَنَدْعُ
- अनक़रीब हम बुला लेंगे
- l-zabāniyata
- ٱلزَّبَانِيَةَ
- दोज़ख़ के फ़रिश्तों को
हम भी बुलाए लेते है सिपाहियों को ([९६] अल-अलक: 18)Tafseer (तफ़सीर )
१९
كَلَّاۗ لَا تُطِعْهُ وَاسْجُدْ وَاقْتَرِبْ ۩ ࣖ ١٩
- kallā
- كَلَّا
- हरगिज़ नहीं
- lā
- لَا
- ना आप इताअत कीजिए उसकी
- tuṭiʿ'hu
- تُطِعْهُ
- ना आप इताअत कीजिए उसकी
- wa-us'jud
- وَٱسْجُدْ
- और सजदा कीजिए
- wa-iq'tarib
- وَٱقْتَرِب۩
- और क़ुर्ब हासिल कीजिए
कदापि नहीं, उसकी बात न मानो और सजदे करते और क़रीब होते रहो ([९६] अल-अलक: 19)Tafseer (तफ़सीर )