१
وَالَّيْلِ اِذَا يَغْشٰىۙ ١
- wa-al-layli
- وَٱلَّيْلِ
- क़सम है रात की
- idhā
- إِذَا
- जब
- yaghshā
- يَغْشَىٰ
- वो छा जाए
साक्षी है रात जबकि वह छा जाए, ([९२] अल-लैल: 1)Tafseer (तफ़सीर )
२
وَالنَّهَارِ اِذَا تَجَلّٰىۙ ٢
- wal-nahāri
- وَٱلنَّهَارِ
- और दिन की
- idhā
- إِذَا
- जब
- tajallā
- تَجَلَّىٰ
- वो रौशन हो
और दिन जबकि वह प्रकाशमान हो, ([९२] अल-लैल: 2)Tafseer (तफ़सीर )
३
وَمَا خَلَقَ الذَّكَرَ وَالْاُنْثٰىٓ ۙ ٣
- wamā
- وَمَا
- और उसकी
- khalaqa
- خَلَقَ
- जिसने पैदा किया
- l-dhakara
- ٱلذَّكَرَ
- नर
- wal-unthā
- وَٱلْأُنثَىٰٓ
- और मादा को
और नर और मादा का पैदा करना, ([९२] अल-लैल: 3)Tafseer (तफ़सीर )
४
اِنَّ سَعْيَكُمْ لَشَتّٰىۗ ٤
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- saʿyakum
- سَعْيَكُمْ
- कोशिश तुम्हारी
- lashattā
- لَشَتَّىٰ
- अलबत्ता मुख़्तलिफ़ तरह की है
कि तुम्हारा प्रयास भिन्न-भिन्न है ([९२] अल-लैल: 4)Tafseer (तफ़सीर )
५
فَاَمَّا مَنْ اَعْطٰى وَاتَّقٰىۙ ٥
- fa-ammā
- فَأَمَّا
- तो रहा वो
- man
- مَنْ
- जिसने
- aʿṭā
- أَعْطَىٰ
- दिया
- wa-ittaqā
- وَٱتَّقَىٰ
- और उसने तक़्वा किया
तो जिस किसी ने दिया और डर रखा, ([९२] अल-लैल: 5)Tafseer (तफ़सीर )
६
وَصَدَّقَ بِالْحُسْنٰىۙ ٦
- waṣaddaqa
- وَصَدَّقَ
- और तस्दीक़ की
- bil-ḥus'nā
- بِٱلْحُسْنَىٰ
- भलाई की
और अच्छी चीज़ की पुष्टि की, ([९२] अल-लैल: 6)Tafseer (तफ़सीर )
७
فَسَنُيَسِّرُهٗ لِلْيُسْرٰىۗ ٧
- fasanuyassiruhu
- فَسَنُيَسِّرُهُۥ
- पस अनक़रीब हम आसानी देंगे उसे
- lil'yus'rā
- لِلْيُسْرَىٰ
- आसान(रास्ते)की
हम उस सहज ढंग से उस चीज का पात्र बना देंगे, जो सहज और मृदुल (सुख-साध्य) है ([९२] अल-लैल: 7)Tafseer (तफ़सीर )
८
وَاَمَّا مَنْۢ بَخِلَ وَاسْتَغْنٰىۙ ٨
- wa-ammā
- وَأَمَّا
- और रहा वो
- man
- مَنۢ
- जिसने
- bakhila
- بَخِلَ
- बुख़्ल किया
- wa-is'taghnā
- وَٱسْتَغْنَىٰ
- और उसने बेपरवाई बरती
रहा वह व्यक्ति जिसने कंजूसी की और बेपरवाही बरती, ([९२] अल-लैल: 8)Tafseer (तफ़सीर )
९
وَكَذَّبَ بِالْحُسْنٰىۙ ٩
- wakadhaba
- وَكَذَّبَ
- और उसने झुठलाया
- bil-ḥus'nā
- بِٱلْحُسْنَىٰ
- नेकी को
और अच्छी चीज़ को झुठला दिया, ([९२] अल-लैल: 9)Tafseer (तफ़सीर )
१०
فَسَنُيَسِّرُهٗ لِلْعُسْرٰىۗ ١٠
- fasanuyassiruhu
- فَسَنُيَسِّرُهُۥ
- पस अनक़रीब हम आसानी देंगे उसे
- lil'ʿus'rā
- لِلْعُسْرَىٰ
- मुश्किल(रास्ते) की
हम उसे सहज ढंग से उस चीज़ का पात्र बना देंगे, जो कठिन चीज़ (कष्ट-साध्य) है ([९२] अल-लैल: 10)Tafseer (तफ़सीर )