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सूरा अत-तौबा - Page: 8

At-Tawbah

(The Repentance)

७१

وَالْمُؤْمِنُوْنَ وَالْمُؤْمِنٰتُ بَعْضُهُمْ اَوْلِيَاۤءُ بَعْضٍۘ يَأْمُرُوْنَ بِالْمَعْرُوْفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنْكَرِ وَيُقِيْمُوْنَ الصَّلٰوةَ وَيُؤْتُوْنَ الزَّكٰوةَ وَيُطِيْعُوْنَ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ ۗاُولٰۤىِٕكَ سَيَرْحَمُهُمُ اللّٰهُ ۗاِنَّ اللّٰهَ عَزِيْزٌ حَكِيْمٌ ٧١

wal-mu'minūna
وَٱلْمُؤْمِنُونَ
और मोमिन मर्द
wal-mu'minātu
وَٱلْمُؤْمِنَٰتُ
और मोमिन औरतें
baʿḍuhum
بَعْضُهُمْ
बाज़ उनके
awliyāu
أَوْلِيَآءُ
दोस्त हैं
baʿḍin
بَعْضٍۚ
बाज़ के
yamurūna
يَأْمُرُونَ
वो हुक्म देते हैं
bil-maʿrūfi
بِٱلْمَعْرُوفِ
भलाई का
wayanhawna
وَيَنْهَوْنَ
और वो रोकते हैं
ʿani
عَنِ
बुराई से
l-munkari
ٱلْمُنكَرِ
बुराई से
wayuqīmūna
وَيُقِيمُونَ
और वो क़ायम करते हैं
l-ṣalata
ٱلصَّلَوٰةَ
नमाज़
wayu'tūna
وَيُؤْتُونَ
और वो अदा करते हैं
l-zakata
ٱلزَّكَوٰةَ
ज़कात
wayuṭīʿūna
وَيُطِيعُونَ
और वो अताअत करते हैं
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह की
warasūlahu
وَرَسُولَهُۥٓۚ
और उसके रसूल की
ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही लोग हैं
sayarḥamuhumu
سَيَرْحَمُهُمُ
ज़रूर रहम करेगा उन पर
l-lahu
ٱللَّهُۗ
अल्लाह
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
ʿazīzun
عَزِيزٌ
बहुत ज़बरदस्त है
ḥakīmun
حَكِيمٌ
ख़ूब हिकमत वाला है
रहे मोमिन मर्द औऱ मोमिन औरतें, वे सब परस्पर एक-दूसरे के मित्र है। भलाई का हुक्म देते है और बुराई से रोकते है। नमाज़ क़ायम करते हैं, ज़कात देते है और अल्लाह और उसके रसूल का आज्ञापालन करते हैं। ये वे लोग है, जिनकर शीघ्र ही अल्लाह दया करेगा। निस्सन्देह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है ([९] अत-तौबा: 71)
Tafseer (तफ़सीर )
७२

وَعَدَ اللّٰهُ الْمُؤْمِنِيْنَ وَالْمُؤْمِنٰتِ جَنّٰتٍ تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِيْنَ فِيْهَا وَمَسٰكِنَ طَيِّبَةً فِيْ جَنّٰتِ عَدْنٍ ۗوَرِضْوَانٌ مِّنَ اللّٰهِ اَكْبَرُ ۗذٰلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيْمُ ࣖ ٧٢

waʿada
وَعَدَ
वादा किया
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
l-mu'minīna
ٱلْمُؤْمِنِينَ
मोमिनों मर्दों से
wal-mu'mināti
وَٱلْمُؤْمِنَٰتِ
और मोमिन औरतों से
jannātin
جَنَّٰتٍ
बाग़ात का
tajrī
تَجْرِى
बहती हैं
min
مِن
उनके नीचे से
taḥtihā
تَحْتِهَا
उनके नीचे से
l-anhāru
ٱلْأَنْهَٰرُ
नहरें
khālidīna
خَٰلِدِينَ
हमेशा रहने वाले हैं
fīhā
فِيهَا
उनमें
wamasākina
وَمَسَٰكِنَ
और घर
ṭayyibatan
طَيِّبَةً
पाकीज़ा
فِى
बाग़ात में
jannāti
جَنَّٰتِ
बाग़ात में
ʿadnin
عَدْنٍۚ
अदन के
wariḍ'wānun
وَرِضْوَٰنٌ
और रज़ामन्दी
mina
مِّنَ
अल्लाह की तरफ़ से
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की तरफ़ से
akbaru
أَكْبَرُۚ
सबसे बड़ी है
dhālika
ذَٰلِكَ
यही
huwa
هُوَ
वो
l-fawzu
ٱلْفَوْزُ
कामयाबी है
l-ʿaẓīmu
ٱلْعَظِيمُ
बहुत बड़ी
मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों से अल्लाह ने ऐसे बाग़ों का वादा किया है जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी, जिनमें वे सदैव रहेंगे और सदाबहार बाग़ों में पवित्र निवास गृहों का (भी वादा है) और, अल्लाह की प्रसन्नता और रज़ामन्दी का; जो सबसे बढ़कर है। यही सबसे बड़ी सफलता है ([९] अत-तौबा: 72)
Tafseer (तफ़सीर )
७३

يٰٓاَيُّهَا النَّبِيُّ جَاهِدِ الْكُفَّارَ وَالْمُنٰفِقِيْنَ وَاغْلُظْ عَلَيْهِمْ ۗوَمَأْوٰىهُمْ جَهَنَّمُ وَبِئْسَ الْمَصِيْرُ ٧٣

yāayyuhā
يَٰٓأَيُّهَا
l-nabiyu
ٱلنَّبِىُّ
नबी
jāhidi
جَٰهِدِ
जिहाद कीजिए
l-kufāra
ٱلْكُفَّارَ
कुफ़्फ़ार
wal-munāfiqīna
وَٱلْمُنَٰفِقِينَ
और मुनाफ़िक़ीन से
wa-ugh'luẓ
وَٱغْلُظْ
और सख़्ती कीजिए
ʿalayhim
عَلَيْهِمْۚ
उन पर
wamawāhum
وَمَأْوَىٰهُمْ
और ठिकाना उनका
jahannamu
جَهَنَّمُۖ
जहन्नम है
wabi'sa
وَبِئْسَ
और बहुत ही बुरा
l-maṣīru
ٱلْمَصِيرُ
ठिकाना है
ऐ नबी! इनकार करनेवालों और मुनाफ़िक़ों से जिहाद करो और उनके साथ सख़्ती से पेश आओ। अन्ततः उनका ठिकाना जहन्नम है और वह जा पहुँचने की बहुत बुरी जगह है! ([९] अत-तौबा: 73)
Tafseer (तफ़सीर )
७४

يَحْلِفُوْنَ بِاللّٰهِ مَا قَالُوْا ۗوَلَقَدْ قَالُوْا كَلِمَةَ الْكُفْرِ وَكَفَرُوْا بَعْدَ اِسْلَامِهِمْ وَهَمُّوْا بِمَا لَمْ يَنَالُوْاۚ وَمَا نَقَمُوْٓا اِلَّآ اَنْ اَغْنٰىهُمُ اللّٰهُ وَرَسُوْلُهٗ مِنْ فَضْلِهٖ ۚفَاِنْ يَّتُوْبُوْا يَكُ خَيْرًا لَّهُمْ ۚوَاِنْ يَّتَوَلَّوْا يُعَذِّبْهُمُ اللّٰهُ عَذَابًا اَلِيْمًا فِى الدُّنْيَا وَالْاٰخِرَةِ ۚوَمَا لَهُمْ فِى الْاَرْضِ مِنْ وَّلِيٍّ وَّلَا نَصِيْرٍ ٧٤

yaḥlifūna
يَحْلِفُونَ
वो क़समें खाते हैं
bil-lahi
بِٱللَّهِ
अल्लाह की
مَا
नहीं
qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
walaqad
وَلَقَدْ
हालाँकि अलबत्ता तहक़ीक़
qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
kalimata
كَلِمَةَ
कलमा
l-kuf'ri
ٱلْكُفْرِ
कुफ़्र का
wakafarū
وَكَفَرُوا۟
और उन्होंने कुफ़्र किया
baʿda
بَعْدَ
बाद
is'lāmihim
إِسْلَٰمِهِمْ
अपने इस्लाम के
wahammū
وَهَمُّوا۟
और उन्होंने इरादा किया
bimā
بِمَا
उसका जो
lam
لَمْ
नहीं
yanālū
يَنَالُوا۟ۚ
वो पा सके
wamā
وَمَا
और नहीं
naqamū
نَقَمُوٓا۟
उन्होंने इन्तिक़ाम लिया
illā
إِلَّآ
मगर
an
أَنْ
ये कि
aghnāhumu
أَغْنَىٰهُمُ
ग़नी कर दिया उन्हें
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
warasūluhu
وَرَسُولُهُۥ
और उसके रसूल ने
min
مِن
अपने फ़ज़ल से
faḍlihi
فَضْلِهِۦۚ
अपने फ़ज़ल से
fa-in
فَإِن
फिर अगर
yatūbū
يَتُوبُوا۟
वो तौबा कर लें
yaku
يَكُ
होगा
khayran
خَيْرًا
बेहतर
lahum
لَّهُمْۖ
उनके लिए
wa-in
وَإِن
और अगर
yatawallaw
يَتَوَلَّوْا۟
वो मुँह मोड़ें
yuʿadhib'humu
يُعَذِّبْهُمُ
अज़ाब देगा उन्हें
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
ʿadhāban
عَذَابًا
अज़ाब
alīman
أَلِيمًا
दर्दनाक
فِى
दुनिया में
l-dun'yā
ٱلدُّنْيَا
दुनिया में
wal-ākhirati
وَٱلْءَاخِرَةِۚ
और आख़िरत में
wamā
وَمَا
और ना होगा
lahum
لَهُمْ
उनके लिए
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
min
مِن
कोई दोस्त
waliyyin
وَلِىٍّ
कोई दोस्त
walā
وَلَا
और ना
naṣīrin
نَصِيرٍ
कोई मददगार
वे अल्लाह की क़समें खाते है कि उन्होंने नहीं कहा, हालाँकि उन्होंने अवश्य ही कुफ़्र की बात कही है और अपने इस्लाम स्वीकार करने के पश्चात इनकार किया, और वह चाहा जो वे न पा सके। उनके प्रतिशोध का कारण तो यह है कि अल्लाह और उसके रसूल ने अपने अनुग्रह से उन्हें समृद्ध कर दिया। अब यदि वे तौबा कर लें तो उन्हीं के लिए अच्छा है और यदि उन्होंने मुँह मोड़ा तो अल्लाह उन्हें दुनिया और आख़िरत में दुखद यातना देगा और धरती में उनका न कोई मित्र होगा और न सहायक ([९] अत-तौबा: 74)
Tafseer (तफ़सीर )
७५

۞ وَمِنْهُمْ مَّنْ عٰهَدَ اللّٰهَ لَىِٕنْ اٰتٰىنَا مِنْ فَضْلِهٖ لَنَصَّدَّقَنَّ وَلَنَكُوْنَنَّ مِنَ الصّٰلِحِيْنَ ٧٥

wamin'hum
وَمِنْهُم
और कुछ उनमें से वो हैं
man
مَّنْ
जिन्होंने
ʿāhada
عَٰهَدَ
अहद किया
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह से
la-in
لَئِنْ
अलबत्ता अगर
ātānā
ءَاتَىٰنَا
वो देगा हमें
min
مِن
अपने फ़ज़ल से
faḍlihi
فَضْلِهِۦ
अपने फ़ज़ल से
lanaṣṣaddaqanna
لَنَصَّدَّقَنَّ
अलबत्ता हम ज़रूर सदक़ा करेंगे
walanakūnanna
وَلَنَكُونَنَّ
और अलबत्ता हम ज़रूर हो जाऐंगे
mina
مِنَ
नेक लोगों में से
l-ṣāliḥīna
ٱلصَّٰلِحِينَ
नेक लोगों में से
और उनमें से कुछ लोग ऐसे भी है जिन्होने अल्लाह को वचन दिया था कि 'यदि उसने हमें अपने अनुग्रह से दिया तो हम अवश्य दान करेंगे और नेक होकर रहेंगे।' ([९] अत-तौबा: 75)
Tafseer (तफ़सीर )
७६

فَلَمَّآ اٰتٰىهُمْ مِّنْ فَضْلِهٖ بَخِلُوْا بِهٖ وَتَوَلَّوْا وَّهُمْ مُّعْرِضُوْنَ ٧٦

falammā
فَلَمَّآ
फिर जब
ātāhum
ءَاتَىٰهُم
उसने दिया उन्हें
min
مِّن
अपने फ़ज़ल से
faḍlihi
فَضْلِهِۦ
अपने फ़ज़ल से
bakhilū
بَخِلُوا۟
वो बुख़्ल करने लगे
bihi
بِهِۦ
साथ उसके
watawallaw
وَتَوَلَّوا۟
और वो मुँह मोड़ गए
wahum
وَّهُم
इस हाल में कि वो
muʿ'riḍūna
مُّعْرِضُونَ
ऐराज़ करने वाले थे
किन्तु जब अल्लाह ने उन्हें अपने अनुग्रह से दिया तो वे उसमें कंजूसी करने लगे और पहलू बचाकर फिर गए ([९] अत-तौबा: 76)
Tafseer (तफ़सीर )
७७

فَاَعْقَبَهُمْ نِفَاقًا فِيْ قُلُوْبِهِمْ اِلٰى يَوْمِ يَلْقَوْنَهٗ بِمَآ اَخْلَفُوا اللّٰهَ مَا وَعَدُوْهُ وَبِمَا كَانُوْا يَكْذِبُوْنَ ٧٧

fa-aʿqabahum
فَأَعْقَبَهُمْ
तो उसने सज़ा दी उन्हें
nifāqan
نِفَاقًا
निफ़ाक़ (डाल कर)
فِى
उनके दिलों में
qulūbihim
قُلُوبِهِمْ
उनके दिलों में
ilā
إِلَىٰ
उस दिन तक
yawmi
يَوْمِ
उस दिन तक
yalqawnahu
يَلْقَوْنَهُۥ
वो मुलाक़ात करेंगे उससे
bimā
بِمَآ
बवजह उसके जो
akhlafū
أَخْلَفُوا۟
उन्होंने ख़िलाफ़ किया
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह से
مَا
जिसका
waʿadūhu
وَعَدُوهُ
उन्होंने वादा किया था उससे
wabimā
وَبِمَا
और बवजह उसके जो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
yakdhibūna
يَكْذِبُونَ
वो झूठ बोलते
फिर परिणाम यह हुआ कि उसने उनके दिलों में उस दिन तक के लिए कपटाचार डाल दिया, जब वे उससे मिलेंगे, इसलिए कि उन्होंने अल्लाह से जो प्रतिज्ञा की थी उसे भंग कर दिया और इसलिए भी कि वे झूठ बोलते रहे ([९] अत-तौबा: 77)
Tafseer (तफ़सीर )
७८

اَلَمْ يَعْلَمُوْٓا اَنَّ اللّٰهَ يَعْلَمُ سِرَّهُمْ وَنَجْوٰىهُمْ وَاَنَّ اللّٰهَ عَلَّامُ الْغُيُوْبِ ٧٨

alam
أَلَمْ
क्या नहीं
yaʿlamū
يَعْلَمُوٓا۟
वो जानते
anna
أَنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
yaʿlamu
يَعْلَمُ
जानता है
sirrahum
سِرَّهُمْ
राज़ उनके
wanajwāhum
وَنَجْوَىٰهُمْ
और सरगोशियाँ उनकी
wa-anna
وَأَنَّ
और बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
ʿallāmu
عَلَّٰمُ
ख़ूब जानने वाला है
l-ghuyūbi
ٱلْغُيُوبِ
ग़ैबों को
क्या उन्हें खबर नहीं कि अल्लाह उनका भेद और उनकी कानाफुसियों को अच्छी तरह जानता है और यह कि अल्लाह परोक्ष की सारी बातों को भली-भाँति जानता है ([९] अत-तौबा: 78)
Tafseer (तफ़सीर )
७९

اَلَّذِيْنَ يَلْمِزُوْنَ الْمُطَّوِّعِيْنَ مِنَ الْمُؤْمِنِيْنَ فِى الصَّدَقٰتِ وَالَّذِيْنَ لَا يَجِدُوْنَ اِلَّا جُهْدَهُمْ فَيَسْخَرُوْنَ مِنْهُمْ ۗسَخِرَ اللّٰهُ مِنْهُمْ ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌ اَلِيْمٌ ٧٩

alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो लोग जो
yalmizūna
يَلْمِزُونَ
वो ताना देते हैं
l-muṭawiʿīna
ٱلْمُطَّوِّعِينَ
ख़ुशी से देने वालों को
mina
مِنَ
मोमिनों में से
l-mu'minīna
ٱلْمُؤْمِنِينَ
मोमिनों में से
فِى
सदक़ात में
l-ṣadaqāti
ٱلصَّدَقَٰتِ
सदक़ात में
wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और उनको (भी) जो
لَا
नहीं वो पाते
yajidūna
يَجِدُونَ
नहीं वो पाते
illā
إِلَّا
सिवाय
juh'dahum
جُهْدَهُمْ
अपनी मेहनत के
fayaskharūna
فَيَسْخَرُونَ
तो वो मज़ाक़ उड़ाते हैं
min'hum
مِنْهُمْۙ
उनका
sakhira
سَخِرَ
मज़ाक़ उड़ाता है
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
min'hum
مِنْهُمْ
उनका
walahum
وَلَهُمْ
और उनके लिए
ʿadhābun
عَذَابٌ
अज़ाब है
alīmun
أَلِيمٌ
दर्दनाक
जो लोग स्वेच्छापूर्वक देनेवाले मोमिनों पर उनके सदक़ो (दान) के विषय में चोटें करते है और उन लोगों का उपहास करते है, जिनके पास इसके सिवा कुछ नहीं जो वे मशक़्क़त उठाकर देते है, उन (उपहास करनेवालों) का उपहास अल्लाह ने किया और उनके लिए दुखद यातना है ([९] अत-तौबा: 79)
Tafseer (तफ़सीर )
८०

اِسْتَغْفِرْ لَهُمْ اَوْ لَا تَسْتَغْفِرْ لَهُمْۗ اِنْ تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ سَبْعِيْنَ مَرَّةً فَلَنْ يَّغْفِرَ اللّٰهُ لَهُمْ ۗذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ كَفَرُوْا بِاللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖۗ وَاللّٰهُ لَا يَهْدِى الْقَوْمَ الْفٰسِقِيْنَ ࣖ ٨٠

is'taghfir
ٱسْتَغْفِرْ
आप बख़्शिश माँगिए
lahum
لَهُمْ
उनके लिए
aw
أَوْ
या
لَا
ना आप बख़्शिश माँगिए
tastaghfir
تَسْتَغْفِرْ
ना आप बख़्शिश माँगिए
lahum
لَهُمْ
उनके लिए
in
إِن
अगर
tastaghfir
تَسْتَغْفِرْ
आप बख़्शिश माँगेंगे
lahum
لَهُمْ
उनके लिए
sabʿīna
سَبْعِينَ
सत्तर
marratan
مَرَّةً
बार
falan
فَلَن
पस हरगिज़ ना
yaghfira
يَغْفِرَ
माफ़ करेगा
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
lahum
لَهُمْۚ
उन्हें
dhālika
ذَٰلِكَ
ये
bi-annahum
بِأَنَّهُمْ
बवजह उसके कि उन्होंने
kafarū
كَفَرُوا۟
कुफ़्र किया
bil-lahi
بِٱللَّهِ
अल्लाह का
warasūlihi
وَرَسُولِهِۦۗ
और उसके रसूल का
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
لَا
नहीं हिदायत देता
yahdī
يَهْدِى
नहीं हिदायत देता
l-qawma
ٱلْقَوْمَ
उन लोगों को
l-fāsiqīna
ٱلْفَٰسِقِينَ
जो फ़ासिक़ हैं
तुम उनके लिए क्षमा की प्रार्थना करो या उनके लिए क्षमा की प्रार्थना न करो। यदि तुम उनके लिए सत्तर बार भी क्षमा की प्रार्थना करोगे, तो भी अल्लाह उन्हें क्षमा नहीं करेगा, यह इसलिए कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया और अल्लाह अवज्ञाकारियों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता ([९] अत-तौबा: 80)
Tafseer (तफ़सीर )