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सूरा अत-तौबा - Page: 7

At-Tawbah

(The Repentance)

६१

وَمِنْهُمُ الَّذِيْنَ يُؤْذُوْنَ النَّبِيَّ وَيَقُوْلُوْنَ هُوَ اُذُنٌ ۗقُلْ اُذُنُ خَيْرٍ لَّكُمْ يُؤْمِنُ بِاللّٰهِ وَيُؤْمِنُ لِلْمُؤْمِنِيْنَ وَرَحْمَةٌ لِّلَّذِيْنَ اٰمَنُوْا مِنْكُمْۗ وَالَّذِيْنَ يُؤْذُوْنَ رَسُوْلَ اللّٰهِ لَهُمْ عَذَابٌ اَلِيْمٌ ٦١

wamin'humu
وَمِنْهُمُ
और कुछ उनमें से हैं
alladhīna
ٱلَّذِينَ
जो
yu'dhūna
يُؤْذُونَ
अज़ियत देते हैं
l-nabiya
ٱلنَّبِىَّ
नबी को
wayaqūlūna
وَيَقُولُونَ
और वो कहते हैं
huwa
هُوَ
वो
udhunun
أُذُنٌۚ
कान हैं
qul
قُلْ
कह दीजिए
udhunu
أُذُنُ
कान हैं
khayrin
خَيْرٍ
भलाई का
lakum
لَّكُمْ
तुम्हारे लिए
yu'minu
يُؤْمِنُ
वो ईमान रखता है
bil-lahi
بِٱللَّهِ
अल्लाह पर
wayu'minu
وَيُؤْمِنُ
और वो ऐतमाद करता है
lil'mu'minīna
لِلْمُؤْمِنِينَ
मोमिनों पर
waraḥmatun
وَرَحْمَةٌ
और रहमत है
lilladhīna
لِّلَّذِينَ
उनके लिए जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
minkum
مِنكُمْۚ
तुम में से
wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जो
yu'dhūna
يُؤْذُونَ
अज़ियत देते हैं
rasūla
رَسُولَ
अल्लाह के रसूल को
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के रसूल को
lahum
لَهُمْ
उनके लिए
ʿadhābun
عَذَابٌ
अज़ाब है
alīmun
أَلِيمٌ
दर्दनाक
और उनमें कुछ लोग ऐसे हैं, जो नबी को दुख देते है और कहते है, 'वह तो निरा कान है!' कह दो, 'वह सर्वथा कान तुम्हारी भलाई के लिए है। वह अल्लाह पर ईमान रखता है और ईमानवालों पर भी विश्वास करता है। और उन लोगों के लिए सर्वथा दयालुता है जो तुममें से ईमान लाए है। रहे वे लोग जो अल्लाह के रसूल को दुख देते है, उनके लिए दुखद यातना है।' ([९] अत-तौबा: 61)
Tafseer (तफ़सीर )
६२

يَحْلِفُوْنَ بِاللّٰهِ لَكُمْ لِيُرْضُوْكُمْ وَاللّٰهُ وَرَسُوْلُهٗٓ اَحَقُّ اَنْ يُّرْضُوْهُ اِنْ كَانُوْا مُؤْمِنِيْنَ ٦٢

yaḥlifūna
يَحْلِفُونَ
वो क़समें खाते हैं
bil-lahi
بِٱللَّهِ
अल्लाह की
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
liyur'ḍūkum
لِيُرْضُوكُمْ
ताकि वो राज़ी करें तुम्हें
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
warasūluhu
وَرَسُولُهُۥٓ
और उसका रसूल
aḥaqqu
أَحَقُّ
ज़्यादा हक़दार है
an
أَن
कि
yur'ḍūhu
يُرْضُوهُ
वो राज़ी करें उसे
in
إِن
अगर
kānū
كَانُوا۟
हैं वो
mu'minīna
مُؤْمِنِينَ
ईमान लाने वाले
वे तुम लोगों के सामने अल्लाह की क़समें खाते है, ताकि तुम्हें राज़ी कर लें, हालाँकि यदि वे मोमिन है तो अल्लाह और उसका रसूल इसके ज़्यादा हक़दार है कि उनको राज़ी करें ([९] अत-तौबा: 62)
Tafseer (तफ़सीर )
६३

اَلَمْ يَعْلَمُوْٓا اَنَّهٗ مَنْ يُّحَادِدِ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ فَاَنَّ لَهٗ نَارَ جَهَنَّمَ خَالِدًا فِيْهَاۗ ذٰلِكَ الْخِزْيُ الْعَظِيْمُ ٦٣

alam
أَلَمْ
क्या नहीं
yaʿlamū
يَعْلَمُوٓا۟
वो जानते
annahu
أَنَّهُۥ
बेशक वो
man
مَن
जो
yuḥādidi
يُحَادِدِ
मुख़ालिफ़त करता है
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह की
warasūlahu
وَرَسُولَهُۥ
और उसके रसूल की
fa-anna
فَأَنَّ
तो बेशक
lahu
لَهُۥ
उसके लिए
nāra
نَارَ
आग है
jahannama
جَهَنَّمَ
जहन्नम की
khālidan
خَٰلِدًا
हमेशा रहने वाला है
fīhā
فِيهَاۚ
उसमें
dhālika
ذَٰلِكَ
ये
l-khiz'yu
ٱلْخِزْىُ
रुस्वाई है
l-ʿaẓīmu
ٱلْعَظِيمُ
बहुत बड़ी
क्या उन्हें मालूम नहीं कि जो अल्लाह औऱ उसके रसूल का विरोध करता है, उसके लिए जहन्नम की आग है जिसमें वह सदैव रहेगा। यह बहुत बड़ी रुसवाई है ([९] अत-तौबा: 63)
Tafseer (तफ़सीर )
६४

يَحْذَرُ الْمُنٰفِقُوْنَ اَنْ تُنَزَّلَ عَلَيْهِمْ سُوْرَةٌ تُنَبِّئُهُمْ بِمَا فِيْ قُلُوْبِهِمْۗ قُلِ اسْتَهْزِءُوْاۚ اِنَّ اللّٰهَ مُخْرِجٌ مَّا تَحْذَرُوْنَ ٦٤

yaḥdharu
يَحْذَرُ
डरते हैं
l-munāfiqūna
ٱلْمُنَٰفِقُونَ
मुनाफ़िक़
an
أَن
कि
tunazzala
تُنَزَّلَ
उतारी जाए
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
sūratun
سُورَةٌ
कोई सूरत
tunabbi-uhum
تُنَبِّئُهُم
जो ख़बर दे उन्हें
bimā
بِمَا
उसकी जो
فِى
उनके दिलों में है
qulūbihim
قُلُوبِهِمْۚ
उनके दिलों में है
quli
قُلِ
कह दीजिए
is'tahziū
ٱسْتَهْزِءُوٓا۟
कि मज़ाक़ उड़ा लो
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
mukh'rijun
مُخْرِجٌ
ज़ाहिर करने वाला है
مَّا
वो जिससे
taḥdharūna
تَحْذَرُونَ
तुम डरते हो
मुनाफ़िक़ (कपटाचारी) डर रहे है कि कहीं उनके बारे में कोई ऐसी सूरा न अवतरित हो जाए जो वह सब कुछ उनपर खोल दे, जो उनके दिलों में है। कह दो, 'मज़ाक़ उड़ा लो, अल्लाह तो उसे प्रकट करके रहेगा, जिसका तुम्हें डर है।' ([९] अत-तौबा: 64)
Tafseer (तफ़सीर )
६५

وَلَىِٕنْ سَاَلْتَهُمْ لَيَقُوْلُنَّ اِنَّمَا كُنَّا نَخُوْضُ وَنَلْعَبُۗ قُلْ اَبِاللّٰهِ وَاٰيٰتِهٖ وَرَسُوْلِهٖ كُنْتُمْ تَسْتَهْزِءُوْنَ ٦٥

wala-in
وَلَئِن
और अलबत्ता अगर
sa-altahum
سَأَلْتَهُمْ
पूछो तुम उनसे
layaqūlunna
لَيَقُولُنَّ
अलबत्ता वो ज़रूर कहेंगे
innamā
إِنَّمَا
बेशक
kunnā
كُنَّا
थे हम
nakhūḍu
نَخُوضُ
हम बहस कर रहे
wanalʿabu
وَنَلْعَبُۚ
और हम दिल्लगी करते
qul
قُلْ
कह दीजिए
abil-lahi
أَبِٱللَّهِ
क्या अल्लाह का
waāyātihi
وَءَايَٰتِهِۦ
और उसकी आयात का
warasūlihi
وَرَسُولِهِۦ
और उसके रसूल का
kuntum
كُنتُمْ
थे तुम
tastahziūna
تَسْتَهْزِءُونَ
मज़ाक़ उड़ाते
और यदि उनसे पूछो तो कह देंगे, 'हम तो केवल बातें और हँसी-खेल कर रहे थे।' कहो, 'क्या अल्लाह, उसकी आयतों और उसके रसूल के साथ हँसी-मज़ाक़ करते थे? ([९] अत-तौबा: 65)
Tafseer (तफ़सीर )
६६

لَا تَعْتَذِرُوْا قَدْ كَفَرْتُمْ بَعْدَ اِيْمَانِكُمْ ۗ اِنْ نَّعْفُ عَنْ طَاۤىِٕفَةٍ مِّنْكُمْ نُعَذِّبْ طَاۤىِٕفَةً ۢ بِاَنَّهُمْ كَانُوْا مُجْرِمِيْنَ ࣖ ٦٦

لَا
ना तुम उज़र पेश करो
taʿtadhirū
تَعْتَذِرُوا۟
ना तुम उज़र पेश करो
qad
قَدْ
तहक़ीक़
kafartum
كَفَرْتُم
कुफ़्र किया तुमने
baʿda
بَعْدَ
बाद
īmānikum
إِيمَٰنِكُمْۚ
अपने ईमान के
in
إِن
अगर
naʿfu
نَّعْفُ
हम माफ़ कर दें
ʿan
عَن
एक गिरोह को
ṭāifatin
طَآئِفَةٍ
एक गिरोह को
minkum
مِّنكُمْ
तुम में से
nuʿadhib
نُعَذِّبْ
(तो) हम अज़ाब देंगे
ṭāifatan
طَآئِفَةًۢ
एक गिरोह को
bi-annahum
بِأَنَّهُمْ
बवजह उसके कि वो
kānū
كَانُوا۟
हैं वो
muj'rimīna
مُجْرِمِينَ
मुजरिम
'बहाने न बनाओ, तुमने अपने ईमान के पश्चात इनकार किया। यदि हम तुम्हारे कुछ लोगों को क्षमा भी कर दें तो भी कुछ लोगों को यातना देकर ही रहेंगे, क्योंकि वे अपराधी हैं।' ([९] अत-तौबा: 66)
Tafseer (तफ़सीर )
६७

اَلْمُنٰفِقُوْنَ وَالْمُنٰفِقٰتُ بَعْضُهُمْ مِّنْۢ بَعْضٍۘ يَأْمُرُوْنَ بِالْمُنْكَرِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمَعْرُوْفِ وَيَقْبِضُوْنَ اَيْدِيَهُمْۗ نَسُوا اللّٰهَ فَنَسِيَهُمْ ۗ اِنَّ الْمُنٰفِقِيْنَ هُمُ الْفٰسِقُوْنَ ٦٧

al-munāfiqūna
ٱلْمُنَٰفِقُونَ
मुनाफ़िक़ मर्द
wal-munāfiqātu
وَٱلْمُنَٰفِقَٰتُ
और मुनाफ़िक़ औरतें
baʿḍuhum
بَعْضُهُم
बाज़ उनके
min
مِّنۢ
बाज़ से हैं
baʿḍin
بَعْضٍۚ
बाज़ से हैं
yamurūna
يَأْمُرُونَ
वो हुक्म देते हैं
bil-munkari
بِٱلْمُنكَرِ
बुराई का
wayanhawna
وَيَنْهَوْنَ
और वो रोकते हैं
ʿani
عَنِ
भलाई से
l-maʿrūfi
ٱلْمَعْرُوفِ
भलाई से
wayaqbiḍūna
وَيَقْبِضُونَ
और वो बंद रखते हैं
aydiyahum
أَيْدِيَهُمْۚ
अपने हाथों को
nasū
نَسُوا۟
वो भूल गए
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह को
fanasiyahum
فَنَسِيَهُمْۗ
तो उसने भुला दिया उन्हें
inna
إِنَّ
बेशक
l-munāfiqīna
ٱلْمُنَٰفِقِينَ
मुनफिक़
humu
هُمُ
वो ही
l-fāsiqūna
ٱلْفَٰسِقُونَ
फ़ासिक़/नाफ़रमान हैं
मुनाफ़िक़ पुरुष और मुनाफ़िक़ स्त्रियाँ सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। वे बुराई का हुक्म देते है और भलाई से रोकते है और हाथों को बन्द किए रहते है। वे अल्लाह को भूल बैठे तो उसने भी उन्हें भुला दिया। निश्चय ही मुनाफ़िक़ अवज्ञाकारी हैं ([९] अत-तौबा: 67)
Tafseer (तफ़सीर )
६८

وَعَدَ اللّٰهُ الْمُنٰفِقِيْنَ وَالْمُنٰفِقٰتِ وَالْكُفَّارَ نَارَ جَهَنَّمَ خٰلِدِيْنَ فِيْهَاۗ هِيَ حَسْبُهُمْ ۚوَلَعَنَهُمُ اللّٰهُ ۚوَلَهُمْ عَذَابٌ مُّقِيْمٌۙ ٦٨

waʿada
وَعَدَ
वादा किया
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
l-munāfiqīna
ٱلْمُنَٰفِقِينَ
मुनाफ़िक़ मर्दों से
wal-munāfiqāti
وَٱلْمُنَٰفِقَٰتِ
और मुनाफ़िक़ औरतों से
wal-kufāra
وَٱلْكُفَّارَ
और काफ़िरों से
nāra
نَارَ
आग का
jahannama
جَهَنَّمَ
जहन्नम की
khālidīna
خَٰلِدِينَ
हमेशा रहने वाले हैं
fīhā
فِيهَاۚ
उसमें
hiya
هِىَ
वो ही
ḥasbuhum
حَسْبُهُمْۚ
काफ़ी है उन्हें
walaʿanahumu
وَلَعَنَهُمُ
और लानत की उन पर
l-lahu
ٱللَّهُۖ
अल्लाह ने
walahum
وَلَهُمْ
और उनके लिए
ʿadhābun
عَذَابٌ
अज़ाब है
muqīmun
مُّقِيمٌ
क़ायम रहने वाला
अल्लाह ने मुनाफ़िक़ पुरुषों और मुनाफ़िक़ स्त्रियों और इनकार करनेवालों से जहन्नम की आग का वादा किया है, जिसमें वे सदैव ही रहेंगे। वही उनके लिए काफ़ी है और अल्लाह ने उनपर लानत की, और उनके लिए स्थाई यातना है ([९] अत-तौबा: 68)
Tafseer (तफ़सीर )
६९

كَالَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِكُمْ كَانُوْٓا اَشَدَّ مِنْكُمْ قُوَّةً وَّاَكْثَرَ اَمْوَالًا وَّاَوْلَادًاۗ فَاسْتَمْتَعُوْا بِخَلَاقِهِمْ فَاسْتَمْتَعْتُمْ بِخَلَاقِكُمْ كَمَا اسْتَمْتَعَ الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِكُمْ بِخَلَاقِهِمْ وَخُضْتُمْ كَالَّذِيْ خَاضُوْاۗ اُولٰۤىِٕكَ حَبِطَتْ اَعْمَالُهُمْ فِى الدُّنْيَا وَالْاٰخِرَةِ ۚوَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْخٰسِرُوْنَ ٦٩

ka-alladhīna
كَٱلَّذِينَ
उन लोगों की तरह जो
min
مِن
तुमसे पहले थे
qablikum
قَبْلِكُمْ
तुमसे पहले थे
kānū
كَانُوٓا۟
थे वो
ashadda
أَشَدَّ
बहुत शदीद
minkum
مِنكُمْ
तुम से
quwwatan
قُوَّةً
क़ुव्वत में
wa-akthara
وَأَكْثَرَ
और ज़्यादा थे
amwālan
أَمْوَٰلًا
माल में
wa-awlādan
وَأَوْلَٰدًا
और औलाद में
fa-is'tamtaʿū
فَٱسْتَمْتَعُوا۟
पस उन्होंने फ़ायदा उठाया
bikhalāqihim
بِخَلَٰقِهِمْ
अपने हिस्से से
fa-is'tamtaʿtum
فَٱسْتَمْتَعْتُم
पस तुमने फ़ायदा उठाया
bikhalāqikum
بِخَلَٰقِكُمْ
अपने हिस्से से
kamā
كَمَا
जिस तरह
is'tamtaʿa
ٱسْتَمْتَعَ
फ़ायदा उठाया
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उन्होंने जो
min
مِن
जो तुमसे पहले थे
qablikum
قَبْلِكُم
जो तुमसे पहले थे
bikhalāqihim
بِخَلَٰقِهِمْ
अपने हिस्से से
wakhuḍ'tum
وَخُضْتُمْ
और बहस की तुमने
ka-alladhī
كَٱلَّذِى
जिस तरह
khāḍū
خَاضُوٓا۟ۚ
उन्होंने बहस की
ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही लोग हैं
ḥabiṭat
حَبِطَتْ
ज़ाया हो गए
aʿmāluhum
أَعْمَٰلُهُمْ
आमाल उनके
فِى
दुनिया में
l-dun'yā
ٱلدُّنْيَا
दुनिया में
wal-ākhirati
وَٱلْءَاخِرَةِۖ
और आख़िरत में
wa-ulāika
وَأُو۟لَٰٓئِكَ
और यही लोग हैं
humu
هُمُ
वो
l-khāsirūna
ٱلْخَٰسِرُونَ
जो ख़सारा पाने वाले हैं
उन लोगों की तरह, जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं, वे शक्ति में तुमसे बढ़-बढ़कर थे और माल और औलाद में भी बढ़े हुए थे। फिर उन्होंने अपने हिस्से का मज़ा उठाना चाहा और तुमने भी अपने हिस्से का मज़ा उठाना चाहा, जिस प्रकार कि तुमसे पहले के लोगों ने अपने हिस्से का मज़ा उठाना चाहा, और जिस वाद-विवाद में तुम पड़े थे तुम भी वाद-विवाद में पड़ गए। ये वही लोग है जिनका किया-धरा दुनिया और आख़िरत में अकारथ गया, और वही घाटे में है ([९] अत-तौबा: 69)
Tafseer (तफ़सीर )
७०

اَلَمْ يَأْتِهِمْ نَبَاُ الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ قَوْمِ نُوْحٍ وَّعَادٍ وَّثَمُوْدَ ەۙ وَقَوْمِ اِبْرٰهِيْمَ وَاَصْحٰبِ مَدْيَنَ وَالْمُؤْتَفِكٰتِۗ اَتَتْهُمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنٰتِۚ فَمَا كَانَ اللّٰهُ لِيَظْلِمَهُمْ وَلٰكِنْ كَانُوْٓا اَنْفُسَهُمْ يَظْلِمُوْنَ ٧٠

alam
أَلَمْ
क्या नहीं
yatihim
يَأْتِهِمْ
आई उनके पास
naba-u
نَبَأُ
ख़बर
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उनकी जो
min
مِن
उनसे पहले थे
qablihim
قَبْلِهِمْ
उनसे पहले थे
qawmi
قَوْمِ
क़ौमे नूह
nūḥin
نُوحٍ
क़ौमे नूह
waʿādin
وَعَادٍ
और आद
wathamūda
وَثَمُودَ
और समूद
waqawmi
وَقَوْمِ
और कौमे इब्राहीम
ib'rāhīma
إِبْرَٰهِيمَ
और कौमे इब्राहीम
wa-aṣḥābi
وَأَصْحَٰبِ
और मदयन वाले
madyana
مَدْيَنَ
और मदयन वाले
wal-mu'tafikāti
وَٱلْمُؤْتَفِكَٰتِۚ
और उल्टी हुई बस्तियों वाले
atathum
أَتَتْهُمْ
आए उनके पास
rusuluhum
رُسُلُهُم
रसूल उनके
bil-bayināti
بِٱلْبَيِّنَٰتِۖ
साथ वाज़ेह दलाइल के
famā
فَمَا
पस नहीं
kāna
كَانَ
है
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
liyaẓlimahum
لِيَظْلِمَهُمْ
कि वो ज़ुल्म करे उन पर
walākin
وَلَٰكِن
और लेकिन
kānū
كَانُوٓا۟
थे वो
anfusahum
أَنفُسَهُمْ
अपनी ही जानों पर
yaẓlimūna
يَظْلِمُونَ
वो ज़ुल्म करते
क्या उन्हें उन लोगों का वृतान्त नहीं पहुँचा जो उनसे पहले गुज़रे - नूह के लोगो का, आद और समूद का, और इबराहीम की क़ौम का और मदयनवालों का और उन बस्तियों का जिन्हें उलट दिया गया? उसके रसूल उनके पास खुली निशानियाँ लेकर आए थे, फिर अल्लाह ऐसा न था कि वह उनपर अत्याचार करता, किन्तु वे स्वयं अपने-आप पर अत्याचार कर रहे थे ([९] अत-तौबा: 70)
Tafseer (तफ़सीर )