قُلْ لَّنْ يُّصِيْبَنَآ اِلَّا مَا كَتَبَ اللّٰهُ لَنَاۚ هُوَ مَوْلٰىنَا وَعَلَى اللّٰهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُوْنَ ٥١
- qul
- قُل
- कह दीजिए
- lan
- لَّن
- हरगिज़ नहीं
- yuṣībanā
- يُصِيبَنَآ
- पहुँचेगा हमें
- illā
- إِلَّا
- मगर (वो ही)
- mā
- مَا
- जो
- kataba
- كَتَبَ
- लिख दिया
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- lanā
- لَنَا
- हमारे लिए
- huwa
- هُوَ
- वो
- mawlānā
- مَوْلَىٰنَاۚ
- मौला है हमारा
- waʿalā
- وَعَلَى
- और अल्लाह ही पर
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- और अल्लाह ही पर
- falyatawakkali
- فَلْيَتَوَكَّلِ
- पस चाहिए कि तवक्कल करें
- l-mu'minūna
- ٱلْمُؤْمِنُونَ
- ईमान लाने वाले
कह दो, 'हमें कुछ भी पेश नहीं आ सकता सिवाय उसके जो अल्लाह ने लिख दिया है। वही हमारा स्वामी है। और ईमानवालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।' ([९] अत-तौबा: 51)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ هَلْ تَرَبَّصُوْنَ بِنَآ اِلَّآ اِحْدَى الْحُسْنَيَيْنِۗ وَنَحْنُ نَتَرَبَّصُ بِكُمْ اَنْ يُّصِيْبَكُمُ اللّٰهُ بِعَذَابٍ مِّنْ عِنْدِهٖٓ اَوْ بِاَيْدِيْنَاۖ فَتَرَبَّصُوْٓا اِنَّا مَعَكُمْ مُّتَرَبِّصُوْنَ ٥٢
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- hal
- هَلْ
- नहीं
- tarabbaṣūna
- تَرَبَّصُونَ
- तुम इन्तिज़ार करते
- binā
- بِنَآ
- हमारे बारे में
- illā
- إِلَّآ
- मगर
- iḥ'dā
- إِحْدَى
- एक का
- l-ḥus'nayayni
- ٱلْحُسْنَيَيْنِۖ
- दो भलाईयों में से
- wanaḥnu
- وَنَحْنُ
- और हम
- natarabbaṣu
- نَتَرَبَّصُ
- हम इन्तिज़ार करते हैं
- bikum
- بِكُمْ
- तुम्हारे बारे में
- an
- أَن
- कि
- yuṣībakumu
- يُصِيبَكُمُ
- पहुँचाए तुम्हें
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- biʿadhābin
- بِعَذَابٍ
- कोई अज़ाब
- min
- مِّنْ
- अपने पास से
- ʿindihi
- عِندِهِۦٓ
- अपने पास से
- aw
- أَوْ
- या
- bi-aydīnā
- بِأَيْدِينَاۖ
- हमारे हाथों से
- fatarabbaṣū
- فَتَرَبَّصُوٓا۟
- पस तुम इन्तिज़ार करो
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- maʿakum
- مَعَكُم
- साथ तुम्हारे
- mutarabbiṣūna
- مُّتَرَبِّصُونَ
- इन्तिज़ार करने वाले हैं
कहो, 'तुम हमारे लिए दो भलाईयों में से किसी एक भलाई के सिवा किसकी प्रतीक्षा कर सकते है? जबकि हमें तुम्हारे हक़ में इसी की प्रतिक्षा है कि अल्लाह अपनी ओर से तुम्हें कोई यातना देता है या हमारे हाथों दिलाता है। अच्छा तो तुम भी प्रतीक्षा करो, हम भी तुम्हारे साथ प्रतीक्षा कर रहे है।' ([९] अत-तौबा: 52)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ اَنْفِقُوْا طَوْعًا اَوْ كَرْهًا لَّنْ يُّتَقَبَّلَ مِنْكُمْ ۗاِنَّكُمْ كُنْتُمْ قَوْمًا فٰسِقِيْنَ ٥٣
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- anfiqū
- أَنفِقُوا۟
- ख़र्च करो
- ṭawʿan
- طَوْعًا
- ख़ुशी से
- aw
- أَوْ
- या
- karhan
- كَرْهًا
- नाख़ुशी से
- lan
- لَّن
- हरगिज़ नहीं
- yutaqabbala
- يُتَقَبَّلَ
- वो क़ुबूल किया जाएगा
- minkum
- مِنكُمْۖ
- तुम से
- innakum
- إِنَّكُمْ
- बेशक तुम
- kuntum
- كُنتُمْ
- हो तुम
- qawman
- قَوْمًا
- लोग
- fāsiqīna
- فَٰسِقِينَ
- नाफ़रमान
कह दो, 'तुम चाहे स्वेच्छापूर्वक ख़र्च करो या अनिच्छापूर्वक, तुमसे कुछ भी स्वीकार न किया जाएगा। निस्संदेह तुम अवज्ञाकारी लोग हो।' ([९] अत-तौबा: 53)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَا مَنَعَهُمْ اَنْ تُقْبَلَ مِنْهُمْ نَفَقٰتُهُمْ اِلَّآ اَنَّهُمْ كَفَرُوْا بِاللّٰهِ وَبِرَسُوْلِهٖ وَلَا يَأْتُوْنَ الصَّلٰوةَ اِلَّا وَهُمْ كُسَالٰى وَلَا يُنْفِقُوْنَ اِلَّا وَهُمْ كٰرِهُوْنَ ٥٤
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- manaʿahum
- مَنَعَهُمْ
- मानेअ/रुकावट हुआ उनके
- an
- أَن
- कि
- tuq'bala
- تُقْبَلَ
- क़ुबूल किए जाऐं
- min'hum
- مِنْهُمْ
- उनसे
- nafaqātuhum
- نَفَقَٰتُهُمْ
- सदक़ात उनके
- illā
- إِلَّآ
- मगर
- annahum
- أَنَّهُمْ
- ये कि वो
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- उन्होंने कुफ़्र किया
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- साथ अल्लाह के
- wabirasūlihi
- وَبِرَسُولِهِۦ
- और साथ उसके रसूल के
- walā
- وَلَا
- और नहीं
- yatūna
- يَأْتُونَ
- वो आते
- l-ṣalata
- ٱلصَّلَوٰةَ
- नमाज़ को
- illā
- إِلَّا
- मगर
- wahum
- وَهُمْ
- इस हाल में कि वो
- kusālā
- كُسَالَىٰ
- सुस्त होते हैं
- walā
- وَلَا
- और नहीं
- yunfiqūna
- يُنفِقُونَ
- वो ख़र्च करते
- illā
- إِلَّا
- मगर
- wahum
- وَهُمْ
- इस हाल में कि वो
- kārihūna
- كَٰرِهُونَ
- नापसंद करने वाले हैं
उनके ख़र्च के स्वीकृत होने में इसके अतिरिक्त और कोई चीज़ बाधक नहीं कि उन्होंने अल्लाह औऱ उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया। नमाज़ को आते है तो बस हारे जी आते है और ख़र्च करते है, तो अनिच्छापूर्वक ही ([९] अत-तौबा: 54)Tafseer (तफ़सीर )
فَلَا تُعْجِبْكَ اَمْوَالُهُمْ وَلَآ اَوْلَادُهُمْ ۗاِنَّمَا يُرِيْدُ اللّٰهُ لِيُعَذِّبَهُمْ بِهَا فِى الْحَيٰوةِ الدُّنْيَا وَتَزْهَقَ اَنْفُسُهُمْ وَهُمْ كٰفِرُوْنَ ٥٥
- falā
- فَلَا
- पस ना
- tuʿ'jib'ka
- تُعْجِبْكَ
- ताज्जुब में डालें आपको
- amwāluhum
- أَمْوَٰلُهُمْ
- माल उनके
- walā
- وَلَآ
- और ना
- awlāduhum
- أَوْلَٰدُهُمْۚ
- औलाद उनकी
- innamā
- إِنَّمَا
- बेशक
- yurīdu
- يُرِيدُ
- चाहता है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- liyuʿadhibahum
- لِيُعَذِّبَهُم
- कि वो अज़ाब दे उन्हें
- bihā
- بِهَا
- साथ उनके
- fī
- فِى
- ज़िन्दगी में
- l-ḥayati
- ٱلْحَيَوٰةِ
- ज़िन्दगी में
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- दुनिया की
- watazhaqa
- وَتَزْهَقَ
- और निकलें
- anfusuhum
- أَنفُسُهُمْ
- जानें उनकी
- wahum
- وَهُمْ
- इस हाल में कि वो
- kāfirūna
- كَٰفِرُونَ
- काफ़िर हों
अतः उनके माल तुम्हें मोहित न करें और न उनकी सन्तान ही। अल्लाह तो बस यह चाहता है कि उनके द्वारा उन्हें सांसारिक जीवन में यातना दे और उनके प्राण इस दशा में निकलें कि वे इनकार करनेवाले ही रहे ([९] अत-तौबा: 55)Tafseer (तफ़सीर )
وَيَحْلِفُوْنَ بِاللّٰهِ اِنَّهُمْ لَمِنْكُمْۗ وَمَا هُمْ مِّنْكُمْ وَلٰكِنَّهُمْ قَوْمٌ يَّفْرَقُوْنَ ٥٦
- wayaḥlifūna
- وَيَحْلِفُونَ
- और वो कसमें खाते हैं
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह की
- innahum
- إِنَّهُمْ
- बेशक वो
- laminkum
- لَمِنكُمْ
- अलबत्ता तुम में से हैं
- wamā
- وَمَا
- हालाँकि नहीं
- hum
- هُم
- वो
- minkum
- مِّنكُمْ
- तुम में से
- walākinnahum
- وَلَٰكِنَّهُمْ
- और लेकिन वो
- qawmun
- قَوْمٌ
- ऐसे लोग हैं
- yafraqūna
- يَفْرَقُونَ
- जो डरते हैं
वे अल्लाह की क़समें खाते है कि वे तुम्हीं में से है, हालाँकि वे तुममें से नहीं है, बल्कि वे ऐसे लोग है जो त्रस्त रहते है ([९] अत-तौबा: 56)Tafseer (तफ़सीर )
لَوْ يَجِدُوْنَ مَلْجَاً اَوْ مَغٰرٰتٍ اَوْ مُدَّخَلًا لَّوَلَّوْا اِلَيْهِ وَهُمْ يَجْمَحُوْنَ ٥٧
- law
- لَوْ
- अगर
- yajidūna
- يَجِدُونَ
- वो पाऐं
- malja-an
- مَلْجَـًٔا
- कोई जाय पनाह
- aw
- أَوْ
- या
- maghārātin
- مَغَٰرَٰتٍ
- कोई ग़ार
- aw
- أَوْ
- या
- muddakhalan
- مُدَّخَلًا
- कोई घुस बैठने की जगह
- lawallaw
- لَّوَلَّوْا۟
- अलबत्ता वो मुड़ कर भाग जाऐं
- ilayhi
- إِلَيْهِ
- तरफ़ उसके
- wahum
- وَهُمْ
- इस हाल में कि वो
- yajmaḥūna
- يَجْمَحُونَ
- वो सरपट दौड़ते हैं
यदि वे कोई शरण पा लें या कोई गुफा या घुस बैठने की जगह, तो अवश्य ही वे बगटुट उसकी ओर उल्टे भाग जाएँ ([९] अत-तौबा: 57)Tafseer (तफ़सीर )
وَمِنْهُمْ مَّنْ يَّلْمِزُكَ فِى الصَّدَقٰتِۚ فَاِنْ اُعْطُوْا مِنْهَا رَضُوْا وَاِنْ لَّمْ يُعْطَوْا مِنْهَآ اِذَا هُمْ يَسْخَطُوْنَ ٥٨
- wamin'hum
- وَمِنْهُم
- और कुछ उनमें से हैं
- man
- مَّن
- जो
- yalmizuka
- يَلْمِزُكَ
- इलज़ाम लगाते हैं आप पर
- fī
- فِى
- सदक़ात के बारे में
- l-ṣadaqāti
- ٱلصَّدَقَٰتِ
- सदक़ात के बारे में
- fa-in
- فَإِنْ
- फिर अगर
- uʿ'ṭū
- أُعْطُوا۟
- वो दिए जाऐं
- min'hā
- مِنْهَا
- उनमें से
- raḍū
- رَضُوا۟
- वो राज़ी हो जाते हैं
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- lam
- لَّمْ
- ना
- yuʿ'ṭaw
- يُعْطَوْا۟
- वो दिए जाऐं
- min'hā
- مِنْهَآ
- उनमें से
- idhā
- إِذَا
- तब
- hum
- هُمْ
- वो
- yaskhaṭūna
- يَسْخَطُونَ
- वो नाराज़ हो जाते हैं
और उनमें से कुछ लोग सदक़ो के विषय में तुम पर चोटे करते है। किन्तु यदि उन्हें उसमें से दे दिया जाए तो प्रसन्न हो जाएँ और यदि उन्हें उसमें से न दिया गया तो क्या देखोगे कि वे क्रोधित होने लगते है ([९] अत-तौबा: 58)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَوْ اَنَّهُمْ رَضُوْا مَآ اٰتٰىهُمُ اللّٰهُ وَرَسُوْلُهٗۙ وَقَالُوْا حَسْبُنَا اللّٰهُ سَيُؤْتِيْنَا اللّٰهُ مِنْ فَضْلِهٖ وَرَسُوْلُهٗٓ اِنَّآ اِلَى اللّٰهِ رَاغِبُوْنَ ࣖ ٥٩
- walaw
- وَلَوْ
- और काश
- annahum
- أَنَّهُمْ
- ये कि वो
- raḍū
- رَضُوا۟
- वो राज़ी हो जाते
- mā
- مَآ
- उस पर जो
- ātāhumu
- ءَاتَىٰهُمُ
- दिया उन्हें
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- warasūluhu
- وَرَسُولُهُۥ
- और उसके रसूल ने
- waqālū
- وَقَالُوا۟
- और वो कहते
- ḥasbunā
- حَسْبُنَا
- काफ़ी है हमें
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- sayu'tīnā
- سَيُؤْتِينَا
- अनक़रीब देगा हमें
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- min
- مِن
- अपने फ़ज़ल से
- faḍlihi
- فَضْلِهِۦ
- अपने फ़ज़ल से
- warasūluhu
- وَرَسُولُهُۥٓ
- और उसका रसूल (भी)
- innā
- إِنَّآ
- बेशक हम
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ अल्लाह के
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- तरफ़ अल्लाह के
- rāghibūna
- رَٰغِبُونَ
- रग़बत करने वाले हैं
यदि अल्लाह और उसके रसूल ने जो कुछ उन्हें दिया था, उसपर वे राज़ी रहते औऱ कहते कि 'हमारे लिए अल्लाह काफ़ी है। अल्लाह हमें जल्द ही अपने अनुग्रह से देगा और उसका रसूल भी। हम तो अल्लाह ही की ओऱ उन्मुख है।' (तो यह उनके लिए अच्छा होता) ([९] अत-तौबा: 59)Tafseer (तफ़सीर )
۞ اِنَّمَا الصَّدَقٰتُ لِلْفُقَرَاۤءِ وَالْمَسٰكِيْنِ وَالْعَامِلِيْنَ عَلَيْهَا وَالْمُؤَلَّفَةِ قُلُوْبُهُمْ وَفِى الرِّقَابِ وَالْغَارِمِيْنَ وَفِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ وَابْنِ السَّبِيْلِۗ فَرِيْضَةً مِّنَ اللّٰهِ ۗوَاللّٰهُ عَلِيْمٌ حَكِيْمٌ ٦٠
- innamā
- إِنَّمَا
- बेशक
- l-ṣadaqātu
- ٱلصَّدَقَٰتُ
- सदक़ात तो
- lil'fuqarāi
- لِلْفُقَرَآءِ
- फ़ुक़रा के लिए हैं
- wal-masākīni
- وَٱلْمَسَٰكِينِ
- और मिस्कीनों के लिए
- wal-ʿāmilīna
- وَٱلْعَٰمِلِينَ
- और जो काम करने वाले हैं
- ʿalayhā
- عَلَيْهَا
- उन पर
- wal-mu-alafati
- وَٱلْمُؤَلَّفَةِ
- और उलफ़त दिलाए गए
- qulūbuhum
- قُلُوبُهُمْ
- दिल जिनके
- wafī
- وَفِى
- और गर्दनों (के आज़ाद) करने में
- l-riqābi
- ٱلرِّقَابِ
- और गर्दनों (के आज़ाद) करने में
- wal-ghārimīna
- وَٱلْغَٰرِمِينَ
- और क़र्ज़दारों (के लिए)
- wafī
- وَفِى
- और अल्लाह के रास्ते में
- sabīli
- سَبِيلِ
- और अल्लाह के रास्ते में
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- और अल्लाह के रास्ते में
- wa-ib'ni
- وَٱبْنِ
- और मुसाफ़िर/राहगीर (के लिए)
- l-sabīli
- ٱلسَّبِيلِۖ
- और मुसाफ़िर/राहगीर (के लिए)
- farīḍatan
- فَرِيضَةً
- फ़रीज़ा है
- mina
- مِّنَ
- अल्लाह की तरफ़ से
- l-lahi
- ٱللَّهِۗ
- अल्लाह की तरफ़ से
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब इल्म वाला है
- ḥakīmun
- حَكِيمٌ
- ख़ूब हिकमत वाला है
सदक़े तो बस ग़रीबों, मुहताजों और उन लोगों के लिए है, जो काम पर नियुक्त हों और उनके लिए जिनके दिलों को आकृष्ट करना औऱ परचाना अभीष्ट हो और गर्दनों को छुड़ाने और क़र्ज़दारों और तावान भरनेवालों की सहायता करने में, अल्लाह के मार्ग में, मुसाफ़िरों की सहायता करने में लगाने के लिए है। यह अल्लाह की ओर से ठहराया हुआ हुक्म है। अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, अत्यन्त तत्वदर्शी है ([९] अत-तौबा: 60)Tafseer (तफ़सीर )