११
الَّذِيْنَ طَغَوْا فِى الْبِلَادِۖ ١١
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिन्होंने
- ṭaghaw
- طَغَوْا۟
- सरकशी की
- fī
- فِى
- शहरों में
- l-bilādi
- ٱلْبِلَٰدِ
- शहरों में
वे लोग कि जिन्होंने देशो में सरकशी की, ([८९] अल-फज्र: 11)Tafseer (तफ़सीर )
१२
فَاَكْثَرُوْا فِيْهَا الْفَسَادَۖ ١٢
- fa-aktharū
- فَأَكْثَرُوا۟
- फिर उन्होंने कसरत से किया
- fīhā
- فِيهَا
- उनमें
- l-fasāda
- ٱلْفَسَادَ
- फ़साद
और उनमें बहुत बिगाड़ पैदा किया ([८९] अल-फज्र: 12)Tafseer (तफ़सीर )
१३
فَصَبَّ عَلَيْهِمْ رَبُّكَ سَوْطَ عَذَابٍۖ ١٣
- faṣabba
- فَصَبَّ
- तो बरसाया
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- rabbuka
- رَبُّكَ
- आपके रब ने
- sawṭa
- سَوْطَ
- कोड़ा
- ʿadhābin
- عَذَابٍ
- अज़ाब का
अततः तुम्हारे रब ने उनपर यातना का कोड़ा बरसा दिया ([८९] अल-फज्र: 13)Tafseer (तफ़सीर )
१४
اِنَّ رَبَّكَ لَبِالْمِرْصَادِۗ ١٤
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- rabbaka
- رَبَّكَ
- रब आपका
- labil-mir'ṣādi
- لَبِٱلْمِرْصَادِ
- अलबत्ता घात में है
निस्संदेह तुम्हारा रब घात में रहता है ([८९] अल-फज्र: 14)Tafseer (तफ़सीर )
१५
فَاَمَّا الْاِنْسَانُ اِذَا مَا ابْتَلٰىهُ رَبُّهٗ فَاَكْرَمَهٗ وَنَعَّمَهٗۙ فَيَقُوْلُ رَبِّيْٓ اَكْرَمَنِۗ ١٥
- fa-ammā
- فَأَمَّا
- तो रहा
- l-insānu
- ٱلْإِنسَٰنُ
- इन्सान
- idhā
- إِذَا
- जब
- mā
- مَا
- जब
- ib'talāhu
- ٱبْتَلَىٰهُ
- आज़माता है उसे
- rabbuhu
- رَبُّهُۥ
- रब उसका
- fa-akramahu
- فَأَكْرَمَهُۥ
- फिर वो इज़्ज़त देता है उसे
- wanaʿʿamahu
- وَنَعَّمَهُۥ
- और वो नेअमत देता है उसे
- fayaqūlu
- فَيَقُولُ
- तो वो कहता है
- rabbī
- رَبِّىٓ
- मेरे रब ने
- akramani
- أَكْرَمَنِ
- इज़्ज़त दी मुझे
किन्तु मनुष्य का हाल यह है कि जब उसका रब इस प्रकार उसकी परीक्षा करता है कि उसे प्रतिष्ठा और नेमत प्रदान करता है, तो वह कहता है, 'मेरे रब ने मुझे प्रतिष्ठित किया।' ([८९] अल-फज्र: 15)Tafseer (तफ़सीर )
१६
وَاَمَّآ اِذَا مَا ابْتَلٰىهُ فَقَدَرَ عَلَيْهِ رِزْقَهٗ ەۙ فَيَقُوْلُ رَبِّيْٓ اَهَانَنِۚ ١٦
- wa-ammā
- وَأَمَّآ
- और लेकिन
- idhā
- إِذَا
- जब कभी
- mā
- مَا
- जब कभी
- ib'talāhu
- ٱبْتَلَىٰهُ
- वो आज़माता है उसे
- faqadara
- فَقَدَرَ
- फिर वो तंग कर देता है
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- उस पर
- riz'qahu
- رِزْقَهُۥ
- रिज़्क़ उसका
- fayaqūlu
- فَيَقُولُ
- तो वो कहता है
- rabbī
- رَبِّىٓ
- मेरे रब ने
- ahānani
- أَهَٰنَنِ
- ज़लील कर दिया मुझे
किन्तु जब कभी वह उसकी परीक्षा इस प्रकार करता है कि उसकी रोज़ी नपी-तुली कर देता है, तो वह कहता है, 'मेरे रब ने मेरा अपमान किया।' ([८९] अल-फज्र: 16)Tafseer (तफ़सीर )
१७
كَلَّا بَلْ لَّا تُكْرِمُوْنَ الْيَتِيْمَۙ ١٧
- kallā
- كَلَّاۖ
- हरगिज़ नहीं
- bal
- بَل
- बल्कि
- lā
- لَّا
- नहीं
- tuk'rimūna
- تُكْرِمُونَ
- तुम इज़्ज़त देते
- l-yatīma
- ٱلْيَتِيمَ
- यतीम को
कदापि नहीं, बल्कि तुम अनाथ का सम्मान नहीं करते, ([८९] अल-फज्र: 17)Tafseer (तफ़सीर )
१८
وَلَا تَحٰۤضُّوْنَ عَلٰى طَعَامِ الْمِسْكِيْنِۙ ١٨
- walā
- وَلَا
- और नहीं
- taḥāḍḍūna
- تَحَٰٓضُّونَ
- तुम आपस में तरग़ीब देते
- ʿalā
- عَلَىٰ
- खाना खिलाने पर
- ṭaʿāmi
- طَعَامِ
- खाना खिलाने पर
- l-mis'kīni
- ٱلْمِسْكِينِ
- मिसकीन के
और न मुहताज को खिलान पर एक-दूसरे को उभारते हो, ([८९] अल-फज्र: 18)Tafseer (तफ़सीर )
१९
وَتَأْكُلُوْنَ التُّرَاثَ اَكْلًا لَّمًّاۙ ١٩
- watakulūna
- وَتَأْكُلُونَ
- और तुम खा जाते हो
- l-turātha
- ٱلتُّرَاثَ
- मीरास को
- aklan
- أَكْلًا
- खा जाना
- lamman
- لَّمًّا
- समेट कर
और सारी मीरास समेटकर खा जाते हो, ([८९] अल-फज्र: 19)Tafseer (तफ़सीर )
२०
وَّتُحِبُّوْنَ الْمَالَ حُبًّا جَمًّاۗ ٢٠
- watuḥibbūna
- وَتُحِبُّونَ
- और तुम मुहब्बत रखते हो
- l-māla
- ٱلْمَالَ
- माल से
- ḥubban
- حُبًّا
- मुहब्बत
- jamman
- جَمًّا
- बहुत ज़्यादा
और धन से उत्कट प्रेम रखते हो ([८९] अल-फज्र: 20)Tafseer (तफ़सीर )