२१
وَاِذَا قُرِئَ عَلَيْهِمُ الْقُرْاٰنُ لَا يَسْجُدُوْنَ ۗ ۩ ٢١
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- quri-a
- قُرِئَ
- पढ़ा जाता है
- ʿalayhimu
- عَلَيْهِمُ
- उन पर
- l-qur'ānu
- ٱلْقُرْءَانُ
- क़ुरआन
- lā
- لَا
- नहीं वो सजदा करते
- yasjudūna
- يَسْجُدُونَ۩
- नहीं वो सजदा करते
और जब उन्हें कुरआन पढ़कर सुनाया जाता है तो सजदे में नहीं गिर पड़ते? ([८४] अल-इन्शिकाक: 21)Tafseer (तफ़सीर )
२२
بَلِ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا يُكَذِّبُوْنَۖ ٢٢
- bali
- بَلِ
- बल्कि
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- yukadhibūna
- يُكَذِّبُونَ
- वो झुठलाते हैं
नहीं, बल्कि इनकार करनेवाले तो झुठलाते है, ([८४] अल-इन्शिकाक: 22)Tafseer (तफ़सीर )
२३
وَاللّٰهُ اَعْلَمُ بِمَا يُوْعُوْنَۖ ٢٣
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- aʿlamu
- أَعْلَمُ
- ख़ूब जानता है
- bimā
- بِمَا
- उसे जो
- yūʿūna
- يُوعُونَ
- वो समेट रहे हैं
हालाँकि जो कुछ वे अपने अन्दर एकत्र कर रहे है, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है ([८४] अल-इन्शिकाक: 23)Tafseer (तफ़सीर )
२४
فَبَشِّرْهُمْ بِعَذَابٍ اَلِيْمٍۙ ٢٤
- fabashir'hum
- فَبَشِّرْهُم
- पस ख़ुशख़बरी दे दीजिए उन्हें
- biʿadhābin
- بِعَذَابٍ
- अज़ाब की
- alīmin
- أَلِيمٍ
- दर्दनाक
अतः उन्हें दुखद यातना की मंगल सूचना दे दो ([८४] अल-इन्शिकाक: 24)Tafseer (तफ़सीर )
२५
اِلَّا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ لَهُمْ اَجْرٌ غَيْرُ مَمْنُوْنٍ ࣖ ٢٥
- illā
- إِلَّا
- सिवाए
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों के जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- waʿamilū
- وَعَمِلُوا۟
- और उन्होंने अमल किए
- l-ṣāliḥāti
- ٱلصَّٰلِحَٰتِ
- नेक
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- ajrun
- أَجْرٌ
- अजर है
- ghayru
- غَيْرُ
- ना
- mamnūnin
- مَمْنُونٍۭ
- ख़त्म होने वाला
अलबत्ता जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके लिए कभी न समाप्त॥ होनेवाला प्रतिदान है ([८४] अल-इन्शिकाक: 25)Tafseer (तफ़सीर )