११
فَسَوْفَ يَدْعُوْ ثُبُوْرًاۙ ١١
- fasawfa
- فَسَوْفَ
- तो अनक़रीब
- yadʿū
- يَدْعُوا۟
- वो पुकारेगा
- thubūran
- ثُبُورًا
- हलाकत को
तो वह विनाश (मृत्यु) को पुकारेगा, ([८४] अल-इन्शिकाक: 11)Tafseer (तफ़सीर )
१२
وَّيَصْلٰى سَعِيْرًاۗ ١٢
- wayaṣlā
- وَيَصْلَىٰ
- और वो जलेगा
- saʿīran
- سَعِيرًا
- भड़कती आग में
और दहकती आग में जा पड़ेगा ([८४] अल-इन्शिकाक: 12)Tafseer (तफ़सीर )
१३
اِنَّهٗ كَانَ فِيْٓ اَهْلِهٖ مَسْرُوْرًاۗ ١٣
- innahu
- إِنَّهُۥ
- बेशक वो
- kāna
- كَانَ
- था वो
- fī
- فِىٓ
- अपने घर वालों में
- ahlihi
- أَهْلِهِۦ
- अपने घर वालों में
- masrūran
- مَسْرُورًا
- मसरूर /ख़ुश
वह अपने लोगों में मग्न था, ([८४] अल-इन्शिकाक: 13)Tafseer (तफ़सीर )
१४
اِنَّهٗ ظَنَّ اَنْ لَّنْ يَّحُوْرَ ۛ ١٤
- innahu
- إِنَّهُۥ
- बेशक वो
- ẓanna
- ظَنَّ
- वो समझता था
- an
- أَن
- कि
- lan
- لَّن
- हरगिज़ नहीं
- yaḥūra
- يَحُورَ
- वो लौटेगा
उसने यह समझ रखा था कि उसे कभी पलटना नहीं है ([८४] अल-इन्शिकाक: 14)Tafseer (तफ़सीर )
१५
بَلٰىۛ اِنَّ رَبَّهٗ كَانَ بِهٖ بَصِيْرًاۗ ١٥
- balā
- بَلَىٰٓ
- क्यों नहीं
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- rabbahu
- رَبَّهُۥ
- रब उसका
- kāna
- كَانَ
- था
- bihi
- بِهِۦ
- उसे
- baṣīran
- بَصِيرًا
- ख़ूब देखने वाला
क्यों नहीं, निश्चय ही उसका रब तो उसे देख रहा था! ([८४] अल-इन्शिकाक: 15)Tafseer (तफ़सीर )
१६
فَلَآ اُقْسِمُ بِالشَّفَقِۙ ١٦
- falā
- فَلَآ
- पस नहीं
- uq'simu
- أُقْسِمُ
- मैं क़सम खाता हूँ
- bil-shafaqi
- بِٱلشَّفَقِ
- शफ़क़ की
अतः कुछ नहीं, मैं क़सम खाता हूँ सांध्य-लालिमा की, ([८४] अल-इन्शिकाक: 16)Tafseer (तफ़सीर )
१७
وَالَّيْلِ وَمَا وَسَقَۙ ١٧
- wa-al-layli
- وَٱلَّيْلِ
- और रात की
- wamā
- وَمَا
- और उसकी जिसे
- wasaqa
- وَسَقَ
- वो समेट ले
और रात की और उसके समेट लेने की, ([८४] अल-इन्शिकाक: 17)Tafseer (तफ़सीर )
१८
وَالْقَمَرِ اِذَا اتَّسَقَۙ ١٨
- wal-qamari
- وَٱلْقَمَرِ
- और चाँद की
- idhā
- إِذَا
- जब
- ittasaqa
- ٱتَّسَقَ
- वो पूरा हो जाए
और चन्द्रमा की जबकि वह पूर्ण हो जाता है, ([८४] अल-इन्शिकाक: 18)Tafseer (तफ़सीर )
१९
لَتَرْكَبُنَّ طَبَقًا عَنْ طَبَقٍۗ ١٩
- latarkabunna
- لَتَرْكَبُنَّ
- अलबत्ता तुम ज़रूर चढ़ते जाओगे
- ṭabaqan
- طَبَقًا
- एक दर्जे को
- ʿan
- عَن
- दूसरे दर्जे से
- ṭabaqin
- طَبَقٍ
- दूसरे दर्जे से
निश्चय ही तुम्हें मंजिल पर मंजिल चढ़ना है ([८४] अल-इन्शिकाक: 19)Tafseer (तफ़सीर )
२०
فَمَا لَهُمْ لَا يُؤْمِنُوْنَۙ ٢٠
- famā
- فَمَا
- पस क्या है
- lahum
- لَهُمْ
- उन्हें
- lā
- لَا
- नहीं वो ईमान लाते
- yu'minūna
- يُؤْمِنُونَ
- नहीं वो ईमान लाते
फिर उन्हें क्या हो गया है कि ईमान नहीं लाते? ([८४] अल-इन्शिकाक: 20)Tafseer (तफ़सीर )