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सूरा अल-इन्शिकाक - Page: 2

Al-Inshiqaq

(The Sundering, Splitting Open)

११

فَسَوْفَ يَدْعُوْ ثُبُوْرًاۙ ١١

fasawfa
فَسَوْفَ
तो अनक़रीब
yadʿū
يَدْعُوا۟
वो पुकारेगा
thubūran
ثُبُورًا
हलाकत को
तो वह विनाश (मृत्यु) को पुकारेगा, ([८४] अल-इन्शिकाक: 11)
Tafseer (तफ़सीर )
१२

وَّيَصْلٰى سَعِيْرًاۗ ١٢

wayaṣlā
وَيَصْلَىٰ
और वो जलेगा
saʿīran
سَعِيرًا
भड़कती आग में
और दहकती आग में जा पड़ेगा ([८४] अल-इन्शिकाक: 12)
Tafseer (तफ़सीर )
१३

اِنَّهٗ كَانَ فِيْٓ اَهْلِهٖ مَسْرُوْرًاۗ ١٣

innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
kāna
كَانَ
था वो
فِىٓ
अपने घर वालों में
ahlihi
أَهْلِهِۦ
अपने घर वालों में
masrūran
مَسْرُورًا
मसरूर /ख़ुश
वह अपने लोगों में मग्न था, ([८४] अल-इन्शिकाक: 13)
Tafseer (तफ़सीर )
१४

اِنَّهٗ ظَنَّ اَنْ لَّنْ يَّحُوْرَ ۛ ١٤

innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
ẓanna
ظَنَّ
वो समझता था
an
أَن
कि
lan
لَّن
हरगिज़ नहीं
yaḥūra
يَحُورَ
वो लौटेगा
उसने यह समझ रखा था कि उसे कभी पलटना नहीं है ([८४] अल-इन्शिकाक: 14)
Tafseer (तफ़सीर )
१५

بَلٰىۛ اِنَّ رَبَّهٗ كَانَ بِهٖ بَصِيْرًاۗ ١٥

balā
بَلَىٰٓ
क्यों नहीं
inna
إِنَّ
बेशक
rabbahu
رَبَّهُۥ
रब उसका
kāna
كَانَ
था
bihi
بِهِۦ
उसे
baṣīran
بَصِيرًا
ख़ूब देखने वाला
क्यों नहीं, निश्चय ही उसका रब तो उसे देख रहा था! ([८४] अल-इन्शिकाक: 15)
Tafseer (तफ़सीर )
१६

فَلَآ اُقْسِمُ بِالشَّفَقِۙ ١٦

falā
فَلَآ
पस नहीं
uq'simu
أُقْسِمُ
मैं क़सम खाता हूँ
bil-shafaqi
بِٱلشَّفَقِ
शफ़क़ की
अतः कुछ नहीं, मैं क़सम खाता हूँ सांध्य-लालिमा की, ([८४] अल-इन्शिकाक: 16)
Tafseer (तफ़सीर )
१७

وَالَّيْلِ وَمَا وَسَقَۙ ١٧

wa-al-layli
وَٱلَّيْلِ
और रात की
wamā
وَمَا
और उसकी जिसे
wasaqa
وَسَقَ
वो समेट ले
और रात की और उसके समेट लेने की, ([८४] अल-इन्शिकाक: 17)
Tafseer (तफ़सीर )
१८

وَالْقَمَرِ اِذَا اتَّسَقَۙ ١٨

wal-qamari
وَٱلْقَمَرِ
और चाँद की
idhā
إِذَا
जब
ittasaqa
ٱتَّسَقَ
वो पूरा हो जाए
और चन्द्रमा की जबकि वह पूर्ण हो जाता है, ([८४] अल-इन्शिकाक: 18)
Tafseer (तफ़सीर )
१९

لَتَرْكَبُنَّ طَبَقًا عَنْ طَبَقٍۗ ١٩

latarkabunna
لَتَرْكَبُنَّ
अलबत्ता तुम ज़रूर चढ़ते जाओगे
ṭabaqan
طَبَقًا
एक दर्जे को
ʿan
عَن
दूसरे दर्जे से
ṭabaqin
طَبَقٍ
दूसरे दर्जे से
निश्चय ही तुम्हें मंजिल पर मंजिल चढ़ना है ([८४] अल-इन्शिकाक: 19)
Tafseer (तफ़सीर )
२०

فَمَا لَهُمْ لَا يُؤْمِنُوْنَۙ ٢٠

famā
فَمَا
पस क्या है
lahum
لَهُمْ
उन्हें
لَا
नहीं वो ईमान लाते
yu'minūna
يُؤْمِنُونَ
नहीं वो ईमान लाते
फिर उन्हें क्या हो गया है कि ईमान नहीं लाते? ([८४] अल-इन्शिकाक: 20)
Tafseer (तफ़सीर )