३१
وَاِذَا انْقَلَبُوْٓا اِلٰٓى اَهْلِهِمُ انْقَلَبُوْا فَكِهِيْنَۖ ٣١
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- inqalabū
- ٱنقَلَبُوٓا۟
- वो पलट कर जाते
- ilā
- إِلَىٰٓ
- तरफ़
- ahlihimu
- أَهْلِهِمُ
- अपने घर वालों के
- inqalabū
- ٱنقَلَبُوا۟
- वो पलटते
- fakihīna
- فَكِهِينَ
- दिल्लगी करते हुए
और जब अपने लोगों की ओर पलटते है तो चहकते, इतराते हुए पलटते थे, ([८३] अल-मुताफ्फिन: 31)Tafseer (तफ़सीर )
३२
وَاِذَا رَاَوْهُمْ قَالُوْٓا اِنَّ هٰٓؤُلَاۤءِ لَضَاۤلُّوْنَۙ ٣٢
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- ra-awhum
- رَأَوْهُمْ
- वो देखते उन्हें
- qālū
- قَالُوٓا۟
- वो कहते
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- hāulāi
- هَٰٓؤُلَآءِ
- ये लोग
- laḍāllūna
- لَضَآلُّونَ
- यक़ीनन गुमराह हैं
और जब उन्हें देखते तो कहते, 'ये तो भटके हुए है।' ([८३] अल-मुताफ्फिन: 32)Tafseer (तफ़सीर )
३३
وَمَآ اُرْسِلُوْا عَلَيْهِمْ حٰفِظِيْنَۗ ٣٣
- wamā
- وَمَآ
- हालाँकि नहीं
- ur'silū
- أُرْسِلُوا۟
- वो भेजे गए थे
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- ḥāfiẓīna
- حَٰفِظِينَ
- निगहबान बना कर
हालाँकि वे उनपर कोई निगरानी करनेवाले बनाकर नहीं भेजे गए थे ([८३] अल-मुताफ्फिन: 33)Tafseer (तफ़सीर )
३४
فَالْيَوْمَ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا مِنَ الْكُفَّارِ يَضْحَكُوْنَۙ ٣٤
- fal-yawma
- فَٱلْيَوْمَ
- पस आज के दिन
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- mina
- مِنَ
- काफ़िरों पर
- l-kufāri
- ٱلْكُفَّارِ
- काफ़िरों पर
- yaḍḥakūna
- يَضْحَكُونَ
- वो हँस रहे होंगे
तो आज ईमान लानेवाले, इनकार करनेवालों पर हँस रहे हैं, ([८३] अल-मुताफ्फिन: 34)Tafseer (तफ़सीर )
३५
عَلَى الْاَرَاۤىِٕكِ يَنْظُرُوْنَۗ ٣٥
- ʿalā
- عَلَى
- मसनदों पर
- l-arāiki
- ٱلْأَرَآئِكِ
- मसनदों पर
- yanẓurūna
- يَنظُرُونَ
- वो देख रहे होंगे
ऊँची मसनदों पर से देख रहे है ([८३] अल-मुताफ्फिन: 35)Tafseer (तफ़सीर )
३६
هَلْ ثُوِّبَ الْكُفَّارُ مَا كَانُوْا يَفْعَلُوْنَ ࣖ ٣٦
- hal
- هَلْ
- क्या
- thuwwiba
- ثُوِّبَ
- बदला दिए गए
- l-kufāru
- ٱلْكُفَّارُ
- काफ़िर
- mā
- مَا
- जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yafʿalūna
- يَفْعَلُونَ
- वो किया करते
क्या मिल गया बदला इनकार करनेवालों को उसका जो कुछ वे करते रहे है? ([८३] अल-मुताफ्फिन: 36)Tafseer (तफ़सीर )