२१
يَّشْهَدُهُ الْمُقَرَّبُوْنَۗ ٢١
- yashhaduhu
- يَشْهَدُهُ
- हाज़िर रहते है उस पर
- l-muqarabūna
- ٱلْمُقَرَّبُونَ
- मुक़र्रब (फ़रिश्ते )
जिसे देखने के लिए सामीप्य प्राप्त लोग उपस्थित होंगे, ([८३] अल-मुताफ्फिन: 21)Tafseer (तफ़सीर )
२२
اِنَّ الْاَبْرَارَ لَفِيْ نَعِيْمٍۙ ٢٢
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-abrāra
- ٱلْأَبْرَارَ
- नेक लोग
- lafī
- لَفِى
- यक़ीनन नेअमतों मे होंगे
- naʿīmin
- نَعِيمٍ
- यक़ीनन नेअमतों मे होंगे
निस्संदेह अच्छे लोग नेमतों में होंगे, ([८३] अल-मुताफ्फिन: 22)Tafseer (तफ़सीर )
२३
عَلَى الْاَرَاۤىِٕكِ يَنْظُرُوْنَۙ ٢٣
- ʿalā
- عَلَى
- मसनदों पर
- l-arāiki
- ٱلْأَرَآئِكِ
- मसनदों पर
- yanẓurūna
- يَنظُرُونَ
- वो देख रहे होंगे
ऊँची मसनदों पर से देख रहे होंगे ([८३] अल-मुताफ्फिन: 23)Tafseer (तफ़सीर )
२४
تَعْرِفُ فِيْ وُجُوْهِهِمْ نَضْرَةَ النَّعِيْمِۚ ٢٤
- taʿrifu
- تَعْرِفُ
- आप पहचान लेंगे
- fī
- فِى
- उनके चेहरों में
- wujūhihim
- وُجُوهِهِمْ
- उनके चेहरों में
- naḍrata
- نَضْرَةَ
- रौनक़
- l-naʿīmi
- ٱلنَّعِيمِ
- नेअमत की
उनके चहरों से तुम्हें नेमतों की ताज़गी और आभा को बोध हो रहा होगा, ([८३] अल-मुताफ्फिन: 24)Tafseer (तफ़सीर )
२५
يُسْقَوْنَ مِنْ رَّحِيْقٍ مَّخْتُوْمٍۙ ٢٥
- yus'qawna
- يُسْقَوْنَ
- वो पिलाए जाऐंगे
- min
- مِن
- ख़ालिस शराब
- raḥīqin
- رَّحِيقٍ
- ख़ालिस शराब
- makhtūmin
- مَّخْتُومٍ
- मोहर बन्द
उन्हें मुहरबंद विशुद्ध पेय पिलाया जाएगा, ([८३] अल-मुताफ्फिन: 25)Tafseer (तफ़सीर )
२६
خِتٰمُهٗ مِسْكٌ ۗوَفِيْ ذٰلِكَ فَلْيَتَنَافَسِ الْمُتَنَافِسُوْنَۗ ٢٦
- khitāmuhu
- خِتَٰمُهُۥ
- उसकी मोहर
- mis'kun
- مِسْكٌۚ
- मुश्क होगी
- wafī
- وَفِى
- और उसमें
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- और उसमें
- falyatanāfasi
- فَلْيَتَنَافَسِ
- पस चाहिए कि एक दूसरे पर बाज़ी ले जाऐं
- l-mutanāfisūna
- ٱلْمُتَنَٰفِسُونَ
- बाज़ी ले जाने वाले
मुहर उसकी मुश्क ही होगी - जो लोग दूसरी पर बाज़ी ले जाना चाहते हो वे इस चीज़ को प्राप्त करने में बाज़ी ले जाने का प्रयास करे - ([८३] अल-मुताफ्फिन: 26)Tafseer (तफ़सीर )
२७
وَمِزَاجُهٗ مِنْ تَسْنِيْمٍۙ ٢٧
- wamizājuhu
- وَمِزَاجُهُۥ
- और आमेज़िश उसकी
- min
- مِن
- तसनीम होगी
- tasnīmin
- تَسْنِيمٍ
- तसनीम होगी
और उसमें 'तसनीम' का मिश्रण होगा, ([८३] अल-मुताफ्फिन: 27)Tafseer (तफ़सीर )
२८
عَيْنًا يَّشْرَبُ بِهَا الْمُقَرَّبُوْنَۗ ٢٨
- ʿaynan
- عَيْنًا
- जो एक चश्मा है
- yashrabu
- يَشْرَبُ
- पिऐंगे
- bihā
- بِهَا
- उससे
- l-muqarabūna
- ٱلْمُقَرَّبُونَ
- मुक़र्रब लोग
हाल यह है कि वह एक स्रोत है, जिसपर बैठकर सामीप्य प्राप्त लोग पिएँगे ([८३] अल-मुताफ्फिन: 28)Tafseer (तफ़सीर )
२९
اِنَّ الَّذِيْنَ اَجْرَمُوْا كَانُوْا مِنَ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا يَضْحَكُوْنَۖ ٢٩
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिन्होंने
- ajramū
- أَجْرَمُوا۟
- जुर्म किए
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- mina
- مِنَ
- उन लोगों पर जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों पर जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- yaḍḥakūna
- يَضْحَكُونَ
- वो हँसा करते
जो अपराधी है वे ईमान लानेवालों पर हँसते थे, ([८३] अल-मुताफ्फिन: 29)Tafseer (तफ़सीर )
३०
وَاِذَا مَرُّوْا بِهِمْ يَتَغَامَزُوْنَۖ ٣٠
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- marrū
- مَرُّوا۟
- वो गुज़रते
- bihim
- بِهِمْ
- उनके पास से
- yataghāmazūna
- يَتَغَامَزُونَ
- वो एक दूसरे को आँख से इशारे करते
और जब उनके पास से गुज़रते तो आपस में आँखों और भौंहों से इशारे करते थे, ([८३] अल-मुताफ्फिन: 30)Tafseer (तफ़सीर )