۞ وَاعْلَمُوْٓا اَنَّمَا غَنِمْتُمْ مِّنْ شَيْءٍ فَاَنَّ لِلّٰهِ خُمُسَهٗ وَلِلرَّسُوْلِ وَلِذِى الْقُرْبٰى وَالْيَتٰمٰى وَالْمَسٰكِيْنِ وَابْنِ السَّبِيْلِ اِنْ كُنْتُمْ اٰمَنْتُمْ بِاللّٰهِ وَمَآ اَنْزَلْنَا عَلٰى عَبْدِنَا يَوْمَ الْفُرْقَانِ يَوْمَ الْتَقَى الْجَمْعٰنِۗ وَاللّٰهُ عَلٰى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيْرٌ ٤١
- wa-iʿ'lamū
- وَٱعْلَمُوٓا۟
- और जान लो
- annamā
- أَنَّمَا
- कि बेशक जो
- ghanim'tum
- غَنِمْتُم
- ग़नीमत में पाओ तुम
- min
- مِّن
- कोई भी चीज़
- shayin
- شَىْءٍ
- कोई भी चीज़
- fa-anna
- فَأَنَّ
- तो बेशक
- lillahi
- لِلَّهِ
- अल्लाह के लिए है
- khumusahu
- خُمُسَهُۥ
- पाँचवां हिस्सा उसका
- walilrrasūli
- وَلِلرَّسُولِ
- और रसूल के लिए
- walidhī
- وَلِذِى
- और क़राबतदारों के लिए
- l-qur'bā
- ٱلْقُرْبَىٰ
- और क़राबतदारों के लिए
- wal-yatāmā
- وَٱلْيَتَٰمَىٰ
- और यतीमों
- wal-masākīni
- وَٱلْمَسَٰكِينِ
- और मिस्कीनों
- wa-ib'ni
- وَٱبْنِ
- और मुसाफ़िर के लिए
- l-sabīli
- ٱلسَّبِيلِ
- और मुसाफ़िर के लिए
- in
- إِن
- अगर
- kuntum
- كُنتُمْ
- हो तुम
- āmantum
- ءَامَنتُم
- ईमान लाए तुम
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- wamā
- وَمَآ
- और उस पर जो
- anzalnā
- أَنزَلْنَا
- नाज़िल किया हमने
- ʿalā
- عَلَىٰ
- अपने बन्दे पर
- ʿabdinā
- عَبْدِنَا
- अपने बन्दे पर
- yawma
- يَوْمَ
- फ़ैसले के दिन
- l-fur'qāni
- ٱلْفُرْقَانِ
- फ़ैसले के दिन
- yawma
- يَوْمَ
- जिस दिन
- l-taqā
- ٱلْتَقَى
- आमने-सामने हुईं
- l-jamʿāni
- ٱلْجَمْعَانِۗ
- दो जमाअतें
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- ʿalā
- عَلَىٰ
- ऊपर
- kulli
- كُلِّ
- हर
- shayin
- شَىْءٍ
- चीज़ के
- qadīrun
- قَدِيرٌ
- ख़ूब क़ुदरत रखने वाला है
और तुम्हें मालूम हो कि जो कुछ ग़नीमत के रूप में माल तुमने प्राप्त किया है, उसका पाँचवा भाग अल्लाग का, रसूल का, नातेदारों का, अनाथों का, मुहताजों और मुसाफ़िरों का है। यदि तुम अल्लाह पर और उस चीज़ पर ईमान रखते हो, जो हमने अपने बन्दे पर फ़ैसले के दिन उतारी, जिस दिन दोनों सेनाओं में मुठभेड़ हूई, और अल्लाह को हर चीज़ की पूर्ण सामर्थ्य प्राप्त है ([८] अल-अन्फाल: 41)Tafseer (तफ़सीर )
اِذْ اَنْتُمْ بِالْعُدْوَةِ الدُّنْيَا وَهُمْ بِالْعُدْوَةِ الْقُصْوٰى وَالرَّكْبُ اَسْفَلَ مِنْكُمْۗ وَلَوْ تَوَاعَدْتُّمْ لَاخْتَلَفْتُمْ فِى الْمِيْعٰدِۙ وَلٰكِنْ لِّيَقْضِيَ اللّٰهُ اَمْرًا كَانَ مَفْعُوْلًا ەۙ لِّيَهْلِكَ مَنْ هَلَكَ عَنْۢ بَيِّنَةٍ وَّيَحْيٰى مَنْ حَيَّ عَنْۢ بَيِّنَةٍۗ وَاِنَّ اللّٰهَ لَسَمِيْعٌ عَلِيْمٌۙ ٤٢
- idh
- إِذْ
- जब
- antum
- أَنتُم
- तुम
- bil-ʿud'wati
- بِٱلْعُدْوَةِ
- किनारे पर थे
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- क़रीब के
- wahum
- وَهُم
- और वो
- bil-ʿud'wati
- بِٱلْعُدْوَةِ
- किनारे पर थे
- l-quṣ'wā
- ٱلْقُصْوَىٰ
- दूर के
- wal-rakbu
- وَٱلرَّكْبُ
- और क़ाफ़िला
- asfala
- أَسْفَلَ
- नीचे था
- minkum
- مِنكُمْۚ
- तुमसे
- walaw
- وَلَوْ
- और अगर
- tawāʿadttum
- تَوَاعَدتُّمْ
- आपस में वादा करते तुम
- la-ikh'talaftum
- لَٱخْتَلَفْتُمْ
- अलबत्ता इख़्तिलाफ़ करते तुम
- fī
- فِى
- मुक़र्रर वक़्त/जगह के बारे में
- l-mīʿādi
- ٱلْمِيعَٰدِۙ
- मुक़र्रर वक़्त/जगह के बारे में
- walākin
- وَلَٰكِن
- और लेकिन
- liyaqḍiya
- لِّيَقْضِىَ
- ताकि पूरा कर दे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- amran
- أَمْرًا
- एक काम को
- kāna
- كَانَ
- जो था
- mafʿūlan
- مَفْعُولًا
- होकर रहने वाला
- liyahlika
- لِّيَهْلِكَ
- ताकि वो हलाक हो
- man
- مَنْ
- जो
- halaka
- هَلَكَ
- हलाक हो
- ʿan
- عَنۢ
- साथ वाज़ेह दलील के
- bayyinatin
- بَيِّنَةٍ
- साथ वाज़ेह दलील के
- wayaḥyā
- وَيَحْيَىٰ
- और वो ज़िन्दा रहे
- man
- مَنْ
- जो
- ḥayya
- حَىَّ
- ज़िन्दा रहे
- ʿan
- عَنۢ
- साथ वाज़ेह दलील के
- bayyinatin
- بَيِّنَةٍۗ
- साथ वाज़ेह दलील के
- wa-inna
- وَإِنَّ
- और बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- lasamīʿun
- لَسَمِيعٌ
- अलबत्ता ख़ूब सुनने वाला है
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब जानने वाला है
याद करो जब तुम घाटी के निकटवर्ती छोर पर थे और वे घाटी के दूरस्थ छोर पर थे और क़ाफ़िला तुमसे नीचे की ओर था। यदि तुम परस्पर समय निश्चित किए होते तो अनिवार्यतः तुम निश्चित समय पर न पहुँचते। किन्तु जो कुछ हुआ वह इसलिए कि अल्लाह उस बात का फ़ैसला कर दे, जिसका पूरा होना निश्चित था, ताकि जिसे विनष्ट होना हो, वह स्पष्ट प्रमाण देखकर ही विनष्ट हो और जिसे जीवित रहना हो वह स्पष्ट़ प्रमाण देखकर जीवित रहे। निस्संदेह अल्लाह भली-भाँति जानता, सुनता है ([८] अल-अन्फाल: 42)Tafseer (तफ़सीर )
اِذْ يُرِيْكَهُمُ اللّٰهُ فِيْ مَنَامِكَ قَلِيْلًاۗ وَلَوْ اَرٰىكَهُمْ كَثِيْرًا لَّفَشِلْتُمْ وَلَتَنَازَعْتُمْ فِى الْاَمْرِ وَلٰكِنَّ اللّٰهَ سَلَّمَۗ اِنَّهٗ عَلِيْمٌۢ بِذَاتِ الصُّدُوْرِ ٤٣
- idh
- إِذْ
- जब
- yurīkahumu
- يُرِيكَهُمُ
- दिखाया आपको उन्हें
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- fī
- فِى
- आपके ख़्वाब में
- manāmika
- مَنَامِكَ
- आपके ख़्वाब में
- qalīlan
- قَلِيلًاۖ
- थोड़े
- walaw
- وَلَوْ
- और अगर
- arākahum
- أَرَىٰكَهُمْ
- वो दिखाता आपको उन्हें
- kathīran
- كَثِيرًا
- ज़्यादा
- lafashil'tum
- لَّفَشِلْتُمْ
- अलबत्ता हिम्मत हार जाते तुम
- walatanāzaʿtum
- وَلَتَنَٰزَعْتُمْ
- और अलबत्ता बाहम झगड़ने लगते तुम
- fī
- فِى
- मामले में
- l-amri
- ٱلْأَمْرِ
- मामले में
- walākinna
- وَلَٰكِنَّ
- और लेकिन
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह ने
- sallama
- سَلَّمَۗ
- सलामत रखा
- innahu
- إِنَّهُۥ
- बेशक वो
- ʿalīmun
- عَلِيمٌۢ
- ख़ूब जानने वाला है
- bidhāti
- بِذَاتِ
- सीनों वाले (भेद)
- l-ṣudūri
- ٱلصُّدُورِ
- सीनों वाले (भेद)
और याद करो जब अल्लाह उनको तुम्हारे स्वप्न में थोड़ा करके तुम्हें दिखा रहा था और यदि वह उन्हें ज़्यादा करके तुम्हें दिखा देता तो अवश्य ही तुम हिम्मत हार बैठते और असल मामले में झगड़ने लग जाते, किन्तु अल्लाह ने इससे बचा लिया। निश्चय ही वह तो जो कुछ दिलों में होता है उसे भी जानता है ([८] अल-अन्फाल: 43)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذْ يُرِيْكُمُوْهُمْ اِذِ الْتَقَيْتُمْ فِيْٓ اَعْيُنِكُمْ قَلِيْلًا وَّيُقَلِّلُكُمْ فِيْٓ اَعْيُنِهِمْ لِيَقْضِيَ اللّٰهُ اَمْرًا كَانَ مَفْعُوْلًا ۗوَاِلَى اللّٰهِ تُرْجَعُ الْاُمُوْرُ ࣖ ٤٤
- wa-idh
- وَإِذْ
- और जब
- yurīkumūhum
- يُرِيكُمُوهُمْ
- वो दिखा रहा था तुम्हें उनको
- idhi
- إِذِ
- जब
- l-taqaytum
- ٱلْتَقَيْتُمْ
- आमने-सामने हुए तुम
- fī
- فِىٓ
- तुम्हारी निगाहों में
- aʿyunikum
- أَعْيُنِكُمْ
- तुम्हारी निगाहों में
- qalīlan
- قَلِيلًا
- थोड़े
- wayuqallilukum
- وَيُقَلِّلُكُمْ
- और वो थोड़ा दिखा रहा था तुम्हें
- fī
- فِىٓ
- उनकी निगाहों में
- aʿyunihim
- أَعْيُنِهِمْ
- उनकी निगाहों में
- liyaqḍiya
- لِيَقْضِىَ
- ताकि वो पूरा कर दे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- amran
- أَمْرًا
- काम
- kāna
- كَانَ
- था जो
- mafʿūlan
- مَفْعُولًاۗ
- होकर रहने वाला
- wa-ilā
- وَإِلَى
- और तरफ़ अल्लाह ही के
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- और तरफ़ अल्लाह ही के
- tur'jaʿu
- تُرْجَعُ
- लौटाए जाते हैं
- l-umūru
- ٱلْأُمُورُ
- सब काम
याद करो जब तुम्हारी परस्पर मुठभेड़ हुई तो वह तुम्हारी निगाहों में उन्हें कम करके और तुम्हें उनकी निगाहों में कम करके दिखा रहा था, ताकि अल्लाह उस बात का फ़ैसला कर दे जिसका होना निश्चित था। और सारे मामले अल्लाह ही की ओर पलटते है ([८] अल-अन्फाल: 44)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اِذَا لَقِيْتُمْ فِئَةً فَاثْبُتُوْا وَاذْكُرُوا اللّٰهَ كَثِيْرًا لَّعَلَّكُمْ تُفْلِحُوْنَۚ ٤٥
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوٓا۟
- ईमान लाए हो
- idhā
- إِذَا
- जब
- laqītum
- لَقِيتُمْ
- मुक़ाबला हो तुम्हारा
- fi-atan
- فِئَةً
- किसी गिरोह से
- fa-uth'butū
- فَٱثْبُتُوا۟
- तो साबित क़दम रहो
- wa-udh'kurū
- وَٱذْكُرُوا۟
- और याद करो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह को
- kathīran
- كَثِيرًا
- कसरत से
- laʿallakum
- لَّعَلَّكُمْ
- ताकि तुम
- tuf'liḥūna
- تُفْلِحُونَ
- तुम फ़लाह पाओ
ऐ ईमान लानेवालो! जब तुम्हारा किसी गिरोह से मुक़ाबला हो जाए तो जमे रहो और अल्लाह को ज़्यादा याद करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो ([८] अल-अन्फाल: 45)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَطِيْعُوا اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ وَلَا تَنَازَعُوْا فَتَفْشَلُوْا وَتَذْهَبَ رِيْحُكُمْ وَاصْبِرُوْاۗ اِنَّ اللّٰهَ مَعَ الصّٰبِرِيْنَۚ ٤٦
- wa-aṭīʿū
- وَأَطِيعُوا۟
- और इताअत करो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह की
- warasūlahu
- وَرَسُولَهُۥ
- और उसके रसूल की
- walā
- وَلَا
- और ना
- tanāzaʿū
- تَنَٰزَعُوا۟
- तुम बाहम झगड़ो
- fatafshalū
- فَتَفْشَلُوا۟
- वरना तुम कम हिम्मत हो जाओगे
- watadhhaba
- وَتَذْهَبَ
- और जाती रहेगी
- rīḥukum
- رِيحُكُمْۖ
- हवा (शान) तुम्हारी
- wa-iṣ'birū
- وَٱصْبِرُوٓا۟ۚ
- और सब्र करो
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- maʿa
- مَعَ
- साथ है
- l-ṣābirīna
- ٱلصَّٰبِرِينَ
- सब्र करने वालों के
और अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा मानो और आपस में न झगड़ो, अन्यथा हिम्मत हार बैठोगे और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी। और धैर्य से काम लो। निश्चय ही, अल्लाह धैर्यवानों के साथ है ([८] अल-अन्फाल: 46)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَا تَكُوْنُوْا كَالَّذِيْنَ خَرَجُوْا مِنْ دِيَارِهِمْ بَطَرًا وَّرِئَاۤءَ النَّاسِ وَيَصُدُّوْنَ عَنْ سَبِيْلِ اللّٰهِ ۗوَاللّٰهُ بِمَايَعْمَلُوْنَ مُحِيْطٌ ٤٧
- walā
- وَلَا
- और ना
- takūnū
- تَكُونُوا۟
- तुम हो जाओ
- ka-alladhīna
- كَٱلَّذِينَ
- मानिन्द उनके जो
- kharajū
- خَرَجُوا۟
- निकले
- min
- مِن
- अपने घरों से
- diyārihim
- دِيَٰرِهِم
- अपने घरों से
- baṭaran
- بَطَرًا
- इतराते हुए
- wariāa
- وَرِئَآءَ
- और दिखावा करते हुए
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِ
- लोगों को
- wayaṣuddūna
- وَيَصُدُّونَ
- और वो रोकते थे
- ʿan
- عَن
- अल्लाह के रास्ते से
- sabīli
- سَبِيلِ
- अल्लाह के रास्ते से
- l-lahi
- ٱللَّهِۚ
- अल्लाह के रास्ते से
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- bimā
- بِمَا
- उसको जो
- yaʿmalūna
- يَعْمَلُونَ
- वो अमल करते हैं
- muḥīṭun
- مُحِيطٌ
- घेरने वाला है
और उन लोगों की तरह न हो जाना जो अपने घरों से इतराते और लोगों को दिखाते निकले थे और वे अल्लाह के मार्ग से रोकते है, हालाँकि जो कुछ वे करते है, अल्लाह उसे अपने घेरे में लिए हुए है ([८] अल-अन्फाल: 47)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذْ زَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطٰنُ اَعْمَالَهُمْ وَقَالَ لَا غَالِبَ لَكُمُ الْيَوْمَ مِنَ النَّاسِ وَاِنِّيْ جَارٌ لَّكُمْۚ فَلَمَّا تَرَاۤءَتِ الْفِئَتٰنِ نَكَصَ عَلٰى عَقِبَيْهِ وَقَالَ اِنِّيْ بَرِيْۤءٌ مِّنْكُمْ اِنِّيْٓ اَرٰى مَا لَا تَرَوْنَ اِنِّيْٓ اَخَافُ اللّٰهَ ۗوَاللّٰهُ شَدِيْدُ الْعِقَابِ ࣖ ٤٨
- wa-idh
- وَإِذْ
- और जब
- zayyana
- زَيَّنَ
- मुज़य्यन कर दिया
- lahumu
- لَهُمُ
- उनके लिए
- l-shayṭānu
- ٱلشَّيْطَٰنُ
- शैतान ने
- aʿmālahum
- أَعْمَٰلَهُمْ
- उनके आमाल को
- waqāla
- وَقَالَ
- और उसने कहा
- lā
- لَا
- नहीं
- ghāliba
- غَالِبَ
- कोई ग़ालिब आने वाला
- lakumu
- لَكُمُ
- तुम पर
- l-yawma
- ٱلْيَوْمَ
- आज के दिन
- mina
- مِنَ
- लोगों में से
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِ
- लोगों में से
- wa-innī
- وَإِنِّى
- और बेशक मैं
- jārun
- جَارٌ
- हमसाया/हिमायती हूँ
- lakum
- لَّكُمْۖ
- तुम्हारा
- falammā
- فَلَمَّا
- तो जब
- tarāati
- تَرَآءَتِ
- एक-दूसरे को देखा
- l-fi-atāni
- ٱلْفِئَتَانِ
- दोनों जमाअतों ने
- nakaṣa
- نَكَصَ
- वो पलट गया
- ʿalā
- عَلَىٰ
- अपनी दोनों एड़ियों पर
- ʿaqibayhi
- عَقِبَيْهِ
- अपनी दोनों एड़ियों पर
- waqāla
- وَقَالَ
- और उसने कहा
- innī
- إِنِّى
- बेशक मैं
- barīon
- بَرِىٓءٌ
- बरी उज़ ज़िम्मा हूँ
- minkum
- مِّنكُمْ
- तुम से
- innī
- إِنِّىٓ
- बेशक मैं
- arā
- أَرَىٰ
- मैं देख रहा हूँ
- mā
- مَا
- जो
- lā
- لَا
- नहीं तुम देख रहे
- tarawna
- تَرَوْنَ
- नहीं तुम देख रहे
- innī
- إِنِّىٓ
- बेशक मैं
- akhāfu
- أَخَافُ
- मैं डरता हूँ
- l-laha
- ٱللَّهَۚ
- अल्लाह से
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- shadīdu
- شَدِيدُ
- सख़्त
- l-ʿiqābi
- ٱلْعِقَابِ
- सज़ा वाला है
और याद करो जब शैतान ने उनके कर्म उनके लिए सुन्दर बना दिए और कहा, 'आज लोगों में से कोई भी तुमपर प्रभावी नहीं हो सकता। मैं तुम्हारे साथ हूँ।' किन्तु जब दोनों गिरोह आमने-सामने हुए तो वह उलटे पाँव फिर गया और कहने लगा, 'मेरा तुमसे कोई सम्बन्ध नहीं। मैं वह कुछ देख रहा हूँ, जो तुम्हें नहीं दिखाई देता। मैं अल्लाह से डरता हूँ, और अल्लाह कठोर यातना देनेवाला है।' ([८] अल-अन्फाल: 48)Tafseer (तफ़सीर )
اِذْ يَقُوْلُ الْمُنٰفِقُوْنَ وَالَّذِيْنَ فِيْ قُلُوْبِهِمْ مَّرَضٌ غَرَّ هٰٓؤُلَاۤءِ دِيْنُهُمْۗ وَمَنْ يَّتَوَكَّلْ عَلَى اللّٰهِ فَاِنَّ اللّٰهَ عَزِيْزٌ حَكِيْمٌ ٤٩
- idh
- إِذْ
- जब
- yaqūlu
- يَقُولُ
- कह रह थे
- l-munāfiqūna
- ٱلْمُنَٰفِقُونَ
- मुनाफ़िक़
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो लोग
- fī
- فِى
- दिलों में जिनके
- qulūbihim
- قُلُوبِهِم
- दिलों में जिनके
- maraḍun
- مَّرَضٌ
- बीमारी थी
- gharra
- غَرَّ
- धोखे में डाल दिया है
- hāulāi
- هَٰٓؤُلَآءِ
- उन लोगों को
- dīnuhum
- دِينُهُمْۗ
- उनके दीन ने
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- yatawakkal
- يَتَوَكَّلْ
- तवक्कल करेगा
- ʿalā
- عَلَى
- अल्लाह पर
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- fa-inna
- فَإِنَّ
- तो बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- ʿazīzun
- عَزِيزٌ
- बहुत ज़बरदस्त है
- ḥakīmun
- حَكِيمٌ
- ख़ूब हिकमत वाला है
याद करो जब कपटाचारी और वे लोग जिनके दिलों में रोग है, कह रहे थे, 'इन लोगों को तो इनके धर्म ने धोखे में डाल रखा है।' हालाँकि जो अल्लाह पर भरोसा रखता है, तो निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है ([८] अल-अन्फाल: 49)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَوْ تَرٰٓى اِذْ يَتَوَفَّى الَّذِيْنَ كَفَرُوا الْمَلٰۤىِٕكَةُ يَضْرِبُوْنَ وُجُوْهَهُمْ وَاَدْبَارَهُمْۚ وَذُوْقُوْا عَذَابَ الْحَرِيْقِ ٥٠
- walaw
- وَلَوْ
- और काश
- tarā
- تَرَىٰٓ
- आप देखें
- idh
- إِذْ
- जब
- yatawaffā
- يَتَوَفَّى
- फ़ौत करते हैं
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनको जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟ۙ
- कुफ़्र किया
- l-malāikatu
- ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ
- फ़रिश्ते
- yaḍribūna
- يَضْرِبُونَ
- वो मारते हैं
- wujūhahum
- وُجُوهَهُمْ
- उनके चेहरों पर
- wa-adbārahum
- وَأَدْبَٰرَهُمْ
- और उनकी पीठों पर
- wadhūqū
- وَذُوقُوا۟
- और (वो कहते हैं) चखो
- ʿadhāba
- عَذَابَ
- अज़ाब
- l-ḥarīqi
- ٱلْحَرِيقِ
- आग का
क्या ही अच्छा होता कि तुम देखते जब फ़रिश्ते इनकार करनेवालों के प्राण ग्रस्त करते हैं! वे उनके चहरों और उनकी पीठों पर मारते जाते हैं कि 'लो अब जलने की यातना मज़ा चखो।' (तो उनकी दुर्दशा का अन्दाजा कर सकते) ([८] अल-अन्फाल: 50)Tafseer (तफ़सीर )