११
وَّجَعَلْنَا النَّهَارَ مَعَاشًاۚ ١١
- wajaʿalnā
- وَجَعَلْنَا
- और बनाया हमने
- l-nahāra
- ٱلنَّهَارَ
- दिन को
- maʿāshan
- مَعَاشًا
- मआश का वक़्त
और दिन को जीवन-वृति के लिए बनाया ([७८] अल-नबा: 11)Tafseer (तफ़सीर )
१२
وَبَنَيْنَا فَوْقَكُمْ سَبْعًا شِدَادًاۙ ١٢
- wabanaynā
- وَبَنَيْنَا
- और बनाए हमने
- fawqakum
- فَوْقَكُمْ
- ऊपर तुम्हारे
- sabʿan
- سَبْعًا
- सात
- shidādan
- شِدَادًا
- मज़बूत (आसमान)
और तुम्हारे ऊपर सात सुदृढ़ आकाश निर्मित किए, ([७८] अल-नबा: 12)Tafseer (तफ़सीर )
१३
وَّجَعَلْنَا سِرَاجًا وَّهَّاجًاۖ ١٣
- wajaʿalnā
- وَجَعَلْنَا
- और बनाया हमने
- sirājan
- سِرَاجًا
- एक चिराग़
- wahhājan
- وَهَّاجًا
- ख़ूब रौशन
और एक तप्त और प्रकाशमान प्रदीप बनाया, ([७८] अल-नबा: 13)Tafseer (तफ़सीर )
१४
وَّاَنْزَلْنَا مِنَ الْمُعْصِرٰتِ مَاۤءً ثَجَّاجًاۙ ١٤
- wa-anzalnā
- وَأَنزَلْنَا
- और उतारा हमने
- mina
- مِنَ
- बदलियों से
- l-muʿ'ṣirāti
- ٱلْمُعْصِرَٰتِ
- बदलियों से
- māan
- مَآءً
- पानी
- thajjājan
- ثَجَّاجًا
- ख़ूब बरसने
और बरस पड़नेवाली घटाओं से हमने मूसलाधार पानी उतारा, ([७८] अल-नबा: 14)Tafseer (तफ़सीर )
१५
لِّنُخْرِجَ بِهٖ حَبًّا وَّنَبَاتًاۙ ١٥
- linukh'rija
- لِّنُخْرِجَ
- ताकि हम निकालें
- bihi
- بِهِۦ
- उससे
- ḥabban
- حَبًّا
- ग़ल्ला
- wanabātan
- وَنَبَاتًا
- और नबातात
ताकि हम उसके द्वारा अनाज और वनस्पति उत्पादित करें ([७८] अल-नबा: 15)Tafseer (तफ़सीर )
१६
وَّجَنّٰتٍ اَلْفَافًاۗ ١٦
- wajannātin
- وَجَنَّٰتٍ
- और बाग़ात
- alfāfan
- أَلْفَافًا
- घने
और सघन बांग़ भी। ([७८] अल-नबा: 16)Tafseer (तफ़सीर )
१७
اِنَّ يَوْمَ الْفَصْلِ كَانَ مِيْقَاتًاۙ ١٧
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- yawma
- يَوْمَ
- दिन
- l-faṣli
- ٱلْفَصْلِ
- फ़ैसले का
- kāna
- كَانَ
- है
- mīqātan
- مِيقَٰتًا
- एक मुक़र्रर वक़्त
निस्संदेह फ़ैसले का दिन एक नियत समय है, ([७८] अल-नबा: 17)Tafseer (तफ़सीर )
१८
يَّوْمَ يُنْفَخُ فِى الصُّوْرِ فَتَأْتُوْنَ اَفْوَاجًاۙ ١٨
- yawma
- يَوْمَ
- जिस दिन
- yunfakhu
- يُنفَخُ
- फूँक दिया जाएगा
- fī
- فِى
- सूर में
- l-ṣūri
- ٱلصُّورِ
- सूर में
- fatatūna
- فَتَأْتُونَ
- तो तुम आओगे
- afwājan
- أَفْوَاجًا
- फ़ौज दर फ़ौज
जिस दिन नरसिंघा में फूँक मारी जाएगी, तो तुम गिरोह को गिरोह चले आओगे। ([७८] अल-नबा: 18)Tafseer (तफ़सीर )
१९
وَّفُتِحَتِ السَّمَاۤءُ فَكَانَتْ اَبْوَابًاۙ ١٩
- wafutiḥati
- وَفُتِحَتِ
- और खोल दिया जाएगा
- l-samāu
- ٱلسَّمَآءُ
- आसमान
- fakānat
- فَكَانَتْ
- तो वो हो जाएगा
- abwāban
- أَبْوَٰبًا
- दरवाज़े-दरवाज़े
और आकाश खोल दिया जाएगा तो द्वार ही द्वार हो जाएँगे; ([७८] अल-नबा: 19)Tafseer (तफ़सीर )
२०
وَّسُيِّرَتِ الْجِبَالُ فَكَانَتْ سَرَابًاۗ ٢٠
- wasuyyirati
- وَسُيِّرَتِ
- और चला दिए जाऐंगे
- l-jibālu
- ٱلْجِبَالُ
- पहाड़
- fakānat
- فَكَانَتْ
- तो वो हो जाऐंगे
- sarāban
- سَرَابًا
- सराब
और पहाड़ चलाए जाएँगे, तो वे बिल्कुल मरीचिका होकर रह जाएँगे ([७८] अल-नबा: 20)Tafseer (तफ़सीर )