३१
يُّدْخِلُ مَنْ يَّشَاۤءُ فِيْ رَحْمَتِهٖۗ وَالظّٰلِمِيْنَ اَعَدَّ لَهُمْ عَذَابًا اَلِيْمًا ࣖ ٣١
- yud'khilu
- يُدْخِلُ
- वो दाख़िल करता है
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُ
- वो चाहता है
- fī
- فِى
- अपनी रहमत में
- raḥmatihi
- رَحْمَتِهِۦۚ
- अपनी रहमत में
- wal-ẓālimīna
- وَٱلظَّٰلِمِينَ
- और ज़ालिम लोग
- aʿadda
- أَعَدَّ
- उसने तैयार कर रखा है
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- ʿadhāban
- عَذَابًا
- अज़ाब
- alīman
- أَلِيمًۢا
- दर्दनाक
वह जिसे चाहता है अपनी दयालुता में दाख़िल करता है। रहे ज़ालिम, तो उनके लिए उसने दुखद यातना तैयार कर रखी है ([७६] अल-इन्सान: 31)Tafseer (तफ़सीर )