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सूरा अल-जिन्न - Page: 2

Al-Jinn

(जिन्न)

११

وَّاَنَّا مِنَّا الصّٰلِحُوْنَ وَمِنَّا دُوْنَ ذٰلِكَۗ كُنَّا طَرَاۤىِٕقَ قِدَدًاۙ ١١

wa-annā
وَأَنَّا
और बेशक हम
minnā
مِنَّا
हम में से
l-ṣāliḥūna
ٱلصَّٰلِحُونَ
नेक हैं
waminnā
وَمِنَّا
और हम में से
dūna
دُونَ
अलावा हैं
dhālika
ذَٰلِكَۖ
उसके
kunnā
كُنَّا
हैं हम
ṭarāiqa
طَرَآئِقَ
तरीक़ों पर
qidadan
قِدَدًا
मुख़्तलिफ़
'और यह कि हममें से कुछ लोग अच्छे है और कुछ लोग उससे निम्नतर है, हम विभिन्न मार्गों पर है ([७२] अल-जिन्न: 11)
Tafseer (तफ़सीर )
१२

وَّاَنَّا ظَنَنَّآ اَنْ لَّنْ نُّعْجِزَ اللّٰهَ فِى الْاَرْضِ وَلَنْ نُّعْجِزَهٗ هَرَبًاۖ ١٢

wa-annā
وَأَنَّا
और बेशक हम
ẓanannā
ظَنَنَّآ
यक़ीन रखते हैं हम
an
أَن
कि
lan
لَّن
हरगिज़ नहीं
nuʿ'jiza
نُّعْجِزَ
हम आजिज़ कर सकते
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह को
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
walan
وَلَن
और हरगिज़ नहीं
nuʿ'jizahu
نُّعْجِزَهُۥ
हम आजिज़ कर सकते उसे
haraban
هَرَبًا
भाग कर
'और यह कि हमने समझ लिया कि हम न धरती में कही जाकर अल्लाह के क़ाबू से निकल सकते है, और न आकाश में कहीं भागकर उसके क़ाबू से निकल सकते है ([७२] अल-जिन्न: 12)
Tafseer (तफ़सीर )
१३

وَّاَنَّا لَمَّا سَمِعْنَا الْهُدٰىٓ اٰمَنَّا بِهٖۗ فَمَنْ يُّؤْمِنْۢ بِرَبِّهٖ فَلَا يَخَافُ بَخْسًا وَّلَا رَهَقًاۖ ١٣

wa-annā
وَأَنَّا
और बेशक हमने
lammā
لَمَّا
जब
samiʿ'nā
سَمِعْنَا
सुना हमने
l-hudā
ٱلْهُدَىٰٓ
हिदायत को
āmannā
ءَامَنَّا
ईमान ले आए हम
bihi
بِهِۦۖ
उस पर
faman
فَمَن
पस जो कोई
yu'min
يُؤْمِنۢ
ईमान लाएगा
birabbihi
بِرَبِّهِۦ
अपने रब पर
falā
فَلَا
तो ना
yakhāfu
يَخَافُ
वो डरेगा
bakhsan
بَخْسًا
किसी कमी से
walā
وَلَا
और ना
rahaqan
رَهَقًا
किसी ज़्यादती से
'और यह कि जब हमने मार्गदर्शन की बात सुनी तो उसपर ईमान ले आए। अब तो कोई अपने रब पर ईमान लाएगा, उसे न तो किसी हक़ के मारे जाने का भय होगा और न किसी ज़ुल्म-ज़्यादती का ([७२] अल-जिन्न: 13)
Tafseer (तफ़सीर )
१४

وَّاَنَّا مِنَّا الْمُسْلِمُوْنَ وَمِنَّا الْقَاسِطُوْنَۗ فَمَنْ اَسْلَمَ فَاُولٰۤىِٕكَ تَحَرَّوْا رَشَدًا ١٤

wa-annā
وَأَنَّا
और बेशक हम
minnā
مِنَّا
हम में से कुछ
l-mus'limūna
ٱلْمُسْلِمُونَ
मुसलमान हैं
waminnā
وَمِنَّا
और हम में से कुछ
l-qāsiṭūna
ٱلْقَٰسِطُونَۖ
ज़ालिम हैं
faman
فَمَنْ
तो जो कोई
aslama
أَسْلَمَ
फ़रमाबरदार हो गया
fa-ulāika
فَأُو۟لَٰٓئِكَ
तो यही लोग हैं
taḥarraw
تَحَرَّوْا۟
जिन्होंने इरादा किया
rashadan
رَشَدًا
भलाई का
'और यह कि हममें से कुछ मुस्लिम (आज्ञाकारी) है और हममें से कुछ हक़ से हटे हुए है। तो जिन्होंने आज्ञापालन का मार्ग ग्रहण कर लिया उन्होंने भलाई और सूझ-बूझ की राह ढूँढ़ ली ([७२] अल-जिन्न: 14)
Tafseer (तफ़सीर )
१५

وَاَمَّا الْقَاسِطُوْنَ فَكَانُوْا لِجَهَنَّمَ حَطَبًاۙ ١٥

wa-ammā
وَأَمَّا
और रहे
l-qāsiṭūna
ٱلْقَٰسِطُونَ
ज़ालिम लोग
fakānū
فَكَانُوا۟
तो हैं वो
lijahannama
لِجَهَنَّمَ
जहन्नम का
ḥaṭaban
حَطَبًا
ईंधन
'रहे वे लोग जो हक़ से हटे हुए है, तो वे जहन्नम का ईधन होकर रहे।' ([७२] अल-जिन्न: 15)
Tafseer (तफ़सीर )
१६

وَّاَنْ لَّوِ اسْتَقَامُوْا عَلَى الطَّرِيْقَةِ لَاَسْقَيْنٰهُمْ مَّاۤءً غَدَقًاۙ ١٦

wa-allawi
وَأَلَّوِ
और ये कि अगर
is'taqāmū
ٱسْتَقَٰمُوا۟
वो क़ायम हो जाते
ʿalā
عَلَى
रास्ते पर
l-ṭarīqati
ٱلطَّرِيقَةِ
रास्ते पर
la-asqaynāhum
لَأَسْقَيْنَٰهُم
अलबत्ता पिलाते हम उन्हें
māan
مَّآءً
पानी
ghadaqan
غَدَقًا
वाफ़र
और वह प्रकाशना की गई है कि यदि वे सीधे मार्ग पर धैर्यपूर्वक चलते तो हम उन्हें पर्याप्त जल से अभिषिक्त करते, ([७२] अल-जिन्न: 16)
Tafseer (तफ़सीर )
१७

لِّنَفْتِنَهُمْ فِيْهِۗ وَمَنْ يُّعْرِضْ عَنْ ذِكْرِ رَبِّهٖ يَسْلُكْهُ عَذَابًا صَعَدًاۙ ١٧

linaftinahum
لِّنَفْتِنَهُمْ
ताकि हम आज़माऐं उन्हें
fīhi
فِيهِۚ
उसमें
waman
وَمَن
और जो कोई
yuʿ'riḍ
يُعْرِضْ
ऐराज़ करेगा
ʿan
عَن
ज़िक्र से
dhik'ri
ذِكْرِ
ज़िक्र से
rabbihi
رَبِّهِۦ
अपने रब के
yasluk'hu
يَسْلُكْهُ
वो दाख़िल करेगा उसे
ʿadhāban
عَذَابًا
अज़ाब में
ṣaʿadan
صَعَدًا
सख़्त
ताकि हम उसमें उनकी परीक्षा करें। और जो कोई अपने रब की याद से कतराएगा, तो वह उसे कठोर यातना में डाल देगा ([७२] अल-जिन्न: 17)
Tafseer (तफ़सीर )
१८

وَّاَنَّ الْمَسٰجِدَ لِلّٰهِ فَلَا تَدْعُوْا مَعَ اللّٰهِ اَحَدًاۖ ١٨

wa-anna
وَأَنَّ
और बेशक
l-masājida
ٱلْمَسَٰجِدَ
मस्जिदें
lillahi
لِلَّهِ
अल्लाह के लिए हैं
falā
فَلَا
पस ना
tadʿū
تَدْعُوا۟
तुम पुकारो
maʿa
مَعَ
साथ
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
aḥadan
أَحَدًا
किसी एक को
और यह कि मस्जिदें अल्लाह के लिए है। अतः अल्लाह के साथ किसी और को न पुकारो ([७२] अल-जिन्न: 18)
Tafseer (तफ़सीर )
१९

وَّاَنَّهٗ لَمَّا قَامَ عَبْدُ اللّٰهِ يَدْعُوْهُ كَادُوْا يَكُوْنُوْنَ عَلَيْهِ لِبَدًاۗ ࣖ ١٩

wa-annahu
وَأَنَّهُۥ
और बेशक वो
lammā
لَمَّا
जब
qāma
قَامَ
खड़ा हुआ
ʿabdu
عَبْدُ
बन्दा
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह का
yadʿūhu
يَدْعُوهُ
कि वो पुकारे उसे
kādū
كَادُوا۟
क़रीब थे वो
yakūnūna
يَكُونُونَ
कि वो हो जाऐं
ʿalayhi
عَلَيْهِ
उस पर
libadan
لِبَدًا
गिरोह दर गिरोह(हमला आवर)
और यह कि 'जब अल्लाह का बन्दा उसे पुकारता हुआ खड़ा हुआ तो वे ऐसे लगते है कि उसपर जत्थे बनकर टूट पड़ेगे।' ([७२] अल-जिन्न: 19)
Tafseer (तफ़सीर )
२०

قُلْ اِنَّمَآ اَدْعُوْا رَبِّيْ وَلَآ اُشْرِكُ بِهٖٓ اَحَدًا ٢٠

qul
قُلْ
कह दीजिए
innamā
إِنَّمَآ
बेशक
adʿū
أَدْعُوا۟
मैं पुकारता हूँ
rabbī
رَبِّى
अपने रब को
walā
وَلَآ
और नहीं
ush'riku
أُشْرِكُ
मैं शरीक ठहराता
bihi
بِهِۦٓ
साथ उसके
aḥadan
أَحَدًا
किसी एक को
कह दो, 'मैं तो बस अपने रब ही को पुकारता हूँ, और उसके साथ किसी को साझी नहीं ठहराता।' ([७२] अल-जिन्न: 20)
Tafseer (तफ़सीर )