وَّاَنَّا مِنَّا الصّٰلِحُوْنَ وَمِنَّا دُوْنَ ذٰلِكَۗ كُنَّا طَرَاۤىِٕقَ قِدَدًاۙ ١١
- wa-annā
- وَأَنَّا
- और बेशक हम
- minnā
- مِنَّا
- हम में से
- l-ṣāliḥūna
- ٱلصَّٰلِحُونَ
- नेक हैं
- waminnā
- وَمِنَّا
- और हम में से
- dūna
- دُونَ
- अलावा हैं
- dhālika
- ذَٰلِكَۖ
- उसके
- kunnā
- كُنَّا
- हैं हम
- ṭarāiqa
- طَرَآئِقَ
- तरीक़ों पर
- qidadan
- قِدَدًا
- मुख़्तलिफ़
'और यह कि हममें से कुछ लोग अच्छे है और कुछ लोग उससे निम्नतर है, हम विभिन्न मार्गों पर है ([७२] अल-जिन्न: 11)Tafseer (तफ़सीर )
وَّاَنَّا ظَنَنَّآ اَنْ لَّنْ نُّعْجِزَ اللّٰهَ فِى الْاَرْضِ وَلَنْ نُّعْجِزَهٗ هَرَبًاۖ ١٢
- wa-annā
- وَأَنَّا
- और बेशक हम
- ẓanannā
- ظَنَنَّآ
- यक़ीन रखते हैं हम
- an
- أَن
- कि
- lan
- لَّن
- हरगिज़ नहीं
- nuʿ'jiza
- نُّعْجِزَ
- हम आजिज़ कर सकते
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह को
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- walan
- وَلَن
- और हरगिज़ नहीं
- nuʿ'jizahu
- نُّعْجِزَهُۥ
- हम आजिज़ कर सकते उसे
- haraban
- هَرَبًا
- भाग कर
'और यह कि हमने समझ लिया कि हम न धरती में कही जाकर अल्लाह के क़ाबू से निकल सकते है, और न आकाश में कहीं भागकर उसके क़ाबू से निकल सकते है ([७२] अल-जिन्न: 12)Tafseer (तफ़सीर )
وَّاَنَّا لَمَّا سَمِعْنَا الْهُدٰىٓ اٰمَنَّا بِهٖۗ فَمَنْ يُّؤْمِنْۢ بِرَبِّهٖ فَلَا يَخَافُ بَخْسًا وَّلَا رَهَقًاۖ ١٣
- wa-annā
- وَأَنَّا
- और बेशक हमने
- lammā
- لَمَّا
- जब
- samiʿ'nā
- سَمِعْنَا
- सुना हमने
- l-hudā
- ٱلْهُدَىٰٓ
- हिदायत को
- āmannā
- ءَامَنَّا
- ईमान ले आए हम
- bihi
- بِهِۦۖ
- उस पर
- faman
- فَمَن
- पस जो कोई
- yu'min
- يُؤْمِنۢ
- ईमान लाएगा
- birabbihi
- بِرَبِّهِۦ
- अपने रब पर
- falā
- فَلَا
- तो ना
- yakhāfu
- يَخَافُ
- वो डरेगा
- bakhsan
- بَخْسًا
- किसी कमी से
- walā
- وَلَا
- और ना
- rahaqan
- رَهَقًا
- किसी ज़्यादती से
'और यह कि जब हमने मार्गदर्शन की बात सुनी तो उसपर ईमान ले आए। अब तो कोई अपने रब पर ईमान लाएगा, उसे न तो किसी हक़ के मारे जाने का भय होगा और न किसी ज़ुल्म-ज़्यादती का ([७२] अल-जिन्न: 13)Tafseer (तफ़सीर )
وَّاَنَّا مِنَّا الْمُسْلِمُوْنَ وَمِنَّا الْقَاسِطُوْنَۗ فَمَنْ اَسْلَمَ فَاُولٰۤىِٕكَ تَحَرَّوْا رَشَدًا ١٤
- wa-annā
- وَأَنَّا
- और बेशक हम
- minnā
- مِنَّا
- हम में से कुछ
- l-mus'limūna
- ٱلْمُسْلِمُونَ
- मुसलमान हैं
- waminnā
- وَمِنَّا
- और हम में से कुछ
- l-qāsiṭūna
- ٱلْقَٰسِطُونَۖ
- ज़ालिम हैं
- faman
- فَمَنْ
- तो जो कोई
- aslama
- أَسْلَمَ
- फ़रमाबरदार हो गया
- fa-ulāika
- فَأُو۟لَٰٓئِكَ
- तो यही लोग हैं
- taḥarraw
- تَحَرَّوْا۟
- जिन्होंने इरादा किया
- rashadan
- رَشَدًا
- भलाई का
'और यह कि हममें से कुछ मुस्लिम (आज्ञाकारी) है और हममें से कुछ हक़ से हटे हुए है। तो जिन्होंने आज्ञापालन का मार्ग ग्रहण कर लिया उन्होंने भलाई और सूझ-बूझ की राह ढूँढ़ ली ([७२] अल-जिन्न: 14)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَمَّا الْقَاسِطُوْنَ فَكَانُوْا لِجَهَنَّمَ حَطَبًاۙ ١٥
- wa-ammā
- وَأَمَّا
- और रहे
- l-qāsiṭūna
- ٱلْقَٰسِطُونَ
- ज़ालिम लोग
- fakānū
- فَكَانُوا۟
- तो हैं वो
- lijahannama
- لِجَهَنَّمَ
- जहन्नम का
- ḥaṭaban
- حَطَبًا
- ईंधन
'रहे वे लोग जो हक़ से हटे हुए है, तो वे जहन्नम का ईधन होकर रहे।' ([७२] अल-जिन्न: 15)Tafseer (तफ़सीर )
وَّاَنْ لَّوِ اسْتَقَامُوْا عَلَى الطَّرِيْقَةِ لَاَسْقَيْنٰهُمْ مَّاۤءً غَدَقًاۙ ١٦
- wa-allawi
- وَأَلَّوِ
- और ये कि अगर
- is'taqāmū
- ٱسْتَقَٰمُوا۟
- वो क़ायम हो जाते
- ʿalā
- عَلَى
- रास्ते पर
- l-ṭarīqati
- ٱلطَّرِيقَةِ
- रास्ते पर
- la-asqaynāhum
- لَأَسْقَيْنَٰهُم
- अलबत्ता पिलाते हम उन्हें
- māan
- مَّآءً
- पानी
- ghadaqan
- غَدَقًا
- वाफ़र
और वह प्रकाशना की गई है कि यदि वे सीधे मार्ग पर धैर्यपूर्वक चलते तो हम उन्हें पर्याप्त जल से अभिषिक्त करते, ([७२] अल-जिन्न: 16)Tafseer (तफ़सीर )
لِّنَفْتِنَهُمْ فِيْهِۗ وَمَنْ يُّعْرِضْ عَنْ ذِكْرِ رَبِّهٖ يَسْلُكْهُ عَذَابًا صَعَدًاۙ ١٧
- linaftinahum
- لِّنَفْتِنَهُمْ
- ताकि हम आज़माऐं उन्हें
- fīhi
- فِيهِۚ
- उसमें
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- yuʿ'riḍ
- يُعْرِضْ
- ऐराज़ करेगा
- ʿan
- عَن
- ज़िक्र से
- dhik'ri
- ذِكْرِ
- ज़िक्र से
- rabbihi
- رَبِّهِۦ
- अपने रब के
- yasluk'hu
- يَسْلُكْهُ
- वो दाख़िल करेगा उसे
- ʿadhāban
- عَذَابًا
- अज़ाब में
- ṣaʿadan
- صَعَدًا
- सख़्त
ताकि हम उसमें उनकी परीक्षा करें। और जो कोई अपने रब की याद से कतराएगा, तो वह उसे कठोर यातना में डाल देगा ([७२] अल-जिन्न: 17)Tafseer (तफ़सीर )
وَّاَنَّ الْمَسٰجِدَ لِلّٰهِ فَلَا تَدْعُوْا مَعَ اللّٰهِ اَحَدًاۖ ١٨
- wa-anna
- وَأَنَّ
- और बेशक
- l-masājida
- ٱلْمَسَٰجِدَ
- मस्जिदें
- lillahi
- لِلَّهِ
- अल्लाह के लिए हैं
- falā
- فَلَا
- पस ना
- tadʿū
- تَدْعُوا۟
- तुम पुकारो
- maʿa
- مَعَ
- साथ
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- aḥadan
- أَحَدًا
- किसी एक को
और यह कि मस्जिदें अल्लाह के लिए है। अतः अल्लाह के साथ किसी और को न पुकारो ([७२] अल-जिन्न: 18)Tafseer (तफ़सीर )
وَّاَنَّهٗ لَمَّا قَامَ عَبْدُ اللّٰهِ يَدْعُوْهُ كَادُوْا يَكُوْنُوْنَ عَلَيْهِ لِبَدًاۗ ࣖ ١٩
- wa-annahu
- وَأَنَّهُۥ
- और बेशक वो
- lammā
- لَمَّا
- जब
- qāma
- قَامَ
- खड़ा हुआ
- ʿabdu
- عَبْدُ
- बन्दा
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह का
- yadʿūhu
- يَدْعُوهُ
- कि वो पुकारे उसे
- kādū
- كَادُوا۟
- क़रीब थे वो
- yakūnūna
- يَكُونُونَ
- कि वो हो जाऐं
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- उस पर
- libadan
- لِبَدًا
- गिरोह दर गिरोह(हमला आवर)
और यह कि 'जब अल्लाह का बन्दा उसे पुकारता हुआ खड़ा हुआ तो वे ऐसे लगते है कि उसपर जत्थे बनकर टूट पड़ेगे।' ([७२] अल-जिन्न: 19)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ اِنَّمَآ اَدْعُوْا رَبِّيْ وَلَآ اُشْرِكُ بِهٖٓ اَحَدًا ٢٠
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- innamā
- إِنَّمَآ
- बेशक
- adʿū
- أَدْعُوا۟
- मैं पुकारता हूँ
- rabbī
- رَبِّى
- अपने रब को
- walā
- وَلَآ
- और नहीं
- ush'riku
- أُشْرِكُ
- मैं शरीक ठहराता
- bihi
- بِهِۦٓ
- साथ उसके
- aḥadan
- أَحَدًا
- किसी एक को
कह दो, 'मैं तो बस अपने रब ही को पुकारता हूँ, और उसके साथ किसी को साझी नहीं ठहराता।' ([७२] अल-जिन्न: 20)Tafseer (तफ़सीर )