Skip to content

सूरा नूह - Page: 3

Nuh

(Noah)

२१

قَالَ نُوْحٌ رَّبِّ اِنَّهُمْ عَصَوْنِيْ وَاتَّبَعُوْا مَنْ لَّمْ يَزِدْهُ مَالُهٗ وَوَلَدُهٗٓ اِلَّا خَسَارًاۚ ٢١

qāla
قَالَ
कहा
nūḥun
نُوحٌ
नूह ने
rabbi
رَّبِّ
ऐ मेरे रब
innahum
إِنَّهُمْ
बेशक वो
ʿaṣawnī
عَصَوْنِى
उन्होंने नाफ़रमानी की मेरी
wa-ittabaʿū
وَٱتَّبَعُوا۟
और उन्होंने पैरवी की
man
مَن
उसकी जो
lam
لَّمْ
नहीं
yazid'hu
يَزِدْهُ
ज़्यादा किया जिसने
māluhu
مَالُهُۥ
उसके माल ने
wawaladuhu
وَوَلَدُهُۥٓ
और उसकी औलाद ने
illā
إِلَّا
मगर
khasāran
خَسَارًا
ख़सारे में
नूह ने कहा, 'ऐ मेरे रब! उन्होंने मेरी अवज्ञा की, और उसका अनुसरण किया जिसके धन और जिसकी सन्तान ने उसके घाटे ही मे अभिवृद्धि की ([७१] नूह: 21)
Tafseer (तफ़सीर )
२२

وَمَكَرُوْا مَكْرًا كُبَّارًاۚ ٢٢

wamakarū
وَمَكَرُوا۟
और उन्होंने चाल चली
makran
مَكْرًا
एक चाल
kubbāran
كُبَّارًا
बहुत बड़ी
'और वे बहुत बड़ी चाल चले, ([७१] नूह: 22)
Tafseer (तफ़सीर )
२३

وَقَالُوْا لَا تَذَرُنَّ اٰلِهَتَكُمْ وَلَا تَذَرُنَّ وَدًّا وَّلَا سُوَاعًا ەۙ وَّلَا يَغُوْثَ وَيَعُوْقَ وَنَسْرًاۚ ٢٣

waqālū
وَقَالُوا۟
और उन्होंने कहा
لَا
हरगिज़ ना तुम छोड़ो
tadharunna
تَذَرُنَّ
हरगिज़ ना तुम छोड़ो
ālihatakum
ءَالِهَتَكُمْ
अपने इलाहों को
walā
وَلَا
और ना
tadharunna
تَذَرُنَّ
तुम हरगिज़ छोड़ो
waddan
وَدًّا
वद्द को
walā
وَلَا
और ना
suwāʿan
سُوَاعًا
सुवाअ को
walā
وَلَا
और ना
yaghūtha
يَغُوثَ
यग़ूस
wayaʿūqa
وَيَعُوقَ
और यऊक़
wanasran
وَنَسْرًا
और नसर को
'और उन्होंने कहा, अपने इष्ट-पूज्यों के कदापि न छोड़ो और न वह वद्द को छोड़ो और न सुवा को और न यग़ूस और न यऊक़ और नस्र को ([७१] नूह: 23)
Tafseer (तफ़सीर )
२४

وَقَدْ اَضَلُّوْا كَثِيْرًا ەۚ وَلَا تَزِدِ الظّٰلِمِيْنَ اِلَّا ضَلٰلًا ٢٤

waqad
وَقَدْ
और तहक़ीक़
aḍallū
أَضَلُّوا۟
उन्होंने भटका दिया
kathīran
كَثِيرًاۖ
कसीर तादाद को
walā
وَلَا
और ना
tazidi
تَزِدِ
तू ज़्यादा कर
l-ẓālimīna
ٱلظَّٰلِمِينَ
ज़ालिमों को
illā
إِلَّا
मगर
ḍalālan
ضَلَٰلًا
गुमराही में
'और उन्होंने बहुत-से लोगों को पथभ्रष्ट॥ किया है (तो तू उन्हें मार्ग न दिया) अब, तू भी ज़ालिमों की पथभ्रष्टता ही में अभिवृद्धि कर।' ([७१] नूह: 24)
Tafseer (तफ़सीर )
२५

مِمَّا خَطِيْۤـٰٔتِهِمْ اُغْرِقُوْا فَاُدْخِلُوْا نَارًا ەۙ فَلَمْ يَجِدُوْا لَهُمْ مِّنْ دُوْنِ اللّٰهِ اَنْصَارًا ٢٥

mimmā
مِّمَّا
बवजह
khaṭīātihim
خَطِيٓـَٰٔتِهِمْ
अपनी ख़ताओं के
ugh'riqū
أُغْرِقُوا۟
वो ग़र्क़ किए गए
fa-ud'khilū
فَأُدْخِلُوا۟
फिर वो दाख़िल किए गए
nāran
نَارًا
आग में
falam
فَلَمْ
फिर ना
yajidū
يَجِدُوا۟
उन्होंने पाया
lahum
لَهُم
अपने लिए
min
مِّن
सिवाए
dūni
دُونِ
सिवाए
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
anṣāran
أَنصَارًا
कोई मददगार
वे अपनी बड़ी ख़ताओं के कारण पानी में डूबो दिए गए, फिर आग में दाख़िल कर दिए गए, फिर वे अपने और अल्लाह के बीच आड़ बननेवाले सहायक न पा सके ([७१] नूह: 25)
Tafseer (तफ़सीर )
२६

وَقَالَ نُوْحٌ رَّبِّ لَا تَذَرْ عَلَى الْاَرْضِ مِنَ الْكٰفِرِيْنَ دَيَّارًا ٢٦

waqāla
وَقَالَ
और कहा
nūḥun
نُوحٌ
नूह ने
rabbi
رَّبِّ
ऐ मेरे रब
لَا
ना तू छोड़
tadhar
تَذَرْ
ना तू छोड़
ʿalā
عَلَى
ज़मीन पर
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन पर
mina
مِنَ
काफ़िरों में से
l-kāfirīna
ٱلْكَٰفِرِينَ
काफ़िरों में से
dayyāran
دَيَّارًا
कोई बसने वाला
और नूह ने कहा, 'ऐ मेरे रब! धरती पर इनकार करनेवालों में से किसी बसनेवाले को न छोड ([७१] नूह: 26)
Tafseer (तफ़सीर )
२७

اِنَّكَ اِنْ تَذَرْهُمْ يُضِلُّوْا عِبَادَكَ وَلَا يَلِدُوْٓا اِلَّا فَاجِرًا كَفَّارًا ٢٧

innaka
إِنَّكَ
बेशक तू
in
إِن
अगर
tadharhum
تَذَرْهُمْ
तू छोड़ देगा उन्हें
yuḍillū
يُضِلُّوا۟
वो भटका देंगे
ʿibādaka
عِبَادَكَ
तेरे बन्दों को
walā
وَلَا
और ना
yalidū
يَلِدُوٓا۟
वो जन्म देंगे
illā
إِلَّا
मगर
fājiran
فَاجِرًا
फ़ाजिर को
kaffāran
كَفَّارًا
सख़्त मुन्कर को
'यदि तू उन्हें छोड़ देगा तो वे तेरे बन्दों को पथभ्रष्ट कर देंगे और वे दुराचारियों और बड़े अधर्मियों को ही जन्म देंगे ([७१] नूह: 27)
Tafseer (तफ़सीर )
२८

رَبِّ اغْفِرْ لِيْ وَلِوَالِدَيَّ وَلِمَنْ دَخَلَ بَيْتِيَ مُؤْمِنًا وَّلِلْمُؤْمِنِيْنَ وَالْمُؤْمِنٰتِۗ وَلَا تَزِدِ الظّٰلِمِيْنَ اِلَّا تَبَارًا ࣖ ٢٨

rabbi
رَّبِّ
ऐ मेरे रब
igh'fir
ٱغْفِرْ
बख़्श दे
لِى
मुझे
waliwālidayya
وَلِوَٰلِدَىَّ
और मेरे वालिदैन को
waliman
وَلِمَن
और उसे भी जो
dakhala
دَخَلَ
दाख़िल हो
baytiya
بَيْتِىَ
मेरे घर में
mu'minan
مُؤْمِنًا
ईमान लाकर
walil'mu'minīna
وَلِلْمُؤْمِنِينَ
और मोमिन मर्दों को
wal-mu'mināti
وَٱلْمُؤْمِنَٰتِ
और मोमिन औरतों को
walā
وَلَا
और ना
tazidi
تَزِدِ
तू ज़्यादा कर
l-ẓālimīna
ٱلظَّٰلِمِينَ
ज़ालिमों को
illā
إِلَّا
मगर
tabāran
تَبَارًۢا
हलाकत में
'ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे और मेरे माँ-बाप को भी और हर उस व्यक्ति को भी जो मेरे घर में ईमानवाला बन कर दाख़िल हुआ और (सामान्य) ईमानवाले पुरुषों और ईमानवाली स्त्रियों को भी (क्षमा कर दे), और ज़ालिमों के विनाश को ही बढ़ा।' ([७१] नूह: 28)
Tafseer (तफ़सीर )