قَالَ نُوْحٌ رَّبِّ اِنَّهُمْ عَصَوْنِيْ وَاتَّبَعُوْا مَنْ لَّمْ يَزِدْهُ مَالُهٗ وَوَلَدُهٗٓ اِلَّا خَسَارًاۚ ٢١
- qāla
- قَالَ
- कहा
- nūḥun
- نُوحٌ
- नूह ने
- rabbi
- رَّبِّ
- ऐ मेरे रब
- innahum
- إِنَّهُمْ
- बेशक वो
- ʿaṣawnī
- عَصَوْنِى
- उन्होंने नाफ़रमानी की मेरी
- wa-ittabaʿū
- وَٱتَّبَعُوا۟
- और उन्होंने पैरवी की
- man
- مَن
- उसकी जो
- lam
- لَّمْ
- नहीं
- yazid'hu
- يَزِدْهُ
- ज़्यादा किया जिसने
- māluhu
- مَالُهُۥ
- उसके माल ने
- wawaladuhu
- وَوَلَدُهُۥٓ
- और उसकी औलाद ने
- illā
- إِلَّا
- मगर
- khasāran
- خَسَارًا
- ख़सारे में
नूह ने कहा, 'ऐ मेरे रब! उन्होंने मेरी अवज्ञा की, और उसका अनुसरण किया जिसके धन और जिसकी सन्तान ने उसके घाटे ही मे अभिवृद्धि की ([७१] नूह: 21)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَكَرُوْا مَكْرًا كُبَّارًاۚ ٢٢
- wamakarū
- وَمَكَرُوا۟
- और उन्होंने चाल चली
- makran
- مَكْرًا
- एक चाल
- kubbāran
- كُبَّارًا
- बहुत बड़ी
'और वे बहुत बड़ी चाल चले, ([७१] नूह: 22)Tafseer (तफ़सीर )
وَقَالُوْا لَا تَذَرُنَّ اٰلِهَتَكُمْ وَلَا تَذَرُنَّ وَدًّا وَّلَا سُوَاعًا ەۙ وَّلَا يَغُوْثَ وَيَعُوْقَ وَنَسْرًاۚ ٢٣
- waqālū
- وَقَالُوا۟
- और उन्होंने कहा
- lā
- لَا
- हरगिज़ ना तुम छोड़ो
- tadharunna
- تَذَرُنَّ
- हरगिज़ ना तुम छोड़ो
- ālihatakum
- ءَالِهَتَكُمْ
- अपने इलाहों को
- walā
- وَلَا
- और ना
- tadharunna
- تَذَرُنَّ
- तुम हरगिज़ छोड़ो
- waddan
- وَدًّا
- वद्द को
- walā
- وَلَا
- और ना
- suwāʿan
- سُوَاعًا
- सुवाअ को
- walā
- وَلَا
- और ना
- yaghūtha
- يَغُوثَ
- यग़ूस
- wayaʿūqa
- وَيَعُوقَ
- और यऊक़
- wanasran
- وَنَسْرًا
- और नसर को
'और उन्होंने कहा, अपने इष्ट-पूज्यों के कदापि न छोड़ो और न वह वद्द को छोड़ो और न सुवा को और न यग़ूस और न यऊक़ और नस्र को ([७१] नूह: 23)Tafseer (तफ़सीर )
وَقَدْ اَضَلُّوْا كَثِيْرًا ەۚ وَلَا تَزِدِ الظّٰلِمِيْنَ اِلَّا ضَلٰلًا ٢٤
- waqad
- وَقَدْ
- और तहक़ीक़
- aḍallū
- أَضَلُّوا۟
- उन्होंने भटका दिया
- kathīran
- كَثِيرًاۖ
- कसीर तादाद को
- walā
- وَلَا
- और ना
- tazidi
- تَزِدِ
- तू ज़्यादा कर
- l-ẓālimīna
- ٱلظَّٰلِمِينَ
- ज़ालिमों को
- illā
- إِلَّا
- मगर
- ḍalālan
- ضَلَٰلًا
- गुमराही में
'और उन्होंने बहुत-से लोगों को पथभ्रष्ट॥ किया है (तो तू उन्हें मार्ग न दिया) अब, तू भी ज़ालिमों की पथभ्रष्टता ही में अभिवृद्धि कर।' ([७१] नूह: 24)Tafseer (तफ़सीर )
مِمَّا خَطِيْۤـٰٔتِهِمْ اُغْرِقُوْا فَاُدْخِلُوْا نَارًا ەۙ فَلَمْ يَجِدُوْا لَهُمْ مِّنْ دُوْنِ اللّٰهِ اَنْصَارًا ٢٥
- mimmā
- مِّمَّا
- बवजह
- khaṭīātihim
- خَطِيٓـَٰٔتِهِمْ
- अपनी ख़ताओं के
- ugh'riqū
- أُغْرِقُوا۟
- वो ग़र्क़ किए गए
- fa-ud'khilū
- فَأُدْخِلُوا۟
- फिर वो दाख़िल किए गए
- nāran
- نَارًا
- आग में
- falam
- فَلَمْ
- फिर ना
- yajidū
- يَجِدُوا۟
- उन्होंने पाया
- lahum
- لَهُم
- अपने लिए
- min
- مِّن
- सिवाए
- dūni
- دُونِ
- सिवाए
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- anṣāran
- أَنصَارًا
- कोई मददगार
वे अपनी बड़ी ख़ताओं के कारण पानी में डूबो दिए गए, फिर आग में दाख़िल कर दिए गए, फिर वे अपने और अल्लाह के बीच आड़ बननेवाले सहायक न पा सके ([७१] नूह: 25)Tafseer (तफ़सीर )
وَقَالَ نُوْحٌ رَّبِّ لَا تَذَرْ عَلَى الْاَرْضِ مِنَ الْكٰفِرِيْنَ دَيَّارًا ٢٦
- waqāla
- وَقَالَ
- और कहा
- nūḥun
- نُوحٌ
- नूह ने
- rabbi
- رَّبِّ
- ऐ मेरे रब
- lā
- لَا
- ना तू छोड़
- tadhar
- تَذَرْ
- ना तू छोड़
- ʿalā
- عَلَى
- ज़मीन पर
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन पर
- mina
- مِنَ
- काफ़िरों में से
- l-kāfirīna
- ٱلْكَٰفِرِينَ
- काफ़िरों में से
- dayyāran
- دَيَّارًا
- कोई बसने वाला
और नूह ने कहा, 'ऐ मेरे रब! धरती पर इनकार करनेवालों में से किसी बसनेवाले को न छोड ([७१] नूह: 26)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّكَ اِنْ تَذَرْهُمْ يُضِلُّوْا عِبَادَكَ وَلَا يَلِدُوْٓا اِلَّا فَاجِرًا كَفَّارًا ٢٧
- innaka
- إِنَّكَ
- बेशक तू
- in
- إِن
- अगर
- tadharhum
- تَذَرْهُمْ
- तू छोड़ देगा उन्हें
- yuḍillū
- يُضِلُّوا۟
- वो भटका देंगे
- ʿibādaka
- عِبَادَكَ
- तेरे बन्दों को
- walā
- وَلَا
- और ना
- yalidū
- يَلِدُوٓا۟
- वो जन्म देंगे
- illā
- إِلَّا
- मगर
- fājiran
- فَاجِرًا
- फ़ाजिर को
- kaffāran
- كَفَّارًا
- सख़्त मुन्कर को
'यदि तू उन्हें छोड़ देगा तो वे तेरे बन्दों को पथभ्रष्ट कर देंगे और वे दुराचारियों और बड़े अधर्मियों को ही जन्म देंगे ([७१] नूह: 27)Tafseer (तफ़सीर )
رَبِّ اغْفِرْ لِيْ وَلِوَالِدَيَّ وَلِمَنْ دَخَلَ بَيْتِيَ مُؤْمِنًا وَّلِلْمُؤْمِنِيْنَ وَالْمُؤْمِنٰتِۗ وَلَا تَزِدِ الظّٰلِمِيْنَ اِلَّا تَبَارًا ࣖ ٢٨
- rabbi
- رَّبِّ
- ऐ मेरे रब
- igh'fir
- ٱغْفِرْ
- बख़्श दे
- lī
- لِى
- मुझे
- waliwālidayya
- وَلِوَٰلِدَىَّ
- और मेरे वालिदैन को
- waliman
- وَلِمَن
- और उसे भी जो
- dakhala
- دَخَلَ
- दाख़िल हो
- baytiya
- بَيْتِىَ
- मेरे घर में
- mu'minan
- مُؤْمِنًا
- ईमान लाकर
- walil'mu'minīna
- وَلِلْمُؤْمِنِينَ
- और मोमिन मर्दों को
- wal-mu'mināti
- وَٱلْمُؤْمِنَٰتِ
- और मोमिन औरतों को
- walā
- وَلَا
- और ना
- tazidi
- تَزِدِ
- तू ज़्यादा कर
- l-ẓālimīna
- ٱلظَّٰلِمِينَ
- ज़ालिमों को
- illā
- إِلَّا
- मगर
- tabāran
- تَبَارًۢا
- हलाकत में
'ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे और मेरे माँ-बाप को भी और हर उस व्यक्ति को भी जो मेरे घर में ईमानवाला बन कर दाख़िल हुआ और (सामान्य) ईमानवाले पुरुषों और ईमानवाली स्त्रियों को भी (क्षमा कर दे), और ज़ालिमों के विनाश को ही बढ़ा।' ([७१] नूह: 28)Tafseer (तफ़सीर )