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सूरा नूह - शब्द द्वारा शब्द

Nuh

(Noah)

bismillaahirrahmaanirrahiim

اِنَّآ اَرْسَلْنَا نُوْحًا اِلٰى قَوْمِهٖٓ اَنْ اَنْذِرْ قَوْمَكَ مِنْ قَبْلِ اَنْ يَّأْتِيَهُمْ عَذَابٌ اَلِيْمٌ ١

innā
إِنَّآ
बेशक हम
arsalnā
أَرْسَلْنَا
भेजा हमने
nūḥan
نُوحًا
नूह को
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ उसकी क़ौम के
qawmihi
قَوْمِهِۦٓ
तरफ़ उसकी क़ौम के
an
أَنْ
कि
andhir
أَنذِرْ
डराओ
qawmaka
قَوْمَكَ
अपनी क़ौम को
min
مِن
इससे क़ब्ल
qabli
قَبْلِ
इससे क़ब्ल
an
أَن
कि
yatiyahum
يَأْتِيَهُمْ
आए उनके पास
ʿadhābun
عَذَابٌ
अज़ाब
alīmun
أَلِيمٌ
दर्दनाक
हमने नूह को उसकी कौ़म की ओर भेजा कि 'अपनी क़ौम के लोगों को सावधान कर दो, इससे पहले कि उनपर कोई दुखद यातना आ जाए।' ([७१] नूह: 1)
Tafseer (तफ़सीर )

قَالَ يٰقَوْمِ اِنِّيْ لَكُمْ نَذِيْرٌ مُّبِيْنٌۙ ٢

qāla
قَالَ
उसने कहा
yāqawmi
يَٰقَوْمِ
ऐ मेरी क़ौम
innī
إِنِّى
बेशक मैं
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
nadhīrun
نَذِيرٌ
डराने वाला हूँ
mubīnun
مُّبِينٌ
खुल्लम-खुल्ला
उसने कहा, 'ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैं तुम्हारे लिए एक स्पष्ट सचेतकर्ता हूँ ([७१] नूह: 2)
Tafseer (तफ़सीर )

اَنِ اعْبُدُوا اللّٰهَ وَاتَّقُوْهُ وَاَطِيْعُوْنِۙ ٣

ani
أَنِ
ये कि
uʿ'budū
ٱعْبُدُوا۟
इबादत करो
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह की
wa-ittaqūhu
وَٱتَّقُوهُ
और डरो उससे
wa-aṭīʿūni
وَأَطِيعُونِ
और इताअत करो मेरी
कि अल्लाह की बन्दगी करो और उसका डर रखो और मेरी आज्ञा मानो।- ([७१] नूह: 3)
Tafseer (तफ़सीर )

يَغْفِرْ لَكُمْ مِّنْ ذُنُوْبِكُمْ وَيُؤَخِّرْكُمْ اِلٰٓى اَجَلٍ مُّسَمًّىۗ اِنَّ اَجَلَ اللّٰهِ اِذَا جَاۤءَ لَا يُؤَخَّرُۘ لَوْ كُنْتُمْ تَعْلَمُوْنَ ٤

yaghfir
يَغْفِرْ
वो बख़्श देगा
lakum
لَكُم
तुम्हारे लिए
min
مِّن
तुम्हारे गुनाहों को
dhunūbikum
ذُنُوبِكُمْ
तुम्हारे गुनाहों को
wayu-akhir'kum
وَيُؤَخِّرْكُمْ
और वो मोहलत देगा तुम्हें
ilā
إِلَىٰٓ
एक वक़्त तक
ajalin
أَجَلٍ
एक वक़्त तक
musamman
مُّسَمًّىۚ
जो मुक़र्रर है
inna
إِنَّ
बेशक
ajala
أَجَلَ
मुक़र्रर करदा वक़्त
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह का
idhā
إِذَا
जब
jāa
جَآءَ
वो आ जाता है
لَا
तो नहीं मुअख़्ख़र किया जाता
yu-akharu
يُؤَخَّرُۖ
तो नहीं मुअख़्ख़र किया जाता
law
لَوْ
अगर
kuntum
كُنتُمْ
हो तुम
taʿlamūna
تَعْلَمُونَ
तुम जानते
'वह तुम्हें क्षमा करके तुम्हारे गुनाहों से तुम्हें पाक कर देगा और एक निश्चित समय तक तुम्हे मुहल्लत देगा। निश्चय ही जब अल्लाह का निश्चित समय आ जाता है तो वह टलता नहीं, काश कि तुम जानते!' ([७१] नूह: 4)
Tafseer (तफ़सीर )

قَالَ رَبِّ اِنِّيْ دَعَوْتُ قَوْمِيْ لَيْلًا وَّنَهَارًاۙ ٥

qāla
قَالَ
उसने कहा
rabbi
رَبِّ
ऐ मेरे रब
innī
إِنِّى
बेशक मैं
daʿawtu
دَعَوْتُ
पुकारा मैं ने
qawmī
قَوْمِى
अपनी क़ौम को
laylan
لَيْلًا
रात
wanahāran
وَنَهَارًا
और दिन
उसने कहा, 'ऐ मेरे रब! मैंने अपनी क़ौम के लोगों को रात और दिन बुलाया ([७१] नूह: 5)
Tafseer (तफ़सीर )

فَلَمْ يَزِدْهُمْ دُعَاۤءِيْٓ اِلَّا فِرَارًا ٦

falam
فَلَمْ
तो ना
yazid'hum
يَزِدْهُمْ
ज़्यादा किया उन्हें
duʿāī
دُعَآءِىٓ
मेरी पुकार ने
illā
إِلَّا
मगर
firāran
فِرَارًا
फ़रार में
'किन्तु मेरी पुकार ने उनके पलायन को ही बढ़ाया ([७१] नूह: 6)
Tafseer (तफ़सीर )

وَاِنِّيْ كُلَّمَا دَعَوْتُهُمْ لِتَغْفِرَ لَهُمْ جَعَلُوْٓا اَصَابِعَهُمْ فِيْٓ اٰذَانِهِمْ وَاسْتَغْشَوْا ثِيَابَهُمْ وَاَصَرُّوْا وَاسْتَكْبَرُوا اسْتِكْبَارًاۚ ٧

wa-innī
وَإِنِّى
और बेशक मैं
kullamā
كُلَّمَا
जब कभी
daʿawtuhum
دَعَوْتُهُمْ
पुकारा मैं ने उन्हें
litaghfira
لِتَغْفِرَ
ताकि तू बख़्श दे
lahum
لَهُمْ
उन्हें
jaʿalū
جَعَلُوٓا۟
उन्होंने डाल लीं
aṣābiʿahum
أَصَٰبِعَهُمْ
ऊँगलियाँ अपनी
فِىٓ
अपने कानों में
ādhānihim
ءَاذَانِهِمْ
अपने कानों में
wa-is'taghshaw
وَٱسْتَغْشَوْا۟
और उन्होंने ढाँप लिए
thiyābahum
ثِيَابَهُمْ
कपड़े अपने
wa-aṣarrū
وَأَصَرُّوا۟
और उन्होंने इसरार किया
wa-is'takbarū
وَٱسْتَكْبَرُوا۟
और उन्होंने तकब्बुर किया
is'tik'bāran
ٱسْتِكْبَارًا
तकब्बुर करना
'और जब भी मैंने उन्हें बुलाया, ताकि तू उन्हें क्षमा कर दे, तो उन्होंने अपने कानों में अपनी उँगलियाँ दे लीं और अपने कपड़ो से स्वयं को ढाँक लिया और अपनी हठ पर अड़ गए और बड़ा ही घमंड किया ([७१] नूह: 7)
Tafseer (तफ़सीर )

ثُمَّ اِنِّيْ دَعَوْتُهُمْ جِهَارًاۙ ٨

thumma
ثُمَّ
फिर
innī
إِنِّى
बेशक मैं
daʿawtuhum
دَعَوْتُهُمْ
पुकारा मैं ने उन्हें
jihāran
جِهَارًا
बाआवाज़ बुलन्द
'फिर मैंने उन्हें खुल्लमखुल्ला बुलाया, ([७१] नूह: 8)
Tafseer (तफ़सीर )

ثُمَّ اِنِّيْٓ اَعْلَنْتُ لَهُمْ وَاَسْرَرْتُ لَهُمْ اِسْرَارًاۙ ٩

thumma
ثُمَّ
फिर
innī
إِنِّىٓ
बेशक मैं
aʿlantu
أَعْلَنتُ
ऐलानिया कहा मैं ने
lahum
لَهُمْ
उन्हें
wa-asrartu
وَأَسْرَرْتُ
और राज़दाराना बात की मैं ने
lahum
لَهُمْ
उन्हें
is'rāran
إِسْرَارًا
और राज़दारना तौर पर
'फिर मैंने उनसे खुले तौर पर भी बातें की और उनसे चुपके-चुपके भी बातें की ([७१] नूह: 9)
Tafseer (तफ़सीर )
१०

فَقُلْتُ اسْتَغْفِرُوْا رَبَّكُمْ اِنَّهٗ كَانَ غَفَّارًاۙ ١٠

faqul'tu
فَقُلْتُ
फिर कहा मैं ने
is'taghfirū
ٱسْتَغْفِرُوا۟
बख़्शिश माँगो
rabbakum
رَبَّكُمْ
अपने रब से
innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
kāna
كَانَ
है वो
ghaffāran
غَفَّارًا
बहुत बख़्शने वाला
'और मैंने कहा, अपने रब से क्षमा की प्रार्थना करो। निश्चय ही वह बड़ा क्षमाशील है, ([७१] नूह: 10)
Tafseer (तफ़सीर )