Skip to content

सूरा अल-मारिज - Page: 4

Al-Ma'arij

(The Ascending Stairways)

३१

فَمَنِ ابْتَغٰى وَرَاۤءَ ذٰلِكَ فَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْعٰدُوْنَۚ ٣١

famani
فَمَنِ
फिर जो कोई
ib'taghā
ٱبْتَغَىٰ
तलाश करे
warāa
وَرَآءَ
अलावा
dhālika
ذَٰلِكَ
उसके
fa-ulāika
فَأُو۟لَٰٓئِكَ
तो यही लोग हैं
humu
هُمُ
वो
l-ʿādūna
ٱلْعَادُونَ
जो हद से बढ़ने वाले हैं
किन्तु जिस किसी ने इसके अतिरिक्त कुछ और चाहा तो ऐसे ही लोग सीमा का उल्लंघन करनेवाले है।- ([७०] अल-मारिज: 31)
Tafseer (तफ़सीर )
३२

وَالَّذِيْنَ هُمْ لِاَمٰنٰتِهِمْ وَعَهْدِهِمْ رَاعُوْنَۖ ٣٢

wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जो
hum
هُمْ
वो
li-amānātihim
لِأَمَٰنَٰتِهِمْ
अपनी अमानतों की
waʿahdihim
وَعَهْدِهِمْ
और अपने वादों की
rāʿūna
رَٰعُونَ
निगरानी करने वाले हैं
जो अपने पास रखी गई अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह करते है, ([७०] अल-मारिज: 32)
Tafseer (तफ़सीर )
३३

وَالَّذِيْنَ هُمْ بِشَهٰدٰتِهِمْ قَاۤىِٕمُوْنَۖ ٣٣

wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जो
hum
هُم
वो
bishahādātihim
بِشَهَٰدَٰتِهِمْ
अपनी गवाहियों पर
qāimūna
قَآئِمُونَ
क़ायम रहने वाले हैं
जो अपनी गवाहियों पर क़़ायम रहते है, ([७०] अल-मारिज: 33)
Tafseer (तफ़सीर )
३४

وَالَّذِيْنَ هُمْ عَلٰى صَلَاتِهِمْ يُحَافِظُوْنَۖ ٣٤

wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जो
hum
هُمْ
वो
ʿalā
عَلَىٰ
अपनी नमाज़ों की
ṣalātihim
صَلَاتِهِمْ
अपनी नमाज़ों की
yuḥāfiẓūna
يُحَافِظُونَ
वो हिफ़ाज़त करते हैं
और जो अपनी नमाज़ की रक्षा करते है ([७०] अल-मारिज: 34)
Tafseer (तफ़सीर )
३५

اُولٰۤىِٕكَ فِيْ جَنّٰتٍ مُّكْرَمُوْنَ ۗ ࣖ ٣٥

ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही लोग हैं
فِى
बाग़ों में
jannātin
جَنَّٰتٍ
बाग़ों में
muk'ramūna
مُّكْرَمُونَ
इज़्ज़त दिए जाने वाले
वही लोग जन्नतों में सम्मानपूर्वक रहेंगे ([७०] अल-मारिज: 35)
Tafseer (तफ़सीर )
३६

فَمَالِ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا قِبَلَكَ مُهْطِعِيْنَۙ ٣٦

famāli
فَمَالِ
तो क्या है
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उन्हें जिन्होंने
kafarū
كَفَرُوا۟
कुफ़्र किया
qibalaka
قِبَلَكَ
आपकी तरफ़
muh'ṭiʿīna
مُهْطِعِينَ
दौड़ते चले आने वाले हैं
फिर उन इनकार करनेवालो को क्या हुआ है कि वे तुम्हारी ओर दौड़े चले आ रहे है? ([७०] अल-मारिज: 36)
Tafseer (तफ़सीर )
३७

عَنِ الْيَمِيْنِ وَعَنِ الشِّمَالِ عِزِيْنَ ٣٧

ʿani
عَنِ
दाऐं तरफ़ से
l-yamīni
ٱلْيَمِينِ
दाऐं तरफ़ से
waʿani
وَعَنِ
और बाऐं तरफ़ से
l-shimāli
ٱلشِّمَالِ
और बाऐं तरफ़ से
ʿizīna
عِزِينَ
गिरोह दर गिरोह
दाएँ और बाएँ से गिरोह के गिरोह ([७०] अल-मारिज: 37)
Tafseer (तफ़सीर )
३८

اَيَطْمَعُ كُلُّ امْرِئٍ مِّنْهُمْ اَنْ يُّدْخَلَ جَنَّةَ نَعِيْمٍۙ ٣٨

ayaṭmaʿu
أَيَطْمَعُ
क्या तमाअ रखता है
kullu
كُلُّ
हर
im'ri-in
ٱمْرِئٍ
शख़्स
min'hum
مِّنْهُمْ
उन में से
an
أَن
कि
yud'khala
يُدْخَلَ
वो दाख़िल किया जाएगा
jannata
جَنَّةَ
जन्नत में
naʿīmin
نَعِيمٍ
नेअमतों वाली
क्या उनमें से प्रत्येक व्यक्ति इसकी लालसा रखता है कि वह अनुकम्पा से परिपूर्ण जन्नत में प्रविष्ट हो? ([७०] अल-मारिज: 38)
Tafseer (तफ़सीर )
३९

كَلَّاۗ اِنَّا خَلَقْنٰهُمْ مِّمَّا يَعْلَمُوْنَ ٣٩

kallā
كَلَّآۖ
हरगिज़ नहीं
innā
إِنَّا
बेशक हम
khalaqnāhum
خَلَقْنَٰهُم
पैदा किया हमने उन्हें
mimmā
مِّمَّا
उससे जिसे
yaʿlamūna
يَعْلَمُونَ
वो जानते हैं
कदापि नहीं, हमने उन्हें उस चीज़ से पैदा किया है, जिसे वे भली-भाँति जानते है ([७०] अल-मारिज: 39)
Tafseer (तफ़सीर )
४०

فَلَآ اُقْسِمُ بِرَبِّ الْمَشَارِقِ وَالْمَغٰرِبِ اِنَّا لَقٰدِرُوْنَۙ ٤٠

falā
فَلَآ
पस नहीं
uq'simu
أُقْسِمُ
मैं क़सम खाता हूँ
birabbi
بِرَبِّ
रब की
l-mashāriqi
ٱلْمَشَٰرِقِ
मशरिक़ों के
wal-maghāribi
وَٱلْمَغَٰرِبِ
और मग़रिबों के
innā
إِنَّا
बेशक हम
laqādirūna
لَقَٰدِرُونَ
अलबत्ता क़ादिर हैं
अतः कुछ नहीं, मैं क़सम खाता हूँ पूर्वों और पश्चिमों के रब की, हमे इसकी सामर्थ्य प्राप्त है ([७०] अल-मारिज: 40)
Tafseer (तफ़सीर )