३१
فَمَنِ ابْتَغٰى وَرَاۤءَ ذٰلِكَ فَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْعٰدُوْنَۚ ٣١
- famani
- فَمَنِ
- फिर जो कोई
- ib'taghā
- ٱبْتَغَىٰ
- तलाश करे
- warāa
- وَرَآءَ
- अलावा
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- उसके
- fa-ulāika
- فَأُو۟لَٰٓئِكَ
- तो यही लोग हैं
- humu
- هُمُ
- वो
- l-ʿādūna
- ٱلْعَادُونَ
- जो हद से बढ़ने वाले हैं
किन्तु जिस किसी ने इसके अतिरिक्त कुछ और चाहा तो ऐसे ही लोग सीमा का उल्लंघन करनेवाले है।- ([७०] अल-मारिज: 31)Tafseer (तफ़सीर )
३२
وَالَّذِيْنَ هُمْ لِاَمٰنٰتِهِمْ وَعَهْدِهِمْ رَاعُوْنَۖ ٣٢
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- hum
- هُمْ
- वो
- li-amānātihim
- لِأَمَٰنَٰتِهِمْ
- अपनी अमानतों की
- waʿahdihim
- وَعَهْدِهِمْ
- और अपने वादों की
- rāʿūna
- رَٰعُونَ
- निगरानी करने वाले हैं
जो अपने पास रखी गई अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह करते है, ([७०] अल-मारिज: 32)Tafseer (तफ़सीर )
३३
وَالَّذِيْنَ هُمْ بِشَهٰدٰتِهِمْ قَاۤىِٕمُوْنَۖ ٣٣
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- hum
- هُم
- वो
- bishahādātihim
- بِشَهَٰدَٰتِهِمْ
- अपनी गवाहियों पर
- qāimūna
- قَآئِمُونَ
- क़ायम रहने वाले हैं
जो अपनी गवाहियों पर क़़ायम रहते है, ([७०] अल-मारिज: 33)Tafseer (तफ़सीर )
३४
وَالَّذِيْنَ هُمْ عَلٰى صَلَاتِهِمْ يُحَافِظُوْنَۖ ٣٤
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- hum
- هُمْ
- वो
- ʿalā
- عَلَىٰ
- अपनी नमाज़ों की
- ṣalātihim
- صَلَاتِهِمْ
- अपनी नमाज़ों की
- yuḥāfiẓūna
- يُحَافِظُونَ
- वो हिफ़ाज़त करते हैं
और जो अपनी नमाज़ की रक्षा करते है ([७०] अल-मारिज: 34)Tafseer (तफ़सीर )
३५
اُولٰۤىِٕكَ فِيْ جَنّٰتٍ مُّكْرَمُوْنَ ۗ ࣖ ٣٥
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- fī
- فِى
- बाग़ों में
- jannātin
- جَنَّٰتٍ
- बाग़ों में
- muk'ramūna
- مُّكْرَمُونَ
- इज़्ज़त दिए जाने वाले
वही लोग जन्नतों में सम्मानपूर्वक रहेंगे ([७०] अल-मारिज: 35)Tafseer (तफ़सीर )
३६
فَمَالِ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا قِبَلَكَ مُهْطِعِيْنَۙ ٣٦
- famāli
- فَمَالِ
- तो क्या है
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन्हें जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- qibalaka
- قِبَلَكَ
- आपकी तरफ़
- muh'ṭiʿīna
- مُهْطِعِينَ
- दौड़ते चले आने वाले हैं
फिर उन इनकार करनेवालो को क्या हुआ है कि वे तुम्हारी ओर दौड़े चले आ रहे है? ([७०] अल-मारिज: 36)Tafseer (तफ़सीर )
३७
عَنِ الْيَمِيْنِ وَعَنِ الشِّمَالِ عِزِيْنَ ٣٧
- ʿani
- عَنِ
- दाऐं तरफ़ से
- l-yamīni
- ٱلْيَمِينِ
- दाऐं तरफ़ से
- waʿani
- وَعَنِ
- और बाऐं तरफ़ से
- l-shimāli
- ٱلشِّمَالِ
- और बाऐं तरफ़ से
- ʿizīna
- عِزِينَ
- गिरोह दर गिरोह
दाएँ और बाएँ से गिरोह के गिरोह ([७०] अल-मारिज: 37)Tafseer (तफ़सीर )
३८
اَيَطْمَعُ كُلُّ امْرِئٍ مِّنْهُمْ اَنْ يُّدْخَلَ جَنَّةَ نَعِيْمٍۙ ٣٨
- ayaṭmaʿu
- أَيَطْمَعُ
- क्या तमाअ रखता है
- kullu
- كُلُّ
- हर
- im'ri-in
- ٱمْرِئٍ
- शख़्स
- min'hum
- مِّنْهُمْ
- उन में से
- an
- أَن
- कि
- yud'khala
- يُدْخَلَ
- वो दाख़िल किया जाएगा
- jannata
- جَنَّةَ
- जन्नत में
- naʿīmin
- نَعِيمٍ
- नेअमतों वाली
क्या उनमें से प्रत्येक व्यक्ति इसकी लालसा रखता है कि वह अनुकम्पा से परिपूर्ण जन्नत में प्रविष्ट हो? ([७०] अल-मारिज: 38)Tafseer (तफ़सीर )
३९
كَلَّاۗ اِنَّا خَلَقْنٰهُمْ مِّمَّا يَعْلَمُوْنَ ٣٩
- kallā
- كَلَّآۖ
- हरगिज़ नहीं
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- khalaqnāhum
- خَلَقْنَٰهُم
- पैदा किया हमने उन्हें
- mimmā
- مِّمَّا
- उससे जिसे
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- वो जानते हैं
कदापि नहीं, हमने उन्हें उस चीज़ से पैदा किया है, जिसे वे भली-भाँति जानते है ([७०] अल-मारिज: 39)Tafseer (तफ़सीर )
४०
فَلَآ اُقْسِمُ بِرَبِّ الْمَشَارِقِ وَالْمَغٰرِبِ اِنَّا لَقٰدِرُوْنَۙ ٤٠
- falā
- فَلَآ
- पस नहीं
- uq'simu
- أُقْسِمُ
- मैं क़सम खाता हूँ
- birabbi
- بِرَبِّ
- रब की
- l-mashāriqi
- ٱلْمَشَٰرِقِ
- मशरिक़ों के
- wal-maghāribi
- وَٱلْمَغَٰرِبِ
- और मग़रिबों के
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- laqādirūna
- لَقَٰدِرُونَ
- अलबत्ता क़ादिर हैं
अतः कुछ नहीं, मैं क़सम खाता हूँ पूर्वों और पश्चिमों के रब की, हमे इसकी सामर्थ्य प्राप्त है ([७०] अल-मारिज: 40)Tafseer (तफ़सीर )