२१
وَّاِذَا مَسَّهُ الْخَيْرُ مَنُوْعًاۙ ٢١
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- massahu
- مَسَّهُ
- पहुँचती है उसे
- l-khayru
- ٱلْخَيْرُ
- भलाई
- manūʿan
- مَنُوعًا
- बहुत रोकने वाला है
किन्तु जब उसे सम्पन्नता प्राप्त होती ही तो वह कृपणता दिखाता है ([७०] अल-मारिज: 21)Tafseer (तफ़सीर )
२२
اِلَّا الْمُصَلِّيْنَۙ ٢٢
- illā
- إِلَّا
- सिवाए
- l-muṣalīna
- ٱلْمُصَلِّينَ
- नमाज़ियों के
किन्तु नमाज़ अदा करनेवालों की बात और है, ([७०] अल-मारिज: 22)Tafseer (तफ़सीर )
२३
الَّذِيْنَ هُمْ عَلٰى صَلَاتِهِمْ دَاۤىِٕمُوْنَۖ ٢٣
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- hum
- هُمْ
- वो
- ʿalā
- عَلَىٰ
- अपनी नमाज़ों पर
- ṣalātihim
- صَلَاتِهِمْ
- अपनी नमाज़ों पर
- dāimūna
- دَآئِمُونَ
- दवाम /हमेशगी इख़्तियार करने वाले हैं
जो अपनी नमाज़ पर सदैव जमें रहते है, ([७०] अल-मारिज: 23)Tafseer (तफ़सीर )
२४
وَالَّذِيْنَ فِيْٓ اَمْوَالِهِمْ حَقٌّ مَّعْلُوْمٌۖ ٢٤
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- fī
- فِىٓ
- मालों में उनके
- amwālihim
- أَمْوَٰلِهِمْ
- मालों में उनके
- ḥaqqun
- حَقٌّ
- हक़ है
- maʿlūmun
- مَّعْلُومٌ
- मालूम/ मुक़र्रर
और जिनके मालों में ([७०] अल-मारिज: 24)Tafseer (तफ़सीर )
२५
لِّلسَّاۤىِٕلِ وَالْمَحْرُوْمِۖ ٢٥
- lilssāili
- لِّلسَّآئِلِ
- वास्ते सवाली
- wal-maḥrūmi
- وَٱلْمَحْرُومِ
- और महरूम के
माँगनेवालों और वंचित का एक ज्ञात और निश्चित हक़ होता है, ([७०] अल-मारिज: 25)Tafseer (तफ़सीर )
२६
وَالَّذِيْنَ يُصَدِّقُوْنَ بِيَوْمِ الدِّيْنِۖ ٢٦
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- yuṣaddiqūna
- يُصَدِّقُونَ
- तस्दीक़ करते हैं
- biyawmi
- بِيَوْمِ
- दिन की
- l-dīni
- ٱلدِّينِ
- बदले के
जो बदले के दिन को सत्य मानते है, ([७०] अल-मारिज: 26)Tafseer (तफ़सीर )
२७
وَالَّذِيْنَ هُمْ مِّنْ عَذَابِ رَبِّهِمْ مُّشْفِقُوْنَۚ ٢٧
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- hum
- هُم
- वो
- min
- مِّنْ
- अज़ाब से
- ʿadhābi
- عَذَابِ
- अज़ाब से
- rabbihim
- رَبِّهِم
- अपने रब के
- mush'fiqūna
- مُّشْفِقُونَ
- डरने वाले हैं
जो अपने रब की यातना से डरते है - ([७०] अल-मारिज: 27)Tafseer (तफ़सीर )
२८
اِنَّ عَذَابَ رَبِّهِمْ غَيْرُ مَأْمُوْنٍۖ ٢٨
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- ʿadhāba
- عَذَابَ
- अज़ाब
- rabbihim
- رَبِّهِمْ
- उनके रब का
- ghayru
- غَيْرُ
- नहीं है
- mamūnin
- مَأْمُونٍ
- बेख़ौफ़ होने की चीज़
उनके रब की यातना है ही ऐसी जिससे निश्चिन्त न रहा जाए - ([७०] अल-मारिज: 28)Tafseer (तफ़सीर )
२९
وَّالَّذِيْنَ هُمْ لِفُرُوْجِهِمْ حٰفِظُوْنَۙ ٢٩
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- hum
- هُمْ
- वो
- lifurūjihim
- لِفُرُوجِهِمْ
- अपनी शर्मगाहों की
- ḥāfiẓūna
- حَٰفِظُونَ
- हिफ़ाज़त करने वाले हैं
जो अपने गुप्तांगों की रक्षा करते है। ([७०] अल-मारिज: 29)Tafseer (तफ़सीर )
३०
اِلَّا عَلٰٓى اَزْوَاجِهِمْ اَوْ مَا مَلَكَتْ اَيْمَانُهُمْ فَاِنَّهُمْ غَيْرُ مَلُوْمِيْنَۚ ٣٠
- illā
- إِلَّا
- सिवाए
- ʿalā
- عَلَىٰٓ
- अपनी बीवियों के
- azwājihim
- أَزْوَٰجِهِمْ
- अपनी बीवियों के
- aw
- أَوْ
- या
- mā
- مَا
- जिनके
- malakat
- مَلَكَتْ
- मालिक हुए
- aymānuhum
- أَيْمَٰنُهُمْ
- दाऐं हाथ उनके
- fa-innahum
- فَإِنَّهُمْ
- तो बेशक वो
- ghayru
- غَيْرُ
- नहीं
- malūmīna
- مَلُومِينَ
- मलामत किए जाने वाले
अपनी पत्नि यों या जो उनकी मिल्क में हो उनके अतिरिक्त दूसरों से तो इस बात पर उनकी कोई भर्त्सना नही। - ([७०] अल-मारिज: 30)Tafseer (तफ़सीर )