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सूरा अल-मारिज - Page: 2

Al-Ma'arij

(The Ascending Stairways)

११

يُبَصَّرُوْنَهُمْۗ يَوَدُّ الْمُجْرِمُ لَوْ يَفْتَدِيْ مِنْ عَذَابِ يَوْمِىِٕذٍۢ بِبَنِيْهِۙ ١١

yubaṣṣarūnahum
يُبَصَّرُونَهُمْۚ
वो दिखाए जाऐंगे उन्हें
yawaddu
يَوَدُّ
चाहेगा
l-muj'rimu
ٱلْمُجْرِمُ
मुजरिम
law
لَوْ
काश
yaftadī
يَفْتَدِى
वो फ़िदये में दे दे
min
مِنْ
अज़ाब से (बचने के लिए)
ʿadhābi
عَذَابِ
अज़ाब से (बचने के लिए)
yawmi-idhin
يَوْمِئِذٍۭ
उस दिन के
bibanīhi
بِبَنِيهِ
अपने बेटों को
हालाँकि वे एक-दूसरे को दिखाए जाएँगे। अपराधी चाहेगा कि किसी प्रकार वह उस दिन की यातना से छूटने के लिए अपने बेटों, ([७०] अल-मारिज: 11)
Tafseer (तफ़सीर )
१२

وَصَاحِبَتِهٖ وَاَخِيْهِۙ ١٢

waṣāḥibatihi
وَصَٰحِبَتِهِۦ
और अपनी बीवी को
wa-akhīhi
وَأَخِيهِ
और अपने भाई को
अपनी पत्नी , अपने भाई ([७०] अल-मारिज: 12)
Tafseer (तफ़सीर )
१३

وَفَصِيْلَتِهِ الَّتِيْ تُـْٔوِيْهِۙ ١٣

wafaṣīlatihi
وَفَصِيلَتِهِ
और अपने कुनबे को
allatī
ٱلَّتِى
वो जो
tu'wīhi
تُـْٔوِيهِ
वो पनाह देता था उसे
और अपने उस परिवार को जो उसको आश्रय देता है, ([७०] अल-मारिज: 13)
Tafseer (तफ़सीर )
१४

وَمَنْ فِى الْاَرْضِ جَمِيْعًاۙ ثُمَّ يُنْجِيْهِۙ ١٤

waman
وَمَن
और जो
فِى
ज़मीन में है
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में है
jamīʿan
جَمِيعًا
सब के सब को
thumma
ثُمَّ
फिर
yunjīhi
يُنجِيهِ
वो निजात दिला दे उसे
और उन सभी लोगों को जो धरती में रहते है, फ़िदया (मुक्ति-प्रतिदान) के रूप में दे डाले फिर वह उसको छुटकारा दिला दे ([७०] अल-मारिज: 14)
Tafseer (तफ़सीर )
१५

كَلَّاۗ اِنَّهَا لَظٰىۙ ١٥

kallā
كَلَّآۖ
हरगिज़ नहीं
innahā
إِنَّهَا
बेशक वो
laẓā
لَظَىٰ
शोले वाली आग है
कदापि नहीं! वह लपट मारती हुई आग है, ([७०] अल-मारिज: 15)
Tafseer (तफ़सीर )
१६

نَزَّاعَةً لِّلشَّوٰىۚ ١٦

nazzāʿatan
نَزَّاعَةً
खींचने वाली है
lilshawā
لِّلشَّوَىٰ
मुँह की खाल को
जो मांस और त्वचा को चाट जाएगी, ([७०] अल-मारिज: 16)
Tafseer (तफ़सीर )
१७

تَدْعُوْا مَنْ اَدْبَرَ وَتَوَلّٰىۙ ١٧

tadʿū
تَدْعُوا۟
वो पुकारेगी
man
مَنْ
उसे जिसने
adbara
أَدْبَرَ
पीठ फेरी
watawallā
وَتَوَلَّىٰ
और उसने मुँह मोड़ा
उस व्यक्ति को बुलाती है जिसने पीठ फेरी और मुँह मोड़ा, ([७०] अल-मारिज: 17)
Tafseer (तफ़सीर )
१८

وَجَمَعَ فَاَوْعٰى ١٨

wajamaʿa
وَجَمَعَ
और उसने जमा किया
fa-awʿā
فَأَوْعَىٰٓ
फिर उसने समेट कर रखा
और (धन) एकत्र किया और सैंत कर रखा ([७०] अल-मारिज: 18)
Tafseer (तफ़सीर )
१९

۞ اِنَّ الْاِنْسَانَ خُلِقَ هَلُوْعًاۙ ١٩

inna
إِنَّ
बेशक
l-insāna
ٱلْإِنسَٰنَ
इन्सान
khuliqa
خُلِقَ
वो पैदा किया गया
halūʿan
هَلُوعًا
थुड़दिला
निस्संदेह मनुष्य अधीर पैदा हुआ है ([७०] अल-मारिज: 19)
Tafseer (तफ़सीर )
२०

اِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ جَزُوْعًاۙ ٢٠

idhā
إِذَا
जब
massahu
مَسَّهُ
पहुँचती है उसे
l-sharu
ٱلشَّرُّ
तक्लीफ़
jazūʿan
جَزُوعًا
बहुत जज़ा-फ़ज़ा करने वाला है
जि उसे तकलीफ़ पहुँचती है तो घबरा उठता है, ([७०] अल-मारिज: 20)
Tafseer (तफ़सीर )