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सूरा अल-आराफ़ - Page: 4

Al-A'raf

(The Heights)

३१

۞ يٰبَنِيْٓ اٰدَمَ خُذُوْا زِيْنَتَكُمْ عِنْدَ كُلِّ مَسْجِدٍ وَّكُلُوْا وَاشْرَبُوْا وَلَا تُسْرِفُوْاۚ اِنَّهٗ لَا يُحِبُّ الْمُسْرِفِيْنَ ࣖ ٣١

yābanī
يَٰبَنِىٓ
ऐ बनी आदम
ādama
ءَادَمَ
ऐ बनी आदम
khudhū
خُذُوا۟
इख़्तियार करो
zīnatakum
زِينَتَكُمْ
ज़ीनत अपनी
ʿinda
عِندَ
हर नमाज़ के वक़्त
kulli
كُلِّ
हर नमाज़ के वक़्त
masjidin
مَسْجِدٍ
हर नमाज़ के वक़्त
wakulū
وَكُلُوا۟
और खाओ
wa-ish'rabū
وَٱشْرَبُوا۟
और पियो
walā
وَلَا
और ना
tus'rifū
تُسْرِفُوٓا۟ۚ
तुम इसराफ़ करो
innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
لَا
नहीं वो पसंद करता
yuḥibbu
يُحِبُّ
नहीं वो पसंद करता
l-mus'rifīna
ٱلْمُسْرِفِينَ
इसराफ़ करने वालों को
ऐ आदम की सन्तान! इबादत के प्रत्येक अवसर पर शोभा धारण करो; खाओ और पियो, परन्तु हद से आगे न बढ़ो। निश्चय ही, वह हद से आगे बदनेवालों को पसन्द नहीं करता ([७] अल-आराफ़: 31)
Tafseer (तफ़सीर )
३२

قُلْ مَنْ حَرَّمَ زِيْنَةَ اللّٰهِ الَّتِيْٓ اَخْرَجَ لِعِبَادِهٖ وَالطَّيِّبٰتِ مِنَ الرِّزْقِۗ قُلْ هِيَ لِلَّذِيْنَ اٰمَنُوْا فِى الْحَيٰوةِ الدُّنْيَا خَالِصَةً يَّوْمَ الْقِيٰمَةِۗ كَذٰلِكَ نُفَصِّلُ الْاٰيٰتِ لِقَوْمٍ يَّعْلَمُوْنَ ٣٢

qul
قُلْ
कह दीजिए
man
مَنْ
किसने
ḥarrama
حَرَّمَ
हराम की
zīnata
زِينَةَ
ज़ीनत
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की
allatī
ٱلَّتِىٓ
वो जो
akhraja
أَخْرَجَ
उसने निकाली
liʿibādihi
لِعِبَادِهِۦ
अपने बन्दों के लिए
wal-ṭayibāti
وَٱلطَّيِّبَٰتِ
और पाकीज़ा चीज़ें
mina
مِنَ
रिज़्क़ में से
l-riz'qi
ٱلرِّزْقِۚ
रिज़्क़ में से
qul
قُلْ
कह दीजिए
hiya
هِىَ
ये हैं
lilladhīna
لِلَّذِينَ
उनके लिए जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
فِى
दुनिया की ज़िन्दगी में
l-ḥayati
ٱلْحَيَوٰةِ
दुनिया की ज़िन्दगी में
l-dun'yā
ٱلدُّنْيَا
दुनिया की ज़िन्दगी में
khāliṣatan
خَالِصَةً
ख़ालिसतन (होंगी)
yawma
يَوْمَ
क़यामत के दिन
l-qiyāmati
ٱلْقِيَٰمَةِۗ
क़यामत के दिन
kadhālika
كَذَٰلِكَ
इसी तरह
nufaṣṣilu
نُفَصِّلُ
हम खोल कर बयान करते है
l-āyāti
ٱلْءَايَٰتِ
आयात
liqawmin
لِقَوْمٍ
उन लोगों के लिए
yaʿlamūna
يَعْلَمُونَ
जो इल्म रखते हैं
कहो, 'अल्लाह की उस शोभा को जिसे उसने अपने बन्दों के लिए उत्पन्न किया है औऱ आजीविका की पवित्र, अच्छी चीज़ो को किसने हराम कर दिया?' कह दो, 'यह सांसारिक जीवन में भी ईमानवालों के लिए हैं; क़ियामत के दिन तो ये केवल उन्हीं के लिए होंगी। इसी प्रकार हम आयतों को उन लोगों के लिए सविस्तार बयान करते है, जो जानना चाहे।' ([७] अल-आराफ़: 32)
Tafseer (तफ़सीर )
३३

قُلْ اِنَّمَا حَرَّمَ رَبِّيَ الْفَوَاحِشَ مَا ظَهَرَ مِنْهَا وَمَا بَطَنَ وَالْاِثْمَ وَالْبَغْيَ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَاَنْ تُشْرِكُوْا بِاللّٰهِ مَا لَمْ يُنَزِّلْ بِهٖ سُلْطٰنًا وَّاَنْ تَقُوْلُوْا عَلَى اللّٰهِ مَا لَا تَعْلَمُوْنَ ٣٣

qul
قُلْ
कह दीजिए
innamā
إِنَّمَا
बेशक
ḥarrama
حَرَّمَ
हराम किया
rabbiya
رَبِّىَ
मेरे रब ने
l-fawāḥisha
ٱلْفَوَٰحِشَ
बेहयाई के कामों को
مَا
जो
ẓahara
ظَهَرَ
ज़ाहिरी हों
min'hā
مِنْهَا
उनमें से
wamā
وَمَا
और जो
baṭana
بَطَنَ
पोशीदा हों
wal-ith'ma
وَٱلْإِثْمَ
और गुनाह को
wal-baghya
وَٱلْبَغْىَ
और सरकशी को
bighayri
بِغَيْرِ
बग़ैर
l-ḥaqi
ٱلْحَقِّ
हक़ के
wa-an
وَأَن
और ये कि
tush'rikū
تُشْرِكُوا۟
तुम शरीक ठहराओ
bil-lahi
بِٱللَّهِ
साथ अल्लाह के
مَا
जो
lam
لَمْ
नहीं
yunazzil
يُنَزِّلْ
उसने उतारी
bihi
بِهِۦ
उसकी
sul'ṭānan
سُلْطَٰنًا
कोई दलील
wa-an
وَأَن
और ये कि
taqūlū
تَقُولُوا۟
तुम कहो
ʿalā
عَلَى
अल्लाह पर
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह पर
مَا
जो
لَا
नहीं तुम जानते
taʿlamūna
تَعْلَمُونَ
नहीं तुम जानते
कह दो, 'मेरे रब ने केवल अश्लील कर्मों को हराम किया है - जो उनमें से प्रकट हो उन्हें भी और जो छिपे हो उन्हें भी - और हक़ मारना, नाहक़ ज़्यादती और इस बात को कि तुम अल्लाह का साझीदार ठहराओ, जिसके लिए उसने कोई प्रमाण नहीं उतारा और इस बात को भी कि तुम अल्लाह पर थोपकर ऐसी बात कहो जिसका तुम्हें ज्ञान न हो।' ([७] अल-आराफ़: 33)
Tafseer (तफ़सीर )
३४

وَلِكُلِّ اُمَّةٍ اَجَلٌۚ فَاِذَا جَاۤءَ اَجَلُهُمْ لَا يَسْتَأْخِرُوْنَ سَاعَةً وَّلَا يَسْتَقْدِمُوْنَ ٣٤

walikulli
وَلِكُلِّ
और हर उम्मत के लिए
ummatin
أُمَّةٍ
और हर उम्मत के लिए
ajalun
أَجَلٌۖ
एक वक़्त मुक़र्रर है
fa-idhā
فَإِذَا
फिर जब
jāa
جَآءَ
आ जाता है
ajaluhum
أَجَلُهُمْ
मुक़र्रर वक़्त उनका
لَا
नहीं वो पीछे हो सकते
yastakhirūna
يَسْتَأْخِرُونَ
नहीं वो पीछे हो सकते
sāʿatan
سَاعَةًۖ
एक घड़ी
walā
وَلَا
और ना
yastaqdimūna
يَسْتَقْدِمُونَ
वो आगे बढ़ सकते हैं
प्रत्येक समुदाय के लिए एक नियत अवधि है। फिर जब उसका नियत समय आ जाता है, तो एक घड़ी भर न पीछे हट सकते है और न आगे बढ़ सकते है ([७] अल-आराफ़: 34)
Tafseer (तफ़सीर )
३५

يٰبَنِيْٓ اٰدَمَ اِمَّا يَأْتِيَنَّكُمْ رُسُلٌ مِّنْكُمْ يَقُصُّوْنَ عَلَيْكُمْ اٰيٰتِيْۙ فَمَنِ اتَّقٰى وَاَصْلَحَ فَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُوْنَ ٣٥

yābanī
يَٰبَنِىٓ
ऐ बनी आदम
ādama
ءَادَمَ
ऐ बनी आदम
immā
إِمَّا
अगर
yatiyannakum
يَأْتِيَنَّكُمْ
आ जाऐं तुम्हारे पास
rusulun
رُسُلٌ
रसूल
minkum
مِّنكُمْ
तुम में से
yaquṣṣūna
يَقُصُّونَ
जो बयान करते हों
ʿalaykum
عَلَيْكُمْ
तुम पर
āyātī
ءَايَٰتِىۙ
मेरी आयात
famani
فَمَنِ
तो जो कोई
ittaqā
ٱتَّقَىٰ
तक़वा करे
wa-aṣlaḥa
وَأَصْلَحَ
और इस्लाह कर ले
falā
فَلَا
तो ना
khawfun
خَوْفٌ
कोई ख़ौफ़ होगा
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
walā
وَلَا
और ना
hum
هُمْ
वो
yaḥzanūna
يَحْزَنُونَ
वो ग़मगीन होंगे
ऐ आदम की सन्तान! यदि तुम्हारे पास तुम्हीं में से कोई रसूल आएँ; तुम्हें मेरी आयतें सुनाएँ, तो जिसने डर रखा और सुधार कर लिया तो ऐसे लोगों के लिए न कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे ([७] अल-आराफ़: 35)
Tafseer (तफ़सीर )
३६

وَالَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَا وَاسْتَكْبَرُوْا عَنْهَآ اُولٰۤىِٕكَ اَصْحٰبُ النَّارِۚ هُمْ فِيْهَا خٰلِدُوْنَ ٣٦

wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जिन्होंने
kadhabū
كَذَّبُوا۟
झुठलाया
biāyātinā
بِـَٔايَٰتِنَا
हमारी आयात को
wa-is'takbarū
وَٱسْتَكْبَرُوا۟
और तकब्बुर किया
ʿanhā
عَنْهَآ
उनसे
ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही लोग हैं
aṣḥābu
أَصْحَٰبُ
साथी
l-nāri
ٱلنَّارِۖ
आग के
hum
هُمْ
वो
fīhā
فِيهَا
उसमें
khālidūna
خَٰلِدُونَ
हमेशा रहने वाले हैं
रहे वे लोग जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया और उनके मुक़ाबले में अकड़ दिखाई; वही आगवाले हैं, जिसमें वे सदैव रहेंगे ([७] अल-आराफ़: 36)
Tafseer (तफ़सीर )
३७

فَمَنْ اَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرٰى عَلَى اللّٰهِ كَذِبًا اَوْ كَذَّبَ بِاٰيٰتِهٖۗ اُولٰۤىِٕكَ يَنَالُهُمْ نَصِيْبُهُمْ مِّنَ الْكِتٰبِۗ حَتّٰٓى اِذَا جَاۤءَتْهُمْ رُسُلُنَا يَتَوَفَّوْنَهُمْۙ قَالُوْٓا اَيْنَ مَا كُنْتُمْ تَدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ ۗقَالُوْا ضَلُّوْا عَنَّا وَشَهِدُوْا عَلٰٓى اَنْفُسِهِمْ اَنَّهُمْ كَانُوْا كٰفِرِيْنَ ٣٧

faman
فَمَنْ
तो कौन
aẓlamu
أَظْلَمُ
बड़ा ज़ालिम है
mimmani
مِمَّنِ
उससे जो
if'tarā
ٱفْتَرَىٰ
गढ़ ले
ʿalā
عَلَى
अल्लाह पर
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह पर
kadhiban
كَذِبًا
झूठ
aw
أَوْ
या
kadhaba
كَذَّبَ
वो झुठलाऐ
biāyātihi
بِـَٔايَٰتِهِۦٓۚ
उसकी आयात को
ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही लोग हैं
yanāluhum
يَنَالُهُمْ
पहुँचेगा उन्हें
naṣībuhum
نَصِيبُهُم
हिस्सा उनका
mina
مِّنَ
लिखे हुए में से
l-kitābi
ٱلْكِتَٰبِۖ
लिखे हुए में से
ḥattā
حَتَّىٰٓ
यहाँ तक कि
idhā
إِذَا
जब
jāathum
جَآءَتْهُمْ
आ जाऐंगे उनके पास
rusulunā
رُسُلُنَا
भेजे हुए हमारे
yatawaffawnahum
يَتَوَفَّوْنَهُمْ
वो फ़ौत करेंगे उन्हें
qālū
قَالُوٓا۟
वो कहेंगे
ayna
أَيْنَ
कहाँ हैं
مَا
जिन्हें
kuntum
كُنتُمْ
थे तुम
tadʿūna
تَدْعُونَ
तुम पुकारते
min
مِن
सिवाय
dūni
دُونِ
सिवाय
l-lahi
ٱللَّهِۖ
अल्लाह के
qālū
قَالُوا۟
वो कहेंगे
ḍallū
ضَلُّوا۟
गुम हो गए
ʿannā
عَنَّا
हम से
washahidū
وَشَهِدُوا۟
और वो गवाही देंगे
ʿalā
عَلَىٰٓ
अपने नफ़्सों पर
anfusihim
أَنفُسِهِمْ
अपने नफ़्सों पर
annahum
أَنَّهُمْ
कि बेशक वो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
kāfirīna
كَٰفِرِينَ
काफ़िर
अब उससे बढ़कर अत्याचारी कौन है, जिसने अल्लाह पर मिथ्यारोपण किया या उसकी आयतों को झुठलाया? ऐसे लोगों को उनके लिए लिखा हुआ हिस्सा पहुँचता रहेगा, यहाँ तक कि जब हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) उनके प्राण ग्रस्त करने के लिए उनके पास आएँगे तो कहेंगे, 'कहाँ हैं, वे जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पुकारते थे?' कहेंगे, 'वे तो हमसे गुम हो गए।' और वे स्वयं अपने विरुद्ध गवाही देंगे कि वास्तव में वे इनकार करनेवाले थे ([७] अल-आराफ़: 37)
Tafseer (तफ़सीर )
३८

قَالَ ادْخُلُوْا فِيْٓ اُمَمٍ قَدْ خَلَتْ مِنْ قَبْلِكُمْ مِّنَ الْجِنِّ وَالْاِنْسِ فِى النَّارِۙ كُلَّمَا دَخَلَتْ اُمَّةٌ لَّعَنَتْ اُخْتَهَا ۗحَتّٰٓى اِذَا ادَّارَكُوْا فِيْهَا جَمِيْعًا ۙقَالَتْ اُخْرٰىهُمْ لِاُوْلٰىهُمْ رَبَّنَا هٰٓؤُلَاۤءِ اَضَلُّوْنَا فَاٰتِهِمْ عَذَابًا ضِعْفًا مِّنَ النَّارِ ەۗ قَالَ لِكُلٍّ ضِعْفٌ وَّلٰكِنْ لَّا تَعْلَمُوْنَ ٣٨

qāla
قَالَ
वो फ़रमाएगा
ud'khulū
ٱدْخُلُوا۟
दाख़िल हो जाओ
فِىٓ
जमाअतों में
umamin
أُمَمٍ
जमाअतों में
qad
قَدْ
तहक़ीक़
khalat
خَلَتْ
जो गुज़र चुकी हैं
min
مِن
तुम से पहले
qablikum
قَبْلِكُم
तुम से पहले
mina
مِّنَ
जिन्न व इन्स में से
l-jini
ٱلْجِنِّ
जिन्न व इन्स में से
wal-insi
وَٱلْإِنسِ
जिन्न व इन्स में से
فِى
आग में
l-nāri
ٱلنَّارِۖ
आग में
kullamā
كُلَّمَا
जब कभी
dakhalat
دَخَلَتْ
दाख़िल होगी
ummatun
أُمَّةٌ
कोई जमाअत
laʿanat
لَّعَنَتْ
लानत करेगी
ukh'tahā
أُخْتَهَاۖ
अपनी बहन को
ḥattā
حَتَّىٰٓ
यहाँ तक कि
idhā
إِذَا
जब
iddārakū
ٱدَّارَكُوا۟
वो जमा हो जाऐंगे
fīhā
فِيهَا
उसमें
jamīʿan
جَمِيعًا
सबके सब
qālat
قَالَتْ
कहेगी
ukh'rāhum
أُخْرَىٰهُمْ
पिछली उनकी
liūlāhum
لِأُولَىٰهُمْ
अपनी पहली को
rabbanā
رَبَّنَا
ऐ हमारे रब
hāulāi
هَٰٓؤُلَآءِ
ये हैं वो लोग
aḍallūnā
أَضَلُّونَا
जिन्होंने गुमराह किया हमें
faātihim
فَـَٔاتِهِمْ
पस दे इन्हें
ʿadhāban
عَذَابًا
अज़ाब
ḍiʿ'fan
ضِعْفًا
दोगुना
mina
مِّنَ
आग से
l-nāri
ٱلنَّارِۖ
आग से
qāla
قَالَ
वो फ़रमाएगा
likullin
لِكُلٍّ
हर एक के लिए
ḍiʿ'fun
ضِعْفٌ
दोगुना है
walākin
وَلَٰكِن
और लेकिन
لَّا
नहीं तुम जानते
taʿlamūna
تَعْلَمُونَ
नहीं तुम जानते
वह कहेगा, 'जिन्न और इनसान के जो गिरोह तुमसे पहले गुज़रे हैं, उन्हीं के साथ सम्मिलित होकर तुम भी आग में प्रवेश करो।' जब भी कोई जमाअत प्रवेश करेगी, तो वह अपनी बहन पर लानत करेगी, यहाँ तक कि जब सब उसमें रल-मिल जाएँगे तो उनमें से बाद में आनेवाले अपने से पहलेवाले के विषय में कहेंगे, 'हमारे रब! हमें इन्हीं लोगों ने गुमराह किया था; तो तू इन्हें आग की दोहरी यातना दे।' वह कहेगा, 'हरेक के लिए दोहरी ही है। किन्तु तुम नहीं जानते।' ([७] अल-आराफ़: 38)
Tafseer (तफ़सीर )
३९

وَقَالَتْ اُوْلٰىهُمْ لِاُخْرٰىهُمْ فَمَا كَانَ لَكُمْ عَلَيْنَا مِنْ فَضْلٍ فَذُوْقُوا الْعَذَابَ بِمَا كُنْتُمْ تَكْسِبُوْنَ ࣖ ٣٩

waqālat
وَقَالَتْ
और कहेगी
ūlāhum
أُولَىٰهُمْ
पहली उनकी
li-ukh'rāhum
لِأُخْرَىٰهُمْ
उनकी पिछली को
famā
فَمَا
पस ना
kāna
كَانَ
हुई
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
ʿalaynā
عَلَيْنَا
हम पर
min
مِن
कोई फ़ज़ीलत
faḍlin
فَضْلٍ
कोई फ़ज़ीलत
fadhūqū
فَذُوقُوا۟
पस चखो
l-ʿadhāba
ٱلْعَذَابَ
अज़ाब
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
kuntum
كُنتُمْ
थे तुम
taksibūna
تَكْسِبُونَ
तुम कमाई करते
और उनमें से पहले आनेवाले अपने से बाद में आनेवालों से कहेंगे, 'फिर हमारे मुक़ावाले में तुम्हें कोई श्रेष्ठता प्राप्त नहीं, तो जैसी कुछ कमाई तुम करते रहे हो, उसके बदले में तुम यातना का मज़ा चखो!' ([७] अल-आराफ़: 39)
Tafseer (तफ़सीर )
४०

اِنَّ الَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَا وَاسْتَكْبَرُوْا عَنْهَا لَا تُفَتَّحُ لَهُمْ اَبْوَابُ السَّمَاۤءِ وَلَا يَدْخُلُوْنَ الْجَنَّةَ حَتّٰى يَلِجَ الْجَمَلُ فِيْ سَمِّ الْخِيَاطِ ۗ وَكَذٰلِكَ نَجْزِى الْمُجْرِمِيْنَ ٤٠

inna
إِنَّ
बेशक
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जिन्होंने
kadhabū
كَذَّبُوا۟
झुठलाया
biāyātinā
بِـَٔايَٰتِنَا
हमारी आयात को
wa-is'takbarū
وَٱسْتَكْبَرُوا۟
और उन्होंने तकब्बुर किया
ʿanhā
عَنْهَا
उनसे
لَا
नहीं खोले जाऐंगे
tufattaḥu
تُفَتَّحُ
नहीं खोले जाऐंगे
lahum
لَهُمْ
उनके लिए
abwābu
أَبْوَٰبُ
दरवाज़े
l-samāi
ٱلسَّمَآءِ
आसमान के
walā
وَلَا
और ना
yadkhulūna
يَدْخُلُونَ
वो दाख़िल होंगे
l-janata
ٱلْجَنَّةَ
जन्नत में
ḥattā
حَتَّىٰ
यहाँ तक कि
yalija
يَلِجَ
दाख़िल हो जाए
l-jamalu
ٱلْجَمَلُ
ऊँट
فِى
नाके में
sammi
سَمِّ
नाके में
l-khiyāṭi
ٱلْخِيَاطِۚ
सूई के
wakadhālika
وَكَذَٰلِكَ
और इसी तरह
najzī
نَجْزِى
हम बदला देंगे
l-muj'rimīna
ٱلْمُجْرِمِينَ
मुजरिमों को
जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया और उनके मुक़ाबले में अकड़ दिखाई, उनके लिए आकाश के द्वार नहीं खोले जाएँगे और न वे जन्नत में प्रवेश करेंग जब तक कि ऊँट सुई के नाके में से न गुज़र जाए। हम अपराधियों को ऐसा ही बदला देते है ([७] अल-आराफ़: 40)
Tafseer (तफ़सीर )