وَاِذْ قِيْلَ لَهُمُ اسْكُنُوْا هٰذِهِ الْقَرْيَةَ وَكُلُوْا مِنْهَا حَيْثُ شِئْتُمْ وَقُوْلُوْا حِطَّةٌ وَّادْخُلُوا الْبَابَ سُجَّدًا نَّغْفِرْ لَكُمْ خَطِيْۤـٰٔتِكُمْۗ سَنَزِيْدُ الْمُحْسِنِيْنَ ١٦١
- wa-idh
- وَإِذْ
- और जब
- qīla
- قِيلَ
- कहा गया
- lahumu
- لَهُمُ
- उनसे
- us'kunū
- ٱسْكُنُوا۟
- तुम ठहरो/रहो
- hādhihi
- هَٰذِهِ
- इस
- l-qaryata
- ٱلْقَرْيَةَ
- बस्ती में
- wakulū
- وَكُلُوا۟
- और खाओ
- min'hā
- مِنْهَا
- उसमें से
- ḥaythu
- حَيْثُ
- जहाँ से
- shi'tum
- شِئْتُمْ
- चाहो तुम
- waqūlū
- وَقُولُوا۟
- और कहो
- ḥiṭṭatun
- حِطَّةٌ
- हित्तातुन/बख़्श दे
- wa-ud'khulū
- وَٱدْخُلُوا۟
- और दाख़िल हो जाओ
- l-bāba
- ٱلْبَابَ
- दरवाज़े से
- sujjadan
- سُجَّدًا
- सजदा करते हुए
- naghfir
- نَّغْفِرْ
- हम बख़्श देंगे
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- khaṭīātikum
- خَطِيٓـَٰٔتِكُمْۚ
- ख़ताऐं तुम्हारी
- sanazīdu
- سَنَزِيدُ
- अनक़रीब हम ज़्यादा देंगे
- l-muḥ'sinīna
- ٱلْمُحْسِنِينَ
- एहसान करने वालों को
याद करो जब उनसे कहा गया, 'इस बस्ती में रहो-बसो और इसमें जहाँ से चाहो खाओ और कहो - हित्ततुन। और द्वार में सजदा करते हुए प्रवेश करो। हम तुम्हारी ख़ताओं को क्षमा कर देंगे और हम सुकर्मी लोगों को अधिक भी देंगे।' ([७] अल-आराफ़: 161)Tafseer (तफ़सीर )
فَبَدَّلَ الَّذِيْنَ ظَلَمُوْا مِنْهُمْ قَوْلًا غَيْرَ الَّذِيْ قِيْلَ لَهُمْ فَاَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِجْزًا مِّنَ السَّمَاۤءِ بِمَا كَانُوْا يَظْلِمُوْنَ ࣖ ١٦٢
- fabaddala
- فَبَدَّلَ
- पस बदल दिया
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों ने जिन्होंने
- ẓalamū
- ظَلَمُوا۟
- ज़ुल्म किया
- min'hum
- مِنْهُمْ
- उन में से
- qawlan
- قَوْلًا
- बात को
- ghayra
- غَيْرَ
- सिवाय
- alladhī
- ٱلَّذِى
- उसके जो
- qīla
- قِيلَ
- कही गई थी
- lahum
- لَهُمْ
- उन्हें
- fa-arsalnā
- فَأَرْسَلْنَا
- तो भेजा हमने
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- rij'zan
- رِجْزًا
- अज़ाब
- mina
- مِّنَ
- आसमान से
- l-samāi
- ٱلسَّمَآءِ
- आसमान से
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yaẓlimūna
- يَظْلِمُونَ
- वो ज़ुल्म करते
किन्तु उनमें से जो अत्याचारी थे उन्होंने, जो कुछ उनसे कहा गया था, उसको उससे भिन्न बात से बदल दिया। अतः जो अत्याचार वे कर रहे थे, उसके कारण हमने आकाश से उनपर यातना भेजी ([७] अल-आराफ़: 162)Tafseer (तफ़सीर )
وَسْـَٔلْهُمْ عَنِ الْقَرْيَةِ الَّتِيْ كَانَتْ حَاضِرَةَ الْبَحْرِۘ اِذْ يَعْدُوْنَ فِى السَّبْتِ اِذْ تَأْتِيْهِمْ حِيْتَانُهُمْ يَوْمَ سَبْتِهِمْ شُرَّعًا وَّيَوْمَ لَا يَسْبِتُوْنَۙ لَا تَأْتِيْهِمْ ۛ كَذٰلِكَ ۛنَبْلُوْهُمْ بِمَا كَانُوْا يَفْسُقُوْنَ ١٦٣
- wasalhum
- وَسْـَٔلْهُمْ
- और पूछिए उन से
- ʿani
- عَنِ
- उस बस्ती के बारे में
- l-qaryati
- ٱلْقَرْيَةِ
- उस बस्ती के बारे में
- allatī
- ٱلَّتِى
- वो जो
- kānat
- كَانَتْ
- थी वो
- ḥāḍirata
- حَاضِرَةَ
- किनारे पर
- l-baḥri
- ٱلْبَحْرِ
- समुन्दर के
- idh
- إِذْ
- जब
- yaʿdūna
- يَعْدُونَ
- वो ज़्यादती करते थे
- fī
- فِى
- सब्त/हफ़्ते के दिन में
- l-sabti
- ٱلسَّبْتِ
- सब्त/हफ़्ते के दिन में
- idh
- إِذْ
- जब
- tatīhim
- تَأْتِيهِمْ
- आती थीं उनके पास
- ḥītānuhum
- حِيتَانُهُمْ
- मछलियाँ उनकी
- yawma
- يَوْمَ
- दिन उनके हफ़्ते के
- sabtihim
- سَبْتِهِمْ
- दिन उनके हफ़्ते के
- shurraʿan
- شُرَّعًا
- ज़ाहिर होकर
- wayawma
- وَيَوْمَ
- और जिस दिन
- lā
- لَا
- वो सब्त/हफ़्ते का दिन ना मनाते
- yasbitūna
- يَسْبِتُونَۙ
- वो सब्त/हफ़्ते का दिन ना मनाते
- lā
- لَا
- नहीं वो आती थीं उनके पास
- tatīhim
- تَأْتِيهِمْۚ
- नहीं वो आती थीं उनके पास
- kadhālika
- كَذَٰلِكَ
- इसी तरह
- nablūhum
- نَبْلُوهُم
- हम आज़माते थे उन्हें
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yafsuqūna
- يَفْسُقُونَ
- वो नाफ़रमानी करते
उनसे उस बस्ती के विषय में पूछो जो सागर-तट पर थी। जब वे सब्त के मामले में सीमा का उल्लंघन करते थे, जब उनके सब्त के दिन उनकी मछलियाँ खुले तौर पर पानी के ऊपर आ जाती थी और जो दिन उनके सब्त का न होता तो वे उनके पास न आती थी। इस प्रकार उनके अवज्ञाकारी होने के कारण हम उनको परीक्षा में डाल रहे थे ([७] अल-आराफ़: 163)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذْ قَالَتْ اُمَّةٌ مِّنْهُمْ لِمَ تَعِظُوْنَ قَوْمًاۙ ۨاللّٰهُ مُهْلِكُهُمْ اَوْ مُعَذِّبُهُمْ عَذَابًا شَدِيْدًاۗ قَالُوْا مَعْذِرَةً اِلٰى رَبِّكُمْ وَلَعَلَّهُمْ يَتَّقُوْنَ ١٦٤
- wa-idh
- وَإِذْ
- और जब
- qālat
- قَالَتْ
- कहा
- ummatun
- أُمَّةٌ
- एक जमाअत ने
- min'hum
- مِّنْهُمْ
- उनमें से
- lima
- لِمَ
- क्यों
- taʿiẓūna
- تَعِظُونَ
- तुम नसीहत करते हो
- qawman
- قَوْمًاۙ
- ऐसी क़ौम को
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- muh'likuhum
- مُهْلِكُهُمْ
- हलाक करने वाला है जिन्हें
- aw
- أَوْ
- या
- muʿadhibuhum
- مُعَذِّبُهُمْ
- अज़ाब देने वाला है जिन्हें
- ʿadhāban
- عَذَابًا
- अज़ाब
- shadīdan
- شَدِيدًاۖ
- शदीद
- qālū
- قَالُوا۟
- उन्होंने कहा
- maʿdhiratan
- مَعْذِرَةً
- माज़रत (करने के लिए)
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ तुम्हारे रब के
- rabbikum
- رَبِّكُمْ
- तरफ़ तुम्हारे रब के
- walaʿallahum
- وَلَعَلَّهُمْ
- और शायद कि वो
- yattaqūna
- يَتَّقُونَ
- वो डर जाऐं
और जब उनके एक गिरोह ने कहा, 'तुम ऐसे लोगों को क्यों नसीहत किए जा रहे हो, जिन्हें अल्लाह विनष्ट करनेवाला है या जिन्हें वह कठोर यातना देनेवाला है?' उन्होंने कहा, 'तुम्हारे रब के समक्ष अपने को निरपराध सिद्ध करने के लिए, और कदाचित वे (अवज्ञा से) बचें।' ([७] अल-आराफ़: 164)Tafseer (तफ़सीर )
فَلَمَّا نَسُوْا مَا ذُكِّرُوْا بِهٖٓ اَنْجَيْنَا الَّذِيْنَ يَنْهَوْنَ عَنِ السُّوْۤءِ وَاَخَذْنَا الَّذِيْنَ ظَلَمُوْا بِعَذَابٍۢ بَـِٔيْسٍۢ بِمَا كَانُوْا يَفْسُقُوْنَ ١٦٥
- falammā
- فَلَمَّا
- फिर जब
- nasū
- نَسُوا۟
- वो भूल गए
- mā
- مَا
- जो
- dhukkirū
- ذُكِّرُوا۟
- वो नसीहत किए गए थे
- bihi
- بِهِۦٓ
- जिसकी
- anjaynā
- أَنجَيْنَا
- निजात दी हमने
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन्हें जो
- yanhawna
- يَنْهَوْنَ
- वो रोकते थे
- ʿani
- عَنِ
- बुराई से
- l-sūi
- ٱلسُّوٓءِ
- बुराई से
- wa-akhadhnā
- وَأَخَذْنَا
- और पकड़ लिया हमने
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनको जिन्होंने
- ẓalamū
- ظَلَمُوا۟
- ज़ुल्म किया
- biʿadhābin
- بِعَذَابٍۭ
- साथ अज़ाब
- baīsin
- بَـِٔيسٍۭ
- सख़्त के
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yafsuqūna
- يَفْسُقُونَ
- वो नाफ़रमानी करते
फिर जब वे उसे भूल गए जो नसीहत उन्हें दी गई थी तो हमने उन लोगों को बचा लिया, जो बुराई से रोकते थे और अत्याचारियों को उनकी अवज्ञा के कारण कठोर यातना में पकड़ लिया ([७] अल-आराफ़: 165)Tafseer (तफ़सीर )
فَلَمَّا عَتَوْا عَنْ مَّا نُهُوْا عَنْهُ قُلْنَا لَهُمْ كُوْنُوْا قِرَدَةً خَاسِـِٕيْنَ ١٦٦
- falammā
- فَلَمَّا
- फिर जब
- ʿataw
- عَتَوْا۟
- उन्होंने सरकशी की
- ʿan
- عَن
- उससे
- mā
- مَّا
- जो
- nuhū
- نُهُوا۟
- वो रोके गए थे
- ʿanhu
- عَنْهُ
- जिससे
- qul'nā
- قُلْنَا
- कहा हमने
- lahum
- لَهُمْ
- उन्हें
- kūnū
- كُونُوا۟
- हो जाओ
- qiradatan
- قِرَدَةً
- बन्दर
- khāsiīna
- خَٰسِـِٔينَ
- ज़लील
फिर जब वे सरकशी के साथ वही कुछ करते रहे, जिससे उन्हें रोका गया था तो हमने उनसे कहा, 'बन्दर हो जाओ, अपमानित और तिरस्कृत!' ([७] अल-आराफ़: 166)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذْ تَاَذَّنَ رَبُّكَ لَيَبْعَثَنَّ عَلَيْهِمْ اِلٰى يَوْمِ الْقِيٰمَةِ مَنْ يَّسُوْمُهُمْ سُوْۤءَ الْعَذَابِۗ اِنَّ رَبَّكَ لَسَرِيْعُ الْعِقَابِۖ وَاِنَّهٗ لَغَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ١٦٧
- wa-idh
- وَإِذْ
- और जब
- ta-adhana
- تَأَذَّنَ
- ख़बर दी
- rabbuka
- رَبُّكَ
- आपके रब ने
- layabʿathanna
- لَيَبْعَثَنَّ
- अलबत्ता वो ज़रूर भेजेगा
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- ilā
- إِلَىٰ
- क़यामत के दिन तक
- yawmi
- يَوْمِ
- क़यामत के दिन तक
- l-qiyāmati
- ٱلْقِيَٰمَةِ
- क़यामत के दिन तक
- man
- مَن
- उसे जो
- yasūmuhum
- يَسُومُهُمْ
- चखाएगा उन्हें
- sūa
- سُوٓءَ
- बुरा
- l-ʿadhābi
- ٱلْعَذَابِۗ
- अज़ाब
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- rabbaka
- رَبَّكَ
- रब आपका
- lasarīʿu
- لَسَرِيعُ
- अलबत्ता जल्द देने वाला है
- l-ʿiqābi
- ٱلْعِقَابِۖ
- सज़ा
- wa-innahu
- وَإِنَّهُۥ
- और बेशक वो है
- laghafūrun
- لَغَفُورٌ
- अल्बत्ता बहुत बख़्शने वाला
- raḥīmun
- رَّحِيمٌ
- निहायत रहम करने वाला
और याद करो जब तुम्हारे रब ने ख़बर कर दी थी कि वह क़ियामत के दिन तक उनके विरुद्ध ऐसे लोगों को उठाता रहेगा, जो उन्हें बुरी यातना देंगे। निश्चय ही तुम्हारा रब जल्द सज़ा देता है और वह बड़ा क्षमाशील, दावान भी है ([७] अल-आराफ़: 167)Tafseer (तफ़सीर )
وَقَطَّعْنٰهُمْ فِى الْاَرْضِ اُمَمًاۚ مِنْهُمُ الصّٰلِحُوْنَ وَمِنْهُمْ دُوْنَ ذٰلِكَ ۖوَبَلَوْنٰهُمْ بِالْحَسَنٰتِ وَالسَّيِّاٰتِ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُوْنَ ١٦٨
- waqaṭṭaʿnāhum
- وَقَطَّعْنَٰهُمْ
- और टुकड़े-टुकड़े कर दिया हमने उन्हें
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- umaman
- أُمَمًاۖ
- गिरोह-गिरोह (बनाकर)
- min'humu
- مِّنْهُمُ
- उनमें से कुछ
- l-ṣāliḥūna
- ٱلصَّٰلِحُونَ
- नेक हैं
- wamin'hum
- وَمِنْهُمْ
- और उनमें से
- dūna
- دُونَ
- इसके अलावा हैं
- dhālika
- ذَٰلِكَۖ
- इसके अलावा हैं
- wabalawnāhum
- وَبَلَوْنَٰهُم
- और आज़माया हमने उन्हें
- bil-ḥasanāti
- بِٱلْحَسَنَٰتِ
- साथ अच्छाइयों के
- wal-sayiāti
- وَٱلسَّيِّـَٔاتِ
- और बुराइयों के
- laʿallahum
- لَعَلَّهُمْ
- शायद कि वो
- yarjiʿūna
- يَرْجِعُونَ
- वो रुजूअ करें
और हमने उन्हें टुकड़े-टुकड़े करके धरती में अनेक गिरोहों में बिखेर दिया। कुछ उनमें से नेक है और कुछ उनमें इससे भिन्न हैं, और हमने उन्हें अच्छी और बुरी परिस्थितियों में डालकर उनकी परीक्षा ली, कदाचित वे पलट आएँ ([७] अल-आराफ़: 168)Tafseer (तफ़सीर )
فَخَلَفَ مِنْۢ بَعْدِهِمْ خَلْفٌ وَّرِثُوا الْكِتٰبَ يَأْخُذُوْنَ عَرَضَ هٰذَا الْاَدْنٰى وَيَقُوْلُوْنَ سَيُغْفَرُ لَنَاۚ وَاِنْ يَّأْتِهِمْ عَرَضٌ مِّثْلُهٗ يَأْخُذُوْهُۗ اَلَمْ يُؤْخَذْ عَلَيْهِمْ مِّيْثَاقُ الْكِتٰبِ اَنْ لَّا يَقُوْلُوْا عَلَى اللّٰهِ اِلَّا الْحَقَّ وَدَرَسُوْا مَا فِيْهِۗ وَالدَّارُ الْاٰخِرَةُ خَيْرٌ لِّلَّذِيْنَ يَتَّقُوْنَۗ اَفَلَا تَعْقِلُوْنَ ١٦٩
- fakhalafa
- فَخَلَفَ
- तो पीछे आए
- min
- مِنۢ
- बाद उनके
- baʿdihim
- بَعْدِهِمْ
- बाद उनके
- khalfun
- خَلْفٌ
- नाख़ल्फ़
- warithū
- وَرِثُوا۟
- जो वारिस हुए
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब के
- yakhudhūna
- يَأْخُذُونَ
- वो ले लेते हैं
- ʿaraḍa
- عَرَضَ
- मालो मता
- hādhā
- هَٰذَا
- इस
- l-adnā
- ٱلْأَدْنَىٰ
- हक़ीर दुनिया का
- wayaqūlūna
- وَيَقُولُونَ
- और वो कहते हैं
- sayugh'faru
- سَيُغْفَرُ
- ज़रूर बख़्श दिया जाएगा
- lanā
- لَنَا
- हमें
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- yatihim
- يَأْتِهِمْ
- आता है उनके पास
- ʿaraḍun
- عَرَضٌ
- मालो मता
- mith'luhu
- مِّثْلُهُۥ
- मानिन्द उसी के
- yakhudhūhu
- يَأْخُذُوهُۚ
- वो ले लेते हैं उसे
- alam
- أَلَمْ
- क्या नहीं
- yu'khadh
- يُؤْخَذْ
- लिया गया
- ʿalayhim
- عَلَيْهِم
- उनसे
- mīthāqu
- مِّيثَٰقُ
- पुख़्ता अहद
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- किताब में
- an
- أَن
- कि
- lā
- لَّا
- ना वो कहें
- yaqūlū
- يَقُولُوا۟
- ना वो कहें
- ʿalā
- عَلَى
- अल्लाह पर
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- illā
- إِلَّا
- सिवाय
- l-ḥaqa
- ٱلْحَقَّ
- हक़ के
- wadarasū
- وَدَرَسُوا۟
- और उन्होंने पढ़ लिया था
- mā
- مَا
- जो
- fīhi
- فِيهِۗ
- उसमें है
- wal-dāru
- وَٱلدَّارُ
- और घर
- l-ākhiratu
- ٱلْءَاخِرَةُ
- आख़िरत का
- khayrun
- خَيْرٌ
- बेहतर है
- lilladhīna
- لِّلَّذِينَ
- उनके लिए जो
- yattaqūna
- يَتَّقُونَۗ
- डरते हैं
- afalā
- أَفَلَا
- क्या भला नहीं
- taʿqilūna
- تَعْقِلُونَ
- तुम अक़्ल रखते
फिर उनके पीछ ऐसे अयोग्य लोगों ने उनकी जगह ली, जो किताब के उत्ताराधिकारी होकर इसी तुच्छ संसार का सामान समेटते है और कहते है, 'हमें अवश्य क्षमा कर दिया जाएगा।' और यदि इस जैसा और सामान भी उनके पास आ जाए तो वे उसे भी ले लेंगे। क्या उनसे किताब का यह वचन नहीं लिया गया था कि वे अल्लाह पर थोपकर हक़ के सिवा कोई और बात न कहें। और जो उसमें है उसे वे स्वयं पढ़ भी चुके है। और आख़िरत का घर तो उन लोगों के लिए उत्तम है, जो डर रखते है। तो क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते? ([७] अल-आराफ़: 169)Tafseer (तफ़सीर )
وَالَّذِيْنَ يُمَسِّكُوْنَ بِالْكِتٰبِ وَاَقَامُوا الصَّلٰوةَۗ اِنَّا لَا نُضِيْعُ اَجْرَ الْمُصْلِحِيْنَ ١٧٠
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- yumassikūna
- يُمَسِّكُونَ
- मज़बूती से पकड़ते हैं
- bil-kitābi
- بِٱلْكِتَٰبِ
- किताब को
- wa-aqāmū
- وَأَقَامُوا۟
- और वो क़ायम करते हैं
- l-ṣalata
- ٱلصَّلَوٰةَ
- नमाज़ को
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- lā
- لَا
- नहीं हम ज़ाया करते
- nuḍīʿu
- نُضِيعُ
- नहीं हम ज़ाया करते
- ajra
- أَجْرَ
- अजर
- l-muṣ'liḥīna
- ٱلْمُصْلِحِينَ
- इस्लाह करने वालों का
और जो लोग किताब को मज़बूती से थामते है और जिन्होंने नमाज़ क़ायम कर रखी है, तो काम को ठीक रखनेवालों के प्रतिदान को हम कभी अकारथ नहीं करते ([७] अल-आराफ़: 170)Tafseer (तफ़सीर )