قَالَ رَبِّ اغْفِرْ لِيْ وَلِاَخِيْ وَاَدْخِلْنَا فِيْ رَحْمَتِكَ ۖوَاَنْتَ اَرْحَمُ الرّٰحِمِيْنَ ࣖ ١٥١
- qāla
- قَالَ
- कहा
- rabbi
- رَبِّ
- ऐ मेरे रब
- igh'fir
- ٱغْفِرْ
- बख़्श दे
- lī
- لِى
- मुझे
- wali-akhī
- وَلِأَخِى
- और मेरे भाई को
- wa-adkhil'nā
- وَأَدْخِلْنَا
- और दाख़िल कर हमें
- fī
- فِى
- अपनी रहमत में
- raḥmatika
- رَحْمَتِكَۖ
- अपनी रहमत में
- wa-anta
- وَأَنتَ
- और तू
- arḥamu
- أَرْحَمُ
- सबसे ज़्यादा रहम वाला है
- l-rāḥimīna
- ٱلرَّٰحِمِينَ
- सब रहम करने वालों से
उसने कहा, 'मेरे रब! मुझे और मेरे भाई को क्षमा कर दे और हमें अपनी दयालुता में दाख़िल कर ले। तू तो सबसे बढ़कर दयावान हैं।' ([७] अल-आराफ़: 151)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ الَّذِيْنَ اتَّخَذُوا الْعِجْلَ سَيَنَالُهُمْ غَضَبٌ مِّنْ رَّبِّهِمْ وَذِلَّةٌ فِى الْحَيٰوةِ الدُّنْيَاۗ وَكَذٰلِكَ نَجْزِى الْمُفْتَرِيْنَ ١٥٢
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जिन्होंने
- ittakhadhū
- ٱتَّخَذُوا۟
- बना लिया
- l-ʿij'la
- ٱلْعِجْلَ
- बछड़े को (माबूद)
- sayanāluhum
- سَيَنَالُهُمْ
- अनक़रीब पहुँचेगा उन्हें
- ghaḍabun
- غَضَبٌ
- ग़ज़ब
- min
- مِّن
- उनके रब की तरफ़ से
- rabbihim
- رَّبِّهِمْ
- उनके रब की तरफ़ से
- wadhillatun
- وَذِلَّةٌ
- और रुसवाई
- fī
- فِى
- ज़िन्दगी में
- l-ḥayati
- ٱلْحَيَوٰةِ
- ज़िन्दगी में
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَاۚ
- दुनिया की
- wakadhālika
- وَكَذَٰلِكَ
- और इसी तरह
- najzī
- نَجْزِى
- हम बदला देते हैं
- l-muf'tarīna
- ٱلْمُفْتَرِينَ
- झूठ बाँधने वालों को
जिन लोगों ने बछड़े को अपना उपास्य बनाया, वे अपने रब की ओर से प्रकोप और सांसारिक जीवन में अपमान से ग्रस्त होकर रहेंगे; और झूठ घड़नेवालों को हम ऐसा ही बदला देते है ([७] अल-आराफ़: 152)Tafseer (तफ़सीर )
وَالَّذِيْنَ عَمِلُوا السَّيِّاٰتِ ثُمَّ تَابُوْا مِنْۢ بَعْدِهَا وَاٰمَنُوْٓا اِنَّ رَبَّكَ مِنْۢ بَعْدِهَا لَغَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ١٥٣
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो लोग
- ʿamilū
- عَمِلُوا۟
- जिन्होंने अमल किए
- l-sayiāti
- ٱلسَّيِّـَٔاتِ
- बुरे
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- tābū
- تَابُوا۟
- तौबा कर ली
- min
- مِنۢ
- बाद उसके
- baʿdihā
- بَعْدِهَا
- बाद उसके
- waāmanū
- وَءَامَنُوٓا۟
- और वो ईमान ले आए
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- rabbaka
- رَبَّكَ
- रब आपका
- min
- مِنۢ
- बाद उसके
- baʿdihā
- بَعْدِهَا
- बाद उसके
- laghafūrun
- لَغَفُورٌ
- अलबत्ता बहुत बख़्शने वाला है
- raḥīmun
- رَّحِيمٌ
- निहायत रहम करने वाला है
रहे वे लोग जिन्होंने बुरे कर्म किए फिर उसके पश्चात तौबा कर ली और ईमान ले आए, तो इसके बाद तो तुम्हारा रब बड़ा ही क्षमाशील, दयाशील है ([७] अल-आराफ़: 153)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَمَّا سَكَتَ عَنْ مُّوْسَى الْغَضَبُ اَخَذَ الْاَلْوَاحَۖ وَفِيْ نُسْخَتِهَا هُدًى وَّرَحْمَةٌ لِّلَّذِيْنَ هُمْ لِرَبِّهِمْ يَرْهَبُوْنَ ١٥٤
- walammā
- وَلَمَّا
- और जब
- sakata
- سَكَتَ
- थम गया
- ʿan
- عَن
- मूसा से
- mūsā
- مُّوسَى
- मूसा से
- l-ghaḍabu
- ٱلْغَضَبُ
- ग़ज़ब
- akhadha
- أَخَذَ
- उसने ले लीं
- l-alwāḥa
- ٱلْأَلْوَاحَۖ
- तख़्तियाँ
- wafī
- وَفِى
- और उनकी तहरीर में
- nus'khatihā
- نُسْخَتِهَا
- और उनकी तहरीर में
- hudan
- هُدًى
- हिदायत
- waraḥmatun
- وَرَحْمَةٌ
- और रहमत थी
- lilladhīna
- لِّلَّذِينَ
- उन लोगों के लिए
- hum
- هُمْ
- वो जो
- lirabbihim
- لِرَبِّهِمْ
- अपने रब से
- yarhabūna
- يَرْهَبُونَ
- वो डरते थे
और जब मूसा का क्रोध शान्त हुआ तो उसने तख़्तियों को उठा लिया। उनके लेख में उन लोगों के लिए मार्गदर्शन और दयालुता थी जो अपने रब से डरते है ([७] अल-आराफ़: 154)Tafseer (तफ़सीर )
وَاخْتَارَ مُوْسٰى قَوْمَهٗ سَبْعِيْنَ رَجُلًا لِّمِيْقَاتِنَا ۚفَلَمَّآ اَخَذَتْهُمُ الرَّجْفَةُ قَالَ رَبِّ لَوْ شِئْتَ اَهْلَكْتَهُمْ مِّنْ قَبْلُ وَاِيَّايَۗ اَتُهْلِكُنَا بِمَا فَعَلَ السُّفَهَاۤءُ مِنَّاۚ اِنْ هِيَ اِلَّا فِتْنَتُكَۗ تُضِلُّ بِهَا مَنْ تَشَاۤءُ وَتَهْدِيْ مَنْ تَشَاۤءُۗ اَنْتَ وَلِيُّنَا فَاغْفِرْ لَنَا وَارْحَمْنَا وَاَنْتَ خَيْرُ الْغَافِرِيْنَ ١٥٥
- wa-ikh'tāra
- وَٱخْتَارَ
- और मुन्तख़िब कर लिए
- mūsā
- مُوسَىٰ
- मूसा ने
- qawmahu
- قَوْمَهُۥ
- अपनी क़ौम से
- sabʿīna
- سَبْعِينَ
- सत्तर
- rajulan
- رَجُلًا
- आदमी
- limīqātinā
- لِّمِيقَٰتِنَاۖ
- हमारे मुक़र्रर वक़्त के लिए
- falammā
- فَلَمَّآ
- फिर जब
- akhadhathumu
- أَخَذَتْهُمُ
- पकड़ लिया उन्हें
- l-rajfatu
- ٱلرَّجْفَةُ
- ज़लज़ले ने
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- rabbi
- رَبِّ
- ऐ मेरे रब
- law
- لَوْ
- अगर
- shi'ta
- شِئْتَ
- चाहता तू
- ahlaktahum
- أَهْلَكْتَهُم
- हलाक कर देता तू इन्हें
- min
- مِّن
- इससे पहले
- qablu
- قَبْلُ
- इससे पहले
- wa-iyyāya
- وَإِيَّٰىَۖ
- और मुझे भी
- atuh'likunā
- أَتُهْلِكُنَا
- क्या तू हलाक करता है हमें
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- faʿala
- فَعَلَ
- किया
- l-sufahāu
- ٱلسُّفَهَآءُ
- कुछ नादानों ने
- minnā
- مِنَّآۖ
- हम में से
- in
- إِنْ
- नहीं है
- hiya
- هِىَ
- ये
- illā
- إِلَّا
- मगर
- fit'natuka
- فِتْنَتُكَ
- आज़माइश तेरी
- tuḍillu
- تُضِلُّ
- तू गुमराह करता है
- bihā
- بِهَا
- साथ इसके
- man
- مَن
- जिसे
- tashāu
- تَشَآءُ
- तू चाहता है
- watahdī
- وَتَهْدِى
- और तू हिदायत देता है
- man
- مَن
- जिसे
- tashāu
- تَشَآءُۖ
- तू चाहता है
- anta
- أَنتَ
- तू ही
- waliyyunā
- وَلِيُّنَا
- दोस्त है हमारा
- fa-igh'fir
- فَٱغْفِرْ
- पस बख़्श दे
- lanā
- لَنَا
- हमें
- wa-ir'ḥamnā
- وَٱرْحَمْنَاۖ
- और रहम फ़रमा हम पर
- wa-anta
- وَأَنتَ
- और तू
- khayru
- خَيْرُ
- बेहतर है
- l-ghāfirīna
- ٱلْغَٰفِرِينَ
- सब बख़्शने वालों से
मूसा ने अपनी क़ौम के सत्तर आदमियों को हमारे नियत किए हुए समय के लिए चुना। फिर जब उन लोगों को एक भूकम्प ने आ पकड़ा तो उसने कहा, 'मेर रब! यदि तू चाहता तो पहले ही इनको और मुझको विनष्ट़ कर देता। जो कुछ हमारे नादानों ने किया है, क्या उसके कारण तू हमें विनष्ट करेगा? यह तो बस तेरी ओर से एक परीक्षा है। इसके द्वारा तू जिसको चाहे पथभ्रष्ट कर दे और जिसे चाहे मार्ग दिखा दे। तू ही हमारा संरक्षक है। अतः तू हमें क्षमा कर दे और हम पर दया कर, और तू ही सबसे बढ़कर क्षमा करनेवाला है ([७] अल-आराफ़: 155)Tafseer (तफ़सीर )
۞ وَاكْتُبْ لَنَا فِيْ هٰذِهِ الدُّنْيَا حَسَنَةً وَّفِى الْاٰخِرَةِ اِنَّا هُدْنَآ اِلَيْكَۗ قَالَ عَذَابِيْٓ اُصِيْبُ بِهٖ مَنْ اَشَاۤءُۚ وَرَحْمَتِيْ وَسِعَتْ كُلَّ شَيْءٍۗ فَسَاَكْتُبُهَا لِلَّذِيْنَ يَتَّقُوْنَ وَيُؤْتُوْنَ الزَّكٰوةَ وَالَّذِيْنَ هُمْ بِاٰيٰتِنَا يُؤْمِنُوْنَۚ ١٥٦
- wa-uk'tub
- وَٱكْتُبْ
- और लिख दे
- lanā
- لَنَا
- हमारे लिए
- fī
- فِى
- इस दुनिया में
- hādhihi
- هَٰذِهِ
- इस दुनिया में
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- इस दुनिया में
- ḥasanatan
- حَسَنَةً
- भलाई
- wafī
- وَفِى
- और आख़िरत में
- l-ākhirati
- ٱلْءَاخِرَةِ
- और आख़िरत में
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- hud'nā
- هُدْنَآ
- रुजूअ किया हमने
- ilayka
- إِلَيْكَۚ
- तेरी तरफ़
- qāla
- قَالَ
- फ़रमाया
- ʿadhābī
- عَذَابِىٓ
- अज़ाब मेरा
- uṣību
- أُصِيبُ
- मैं पहुँचाता हूँ
- bihi
- بِهِۦ
- उसको
- man
- مَنْ
- जिसे
- ashāu
- أَشَآءُۖ
- मैं चाहता हूँ
- waraḥmatī
- وَرَحْمَتِى
- और रहमत मेरी
- wasiʿat
- وَسِعَتْ
- छाई हुई है
- kulla
- كُلَّ
- हर
- shayin
- شَىْءٍۚ
- चीज़ पर
- fasa-aktubuhā
- فَسَأَكْتُبُهَا
- पस ज़रूर मैं लिख दूँगा उसे
- lilladhīna
- لِلَّذِينَ
- उन लोगों के लिए जो
- yattaqūna
- يَتَّقُونَ
- डरते हैं
- wayu'tūna
- وَيُؤْتُونَ
- और वो अदा करते हैं
- l-zakata
- ٱلزَّكَوٰةَ
- ज़कात
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- hum
- هُم
- वो
- biāyātinā
- بِـَٔايَٰتِنَا
- हमारी आयात पर
- yu'minūna
- يُؤْمِنُونَ
- वो ईमान लाते हैं
'और हमारे लिए इस संसार में भलाई लिख दे और आख़िरत में भी। हम तेरी ही ओर उन्मुख हुए।' उसने कहा, 'अपनी यातना में मैं तो उसी को ग्रस्त करता हूँ, जिसे चाहता हूँ, किन्तु मेरी दयालुता से हर चीज़ आच्छादित है। उसे तो मैं उन लोगों के हक़ में लिखूँगा जो डर रखते और ज़कात देते है और जो हमारी आयतों पर ईमान लाते है ([७] अल-आराफ़: 156)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَّذِيْنَ يَتَّبِعُوْنَ الرَّسُوْلَ النَّبِيَّ الْاُمِّيَّ الَّذِيْ يَجِدُوْنَهٗ مَكْتُوْبًا عِنْدَهُمْ فِى التَّوْرٰىةِ وَالْاِنْجِيْلِ يَأْمُرُهُمْ بِالْمَعْرُوْفِ وَيَنْهٰىهُمْ عَنِ الْمُنْكَرِ وَيُحِلُّ لَهُمُ الطَّيِّبٰتِ وَيُحَرِّمُ عَلَيْهِمُ الْخَبٰۤىِٕثَ وَيَضَعُ عَنْهُمْ اِصْرَهُمْ وَالْاَغْلٰلَ الَّتِيْ كَانَتْ عَلَيْهِمْۗ فَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا بِهٖ وَعَزَّرُوْهُ وَنَصَرُوْهُ وَاتَّبَعُوا النُّوْرَ الَّذِيْٓ اُنْزِلَ مَعَهٗٓ ۙاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ ࣖ ١٥٧
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- yattabiʿūna
- يَتَّبِعُونَ
- पैरवी करेंगे
- l-rasūla
- ٱلرَّسُولَ
- इस रसूल
- l-nabiya
- ٱلنَّبِىَّ
- नबी की
- l-umiya
- ٱلْأُمِّىَّ
- जो उम्मी है
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो जो
- yajidūnahu
- يَجِدُونَهُۥ
- वो पाते हैं उसे
- maktūban
- مَكْتُوبًا
- लिखा हुआ
- ʿindahum
- عِندَهُمْ
- अपने पास
- fī
- فِى
- तौरात में
- l-tawrāti
- ٱلتَّوْرَىٰةِ
- तौरात में
- wal-injīli
- وَٱلْإِنجِيلِ
- और इंजील में
- yamuruhum
- يَأْمُرُهُم
- वो हुक्म देता है
- bil-maʿrūfi
- بِٱلْمَعْرُوفِ
- नेकी का
- wayanhāhum
- وَيَنْهَىٰهُمْ
- और वो रोकता है उन्हें
- ʿani
- عَنِ
- मुन्कर/बुराई से
- l-munkari
- ٱلْمُنكَرِ
- मुन्कर/बुराई से
- wayuḥillu
- وَيُحِلُّ
- और वो हलाल करता है
- lahumu
- لَهُمُ
- उनके लिए
- l-ṭayibāti
- ٱلطَّيِّبَٰتِ
- पाकीज़ा चीज़ें
- wayuḥarrimu
- وَيُحَرِّمُ
- और वो हराम करता है
- ʿalayhimu
- عَلَيْهِمُ
- उन पर
- l-khabāitha
- ٱلْخَبَٰٓئِثَ
- नापाक चीज़ें
- wayaḍaʿu
- وَيَضَعُ
- और वो उतारता है
- ʿanhum
- عَنْهُمْ
- उनसे
- iṣ'rahum
- إِصْرَهُمْ
- बोझ उनके
- wal-aghlāla
- وَٱلْأَغْلَٰلَ
- और वो तौक़
- allatī
- ٱلَّتِى
- वो जो
- kānat
- كَانَتْ
- थे वो
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْۚ
- उन पर
- fa-alladhīna
- فَٱلَّذِينَ
- पस वो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- bihi
- بِهِۦ
- उस पर
- waʿazzarūhu
- وَعَزَّرُوهُ
- और उन्होंने क़ुव्वत दी उसे
- wanaṣarūhu
- وَنَصَرُوهُ
- और उन्होंने मदद की उसकी
- wa-ittabaʿū
- وَٱتَّبَعُوا۟
- और उन्होंने पैरवी की
- l-nūra
- ٱلنُّورَ
- उस नूर की
- alladhī
- ٱلَّذِىٓ
- वो जो
- unzila
- أُنزِلَ
- नाज़िल किया गया
- maʿahu
- مَعَهُۥٓۙ
- साथ उसके
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- humu
- هُمُ
- वो
- l-muf'liḥūna
- ٱلْمُفْلِحُونَ
- जो फ़लाह पाने वाले हैं
'(तो आज इस दयालुता के अधिकारी वे लोग है) जो उस रसूल, उम्मी नबी का अनुसरण करते है, जिसे वे अपने यहाँ तौरात और इंजील में लिखा पाते है। और जो उन्हें भलाई का हुक्म देता और बुराई से रोकता है। उनके लिए अच्छी-स्वच्छ चीज़ों का हलाल और बुरी-अस्वच्छ चीज़ों का हराम ठहराता है और उनपर से उनके वह बोझ उतारता है, जो अब तक उनपर लदे हुए थे और उन बन्धनों को खोलता है, जिनमें वे जकड़े हुए थे। अतः जो लोग उसपर ईमान लाए, उसका सम्मान किया और उसकी सहायता की और उस प्रकाश के अनुगत हुए, जो उसके साथ अवतरित हुआ है, वही सफलता प्राप्त करनेवाले है।' ([७] अल-आराफ़: 157)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ يٰٓاَيُّهَا النَّاسُ اِنِّيْ رَسُوْلُ اللّٰهِ اِلَيْكُمْ جَمِيْعًا ۨالَّذِيْ لَهٗ مُلْكُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۚ لَآ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ يُحْيٖ وَيُمِيْتُۖ فَاٰمِنُوْا بِاللّٰهِ وَرَسُوْلِهِ النَّبِيِّ الْاُمِّيِّ الَّذِيْ يُؤْمِنُ بِاللّٰهِ وَكَلِمٰتِهٖ وَاتَّبِعُوْهُ لَعَلَّكُمْ تَهْتَدُوْنَ ١٥٨
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ
- l-nāsu
- ٱلنَّاسُ
- लोगो
- innī
- إِنِّى
- बेशक मैं
- rasūlu
- رَسُولُ
- रसूल हूँ
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह का
- ilaykum
- إِلَيْكُمْ
- तरफ़ तुम्हारे
- jamīʿan
- جَمِيعًا
- सब के
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो ही है
- lahu
- لَهُۥ
- जिसके लिए
- mul'ku
- مُلْكُ
- बादशाहत है
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों की
- wal-arḍi
- وَٱلْأَرْضِۖ
- और ज़मीन की
- lā
- لَآ
- नहीं
- ilāha
- إِلَٰهَ
- कोई इलाह (बरहक़)
- illā
- إِلَّا
- मगर
- huwa
- هُوَ
- वो ही
- yuḥ'yī
- يُحْىِۦ
- वो ज़िन्दा करता है
- wayumītu
- وَيُمِيتُۖ
- और वो मौत देता है
- faāminū
- فَـَٔامِنُوا۟
- पस ईमान लाओ
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- warasūlihi
- وَرَسُولِهِ
- और उसके रसूल पर
- l-nabiyi
- ٱلنَّبِىِّ
- जो नबी
- l-umiyi
- ٱلْأُمِّىِّ
- उम्मी है
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो जो
- yu'minu
- يُؤْمِنُ
- ईमान रखता है
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- wakalimātihi
- وَكَلِمَٰتِهِۦ
- और उसके कलिमात पर
- wa-ittabiʿūhu
- وَٱتَّبِعُوهُ
- और इत्तिबा करो उसका
- laʿallakum
- لَعَلَّكُمْ
- ताकि तुम
- tahtadūna
- تَهْتَدُونَ
- तुम हिदायत पा जाओ
कहो, 'ऐ लोगो! मैं तुम सबकी ओर उस अल्लाह का रसूल हूँ, जो आकाशों और धरती के राज्य का स्वामी है उसके सिवा कोई पूज्य नहीं, वही जीवन प्रदान करता और वही मृत्यु देता है। अतः जीवन प्रदान करता और वही मृत्यु देता है। अतः अल्लाह और उसके रसूल, उस उम्मी नबी, पर ईमान लाओ जो स्वयं अल्लाह पर और उसके शब्दों (वाणी) पर ईमान रखता है और उनका अनुसरण करो, ताकि तुम मार्ग पा लो।' ([७] अल-आराफ़: 158)Tafseer (तफ़सीर )
وَمِنْ قَوْمِ مُوْسٰٓى اُمَّةٌ يَّهْدُوْنَ بِالْحَقِّ وَبِهٖ يَعْدِلُوْنَ ١٥٩
- wamin
- وَمِن
- और मूसा की क़ौम में से
- qawmi
- قَوْمِ
- और मूसा की क़ौम में से
- mūsā
- مُوسَىٰٓ
- और मूसा की क़ौम में से
- ummatun
- أُمَّةٌ
- एक गिरोह था
- yahdūna
- يَهْدُونَ
- वो रहनुमाई करते
- bil-ḥaqi
- بِٱلْحَقِّ
- साथ हक़ के
- wabihi
- وَبِهِۦ
- और साथ उसी के
- yaʿdilūna
- يَعْدِلُونَ
- वो अदल करते
मूसा की क़ौम में से एक गिरोह ऐसे लोगों का भी हुआ जो हक़ के अनुसार मार्ग दिखाते और उसी के अनुसार न्याय करते ([७] अल-आराफ़: 159)Tafseer (तफ़सीर )
وَقَطَّعْنٰهُمُ اثْنَتَيْ عَشْرَةَ اَسْبَاطًا اُمَمًاۗ وَاَوْحَيْنَآ اِلٰى مُوْسٰٓى اِذِ اسْتَسْقٰىهُ قَوْمُهٗٓ اَنِ اضْرِبْ بِّعَصَاكَ الْحَجَرَۚ فَانْۢبَجَسَتْ مِنْهُ اثْنَتَا عَشْرَةَ عَيْنًاۗ قَدْ عَلِمَ كُلُّ اُنَاسٍ مَّشْرَبَهُمْۗ وَظَلَّلْنَا عَلَيْهِمُ الْغَمَامَ وَاَنْزَلْنَا عَلَيْهِمُ الْمَنَّ وَالسَّلْوٰىۗ كُلُوْا مِنْ طَيِّبٰتِ مَا رَزَقْنٰكُمْۗ وَمَا ظَلَمُوْنَا وَلٰكِنْ كَانُوْٓا اَنْفُسَهُمْ يَظْلِمُوْنَ ١٦٠
- waqaṭṭaʿnāhumu
- وَقَطَّعْنَٰهُمُ
- और अलग-अलग कर दिया हमने उन्हें
- ith'natay
- ٱثْنَتَىْ
- बारह
- ʿashrata
- عَشْرَةَ
- बारह
- asbāṭan
- أَسْبَاطًا
- क़बीलों में
- umaman
- أُمَمًاۚ
- जमाअतें बनाकर
- wa-awḥaynā
- وَأَوْحَيْنَآ
- और वही की हमने
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ मूसा के
- mūsā
- مُوسَىٰٓ
- तरफ़ मूसा के
- idhi
- إِذِ
- जब
- is'tasqāhu
- ٱسْتَسْقَىٰهُ
- पानी माँगा उससे
- qawmuhu
- قَوْمُهُۥٓ
- उसकी क़ौम ने
- ani
- أَنِ
- कि
- iḍ'rib
- ٱضْرِب
- मार
- biʿaṣāka
- بِّعَصَاكَ
- असा अपना
- l-ḥajara
- ٱلْحَجَرَۖ
- पत्थर पर
- fa-inbajasat
- فَٱنۢبَجَسَتْ
- पस फूट निकले
- min'hu
- مِنْهُ
- उससे
- ith'natā
- ٱثْنَتَا
- बारह
- ʿashrata
- عَشْرَةَ
- बारह
- ʿaynan
- عَيْنًاۖ
- चश्मे
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- ʿalima
- عَلِمَ
- जान लिया
- kullu
- كُلُّ
- हर
- unāsin
- أُنَاسٍ
- गिरोह ने
- mashrabahum
- مَّشْرَبَهُمْۚ
- घाट अपना
- waẓallalnā
- وَظَلَّلْنَا
- और साया किया हमने
- ʿalayhimu
- عَلَيْهِمُ
- उन पर
- l-ghamāma
- ٱلْغَمَٰمَ
- बादलों का
- wa-anzalnā
- وَأَنزَلْنَا
- और नाज़िल किया हमने
- ʿalayhimu
- عَلَيْهِمُ
- उन पर
- l-mana
- ٱلْمَنَّ
- मन्न
- wal-salwā
- وَٱلسَّلْوَىٰۖ
- और सलवा
- kulū
- كُلُوا۟
- खाओ
- min
- مِن
- पाकीज़ा चीज़ों में से
- ṭayyibāti
- طَيِّبَٰتِ
- पाकीज़ा चीज़ों में से
- mā
- مَا
- जो
- razaqnākum
- رَزَقْنَٰكُمْۚ
- अता कीं हमने तुम्हें
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- ẓalamūnā
- ظَلَمُونَا
- उन्होंने ज़ुल्म किया हम पर
- walākin
- وَلَٰكِن
- और लेकिन
- kānū
- كَانُوٓا۟
- थे वो
- anfusahum
- أَنفُسَهُمْ
- अपनी ही जानों पर
- yaẓlimūna
- يَظْلِمُونَ
- वो ज़ुल्म करते
और हमने उन्हें बारह ख़ानदानों में विभक्त करके अलग-अलग समुदाय बना दिया। जब उसकी क़ौम के लोगों ने पानी माँगा तो हमने मूसा की ओर प्रकाशना की, 'अपनी लाठी अमुक चट्टान पर मारो।' अतएव उससे बारह स्रोत फूट निकले और हर गिरोह ने अपना-अपना घाट मालूम कर लिया। और हमने उनपर बादल की छाया की और उन पर 'मन्न' और 'सलवा' उतारा, 'हमनें तुम्हें जो अच्छी-स्वच्छ चीज़े प्रदान की है, उन्हें खाओ।' उन्होंने हम पर कोई ज़ुल्म नहीं किया, बल्कि वास्तव में वे स्वयं अपने ऊपर ही ज़ुल्म करते रहे ([७] अल-आराफ़: 160)Tafseer (तफ़सीर )