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सूरा अल-आराफ़ - Page: 10

Al-A'raf

(The Heights)

९१

فَاَخَذَتْهُمُ الرَّجْفَةُ فَاَصْبَحُوْا فِيْ دَارِهِمْ جٰثِمِيْنَۙ ٩١

fa-akhadhathumu
فَأَخَذَتْهُمُ
पस पकड़ लिया उन्हें
l-rajfatu
ٱلرَّجْفَةُ
ज़लज़ले ने
fa-aṣbaḥū
فَأَصْبَحُوا۟
तो उन्होंने सुबह की
فِى
अपने घरों में
dārihim
دَارِهِمْ
अपने घरों में
jāthimīna
جَٰثِمِينَ
औंधे मुँह
अन्ततः एक दहला देनेवाली आपदा ने उन्हें आ लिया। फिर वे अपने घर में औंधे पड़े रह गए, ([७] अल-आराफ़: 91)
Tafseer (तफ़सीर )
९२

الَّذِيْنَ كَذَّبُوْا شُعَيْبًا كَاَنْ لَّمْ يَغْنَوْا فِيْهَاۚ اَلَّذِيْنَ كَذَّبُوْا شُعَيْبًا كَانُوْا هُمُ الْخٰسِرِيْنَ ٩٢

alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जिन्होंने
kadhabū
كَذَّبُوا۟
झुठलाया
shuʿayban
شُعَيْبًا
शुऐब को
ka-an
كَأَن
गोया कि
lam
لَّمْ
ना
yaghnaw
يَغْنَوْا۟
वो बसे थे
fīhā
فِيهَاۚ
उनमें
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जिन्होंने
kadhabū
كَذَّبُوا۟
झुठलाया
shuʿayban
شُعَيْبًا
शुऐब को
kānū
كَانُوا۟
थे
humu
هُمُ
वो ही
l-khāsirīna
ٱلْخَٰسِرِينَ
ख़सारा पाने वाले
शुऐब को झुठलानेवाले, मानो कभी वहाँ बसे ही न थे। शुऐब को झुठलानेवाले ही घाटे में रहे ([७] अल-आराफ़: 92)
Tafseer (तफ़सीर )
९३

فَتَوَلّٰى عَنْهُمْ وَقَالَ يٰقَوْمِ لَقَدْ اَبْلَغْتُكُمْ رِسٰلٰتِ رَبِّيْ وَنَصَحْتُ لَكُمْۚ فَكَيْفَ اٰسٰى عَلٰى قَوْمٍ كٰفِرِيْنَ ࣖ ٩٣

fatawallā
فَتَوَلَّىٰ
तो उसने मुँह फेर लिया
ʿanhum
عَنْهُمْ
उनसे
waqāla
وَقَالَ
और कहा
yāqawmi
يَٰقَوْمِ
ऐ मेरी क़ौम
laqad
لَقَدْ
अलबत्ता तहक़ीक़
ablaghtukum
أَبْلَغْتُكُمْ
पहुँचा दिए मैंने तुम्हें
risālāti
رِسَٰلَٰتِ
पैग़ामात
rabbī
رَبِّى
अपने रब के
wanaṣaḥtu
وَنَصَحْتُ
और ख़ैरख़्वाही की मैंने
lakum
لَكُمْۖ
तुम्हारी
fakayfa
فَكَيْفَ
तो क्यों कर
āsā
ءَاسَىٰ
मैं अफ़सोस करूँ
ʿalā
عَلَىٰ
ऐसे लोगों पर
qawmin
قَوْمٍ
ऐसे लोगों पर
kāfirīna
كَٰفِرِينَ
जो काफ़िर हैं
तब वह उनके यहाँ से यह कहता हुआ फिरा, 'ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैंने अपने रब के सन्देश तुम्हें पहुँचा दिए और मैंने तुम्हारा हित चाहा। अब मैं इनकार करनेवाले लोगो पर कैसे अफ़सोस करूँ!' ([७] अल-आराफ़: 93)
Tafseer (तफ़सीर )
९४

وَمَآ اَرْسَلْنَا فِيْ قَرْيَةٍ مِّنْ نَّبِيٍّ اِلَّآ اَخَذْنَآ اَهْلَهَا بِالْبَأْسَاۤءِ وَالضَّرَّاۤءِ لَعَلَّهُمْ يَضَّرَّعُوْنَ ٩٤

wamā
وَمَآ
और नहीं
arsalnā
أَرْسَلْنَا
भेजा हमने
فِى
किसी बस्ती में
qaryatin
قَرْيَةٍ
किसी बस्ती में
min
مِّن
कोई नबी
nabiyyin
نَّبِىٍّ
कोई नबी
illā
إِلَّآ
मगर
akhadhnā
أَخَذْنَآ
पकड़ लिया हमने
ahlahā
أَهْلَهَا
उसके रहने वालों को
bil-basāi
بِٱلْبَأْسَآءِ
साथ सख़्ती
wal-ḍarāi
وَٱلضَّرَّآءِ
और तकलीफ़ के
laʿallahum
لَعَلَّهُمْ
ताकि वो
yaḍḍarraʿūna
يَضَّرَّعُونَ
वो गिड़ गिड़ाऐं/आजिज़ी करें
हमने जिस बस्ती में भी कभी कोई नबी भेजा, तो वहाँ के लोगों को तंगी और मुसीबत में डाला, ताकि वे (हमारे सामने) गिड़गि़ड़ाए ([७] अल-आराफ़: 94)
Tafseer (तफ़सीर )
९५

ثُمَّ بَدَّلْنَا مَكَانَ السَّيِّئَةِ الْحَسَنَةَ حَتّٰى عَفَوْا وَّقَالُوْا قَدْ مَسَّ اٰبَاۤءَنَا الضَّرَّاۤءُ وَالسَّرَّاۤءُ فَاَخَذْنٰهُمْ بَغْتَةً وَّهُمْ لَا يَشْعُرُوْنَ ٩٥

thumma
ثُمَّ
फिर
baddalnā
بَدَّلْنَا
बदल दिया हमने
makāna
مَكَانَ
जगह
l-sayi-ati
ٱلسَّيِّئَةِ
बुराई के
l-ḥasanata
ٱلْحَسَنَةَ
भलाई को
ḥattā
حَتَّىٰ
यहाँ तक कि
ʿafaw
عَفَوا۟
वो ज़्यादा हो गए
waqālū
وَّقَالُوا۟
और वो कहने लगे
qad
قَدْ
तहक़ीक़
massa
مَسَّ
पहुँची थी
ābāanā
ءَابَآءَنَا
हमारे आबा ओ अजदाद को (भी)
l-ḍarāu
ٱلضَّرَّآءُ
तकलीफ़
wal-sarāu
وَٱلسَّرَّآءُ
और ख़ुशी
fa-akhadhnāhum
فَأَخَذْنَٰهُم
तो पकड़ लिया हमने उन्हें
baghtatan
بَغْتَةً
अचानक
wahum
وَهُمْ
और वो
لَا
वो शऊर ना रखते थे
yashʿurūna
يَشْعُرُونَ
वो शऊर ना रखते थे
फिर हमने बदहाली को ख़ुशहाली में बदल दिया, यहाँ तक कि वे ख़ूब फले-फूले और कहने लगे, 'ये दुख और सुख तो हमारे बाप-दादा को भी पहुँचे हैं।' अनततः जब वे बेखबर थे, हमने अचानक उन्हें पकड़ लिया ([७] अल-आराफ़: 95)
Tafseer (तफ़सीर )
९६

وَلَوْ اَنَّ اَهْلَ الْقُرٰٓى اٰمَنُوْا وَاتَّقَوْا لَفَتَحْنَا عَلَيْهِمْ بَرَكٰتٍ مِّنَ السَّمَاۤءِ وَالْاَرْضِ وَلٰكِنْ كَذَّبُوْا فَاَخَذْنٰهُمْ بِمَا كَانُوْا يَكْسِبُوْنَ ٩٦

walaw
وَلَوْ
और अगर
anna
أَنَّ
बेशक
ahla
أَهْلَ
बस्तियों वाले
l-qurā
ٱلْقُرَىٰٓ
बस्तियों वाले
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान ले आते
wa-ittaqaw
وَٱتَّقَوْا۟
और तक़वा करते
lafataḥnā
لَفَتَحْنَا
अलबत्ता खोल देते हम
ʿalayhim
عَلَيْهِم
उन पर
barakātin
بَرَكَٰتٍ
बरकतें
mina
مِّنَ
आसमान से
l-samāi
ٱلسَّمَآءِ
आसमान से
wal-arḍi
وَٱلْأَرْضِ
और ज़मीन से
walākin
وَلَٰكِن
और लेकिन
kadhabū
كَذَّبُوا۟
उन्होंने झुठलाया
fa-akhadhnāhum
فَأَخَذْنَٰهُم
तो पकड़ लिया हमने उन्हें
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
yaksibūna
يَكْسِبُونَ
वो कमाई करते
यदि बस्तियों के लोग ईमान लाते और डर रखते तो अवश्य ही हम उनपर आकाश और धरती की बरकतें खोल देते, परन्तु उन्होंने तो झुठलाया। तो जो कुछ कमाई वे करते थे, उसके बदले में हमने उन्हें पकड़ लिया ([७] अल-आराफ़: 96)
Tafseer (तफ़सीर )
९७

اَفَاَمِنَ اَهْلُ الْقُرٰٓى اَنْ يَّأْتِيَهُمْ بَأْسُنَا بَيَاتًا وَّهُمْ نَاۤىِٕمُوْنَۗ ٩٧

afa-amina
أَفَأَمِنَ
क्या भला बेख़ौफ़ हो गए
ahlu
أَهْلُ
बस्तियों वाले
l-qurā
ٱلْقُرَىٰٓ
बस्तियों वाले
an
أَن
कि
yatiyahum
يَأْتِيَهُم
आ जाए उन पर
basunā
بَأْسُنَا
अज़ाब हमारा
bayātan
بَيَٰتًا
रात को
wahum
وَهُمْ
और वो
nāimūna
نَآئِمُونَ
सो रहे हों
फिर क्या बस्तियों के लोगों को इस और से निश्चिन्त रहने का अवसर मिल सका कि रात में उनपर हमारी यातना आ जाए, जबकि वे सोए हुए हो? ([७] अल-आराफ़: 97)
Tafseer (तफ़सीर )
९८

اَوَاَمِنَ اَهْلُ الْقُرٰٓى اَنْ يَّأْتِيَهُمْ بَأْسُنَا ضُحًى وَّهُمْ يَلْعَبُوْنَ ٩٨

awa-amina
أَوَأَمِنَ
या क्या बेख़ौफ़ हो गए
ahlu
أَهْلُ
बस्तियों वाले
l-qurā
ٱلْقُرَىٰٓ
बस्तियों वाले
an
أَن
कि
yatiyahum
يَأْتِيَهُم
आ जाए उन पर
basunā
بَأْسُنَا
अज़ाब हमारा
ḍuḥan
ضُحًى
चाश्त के वक़्त
wahum
وَهُمْ
और वो
yalʿabūna
يَلْعَبُونَ
वो खेलते हों
और क्या बस्तियों के लोगो को इस ओर से निश्चिन्त रहने का अवसर मिल सका कि दिन चढ़े उनपर हमारी यातना आ जाए, जबकि वे खेल रहे हों? ([७] अल-आराफ़: 98)
Tafseer (तफ़सीर )
९९

اَفَاَمِنُوْا مَكْرَ اللّٰهِۚ فَلَا يَأْمَنُ مَكْرَ اللّٰهِ اِلَّا الْقَوْمُ الْخٰسِرُوْنَ ࣖ ٩٩

afa-aminū
أَفَأَمِنُوا۟
क्या भला वो बेख़ौफ़ हो गए
makra
مَكْرَ
अल्लाह की तदबीर से
l-lahi
ٱللَّهِۚ
अल्लाह की तदबीर से
falā
فَلَا
पस नहीं
yamanu
يَأْمَنُ
बेख़ौफ़ हुआ करते
makra
مَكْرَ
अल्लाह की तदबीर से
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की तदबीर से
illā
إِلَّا
मगर
l-qawmu
ٱلْقَوْمُ
वो लोग
l-khāsirūna
ٱلْخَٰسِرُونَ
जो ख़सारा पाने वाले हैं
आख़िर क्या वे अल्लाह की चाल से निश्चिन्त हो गए थे? तो (समझ लो उन्हें टोटे में पड़ना ही था, क्योंकि) अल्लाह की चाल से तो वही लोग निश्चित होते है, जो टोटे में पड़नेवाले होते है ([७] अल-आराफ़: 99)
Tafseer (तफ़सीर )
१००

اَوَلَمْ يَهْدِ لِلَّذِيْنَ يَرِثُوْنَ الْاَرْضَ مِنْۢ بَعْدِ اَهْلِهَآ اَنْ لَّوْ نَشَاۤءُ اَصَبْنٰهُمْ بِذُنُوْبِهِمْۚ وَنَطْبَعُ عَلٰى قُلُوْبِهِمْ فَهُمْ لَا يَسْمَعُوْنَ ١٠٠

awalam
أَوَلَمْ
क्या भला नहीं
yahdi
يَهْدِ
रहनुमाई की
lilladhīna
لِلَّذِينَ
उन लोगों की जो
yarithūna
يَرِثُونَ
वारिस बनते हैं
l-arḍa
ٱلْأَرْضَ
ज़मीन के
min
مِنۢ
बाद
baʿdi
بَعْدِ
बाद
ahlihā
أَهْلِهَآ
उसके रहने वालों के
an
أَن
कि (इस बात ने )
law
لَّوْ
अगर
nashāu
نَشَآءُ
हम चाहें
aṣabnāhum
أَصَبْنَٰهُم
पकड़ लें हम उन्हें
bidhunūbihim
بِذُنُوبِهِمْۚ
बवजह उनके गुनाहों के
wanaṭbaʿu
وَنَطْبَعُ
और हम मोहर लगा दें
ʿalā
عَلَىٰ
उनके दिलों पर
qulūbihim
قُلُوبِهِمْ
उनके दिलों पर
fahum
فَهُمْ
फिर वो
لَا
ना वो सुनें
yasmaʿūna
يَسْمَعُونَ
ना वो सुनें
क्या जो धरती के, उसके पूर्ववासियों के पश्चात उत्तराधिकारी हुए है, उनपर यह तथ्य प्रकट न हुआ कि यदि हम चाहें तो उनके गुनाहों पर उन्हें आ पकड़े? हम तो उनके दिलों पर मुहर लगा रहे हैं, क्योंकि वे कुछ भी नहीं सुनते ([७] अल-आराफ़: 100)
Tafseer (तफ़सीर )