فَاَخَذَتْهُمُ الرَّجْفَةُ فَاَصْبَحُوْا فِيْ دَارِهِمْ جٰثِمِيْنَۙ ٩١
- fa-akhadhathumu
- فَأَخَذَتْهُمُ
- पस पकड़ लिया उन्हें
- l-rajfatu
- ٱلرَّجْفَةُ
- ज़लज़ले ने
- fa-aṣbaḥū
- فَأَصْبَحُوا۟
- तो उन्होंने सुबह की
- fī
- فِى
- अपने घरों में
- dārihim
- دَارِهِمْ
- अपने घरों में
- jāthimīna
- جَٰثِمِينَ
- औंधे मुँह
अन्ततः एक दहला देनेवाली आपदा ने उन्हें आ लिया। फिर वे अपने घर में औंधे पड़े रह गए, ([७] अल-आराफ़: 91)Tafseer (तफ़सीर )
الَّذِيْنَ كَذَّبُوْا شُعَيْبًا كَاَنْ لَّمْ يَغْنَوْا فِيْهَاۚ اَلَّذِيْنَ كَذَّبُوْا شُعَيْبًا كَانُوْا هُمُ الْخٰسِرِيْنَ ٩٢
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिन्होंने
- kadhabū
- كَذَّبُوا۟
- झुठलाया
- shuʿayban
- شُعَيْبًا
- शुऐब को
- ka-an
- كَأَن
- गोया कि
- lam
- لَّمْ
- ना
- yaghnaw
- يَغْنَوْا۟
- वो बसे थे
- fīhā
- فِيهَاۚ
- उनमें
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिन्होंने
- kadhabū
- كَذَّبُوا۟
- झुठलाया
- shuʿayban
- شُعَيْبًا
- शुऐब को
- kānū
- كَانُوا۟
- थे
- humu
- هُمُ
- वो ही
- l-khāsirīna
- ٱلْخَٰسِرِينَ
- ख़सारा पाने वाले
शुऐब को झुठलानेवाले, मानो कभी वहाँ बसे ही न थे। शुऐब को झुठलानेवाले ही घाटे में रहे ([७] अल-आराफ़: 92)Tafseer (तफ़सीर )
فَتَوَلّٰى عَنْهُمْ وَقَالَ يٰقَوْمِ لَقَدْ اَبْلَغْتُكُمْ رِسٰلٰتِ رَبِّيْ وَنَصَحْتُ لَكُمْۚ فَكَيْفَ اٰسٰى عَلٰى قَوْمٍ كٰفِرِيْنَ ࣖ ٩٣
- fatawallā
- فَتَوَلَّىٰ
- तो उसने मुँह फेर लिया
- ʿanhum
- عَنْهُمْ
- उनसे
- waqāla
- وَقَالَ
- और कहा
- yāqawmi
- يَٰقَوْمِ
- ऐ मेरी क़ौम
- laqad
- لَقَدْ
- अलबत्ता तहक़ीक़
- ablaghtukum
- أَبْلَغْتُكُمْ
- पहुँचा दिए मैंने तुम्हें
- risālāti
- رِسَٰلَٰتِ
- पैग़ामात
- rabbī
- رَبِّى
- अपने रब के
- wanaṣaḥtu
- وَنَصَحْتُ
- और ख़ैरख़्वाही की मैंने
- lakum
- لَكُمْۖ
- तुम्हारी
- fakayfa
- فَكَيْفَ
- तो क्यों कर
- āsā
- ءَاسَىٰ
- मैं अफ़सोस करूँ
- ʿalā
- عَلَىٰ
- ऐसे लोगों पर
- qawmin
- قَوْمٍ
- ऐसे लोगों पर
- kāfirīna
- كَٰفِرِينَ
- जो काफ़िर हैं
तब वह उनके यहाँ से यह कहता हुआ फिरा, 'ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैंने अपने रब के सन्देश तुम्हें पहुँचा दिए और मैंने तुम्हारा हित चाहा। अब मैं इनकार करनेवाले लोगो पर कैसे अफ़सोस करूँ!' ([७] अल-आराफ़: 93)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَآ اَرْسَلْنَا فِيْ قَرْيَةٍ مِّنْ نَّبِيٍّ اِلَّآ اَخَذْنَآ اَهْلَهَا بِالْبَأْسَاۤءِ وَالضَّرَّاۤءِ لَعَلَّهُمْ يَضَّرَّعُوْنَ ٩٤
- wamā
- وَمَآ
- और नहीं
- arsalnā
- أَرْسَلْنَا
- भेजा हमने
- fī
- فِى
- किसी बस्ती में
- qaryatin
- قَرْيَةٍ
- किसी बस्ती में
- min
- مِّن
- कोई नबी
- nabiyyin
- نَّبِىٍّ
- कोई नबी
- illā
- إِلَّآ
- मगर
- akhadhnā
- أَخَذْنَآ
- पकड़ लिया हमने
- ahlahā
- أَهْلَهَا
- उसके रहने वालों को
- bil-basāi
- بِٱلْبَأْسَآءِ
- साथ सख़्ती
- wal-ḍarāi
- وَٱلضَّرَّآءِ
- और तकलीफ़ के
- laʿallahum
- لَعَلَّهُمْ
- ताकि वो
- yaḍḍarraʿūna
- يَضَّرَّعُونَ
- वो गिड़ गिड़ाऐं/आजिज़ी करें
हमने जिस बस्ती में भी कभी कोई नबी भेजा, तो वहाँ के लोगों को तंगी और मुसीबत में डाला, ताकि वे (हमारे सामने) गिड़गि़ड़ाए ([७] अल-आराफ़: 94)Tafseer (तफ़सीर )
ثُمَّ بَدَّلْنَا مَكَانَ السَّيِّئَةِ الْحَسَنَةَ حَتّٰى عَفَوْا وَّقَالُوْا قَدْ مَسَّ اٰبَاۤءَنَا الضَّرَّاۤءُ وَالسَّرَّاۤءُ فَاَخَذْنٰهُمْ بَغْتَةً وَّهُمْ لَا يَشْعُرُوْنَ ٩٥
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- baddalnā
- بَدَّلْنَا
- बदल दिया हमने
- makāna
- مَكَانَ
- जगह
- l-sayi-ati
- ٱلسَّيِّئَةِ
- बुराई के
- l-ḥasanata
- ٱلْحَسَنَةَ
- भलाई को
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- यहाँ तक कि
- ʿafaw
- عَفَوا۟
- वो ज़्यादा हो गए
- waqālū
- وَّقَالُوا۟
- और वो कहने लगे
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- massa
- مَسَّ
- पहुँची थी
- ābāanā
- ءَابَآءَنَا
- हमारे आबा ओ अजदाद को (भी)
- l-ḍarāu
- ٱلضَّرَّآءُ
- तकलीफ़
- wal-sarāu
- وَٱلسَّرَّآءُ
- और ख़ुशी
- fa-akhadhnāhum
- فَأَخَذْنَٰهُم
- तो पकड़ लिया हमने उन्हें
- baghtatan
- بَغْتَةً
- अचानक
- wahum
- وَهُمْ
- और वो
- lā
- لَا
- वो शऊर ना रखते थे
- yashʿurūna
- يَشْعُرُونَ
- वो शऊर ना रखते थे
फिर हमने बदहाली को ख़ुशहाली में बदल दिया, यहाँ तक कि वे ख़ूब फले-फूले और कहने लगे, 'ये दुख और सुख तो हमारे बाप-दादा को भी पहुँचे हैं।' अनततः जब वे बेखबर थे, हमने अचानक उन्हें पकड़ लिया ([७] अल-आराफ़: 95)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَوْ اَنَّ اَهْلَ الْقُرٰٓى اٰمَنُوْا وَاتَّقَوْا لَفَتَحْنَا عَلَيْهِمْ بَرَكٰتٍ مِّنَ السَّمَاۤءِ وَالْاَرْضِ وَلٰكِنْ كَذَّبُوْا فَاَخَذْنٰهُمْ بِمَا كَانُوْا يَكْسِبُوْنَ ٩٦
- walaw
- وَلَوْ
- और अगर
- anna
- أَنَّ
- बेशक
- ahla
- أَهْلَ
- बस्तियों वाले
- l-qurā
- ٱلْقُرَىٰٓ
- बस्तियों वाले
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान ले आते
- wa-ittaqaw
- وَٱتَّقَوْا۟
- और तक़वा करते
- lafataḥnā
- لَفَتَحْنَا
- अलबत्ता खोल देते हम
- ʿalayhim
- عَلَيْهِم
- उन पर
- barakātin
- بَرَكَٰتٍ
- बरकतें
- mina
- مِّنَ
- आसमान से
- l-samāi
- ٱلسَّمَآءِ
- आसमान से
- wal-arḍi
- وَٱلْأَرْضِ
- और ज़मीन से
- walākin
- وَلَٰكِن
- और लेकिन
- kadhabū
- كَذَّبُوا۟
- उन्होंने झुठलाया
- fa-akhadhnāhum
- فَأَخَذْنَٰهُم
- तो पकड़ लिया हमने उन्हें
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yaksibūna
- يَكْسِبُونَ
- वो कमाई करते
यदि बस्तियों के लोग ईमान लाते और डर रखते तो अवश्य ही हम उनपर आकाश और धरती की बरकतें खोल देते, परन्तु उन्होंने तो झुठलाया। तो जो कुछ कमाई वे करते थे, उसके बदले में हमने उन्हें पकड़ लिया ([७] अल-आराफ़: 96)Tafseer (तफ़सीर )
اَفَاَمِنَ اَهْلُ الْقُرٰٓى اَنْ يَّأْتِيَهُمْ بَأْسُنَا بَيَاتًا وَّهُمْ نَاۤىِٕمُوْنَۗ ٩٧
- afa-amina
- أَفَأَمِنَ
- क्या भला बेख़ौफ़ हो गए
- ahlu
- أَهْلُ
- बस्तियों वाले
- l-qurā
- ٱلْقُرَىٰٓ
- बस्तियों वाले
- an
- أَن
- कि
- yatiyahum
- يَأْتِيَهُم
- आ जाए उन पर
- basunā
- بَأْسُنَا
- अज़ाब हमारा
- bayātan
- بَيَٰتًا
- रात को
- wahum
- وَهُمْ
- और वो
- nāimūna
- نَآئِمُونَ
- सो रहे हों
फिर क्या बस्तियों के लोगों को इस और से निश्चिन्त रहने का अवसर मिल सका कि रात में उनपर हमारी यातना आ जाए, जबकि वे सोए हुए हो? ([७] अल-आराफ़: 97)Tafseer (तफ़सीर )
اَوَاَمِنَ اَهْلُ الْقُرٰٓى اَنْ يَّأْتِيَهُمْ بَأْسُنَا ضُحًى وَّهُمْ يَلْعَبُوْنَ ٩٨
- awa-amina
- أَوَأَمِنَ
- या क्या बेख़ौफ़ हो गए
- ahlu
- أَهْلُ
- बस्तियों वाले
- l-qurā
- ٱلْقُرَىٰٓ
- बस्तियों वाले
- an
- أَن
- कि
- yatiyahum
- يَأْتِيَهُم
- आ जाए उन पर
- basunā
- بَأْسُنَا
- अज़ाब हमारा
- ḍuḥan
- ضُحًى
- चाश्त के वक़्त
- wahum
- وَهُمْ
- और वो
- yalʿabūna
- يَلْعَبُونَ
- वो खेलते हों
और क्या बस्तियों के लोगो को इस ओर से निश्चिन्त रहने का अवसर मिल सका कि दिन चढ़े उनपर हमारी यातना आ जाए, जबकि वे खेल रहे हों? ([७] अल-आराफ़: 98)Tafseer (तफ़सीर )
اَفَاَمِنُوْا مَكْرَ اللّٰهِۚ فَلَا يَأْمَنُ مَكْرَ اللّٰهِ اِلَّا الْقَوْمُ الْخٰسِرُوْنَ ࣖ ٩٩
- afa-aminū
- أَفَأَمِنُوا۟
- क्या भला वो बेख़ौफ़ हो गए
- makra
- مَكْرَ
- अल्लाह की तदबीर से
- l-lahi
- ٱللَّهِۚ
- अल्लाह की तदबीर से
- falā
- فَلَا
- पस नहीं
- yamanu
- يَأْمَنُ
- बेख़ौफ़ हुआ करते
- makra
- مَكْرَ
- अल्लाह की तदबीर से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की तदबीर से
- illā
- إِلَّا
- मगर
- l-qawmu
- ٱلْقَوْمُ
- वो लोग
- l-khāsirūna
- ٱلْخَٰسِرُونَ
- जो ख़सारा पाने वाले हैं
आख़िर क्या वे अल्लाह की चाल से निश्चिन्त हो गए थे? तो (समझ लो उन्हें टोटे में पड़ना ही था, क्योंकि) अल्लाह की चाल से तो वही लोग निश्चित होते है, जो टोटे में पड़नेवाले होते है ([७] अल-आराफ़: 99)Tafseer (तफ़सीर )
اَوَلَمْ يَهْدِ لِلَّذِيْنَ يَرِثُوْنَ الْاَرْضَ مِنْۢ بَعْدِ اَهْلِهَآ اَنْ لَّوْ نَشَاۤءُ اَصَبْنٰهُمْ بِذُنُوْبِهِمْۚ وَنَطْبَعُ عَلٰى قُلُوْبِهِمْ فَهُمْ لَا يَسْمَعُوْنَ ١٠٠
- awalam
- أَوَلَمْ
- क्या भला नहीं
- yahdi
- يَهْدِ
- रहनुमाई की
- lilladhīna
- لِلَّذِينَ
- उन लोगों की जो
- yarithūna
- يَرِثُونَ
- वारिस बनते हैं
- l-arḍa
- ٱلْأَرْضَ
- ज़मीन के
- min
- مِنۢ
- बाद
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद
- ahlihā
- أَهْلِهَآ
- उसके रहने वालों के
- an
- أَن
- कि (इस बात ने )
- law
- لَّوْ
- अगर
- nashāu
- نَشَآءُ
- हम चाहें
- aṣabnāhum
- أَصَبْنَٰهُم
- पकड़ लें हम उन्हें
- bidhunūbihim
- بِذُنُوبِهِمْۚ
- बवजह उनके गुनाहों के
- wanaṭbaʿu
- وَنَطْبَعُ
- और हम मोहर लगा दें
- ʿalā
- عَلَىٰ
- उनके दिलों पर
- qulūbihim
- قُلُوبِهِمْ
- उनके दिलों पर
- fahum
- فَهُمْ
- फिर वो
- lā
- لَا
- ना वो सुनें
- yasmaʿūna
- يَسْمَعُونَ
- ना वो सुनें
क्या जो धरती के, उसके पूर्ववासियों के पश्चात उत्तराधिकारी हुए है, उनपर यह तथ्य प्रकट न हुआ कि यदि हम चाहें तो उनके गुनाहों पर उन्हें आ पकड़े? हम तो उनके दिलों पर मुहर लगा रहे हैं, क्योंकि वे कुछ भी नहीं सुनते ([७] अल-आराफ़: 100)Tafseer (तफ़सीर )