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सूरा अल-हाक्का - Page: 4

Al-Haqqah

(सच्चाई, हक़ीक़त)

३१

ثُمَّ الْجَحِيْمَ صَلُّوْهُۙ ٣١

thumma
ثُمَّ
फिर
l-jaḥīma
ٱلْجَحِيمَ
जहन्नम में
ṣallūhu
صَلُّوهُ
झोंको उसे
'फिर उसे भड़कती हुई आग में झोंक दो, ([६९] अल-हाक्का: 31)
Tafseer (तफ़सीर )
३२

ثُمَّ فِيْ سِلْسِلَةٍ ذَرْعُهَا سَبْعُوْنَ ذِرَاعًا فَاسْلُكُوْهُۗ ٣٢

thumma
ثُمَّ
फिर
فِى
एक ज़ंजीर में
sil'silatin
سِلْسِلَةٍ
एक ज़ंजीर में
dharʿuhā
ذَرْعُهَا
पैमाइश जिसकी
sabʿūna
سَبْعُونَ
सत्तर
dhirāʿan
ذِرَاعًا
गज़ है
fa-us'lukūhu
فَٱسْلُكُوهُ
पस दाख़िल करो उसे
'फिर उसे एक ऐसी जंजीर में जकड़ दो जिसकी माप सत्तर हाथ है ([६९] अल-हाक्का: 32)
Tafseer (तफ़सीर )
३३

اِنَّهٗ كَانَ لَا يُؤْمِنُ بِاللّٰهِ الْعَظِيْمِۙ ٣٣

innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
kāna
كَانَ
था वो
لَا
ना वो ईमान रखता
yu'minu
يُؤْمِنُ
ना वो ईमान रखता
bil-lahi
بِٱللَّهِ
अल्लाह पर
l-ʿaẓīmi
ٱلْعَظِيمِ
जो अज़मत वाला है
'वह न तो महिमावान अल्लाह पर ईमान रखता था ([६९] अल-हाक्का: 33)
Tafseer (तफ़सीर )
३४

وَلَا يَحُضُّ عَلٰى طَعَامِ الْمِسْكِيْنِۗ ٣٤

walā
وَلَا
और ना
yaḥuḍḍu
يَحُضُّ
वो तरग़ीब देता था
ʿalā
عَلَىٰ
खाना (खिलाने)पर
ṭaʿāmi
طَعَامِ
खाना (खिलाने)पर
l-mis'kīni
ٱلْمِسْكِينِ
मिसकीन को
और न मुहताज को खाना खिलाने पर उभारता था ([६९] अल-हाक्का: 34)
Tafseer (तफ़सीर )
३५

فَلَيْسَ لَهُ الْيَوْمَ هٰهُنَا حَمِيْمٌۙ ٣٥

falaysa
فَلَيْسَ
तो नहीं है
lahu
لَهُ
उसके लिए
l-yawma
ٱلْيَوْمَ
आज
hāhunā
هَٰهُنَا
यहाँ
ḥamīmun
حَمِيمٌ
कोई गहरा दोस्त
'अतः आज उसका यहाँ कोई घनिष्ट मित्र नहीं, ([६९] अल-हाक्का: 35)
Tafseer (तफ़सीर )
३६

وَّلَا طَعَامٌ اِلَّا مِنْ غِسْلِيْنٍۙ ٣٦

walā
وَلَا
और ना
ṭaʿāmun
طَعَامٌ
कोई खाना
illā
إِلَّا
मगर
min
مِنْ
ज़ख़्मों के धोवन का
ghis'līnin
غِسْلِينٍ
ज़ख़्मों के धोवन का
और न ही धोवन के सिवा कोई भोजन है, ([६९] अल-हाक्का: 36)
Tafseer (तफ़सीर )
३७

لَّا يَأْكُلُهٗٓ اِلَّا الْخَاطِـُٔوْنَ ࣖ ٣٧

لَّا
नहीं खाऐंगे उसे
yakuluhu
يَأْكُلُهُۥٓ
नहीं खाऐंगे उसे
illā
إِلَّا
मगर
l-khāṭiūna
ٱلْخَٰطِـُٔونَ
ख़ताकार
'उसे ख़ताकारों (अपराधियों) के अतिरिक्त कोई नहीं खाता।' ([६९] अल-हाक्का: 37)
Tafseer (तफ़सीर )
३८

فَلَآ اُقْسِمُ بِمَا تُبْصِرُوْنَۙ ٣٨

falā
فَلَآ
पस नहीं
uq'simu
أُقْسِمُ
मैं क़सम खाता हूँ
bimā
بِمَا
उसकी जो
tub'ṣirūna
تُبْصِرُونَ
तुम देखते हो
अतः कुछ नहीं! मैं क़सम खाता हूँ उन चीज़ों की जो तुम देखते ([६९] अल-हाक्का: 38)
Tafseer (तफ़सीर )
३९

وَمَا لَا تُبْصِرُوْنَۙ ٣٩

wamā
وَمَا
और जो
لَا
नहीं तुम देखते
tub'ṣirūna
تُبْصِرُونَ
नहीं तुम देखते
हो और उन चीज़ों को भी जो तुम नहीं देखते, ([६९] अल-हाक्का: 39)
Tafseer (तफ़सीर )
४०

اِنَّهٗ لَقَوْلُ رَسُوْلٍ كَرِيْمٍۙ ٤٠

innahu
إِنَّهُۥ
बेशक ये
laqawlu
لَقَوْلُ
यक़ीनन क़ौल है
rasūlin
رَسُولٍ
एक पयामबर
karīmin
كَرِيمٍ
मोअज़्ज़िज़ का
निश्चय ही वह एक प्रतिष्ठित रसूल की लाई हुई वाणी है ([६९] अल-हाक्का: 40)
Tafseer (तफ़सीर )