३१
ثُمَّ الْجَحِيْمَ صَلُّوْهُۙ ٣١
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- l-jaḥīma
- ٱلْجَحِيمَ
- जहन्नम में
- ṣallūhu
- صَلُّوهُ
- झोंको उसे
'फिर उसे भड़कती हुई आग में झोंक दो, ([६९] अल-हाक्का: 31)Tafseer (तफ़सीर )
३२
ثُمَّ فِيْ سِلْسِلَةٍ ذَرْعُهَا سَبْعُوْنَ ذِرَاعًا فَاسْلُكُوْهُۗ ٣٢
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- fī
- فِى
- एक ज़ंजीर में
- sil'silatin
- سِلْسِلَةٍ
- एक ज़ंजीर में
- dharʿuhā
- ذَرْعُهَا
- पैमाइश जिसकी
- sabʿūna
- سَبْعُونَ
- सत्तर
- dhirāʿan
- ذِرَاعًا
- गज़ है
- fa-us'lukūhu
- فَٱسْلُكُوهُ
- पस दाख़िल करो उसे
'फिर उसे एक ऐसी जंजीर में जकड़ दो जिसकी माप सत्तर हाथ है ([६९] अल-हाक्का: 32)Tafseer (तफ़सीर )
३३
اِنَّهٗ كَانَ لَا يُؤْمِنُ بِاللّٰهِ الْعَظِيْمِۙ ٣٣
- innahu
- إِنَّهُۥ
- बेशक वो
- kāna
- كَانَ
- था वो
- lā
- لَا
- ना वो ईमान रखता
- yu'minu
- يُؤْمِنُ
- ना वो ईमान रखता
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- l-ʿaẓīmi
- ٱلْعَظِيمِ
- जो अज़मत वाला है
'वह न तो महिमावान अल्लाह पर ईमान रखता था ([६९] अल-हाक्का: 33)Tafseer (तफ़सीर )
३४
وَلَا يَحُضُّ عَلٰى طَعَامِ الْمِسْكِيْنِۗ ٣٤
- walā
- وَلَا
- और ना
- yaḥuḍḍu
- يَحُضُّ
- वो तरग़ीब देता था
- ʿalā
- عَلَىٰ
- खाना (खिलाने)पर
- ṭaʿāmi
- طَعَامِ
- खाना (खिलाने)पर
- l-mis'kīni
- ٱلْمِسْكِينِ
- मिसकीन को
और न मुहताज को खाना खिलाने पर उभारता था ([६९] अल-हाक्का: 34)Tafseer (तफ़सीर )
३५
فَلَيْسَ لَهُ الْيَوْمَ هٰهُنَا حَمِيْمٌۙ ٣٥
- falaysa
- فَلَيْسَ
- तो नहीं है
- lahu
- لَهُ
- उसके लिए
- l-yawma
- ٱلْيَوْمَ
- आज
- hāhunā
- هَٰهُنَا
- यहाँ
- ḥamīmun
- حَمِيمٌ
- कोई गहरा दोस्त
'अतः आज उसका यहाँ कोई घनिष्ट मित्र नहीं, ([६९] अल-हाक्का: 35)Tafseer (तफ़सीर )
३६
وَّلَا طَعَامٌ اِلَّا مِنْ غِسْلِيْنٍۙ ٣٦
- walā
- وَلَا
- और ना
- ṭaʿāmun
- طَعَامٌ
- कोई खाना
- illā
- إِلَّا
- मगर
- min
- مِنْ
- ज़ख़्मों के धोवन का
- ghis'līnin
- غِسْلِينٍ
- ज़ख़्मों के धोवन का
और न ही धोवन के सिवा कोई भोजन है, ([६९] अल-हाक्का: 36)Tafseer (तफ़सीर )
३७
لَّا يَأْكُلُهٗٓ اِلَّا الْخَاطِـُٔوْنَ ࣖ ٣٧
- lā
- لَّا
- नहीं खाऐंगे उसे
- yakuluhu
- يَأْكُلُهُۥٓ
- नहीं खाऐंगे उसे
- illā
- إِلَّا
- मगर
- l-khāṭiūna
- ٱلْخَٰطِـُٔونَ
- ख़ताकार
'उसे ख़ताकारों (अपराधियों) के अतिरिक्त कोई नहीं खाता।' ([६९] अल-हाक्का: 37)Tafseer (तफ़सीर )
३८
فَلَآ اُقْسِمُ بِمَا تُبْصِرُوْنَۙ ٣٨
- falā
- فَلَآ
- पस नहीं
- uq'simu
- أُقْسِمُ
- मैं क़सम खाता हूँ
- bimā
- بِمَا
- उसकी जो
- tub'ṣirūna
- تُبْصِرُونَ
- तुम देखते हो
अतः कुछ नहीं! मैं क़सम खाता हूँ उन चीज़ों की जो तुम देखते ([६९] अल-हाक्का: 38)Tafseer (तफ़सीर )
३९
وَمَا لَا تُبْصِرُوْنَۙ ٣٩
- wamā
- وَمَا
- और जो
- lā
- لَا
- नहीं तुम देखते
- tub'ṣirūna
- تُبْصِرُونَ
- नहीं तुम देखते
हो और उन चीज़ों को भी जो तुम नहीं देखते, ([६९] अल-हाक्का: 39)Tafseer (तफ़सीर )
४०
اِنَّهٗ لَقَوْلُ رَسُوْلٍ كَرِيْمٍۙ ٤٠
- innahu
- إِنَّهُۥ
- बेशक ये
- laqawlu
- لَقَوْلُ
- यक़ीनन क़ौल है
- rasūlin
- رَسُولٍ
- एक पयामबर
- karīmin
- كَرِيمٍ
- मोअज़्ज़िज़ का
निश्चय ही वह एक प्रतिष्ठित रसूल की लाई हुई वाणी है ([६९] अल-हाक्का: 40)Tafseer (तफ़सीर )