५१
وَاِنْ يَّكَادُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا لَيُزْلِقُوْنَكَ بِاَبْصَارِهِمْ لَمَّا سَمِعُوا الذِّكْرَ وَيَقُوْلُوْنَ اِنَّهٗ لَمَجْنُوْنٌ ۘ ٥١
- wa-in
- وَإِن
- और बेशक
- yakādu
- يَكَادُ
- क़रीब है कि
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- layuz'liqūnaka
- لَيُزْلِقُونَكَ
- अलबत्ता वो फुसला देंगे आपको
- bi-abṣārihim
- بِأَبْصَٰرِهِمْ
- अपनी निगाहों से
- lammā
- لَمَّا
- जब
- samiʿū
- سَمِعُوا۟
- वो सुनते हैं
- l-dhik'ra
- ٱلذِّكْرَ
- ज़िक्र को
- wayaqūlūna
- وَيَقُولُونَ
- और वो कहते हैं
- innahu
- إِنَّهُۥ
- बेशक वो
- lamajnūnun
- لَمَجْنُونٌ
- अलबत्ता मजनून हैं
जब वे लोग, जिन्होंने इनकार किया, ज़िक्र (क़ुरआन) सुनते है और कहते है, 'वह तो दीवाना है!' तो ऐसा लगता है कि वे अपनी निगाहों के ज़ोर से तुम्हें फिसला देंगे ([६८] अल-कलाम: 51)Tafseer (तफ़सीर )
५२
وَمَا هُوَ اِلَّا ذِكْرٌ لِّلْعٰلَمِيْنَ ࣖ ٥٢
- wamā
- وَمَا
- और नहीं है
- huwa
- هُوَ
- वो
- illā
- إِلَّا
- मगर
- dhik'run
- ذِكْرٌ
- एक नसीहत
- lil'ʿālamīna
- لِّلْعَٰلَمِينَ
- तमाम जहान वालों के लिए
हालाँकि वह सारे संसार के लिए एक अनुस्मृति है ([६८] अल-कलाम: 52)Tafseer (तफ़सीर )