Skip to content

सूरा अल-कलाम - Page: 5

Al-Qalam

(लेखनी)

४१

اَمْ لَهُمْ شُرَكَاۤءُۚ فَلْيَأْتُوْا بِشُرَكَاۤىِٕهِمْ اِنْ كَانُوْا صٰدِقِيْنَ ٤١

am
أَمْ
या
lahum
لَهُمْ
उनके लिए
shurakāu
شُرَكَآءُ
कुछ शरीक हैं
falyatū
فَلْيَأْتُوا۟
पस चाहिए कि वो ले आऐं
bishurakāihim
بِشُرَكَآئِهِمْ
अपने शरीकों को
in
إِن
अगर
kānū
كَانُوا۟
हैं वो
ṣādiqīna
صَٰدِقِينَ
सच्चे
या उनके ठहराए हुए कुछ साझीदार है? फिर तो यह चाहिए कि वे अपने साझीदारों को ले आएँ, यदि वे सच्चे है ([६८] अल-कलाम: 41)
Tafseer (तफ़सीर )
४२

يَوْمَ يُكْشَفُ عَنْ سَاقٍ وَّيُدْعَوْنَ اِلَى السُّجُوْدِ فَلَا يَسْتَطِيْعُوْنَۙ ٤٢

yawma
يَوْمَ
जिस दिन
yuk'shafu
يُكْشَفُ
खोल दिया जाएगा
ʿan
عَن
पिंडली से
sāqin
سَاقٍ
पिंडली से
wayud'ʿawna
وَيُدْعَوْنَ
और वो बुलाए जाऐंगे
ilā
إِلَى
तरफ़ सजदों के
l-sujūdi
ٱلسُّجُودِ
तरफ़ सजदों के
falā
فَلَا
तो ना
yastaṭīʿūna
يَسْتَطِيعُونَ
वो इस्तिताअत रखते होंगे
जिस दिन पिंडली खुल जाएगी और वे सजदे के लिए बुलाए जाएँगे, तो वे (सजदा) न कर सकेंगे ([६८] अल-कलाम: 42)
Tafseer (तफ़सीर )
४३

خَاشِعَةً اَبْصَارُهُمْ تَرْهَقُهُمْ ذِلَّةٌ ۗوَقَدْ كَانُوْا يُدْعَوْنَ اِلَى السُّجُوْدِ وَهُمْ سَالِمُوْنَ ٤٣

khāshiʿatan
خَٰشِعَةً
नीची होंगी
abṣāruhum
أَبْصَٰرُهُمْ
निगाहें उनकी
tarhaquhum
تَرْهَقُهُمْ
छा रही होगी उन पर
dhillatun
ذِلَّةٌۖ
ज़िल्लत
waqad
وَقَدْ
और तहक़ीक़
kānū
كَانُوا۟
थे वो
yud'ʿawna
يُدْعَوْنَ
वो बुलाए जाते
ilā
إِلَى
तरफ़ सजदों के
l-sujūdi
ٱلسُّجُودِ
तरफ़ सजदों के
wahum
وَهُمْ
जब कि वो
sālimūna
سَٰلِمُونَ
सही सलामत थे
उनकी निगाहें झुकी हुई होंगी, ज़िल्लत (अपमान) उनपर छा रही होगी। उन्हें उस समय भी सजदा करने के लिए बुलाया जाता था जब वे भले-चंगे थे ([६८] अल-कलाम: 43)
Tafseer (तफ़सीर )
४४

فَذَرْنِيْ وَمَنْ يُّكَذِّبُ بِهٰذَا الْحَدِيْثِۗ سَنَسْتَدْرِجُهُمْ مِّنْ حَيْثُ لَا يَعْلَمُوْنَۙ ٤٤

fadharnī
فَذَرْنِى
पस छोड़ दो मुझे
waman
وَمَن
और उसे जो
yukadhibu
يُكَذِّبُ
झुठलाता है
bihādhā
بِهَٰذَا
इस
l-ḥadīthi
ٱلْحَدِيثِۖ
बात को
sanastadrijuhum
سَنَسْتَدْرِجُهُم
अनक़रीब हम आहिसता-आहिसता ले जाऐंगे उन्हें
min
مِّنْ
जहाँ से
ḥaythu
حَيْثُ
जहाँ से
لَا
ना वो जानते होंगे
yaʿlamūna
يَعْلَمُونَ
ना वो जानते होंगे
अतः तुम मुझे छोड़ दो और उसको जो इस वाणी को झुठलाता है। हम ऐसों को क्रमशः (विनाश की ओर) ले जाएँगे, ऐसे तरीक़े से कि वे नहीं जानते ([६८] अल-कलाम: 44)
Tafseer (तफ़सीर )
४५

وَاُمْلِيْ لَهُمْۗ اِنَّ كَيْدِيْ مَتِيْنٌ ٤٥

wa-um'lī
وَأُمْلِى
और मैं मोहलत दे रहा हूँ
lahum
لَهُمْۚ
उन्हें
inna
إِنَّ
बेशक
kaydī
كَيْدِى
तदबीर मेरी
matīnun
مَتِينٌ
निहायत मज़बूत है
मैं उन्हें ढील दे रहा हूँ। निश्चय ही मेरी चाल बड़ी मज़बूत है ([६८] अल-कलाम: 45)
Tafseer (तफ़सीर )
४६

اَمْ تَسْـَٔلُهُمْ اَجْرًا فَهُمْ مِّنْ مَّغْرَمٍ مُّثْقَلُوْنَۚ ٤٦

am
أَمْ
या
tasaluhum
تَسْـَٔلُهُمْ
आप सवाल करते हैं उनसे
ajran
أَجْرًا
किसी अजर का
fahum
فَهُم
तो वो
min
مِّن
तावान से
maghramin
مَّغْرَمٍ
तावान से
muth'qalūna
مُّثْقَلُونَ
दबे जा रहे हैं
(क्या वे यातना ही चाहते हैं) या तुम उनसे कोई बदला माँग रहे हो कि वे तावान के बोझ से दबे जाते हों? ([६८] अल-कलाम: 46)
Tafseer (तफ़सीर )
४७

اَمْ عِنْدَهُمُ الْغَيْبُ فَهُمْ يَكْتُبُوْنَ ٤٧

am
أَمْ
या
ʿindahumu
عِندَهُمُ
उनके पास
l-ghaybu
ٱلْغَيْبُ
कोई ग़ैब है
fahum
فَهُمْ
पस वो
yaktubūna
يَكْتُبُونَ
वो लिख रहे हैं
या उनके पास परोक्ष का ज्ञान है तो वे लिख रहे हैं? ([६८] अल-कलाम: 47)
Tafseer (तफ़सीर )
४८

فَاصْبِرْ لِحُكْمِ رَبِّكَ وَلَا تَكُنْ كَصَاحِبِ الْحُوْتِۘ اِذْ نَادٰى وَهُوَ مَكْظُوْمٌۗ ٤٨

fa-iṣ'bir
فَٱصْبِرْ
पस सब्र कीजिए
liḥuk'mi
لِحُكْمِ
हुक्म के लिए
rabbika
رَبِّكَ
अपने रब के
walā
وَلَا
और ना
takun
تَكُن
आप हों
kaṣāḥibi
كَصَاحِبِ
मछली वाले की तरह
l-ḥūti
ٱلْحُوتِ
मछली वाले की तरह
idh
إِذْ
जब
nādā
نَادَىٰ
उसने पुकारा
wahuwa
وَهُوَ
इस हाल में कि वो
makẓūmun
مَكْظُومٌ
ग़म से भरा हुआ था
तो अपने रब के आदेश हेतु धैर्य से काम लो और मछलीवाले (यूनुस अलै॰) की तरह न हो जाना, जबकि उसने पुकारा था इस दशा में कि वह ग़म में घुट रहा था। ([६८] अल-कलाम: 48)
Tafseer (तफ़सीर )
४९

لَوْلَآ اَنْ تَدَارَكَهٗ نِعْمَةٌ مِّنْ رَّبِّهٖ لَنُبِذَ بِالْعَرَاۤءِ وَهُوَ مَذْمُوْمٌ ٤٩

lawlā
لَّوْلَآ
अगर ना (होती ये बात)
an
أَن
कि
tadārakahu
تَدَٰرَكَهُۥ
पा लिया उसे
niʿ'matun
نِعْمَةٌ
एक नेअमत ने
min
مِّن
उसके रब की तरफ़ से
rabbihi
رَّبِّهِۦ
उसके रब की तरफ़ से
lanubidha
لَنُبِذَ
अलबत्ता वो फ़ेंक दिया जाता
bil-ʿarāi
بِٱلْعَرَآءِ
चटियल मैदान में
wahuwa
وَهُوَ
और वो
madhmūmun
مَذْمُومٌ
मज़म्मत ज़दा होता
यदि उसके रब की अनुकम्पा उसके साथ न हो जाती तो वह अवश्य ही चटियल मैदान में बुरे हाल में डाल दिया जाता। ([६८] अल-कलाम: 49)
Tafseer (तफ़सीर )
५०

فَاجْتَبٰىهُ رَبُّهٗ فَجَعَلَهٗ مِنَ الصّٰلِحِيْنَ ٥٠

fa-ij'tabāhu
فَٱجْتَبَٰهُ
तो चुन लिया उसे
rabbuhu
رَبُّهُۥ
उसके रब ने
fajaʿalahu
فَجَعَلَهُۥ
तो उसने बना दिया उसे
mina
مِنَ
सालेह लोगों में से
l-ṣāliḥīna
ٱلصَّٰلِحِينَ
सालेह लोगों में से
अन्ततः उसके रब ने उसे चुन लिया और उसे अच्छे लोगों में सम्मिलित कर दिया ([६८] अल-कलाम: 50)
Tafseer (तफ़सीर )