اَمْ لَهُمْ شُرَكَاۤءُۚ فَلْيَأْتُوْا بِشُرَكَاۤىِٕهِمْ اِنْ كَانُوْا صٰدِقِيْنَ ٤١
- am
- أَمْ
- या
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- shurakāu
- شُرَكَآءُ
- कुछ शरीक हैं
- falyatū
- فَلْيَأْتُوا۟
- पस चाहिए कि वो ले आऐं
- bishurakāihim
- بِشُرَكَآئِهِمْ
- अपने शरीकों को
- in
- إِن
- अगर
- kānū
- كَانُوا۟
- हैं वो
- ṣādiqīna
- صَٰدِقِينَ
- सच्चे
या उनके ठहराए हुए कुछ साझीदार है? फिर तो यह चाहिए कि वे अपने साझीदारों को ले आएँ, यदि वे सच्चे है ([६८] अल-कलाम: 41)Tafseer (तफ़सीर )
يَوْمَ يُكْشَفُ عَنْ سَاقٍ وَّيُدْعَوْنَ اِلَى السُّجُوْدِ فَلَا يَسْتَطِيْعُوْنَۙ ٤٢
- yawma
- يَوْمَ
- जिस दिन
- yuk'shafu
- يُكْشَفُ
- खोल दिया जाएगा
- ʿan
- عَن
- पिंडली से
- sāqin
- سَاقٍ
- पिंडली से
- wayud'ʿawna
- وَيُدْعَوْنَ
- और वो बुलाए जाऐंगे
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ सजदों के
- l-sujūdi
- ٱلسُّجُودِ
- तरफ़ सजदों के
- falā
- فَلَا
- तो ना
- yastaṭīʿūna
- يَسْتَطِيعُونَ
- वो इस्तिताअत रखते होंगे
जिस दिन पिंडली खुल जाएगी और वे सजदे के लिए बुलाए जाएँगे, तो वे (सजदा) न कर सकेंगे ([६८] अल-कलाम: 42)Tafseer (तफ़सीर )
خَاشِعَةً اَبْصَارُهُمْ تَرْهَقُهُمْ ذِلَّةٌ ۗوَقَدْ كَانُوْا يُدْعَوْنَ اِلَى السُّجُوْدِ وَهُمْ سَالِمُوْنَ ٤٣
- khāshiʿatan
- خَٰشِعَةً
- नीची होंगी
- abṣāruhum
- أَبْصَٰرُهُمْ
- निगाहें उनकी
- tarhaquhum
- تَرْهَقُهُمْ
- छा रही होगी उन पर
- dhillatun
- ذِلَّةٌۖ
- ज़िल्लत
- waqad
- وَقَدْ
- और तहक़ीक़
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yud'ʿawna
- يُدْعَوْنَ
- वो बुलाए जाते
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ सजदों के
- l-sujūdi
- ٱلسُّجُودِ
- तरफ़ सजदों के
- wahum
- وَهُمْ
- जब कि वो
- sālimūna
- سَٰلِمُونَ
- सही सलामत थे
उनकी निगाहें झुकी हुई होंगी, ज़िल्लत (अपमान) उनपर छा रही होगी। उन्हें उस समय भी सजदा करने के लिए बुलाया जाता था जब वे भले-चंगे थे ([६८] अल-कलाम: 43)Tafseer (तफ़सीर )
فَذَرْنِيْ وَمَنْ يُّكَذِّبُ بِهٰذَا الْحَدِيْثِۗ سَنَسْتَدْرِجُهُمْ مِّنْ حَيْثُ لَا يَعْلَمُوْنَۙ ٤٤
- fadharnī
- فَذَرْنِى
- पस छोड़ दो मुझे
- waman
- وَمَن
- और उसे जो
- yukadhibu
- يُكَذِّبُ
- झुठलाता है
- bihādhā
- بِهَٰذَا
- इस
- l-ḥadīthi
- ٱلْحَدِيثِۖ
- बात को
- sanastadrijuhum
- سَنَسْتَدْرِجُهُم
- अनक़रीब हम आहिसता-आहिसता ले जाऐंगे उन्हें
- min
- مِّنْ
- जहाँ से
- ḥaythu
- حَيْثُ
- जहाँ से
- lā
- لَا
- ना वो जानते होंगे
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- ना वो जानते होंगे
अतः तुम मुझे छोड़ दो और उसको जो इस वाणी को झुठलाता है। हम ऐसों को क्रमशः (विनाश की ओर) ले जाएँगे, ऐसे तरीक़े से कि वे नहीं जानते ([६८] अल-कलाम: 44)Tafseer (तफ़सीर )
وَاُمْلِيْ لَهُمْۗ اِنَّ كَيْدِيْ مَتِيْنٌ ٤٥
- wa-um'lī
- وَأُمْلِى
- और मैं मोहलत दे रहा हूँ
- lahum
- لَهُمْۚ
- उन्हें
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- kaydī
- كَيْدِى
- तदबीर मेरी
- matīnun
- مَتِينٌ
- निहायत मज़बूत है
मैं उन्हें ढील दे रहा हूँ। निश्चय ही मेरी चाल बड़ी मज़बूत है ([६८] अल-कलाम: 45)Tafseer (तफ़सीर )
اَمْ تَسْـَٔلُهُمْ اَجْرًا فَهُمْ مِّنْ مَّغْرَمٍ مُّثْقَلُوْنَۚ ٤٦
- am
- أَمْ
- या
- tasaluhum
- تَسْـَٔلُهُمْ
- आप सवाल करते हैं उनसे
- ajran
- أَجْرًا
- किसी अजर का
- fahum
- فَهُم
- तो वो
- min
- مِّن
- तावान से
- maghramin
- مَّغْرَمٍ
- तावान से
- muth'qalūna
- مُّثْقَلُونَ
- दबे जा रहे हैं
(क्या वे यातना ही चाहते हैं) या तुम उनसे कोई बदला माँग रहे हो कि वे तावान के बोझ से दबे जाते हों? ([६८] अल-कलाम: 46)Tafseer (तफ़सीर )
اَمْ عِنْدَهُمُ الْغَيْبُ فَهُمْ يَكْتُبُوْنَ ٤٧
- am
- أَمْ
- या
- ʿindahumu
- عِندَهُمُ
- उनके पास
- l-ghaybu
- ٱلْغَيْبُ
- कोई ग़ैब है
- fahum
- فَهُمْ
- पस वो
- yaktubūna
- يَكْتُبُونَ
- वो लिख रहे हैं
या उनके पास परोक्ष का ज्ञान है तो वे लिख रहे हैं? ([६८] अल-कलाम: 47)Tafseer (तफ़सीर )
فَاصْبِرْ لِحُكْمِ رَبِّكَ وَلَا تَكُنْ كَصَاحِبِ الْحُوْتِۘ اِذْ نَادٰى وَهُوَ مَكْظُوْمٌۗ ٤٨
- fa-iṣ'bir
- فَٱصْبِرْ
- पस सब्र कीजिए
- liḥuk'mi
- لِحُكْمِ
- हुक्म के लिए
- rabbika
- رَبِّكَ
- अपने रब के
- walā
- وَلَا
- और ना
- takun
- تَكُن
- आप हों
- kaṣāḥibi
- كَصَاحِبِ
- मछली वाले की तरह
- l-ḥūti
- ٱلْحُوتِ
- मछली वाले की तरह
- idh
- إِذْ
- जब
- nādā
- نَادَىٰ
- उसने पुकारा
- wahuwa
- وَهُوَ
- इस हाल में कि वो
- makẓūmun
- مَكْظُومٌ
- ग़म से भरा हुआ था
तो अपने रब के आदेश हेतु धैर्य से काम लो और मछलीवाले (यूनुस अलै॰) की तरह न हो जाना, जबकि उसने पुकारा था इस दशा में कि वह ग़म में घुट रहा था। ([६८] अल-कलाम: 48)Tafseer (तफ़सीर )
لَوْلَآ اَنْ تَدَارَكَهٗ نِعْمَةٌ مِّنْ رَّبِّهٖ لَنُبِذَ بِالْعَرَاۤءِ وَهُوَ مَذْمُوْمٌ ٤٩
- lawlā
- لَّوْلَآ
- अगर ना (होती ये बात)
- an
- أَن
- कि
- tadārakahu
- تَدَٰرَكَهُۥ
- पा लिया उसे
- niʿ'matun
- نِعْمَةٌ
- एक नेअमत ने
- min
- مِّن
- उसके रब की तरफ़ से
- rabbihi
- رَّبِّهِۦ
- उसके रब की तरफ़ से
- lanubidha
- لَنُبِذَ
- अलबत्ता वो फ़ेंक दिया जाता
- bil-ʿarāi
- بِٱلْعَرَآءِ
- चटियल मैदान में
- wahuwa
- وَهُوَ
- और वो
- madhmūmun
- مَذْمُومٌ
- मज़म्मत ज़दा होता
यदि उसके रब की अनुकम्पा उसके साथ न हो जाती तो वह अवश्य ही चटियल मैदान में बुरे हाल में डाल दिया जाता। ([६८] अल-कलाम: 49)Tafseer (तफ़सीर )
فَاجْتَبٰىهُ رَبُّهٗ فَجَعَلَهٗ مِنَ الصّٰلِحِيْنَ ٥٠
- fa-ij'tabāhu
- فَٱجْتَبَٰهُ
- तो चुन लिया उसे
- rabbuhu
- رَبُّهُۥ
- उसके रब ने
- fajaʿalahu
- فَجَعَلَهُۥ
- तो उसने बना दिया उसे
- mina
- مِنَ
- सालेह लोगों में से
- l-ṣāliḥīna
- ٱلصَّٰلِحِينَ
- सालेह लोगों में से
अन्ततः उसके रब ने उसे चुन लिया और उसे अच्छे लोगों में सम्मिलित कर दिया ([६८] अल-कलाम: 50)Tafseer (तफ़सीर )