३१
قَالُوْا يٰوَيْلَنَآ اِنَّا كُنَّا طٰغِيْنَ ٣١
- qālū
- قَالُوا۟
- उन्होंने कहा
- yāwaylanā
- يَٰوَيْلَنَآ
- हाय अफ़सोस हम पर
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- kunnā
- كُنَّا
- थे हम ही
- ṭāghīna
- طَٰغِينَ
- सरकश
उन्होंने कहा, 'अफ़सोस हम पर! निश्चय ही हम सरकश थे। ([६८] अल-कलाम: 31)Tafseer (तफ़सीर )
३२
عَسٰى رَبُّنَآ اَنْ يُّبْدِلَنَا خَيْرًا مِّنْهَآ اِنَّآ اِلٰى رَبِّنَا رَاغِبُوْنَ ٣٢
- ʿasā
- عَسَىٰ
- उम्मीद है
- rabbunā
- رَبُّنَآ
- रब हमारा
- an
- أَن
- कि
- yub'dilanā
- يُبْدِلَنَا
- वो बदल कर दे हमें
- khayran
- خَيْرًا
- बेहतर
- min'hā
- مِّنْهَآ
- इससे
- innā
- إِنَّآ
- बेशक हम
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ अपने रब के
- rabbinā
- رَبِّنَا
- तरफ़ अपने रब के
- rāghibūna
- رَٰغِبُونَ
- रग़बत करने वाले हैं
'आशा है कि हमारा रब बदले में हमें इससे अच्छा प्रदान करे। हम अपने रब की ओर उन्मुख है।' ([६८] अल-कलाम: 32)Tafseer (तफ़सीर )
३३
كَذٰلِكَ الْعَذَابُۗ وَلَعَذَابُ الْاٰخِرَةِ اَكْبَرُۘ لَوْ كَانُوْا يَعْلَمُوْنَ ࣖ ٣٣
- kadhālika
- كَذَٰلِكَ
- इसी तरह होता है
- l-ʿadhābu
- ٱلْعَذَابُۖ
- अज़ाब
- walaʿadhābu
- وَلَعَذَابُ
- और यक़ीनन अज़ाब
- l-ākhirati
- ٱلْءَاخِرَةِ
- आख़िरत का
- akbaru
- أَكْبَرُۚ
- ज़्यादा बड़ा है
- law
- لَوْ
- काश
- kānū
- كَانُوا۟
- होते वो
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- वो जानते
यातना ऐसी ही होती है, और आख़िरत की यातना तो निश्चय ही इससे भी बड़ी है, काश वे जानते! ([६८] अल-कलाम: 33)Tafseer (तफ़सीर )
३४
اِنَّ لِلْمُتَّقِيْنَ عِنْدَ رَبِّهِمْ جَنّٰتِ النَّعِيْمِ ٣٤
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- lil'muttaqīna
- لِلْمُتَّقِينَ
- मुत्तक़ी लोगों के लिए
- ʿinda
- عِندَ
- पास
- rabbihim
- رَبِّهِمْ
- उनके रब के
- jannāti
- جَنَّٰتِ
- बाग़ात हैं
- l-naʿīmi
- ٱلنَّعِيمِ
- नेअमतों वाले
निश्चय ही डर रखनेवालों के लिए उनके रब के यहाँ नेमत भरी जन्नतें है ([६८] अल-कलाम: 34)Tafseer (तफ़सीर )
३५
اَفَنَجْعَلُ الْمُسْلِمِيْنَ كَالْمُجْرِمِيْنَۗ ٣٥
- afanajʿalu
- أَفَنَجْعَلُ
- क्या भला हम कर देंगे
- l-mus'limīna
- ٱلْمُسْلِمِينَ
- फ़रमाबरदारों को
- kal-muj'rimīna
- كَٱلْمُجْرِمِينَ
- मुजरिमों की तरह
तो क्या हम मुस्लिमों (आज्ञाकारियों) को अपराधियों जैसा कर देंगे? ([६८] अल-कलाम: 35)Tafseer (तफ़सीर )
३६
مَا لَكُمْۗ كَيْفَ تَحْكُمُوْنَۚ ٣٦
- mā
- مَا
- क्या है
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हें
- kayfa
- كَيْفَ
- कैसे
- taḥkumūna
- تَحْكُمُونَ
- तुम फ़ैसले करते हो
तुम्हें क्या हो गया है, कैसा फ़ैसला करते हो? ([६८] अल-कलाम: 36)Tafseer (तफ़सीर )
३७
اَمْ لَكُمْ كِتٰبٌ فِيْهِ تَدْرُسُوْنَۙ ٣٧
- am
- أَمْ
- या
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे पास
- kitābun
- كِتَٰبٌ
- कोई किताब है
- fīhi
- فِيهِ
- जिसमें
- tadrusūna
- تَدْرُسُونَ
- तुम पढ़ते हो
क्या तुम्हारे पास कोई किताब है जिसमें तुम पढ़ते हो ([६८] अल-कलाम: 37)Tafseer (तफ़सीर )
३८
اِنَّ لَكُمْ فِيْهِ لَمَا تَخَيَّرُوْنَۚ ٣٨
- inna
- إِنَّ
- कि बेशक
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- fīhi
- فِيهِ
- उसमें
- lamā
- لَمَا
- अलबत्ता वो है जो
- takhayyarūna
- تَخَيَّرُونَ
- तुम पसंद करते हो
कि उसमें तुम्हारे लिए वह कुछ है जो तुम पसन्द करो? ([६८] अल-कलाम: 38)Tafseer (तफ़सीर )
३९
اَمْ لَكُمْ اَيْمَانٌ عَلَيْنَا بَالِغَةٌ اِلٰى يَوْمِ الْقِيٰمَةِۙ اِنَّ لَكُمْ لَمَا تَحْكُمُوْنَۚ ٣٩
- am
- أَمْ
- या
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- aymānun
- أَيْمَٰنٌ
- क़समें हैं
- ʿalaynā
- عَلَيْنَا
- हम पर
- bālighatun
- بَٰلِغَةٌ
- पहुँचने वाली
- ilā
- إِلَىٰ
- क़यामत के दिन तक
- yawmi
- يَوْمِ
- क़यामत के दिन तक
- l-qiyāmati
- ٱلْقِيَٰمَةِۙ
- क़यामत के दिन तक
- inna
- إِنَّ
- कि बेशक
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- lamā
- لَمَا
- अलबत्ता वो है जो
- taḥkumūna
- تَحْكُمُونَ
- तुम फ़ैसला करोगे
या तुमने हमसे क़समें ले रखी है जो क़ियामत के दिन तक बाक़ी रहनेवाली है कि तुम्हारे लिए वही कुछ है जो तुम फ़ैसला करो! ([६८] अल-कलाम: 39)Tafseer (तफ़सीर )
४०
سَلْهُمْ اَيُّهُمْ بِذٰلِكَ زَعِيْمٌۚ ٤٠
- salhum
- سَلْهُمْ
- पूछिए उनसे
- ayyuhum
- أَيُّهُم
- कौन उनमें से
- bidhālika
- بِذَٰلِكَ
- उसका
- zaʿīmun
- زَعِيمٌ
- ज़ामिन है
उनसे पूछो, 'उनमें से कौन इसकी ज़मानत लेता है! ([६८] अल-कलाम: 40)Tafseer (तफ़सीर )