Skip to content

सूरा अल-कलाम - Page: 4

Al-Qalam

(लेखनी)

३१

قَالُوْا يٰوَيْلَنَآ اِنَّا كُنَّا طٰغِيْنَ ٣١

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
yāwaylanā
يَٰوَيْلَنَآ
हाय अफ़सोस हम पर
innā
إِنَّا
बेशक हम
kunnā
كُنَّا
थे हम ही
ṭāghīna
طَٰغِينَ
सरकश
उन्होंने कहा, 'अफ़सोस हम पर! निश्चय ही हम सरकश थे। ([६८] अल-कलाम: 31)
Tafseer (तफ़सीर )
३२

عَسٰى رَبُّنَآ اَنْ يُّبْدِلَنَا خَيْرًا مِّنْهَآ اِنَّآ اِلٰى رَبِّنَا رَاغِبُوْنَ ٣٢

ʿasā
عَسَىٰ
उम्मीद है
rabbunā
رَبُّنَآ
रब हमारा
an
أَن
कि
yub'dilanā
يُبْدِلَنَا
वो बदल कर दे हमें
khayran
خَيْرًا
बेहतर
min'hā
مِّنْهَآ
इससे
innā
إِنَّآ
बेशक हम
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ अपने रब के
rabbinā
رَبِّنَا
तरफ़ अपने रब के
rāghibūna
رَٰغِبُونَ
रग़बत करने वाले हैं
'आशा है कि हमारा रब बदले में हमें इससे अच्छा प्रदान करे। हम अपने रब की ओर उन्मुख है।' ([६८] अल-कलाम: 32)
Tafseer (तफ़सीर )
३३

كَذٰلِكَ الْعَذَابُۗ وَلَعَذَابُ الْاٰخِرَةِ اَكْبَرُۘ لَوْ كَانُوْا يَعْلَمُوْنَ ࣖ ٣٣

kadhālika
كَذَٰلِكَ
इसी तरह होता है
l-ʿadhābu
ٱلْعَذَابُۖ
अज़ाब
walaʿadhābu
وَلَعَذَابُ
और यक़ीनन अज़ाब
l-ākhirati
ٱلْءَاخِرَةِ
आख़िरत का
akbaru
أَكْبَرُۚ
ज़्यादा बड़ा है
law
لَوْ
काश
kānū
كَانُوا۟
होते वो
yaʿlamūna
يَعْلَمُونَ
वो जानते
यातना ऐसी ही होती है, और आख़िरत की यातना तो निश्चय ही इससे भी बड़ी है, काश वे जानते! ([६८] अल-कलाम: 33)
Tafseer (तफ़सीर )
३४

اِنَّ لِلْمُتَّقِيْنَ عِنْدَ رَبِّهِمْ جَنّٰتِ النَّعِيْمِ ٣٤

inna
إِنَّ
बेशक
lil'muttaqīna
لِلْمُتَّقِينَ
मुत्तक़ी लोगों के लिए
ʿinda
عِندَ
पास
rabbihim
رَبِّهِمْ
उनके रब के
jannāti
جَنَّٰتِ
बाग़ात हैं
l-naʿīmi
ٱلنَّعِيمِ
नेअमतों वाले
निश्चय ही डर रखनेवालों के लिए उनके रब के यहाँ नेमत भरी जन्नतें है ([६८] अल-कलाम: 34)
Tafseer (तफ़सीर )
३५

اَفَنَجْعَلُ الْمُسْلِمِيْنَ كَالْمُجْرِمِيْنَۗ ٣٥

afanajʿalu
أَفَنَجْعَلُ
क्या भला हम कर देंगे
l-mus'limīna
ٱلْمُسْلِمِينَ
फ़रमाबरदारों को
kal-muj'rimīna
كَٱلْمُجْرِمِينَ
मुजरिमों की तरह
तो क्या हम मुस्लिमों (आज्ञाकारियों) को अपराधियों जैसा कर देंगे? ([६८] अल-कलाम: 35)
Tafseer (तफ़सीर )
३६

مَا لَكُمْۗ كَيْفَ تَحْكُمُوْنَۚ ٣٦

مَا
क्या है
lakum
لَكُمْ
तुम्हें
kayfa
كَيْفَ
कैसे
taḥkumūna
تَحْكُمُونَ
तुम फ़ैसले करते हो
तुम्हें क्या हो गया है, कैसा फ़ैसला करते हो? ([६८] अल-कलाम: 36)
Tafseer (तफ़सीर )
३७

اَمْ لَكُمْ كِتٰبٌ فِيْهِ تَدْرُسُوْنَۙ ٣٧

am
أَمْ
या
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे पास
kitābun
كِتَٰبٌ
कोई किताब है
fīhi
فِيهِ
जिसमें
tadrusūna
تَدْرُسُونَ
तुम पढ़ते हो
क्या तुम्हारे पास कोई किताब है जिसमें तुम पढ़ते हो ([६८] अल-कलाम: 37)
Tafseer (तफ़सीर )
३८

اِنَّ لَكُمْ فِيْهِ لَمَا تَخَيَّرُوْنَۚ ٣٨

inna
إِنَّ
कि बेशक
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
fīhi
فِيهِ
उसमें
lamā
لَمَا
अलबत्ता वो है जो
takhayyarūna
تَخَيَّرُونَ
तुम पसंद करते हो
कि उसमें तुम्हारे लिए वह कुछ है जो तुम पसन्द करो? ([६८] अल-कलाम: 38)
Tafseer (तफ़सीर )
३९

اَمْ لَكُمْ اَيْمَانٌ عَلَيْنَا بَالِغَةٌ اِلٰى يَوْمِ الْقِيٰمَةِۙ اِنَّ لَكُمْ لَمَا تَحْكُمُوْنَۚ ٣٩

am
أَمْ
या
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
aymānun
أَيْمَٰنٌ
क़समें हैं
ʿalaynā
عَلَيْنَا
हम पर
bālighatun
بَٰلِغَةٌ
पहुँचने वाली
ilā
إِلَىٰ
क़यामत के दिन तक
yawmi
يَوْمِ
क़यामत के दिन तक
l-qiyāmati
ٱلْقِيَٰمَةِۙ
क़यामत के दिन तक
inna
إِنَّ
कि बेशक
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
lamā
لَمَا
अलबत्ता वो है जो
taḥkumūna
تَحْكُمُونَ
तुम फ़ैसला करोगे
या तुमने हमसे क़समें ले रखी है जो क़ियामत के दिन तक बाक़ी रहनेवाली है कि तुम्हारे लिए वही कुछ है जो तुम फ़ैसला करो! ([६८] अल-कलाम: 39)
Tafseer (तफ़सीर )
४०

سَلْهُمْ اَيُّهُمْ بِذٰلِكَ زَعِيْمٌۚ ٤٠

salhum
سَلْهُمْ
पूछिए उनसे
ayyuhum
أَيُّهُم
कौन उनमें से
bidhālika
بِذَٰلِكَ
उसका
zaʿīmun
زَعِيمٌ
ज़ामिन है
उनसे पूछो, 'उनमें से कौन इसकी ज़मानत लेता है! ([६८] अल-कलाम: 40)
Tafseer (तफ़सीर )