२१
فَتَنَادَوْا مُصْبِحِيْنَۙ ٢١
- fatanādaw
- فَتَنَادَوْا۟
- फिर वो एक दूसरे को पुकारने लगे
- muṣ'biḥīna
- مُصْبِحِينَ
- सुबह सवेरे ही
फिर प्रातःकाल होते ही उन्होंने एक-दूसरे को आवाज़ दी ([६८] अल-कलाम: 21)Tafseer (तफ़सीर )
२२
اَنِ اغْدُوْا عَلٰى حَرْثِكُمْ اِنْ كُنْتُمْ صَارِمِيْنَ ٢٢
- ani
- أَنِ
- कि
- igh'dū
- ٱغْدُوا۟
- सुबह सवेरे चलो
- ʿalā
- عَلَىٰ
- अपने खेत पर
- ḥarthikum
- حَرْثِكُمْ
- अपने खेत पर
- in
- إِن
- अगर
- kuntum
- كُنتُمْ
- हो तुम
- ṣārimīna
- صَٰرِمِينَ
- (फल)तोड़ने वाले
कि 'यदि तुम्हें फल तोड़ना है तो अपनी खेती पर सवेरे ही पहुँचो।' ([६८] अल-कलाम: 22)Tafseer (तफ़सीर )
२३
فَانْطَلَقُوْا وَهُمْ يَتَخَافَتُوْنَۙ ٢٣
- fa-inṭalaqū
- فَٱنطَلَقُوا۟
- तो वो चल दिए
- wahum
- وَهُمْ
- और वो
- yatakhāfatūna
- يَتَخَٰفَتُونَ
- वो चुपके-चुपके आपस में बातें कर रहे थे
अतएव वे चुपके-चुपके बातें करते हुए चल पड़े ([६८] अल-कलाम: 23)Tafseer (तफ़सीर )
२४
اَنْ لَّا يَدْخُلَنَّهَا الْيَوْمَ عَلَيْكُمْ مِّسْكِيْنٌۙ ٢٤
- an
- أَن
- कि
- lā
- لَّا
- ना हरगिज़ दाख़िल हो उसमें
- yadkhulannahā
- يَدْخُلَنَّهَا
- ना हरगिज़ दाख़िल हो उसमें
- l-yawma
- ٱلْيَوْمَ
- आज
- ʿalaykum
- عَلَيْكُم
- तुम पर
- mis'kīnun
- مِّسْكِينٌ
- कोई मिसकीन
कि आज वहाँ कोई मुहताज तुम्हारे पास न पहुँचने पाए ([६८] अल-कलाम: 24)Tafseer (तफ़सीर )
२५
وَّغَدَوْا عَلٰى حَرْدٍ قَادِرِيْنَ ٢٥
- waghadaw
- وَغَدَوْا۟
- और वो सुबह सवेरे निकले
- ʿalā
- عَلَىٰ
- रोकने पर
- ḥardin
- حَرْدٍ
- रोकने पर
- qādirīna
- قَٰدِرِينَ
- क़ादिर बनते हुए
और वे आज तेज़ी के साथ चले मानो (मुहताजों को) रोक देने की उन्हें सामर्थ्य प्राप्त है ([६८] अल-कलाम: 25)Tafseer (तफ़सीर )
२६
فَلَمَّا رَاَوْهَا قَالُوْٓا اِنَّا لَضَاۤلُّوْنَۙ ٢٦
- falammā
- فَلَمَّا
- तो जब
- ra-awhā
- رَأَوْهَا
- उन्होंने देखा उसे
- qālū
- قَالُوٓا۟
- वो कहने लगे
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- laḍāllūna
- لَضَآلُّونَ
- अलबत्ता रास्ता भूल गए हैं
किन्तु जब उन्होंने उसको देखा, कहने लगे, 'निश्चय ही हम भटक गए है। ([६८] अल-कलाम: 26)Tafseer (तफ़सीर )
२७
بَلْ نَحْنُ مَحْرُوْمُوْنَ ٢٧
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- naḥnu
- نَحْنُ
- हम
- maḥrūmūna
- مَحْرُومُونَ
- महरूम कर दिए गए हैं
नहीं, बल्कि हम वंचित होकर रह गए।' ([६८] अल-कलाम: 27)Tafseer (तफ़सीर )
२८
قَالَ اَوْسَطُهُمْ اَلَمْ اَقُلْ لَّكُمْ لَوْلَا تُسَبِّحُوْنَ ٢٨
- qāla
- قَالَ
- कहा
- awsaṭuhum
- أَوْسَطُهُمْ
- उनमें से बेहतर ने
- alam
- أَلَمْ
- क्या नहीं
- aqul
- أَقُل
- मैं ने कहा था
- lakum
- لَّكُمْ
- तुम्हें
- lawlā
- لَوْلَا
- क्यों नहीं
- tusabbiḥūna
- تُسَبِّحُونَ
- तुम तस्बीह करते
उनमें जो सबसे अच्छा था कहने लगा, 'क्या मैंने तुमसे कहा नहीं था? तुम तसबीह क्यों नहीं करते?' ([६८] अल-कलाम: 28)Tafseer (तफ़सीर )
२९
قَالُوْا سُبْحٰنَ رَبِّنَآ اِنَّا كُنَّا ظٰلِمِيْنَ ٢٩
- qālū
- قَالُوا۟
- उन्होंने कहा
- sub'ḥāna
- سُبْحَٰنَ
- पाक है
- rabbinā
- رَبِّنَآ
- रब हमारा
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- kunnā
- كُنَّا
- थे हम ही
- ẓālimīna
- ظَٰلِمِينَ
- ज़ालिम
वे पुकार उठे, 'महान और उच्च है हमारा रब! निश्चय ही हम ज़ालिम थे।' ([६८] अल-कलाम: 29)Tafseer (तफ़सीर )
३०
فَاَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلٰى بَعْضٍ يَّتَلَاوَمُوْنَ ٣٠
- fa-aqbala
- فَأَقْبَلَ
- तो मुतावज्जा हुआ
- baʿḍuhum
- بَعْضُهُمْ
- बाज़ उनका
- ʿalā
- عَلَىٰ
- बाज़ पर
- baʿḍin
- بَعْضٍ
- बाज़ पर
- yatalāwamūna
- يَتَلَٰوَمُونَ
- आपस में मलामत करते हुए
फिर वे परस्पर एक-दूसरे की ओर रुख़ करके लगे एक-दूसरे को मलामत करने। ([६८] अल-कलाम: 30)Tafseer (तफ़सीर )