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सूरा अल-कलाम - Page: 3

Al-Qalam

(लेखनी)

२१

فَتَنَادَوْا مُصْبِحِيْنَۙ ٢١

fatanādaw
فَتَنَادَوْا۟
फिर वो एक दूसरे को पुकारने लगे
muṣ'biḥīna
مُصْبِحِينَ
सुबह सवेरे ही
फिर प्रातःकाल होते ही उन्होंने एक-दूसरे को आवाज़ दी ([६८] अल-कलाम: 21)
Tafseer (तफ़सीर )
२२

اَنِ اغْدُوْا عَلٰى حَرْثِكُمْ اِنْ كُنْتُمْ صَارِمِيْنَ ٢٢

ani
أَنِ
कि
igh'dū
ٱغْدُوا۟
सुबह सवेरे चलो
ʿalā
عَلَىٰ
अपने खेत पर
ḥarthikum
حَرْثِكُمْ
अपने खेत पर
in
إِن
अगर
kuntum
كُنتُمْ
हो तुम
ṣārimīna
صَٰرِمِينَ
(फल)तोड़ने वाले
कि 'यदि तुम्हें फल तोड़ना है तो अपनी खेती पर सवेरे ही पहुँचो।' ([६८] अल-कलाम: 22)
Tafseer (तफ़सीर )
२३

فَانْطَلَقُوْا وَهُمْ يَتَخَافَتُوْنَۙ ٢٣

fa-inṭalaqū
فَٱنطَلَقُوا۟
तो वो चल दिए
wahum
وَهُمْ
और वो
yatakhāfatūna
يَتَخَٰفَتُونَ
वो चुपके-चुपके आपस में बातें कर रहे थे
अतएव वे चुपके-चुपके बातें करते हुए चल पड़े ([६८] अल-कलाम: 23)
Tafseer (तफ़सीर )
२४

اَنْ لَّا يَدْخُلَنَّهَا الْيَوْمَ عَلَيْكُمْ مِّسْكِيْنٌۙ ٢٤

an
أَن
कि
لَّا
ना हरगिज़ दाख़िल हो उसमें
yadkhulannahā
يَدْخُلَنَّهَا
ना हरगिज़ दाख़िल हो उसमें
l-yawma
ٱلْيَوْمَ
आज
ʿalaykum
عَلَيْكُم
तुम पर
mis'kīnun
مِّسْكِينٌ
कोई मिसकीन
कि आज वहाँ कोई मुहताज तुम्हारे पास न पहुँचने पाए ([६८] अल-कलाम: 24)
Tafseer (तफ़सीर )
२५

وَّغَدَوْا عَلٰى حَرْدٍ قَادِرِيْنَ ٢٥

waghadaw
وَغَدَوْا۟
और वो सुबह सवेरे निकले
ʿalā
عَلَىٰ
रोकने पर
ḥardin
حَرْدٍ
रोकने पर
qādirīna
قَٰدِرِينَ
क़ादिर बनते हुए
और वे आज तेज़ी के साथ चले मानो (मुहताजों को) रोक देने की उन्हें सामर्थ्य प्राप्त है ([६८] अल-कलाम: 25)
Tafseer (तफ़सीर )
२६

فَلَمَّا رَاَوْهَا قَالُوْٓا اِنَّا لَضَاۤلُّوْنَۙ ٢٦

falammā
فَلَمَّا
तो जब
ra-awhā
رَأَوْهَا
उन्होंने देखा उसे
qālū
قَالُوٓا۟
वो कहने लगे
innā
إِنَّا
बेशक हम
laḍāllūna
لَضَآلُّونَ
अलबत्ता रास्ता भूल गए हैं
किन्तु जब उन्होंने उसको देखा, कहने लगे, 'निश्चय ही हम भटक गए है। ([६८] अल-कलाम: 26)
Tafseer (तफ़सीर )
२७

بَلْ نَحْنُ مَحْرُوْمُوْنَ ٢٧

bal
بَلْ
बल्कि
naḥnu
نَحْنُ
हम
maḥrūmūna
مَحْرُومُونَ
महरूम कर दिए गए हैं
नहीं, बल्कि हम वंचित होकर रह गए।' ([६८] अल-कलाम: 27)
Tafseer (तफ़सीर )
२८

قَالَ اَوْسَطُهُمْ اَلَمْ اَقُلْ لَّكُمْ لَوْلَا تُسَبِّحُوْنَ ٢٨

qāla
قَالَ
कहा
awsaṭuhum
أَوْسَطُهُمْ
उनमें से बेहतर ने
alam
أَلَمْ
क्या नहीं
aqul
أَقُل
मैं ने कहा था
lakum
لَّكُمْ
तुम्हें
lawlā
لَوْلَا
क्यों नहीं
tusabbiḥūna
تُسَبِّحُونَ
तुम तस्बीह करते
उनमें जो सबसे अच्छा था कहने लगा, 'क्या मैंने तुमसे कहा नहीं था? तुम तसबीह क्यों नहीं करते?' ([६८] अल-कलाम: 28)
Tafseer (तफ़सीर )
२९

قَالُوْا سُبْحٰنَ رَبِّنَآ اِنَّا كُنَّا ظٰلِمِيْنَ ٢٩

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
sub'ḥāna
سُبْحَٰنَ
पाक है
rabbinā
رَبِّنَآ
रब हमारा
innā
إِنَّا
बेशक हम
kunnā
كُنَّا
थे हम ही
ẓālimīna
ظَٰلِمِينَ
ज़ालिम
वे पुकार उठे, 'महान और उच्च है हमारा रब! निश्चय ही हम ज़ालिम थे।' ([६८] अल-कलाम: 29)
Tafseer (तफ़सीर )
३०

فَاَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلٰى بَعْضٍ يَّتَلَاوَمُوْنَ ٣٠

fa-aqbala
فَأَقْبَلَ
तो मुतावज्जा हुआ
baʿḍuhum
بَعْضُهُمْ
बाज़ उनका
ʿalā
عَلَىٰ
बाज़ पर
baʿḍin
بَعْضٍ
बाज़ पर
yatalāwamūna
يَتَلَٰوَمُونَ
आपस में मलामत करते हुए
फिर वे परस्पर एक-दूसरे की ओर रुख़ करके लगे एक-दूसरे को मलामत करने। ([६८] अल-कलाम: 30)
Tafseer (तफ़सीर )