مَآ اَصَابَ مِنْ مُّصِيْبَةٍ اِلَّا بِاِذْنِ اللّٰهِ ۗوَمَنْ يُّؤْمِنْۢ بِاللّٰهِ يَهْدِ قَلْبَهٗ ۗوَاللّٰهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيْمٌ ١١
- mā
- مَآ
- नहीं
- aṣāba
- أَصَابَ
- पहुँचती
- min
- مِن
- कोई मुसीबत
- muṣībatin
- مُّصِيبَةٍ
- कोई मुसीबत
- illā
- إِلَّا
- मगर
- bi-idh'ni
- بِإِذْنِ
- अल्लाह के इज़्न से
- l-lahi
- ٱللَّهِۗ
- अल्लाह के इज़्न से
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- yu'min
- يُؤْمِنۢ
- ईमान लाता है
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- yahdi
- يَهْدِ
- वो हिदायत देता है
- qalbahu
- قَلْبَهُۥۚ
- उसके दिल को
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- bikulli
- بِكُلِّ
- हर
- shayin
- شَىْءٍ
- चीज़ क
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब जानने वाला है
अल्लाह की अनुज्ञा के बिना कोई भी मुसीबत नहीं आती। जो अल्लाह पर ईमान ले आए अल्लाह उसके दिल को मार्ग दिखाता है, और अल्लाह हर चीज को भली-भाँति जानता है ([६४] अत-तग़ाबुन: 11)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَطِيْعُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوا الرَّسُوْلَۚ فَاِنْ تَوَلَّيْتُمْ فَاِنَّمَا عَلٰى رَسُوْلِنَا الْبَلٰغُ الْمُبِيْنُ ١٢
- wa-aṭīʿū
- وَأَطِيعُوا۟
- और इताअत करो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह की
- wa-aṭīʿū
- وَأَطِيعُوا۟
- और इताअत करो
- l-rasūla
- ٱلرَّسُولَۚ
- रसूल की
- fa-in
- فَإِن
- फिर अगर
- tawallaytum
- تَوَلَّيْتُمْ
- मुँह मोड़ते हो तुम
- fa-innamā
- فَإِنَّمَا
- तो बेशक
- ʿalā
- عَلَىٰ
- ऊपर हमारे रसूल के
- rasūlinā
- رَسُولِنَا
- ऊपर हमारे रसूल के
- l-balāghu
- ٱلْبَلَٰغُ
- पहुँचा देना है
- l-mubīnu
- ٱلْمُبِينُ
- खुल्लम-खुल्ला
अल्लाह की आज्ञा का पालन करो और रसूल की आज्ञा का पालन करो, किन्तु यदि तुम मुँह मोड़ते हो तो हमारे रसूल पर बस स्पष्ट रूप से (संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है ([६४] अत-तग़ाबुन: 12)Tafseer (तफ़सीर )
اَللّٰهُ لَآ اِلٰهَ اِلَّا هُوَۗ وَعَلَى اللّٰهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُوْنَ ١٣
- al-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- lā
- لَآ
- नहीं
- ilāha
- إِلَٰهَ
- कोई इलाह(बरहक़ )
- illā
- إِلَّا
- मगर
- huwa
- هُوَۚ
- वो ही
- waʿalā
- وَعَلَى
- और अल्लाह ही पर
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- और अल्लाह ही पर
- falyatawakkali
- فَلْيَتَوَكَّلِ
- पस चाहिए कि तवक्कुल करें
- l-mu'minūna
- ٱلْمُؤْمِنُونَ
- मोमिन
अल्लाह वह है जिसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। अतः अल्लाह ही पर ईमानवालों को भरोसा करना चाहिए ([६४] अत-तग़ाबुन: 13)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اِنَّ مِنْ اَزْوَاجِكُمْ وَاَوْلَادِكُمْ عَدُوًّا لَّكُمْ فَاحْذَرُوْهُمْۚ وَاِنْ تَعْفُوْا وَتَصْفَحُوْا وَتَغْفِرُوْا فَاِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ١٤
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوٓا۟
- ईमान लाए हो
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- min
- مِنْ
- तुम्हारी बीवियों में से
- azwājikum
- أَزْوَٰجِكُمْ
- तुम्हारी बीवियों में से
- wa-awlādikum
- وَأَوْلَٰدِكُمْ
- और तुम्हारी औलाद में से
- ʿaduwwan
- عَدُوًّا
- दुश्मन हैं
- lakum
- لَّكُمْ
- तुम्हारे
- fa-iḥ'dharūhum
- فَٱحْذَرُوهُمْۚ
- पस मोहतात रहो उनसे
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- taʿfū
- تَعْفُوا۟
- तुम माफ़ कर दो
- wataṣfaḥū
- وَتَصْفَحُوا۟
- और तुम दरगुज़र करो
- wataghfirū
- وَتَغْفِرُوا۟
- और तुम बख़्श दो
- fa-inna
- فَإِنَّ
- तो बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- ghafūrun
- غَفُورٌ
- बहुत बख़्शने वाला है
- raḥīmun
- رَّحِيمٌ
- निहायत रहम करने वाला है
ऐ ईमान लानेवालो, तुम्हारी पत्नियों और तुम्हारी सन्तान में से कुछ ऐसे भी है जो तुम्हारे शत्रु है। अतः उनसे होशियार रहो। और यदि तुम माफ़ कर दो और टाल जाओ और क्षमा कर दो निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है ([६४] अत-तग़ाबुन: 14)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّمَآ اَمْوَالُكُمْ وَاَوْلَادُكُمْ فِتْنَةٌ ۗوَاللّٰهُ عِنْدَهٗٓ اَجْرٌ عَظِيْمٌ ١٥
- innamā
- إِنَّمَآ
- बेशक
- amwālukum
- أَمْوَٰلُكُمْ
- माल तुम्हारे
- wa-awlādukum
- وَأَوْلَٰدُكُمْ
- और औलाद तुम्हारी
- fit'natun
- فِتْنَةٌۚ
- आज़माइश हैं
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- ʿindahu
- عِندَهُۥٓ
- उसी के पास
- ajrun
- أَجْرٌ
- अजर है
- ʿaẓīmun
- عَظِيمٌ
- बहुत बड़ा
तुम्हारे माल और तुम्हारी सन्तान तो केवल एक आज़माइश है, और अल्लाह ही है जिसके पास बड़ा प्रतिदान है ([६४] अत-तग़ाबुन: 15)Tafseer (तफ़सीर )
فَاتَّقُوا اللّٰهَ مَا اسْتَطَعْتُمْ وَاسْمَعُوْا وَاَطِيْعُوْا وَاَنْفِقُوْا خَيْرًا لِّاَنْفُسِكُمْۗ وَمَنْ يُّوْقَ شُحَّ نَفْسِهٖ فَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ ١٦
- fa-ittaqū
- فَٱتَّقُوا۟
- पस डरो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- mā
- مَا
- जितनी
- is'taṭaʿtum
- ٱسْتَطَعْتُمْ
- इस्तिताअत रखते हो तुम
- wa-is'maʿū
- وَٱسْمَعُوا۟
- और सुनो
- wa-aṭīʿū
- وَأَطِيعُوا۟
- और इताअत करो
- wa-anfiqū
- وَأَنفِقُوا۟
- और ख़र्च करो
- khayran
- خَيْرًا
- बेहतर है
- li-anfusikum
- لِّأَنفُسِكُمْۗ
- तुम्हारे नफ़्सों के लिए
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- yūqa
- يُوقَ
- बचा लिया गया
- shuḥḥa
- شُحَّ
- बख़ीली से
- nafsihi
- نَفْسِهِۦ
- अपने नफ़्स की
- fa-ulāika
- فَأُو۟لَٰٓئِكَ
- तो यही लोग हैं
- humu
- هُمُ
- वो
- l-muf'liḥūna
- ٱلْمُفْلِحُونَ
- जो फ़लाह पाने वाले हैं
अतः जहाँ तक तुम्हारे बस में हो अल्लाह का डर रखो और सुनो और आज्ञापालन करो और ख़र्च करो अपनी भलाई के लिए। और जो अपने मन के लोभ एवं कृपणता से सुरक्षित रहा तो ऐसे ही लोग सफल है ([६४] अत-तग़ाबुन: 16)Tafseer (तफ़सीर )
اِنْ تُقْرِضُوا اللّٰهَ قَرْضًا حَسَنًا يُّضٰعِفْهُ لَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْۗ وَاللّٰهُ شَكُوْرٌ حَلِيْمٌۙ ١٧
- in
- إِن
- अगर
- tuq'riḍū
- تُقْرِضُوا۟
- तुम क़र्ज़ दोगे
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह को
- qarḍan
- قَرْضًا
- क़र्ज़
- ḥasanan
- حَسَنًا
- अच्छा
- yuḍāʿif'hu
- يُضَٰعِفْهُ
- वो कई गुना कर देगा उसे
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- wayaghfir
- وَيَغْفِرْ
- और वो बख़्श देगा
- lakum
- لَكُمْۚ
- तुम्हें
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- shakūrun
- شَكُورٌ
- बहुत क़द्रदान है
- ḥalīmun
- حَلِيمٌ
- निहायत बुर्दबार है
यदि तुम अल्लाह को अच्छा ऋण दो तो वह उसे तुम्हारे लिए कई गुना बढ़ा देगा और तुम्हें क्षमा कर देगा। अल्लाह बड़ा गुणग्राहक और सहनशील है, ([६४] अत-तग़ाबुन: 17)Tafseer (तफ़सीर )
عٰلِمُ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ الْعَزِيْزُ الْحَكِيْمُ ࣖ ١٨
- ʿālimu
- عَٰلِمُ
- जानने वाला है
- l-ghaybi
- ٱلْغَيْبِ
- ग़ैब
- wal-shahādati
- وَٱلشَّهَٰدَةِ
- और हाज़िर को
- l-ʿazīzu
- ٱلْعَزِيزُ
- बहुत ज़बरदस्त है
- l-ḥakīmu
- ٱلْحَكِيمُ
- ख़ूब हिकमत वाला है
परोक्ष और प्रत्यक्ष को जानता है, प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है ([६४] अत-तग़ाबुन: 18)Tafseer (तफ़सीर )