Skip to content

सूरा अत-तग़ाबुन - Page: 2

At-Taghabun

(Mutual Disillusion, Haggling)

११

مَآ اَصَابَ مِنْ مُّصِيْبَةٍ اِلَّا بِاِذْنِ اللّٰهِ ۗوَمَنْ يُّؤْمِنْۢ بِاللّٰهِ يَهْدِ قَلْبَهٗ ۗوَاللّٰهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيْمٌ ١١

مَآ
नहीं
aṣāba
أَصَابَ
पहुँचती
min
مِن
कोई मुसीबत
muṣībatin
مُّصِيبَةٍ
कोई मुसीबत
illā
إِلَّا
मगर
bi-idh'ni
بِإِذْنِ
अल्लाह के इज़्न से
l-lahi
ٱللَّهِۗ
अल्लाह के इज़्न से
waman
وَمَن
और जो कोई
yu'min
يُؤْمِنۢ
ईमान लाता है
bil-lahi
بِٱللَّهِ
अल्लाह पर
yahdi
يَهْدِ
वो हिदायत देता है
qalbahu
قَلْبَهُۥۚ
उसके दिल को
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
bikulli
بِكُلِّ
हर
shayin
شَىْءٍ
चीज़ क
ʿalīmun
عَلِيمٌ
ख़ूब जानने वाला है
अल्लाह की अनुज्ञा के बिना कोई भी मुसीबत नहीं आती। जो अल्लाह पर ईमान ले आए अल्लाह उसके दिल को मार्ग दिखाता है, और अल्लाह हर चीज को भली-भाँति जानता है ([६४] अत-तग़ाबुन: 11)
Tafseer (तफ़सीर )
१२

وَاَطِيْعُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوا الرَّسُوْلَۚ فَاِنْ تَوَلَّيْتُمْ فَاِنَّمَا عَلٰى رَسُوْلِنَا الْبَلٰغُ الْمُبِيْنُ ١٢

wa-aṭīʿū
وَأَطِيعُوا۟
और इताअत करो
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह की
wa-aṭīʿū
وَأَطِيعُوا۟
और इताअत करो
l-rasūla
ٱلرَّسُولَۚ
रसूल की
fa-in
فَإِن
फिर अगर
tawallaytum
تَوَلَّيْتُمْ
मुँह मोड़ते हो तुम
fa-innamā
فَإِنَّمَا
तो बेशक
ʿalā
عَلَىٰ
ऊपर हमारे रसूल के
rasūlinā
رَسُولِنَا
ऊपर हमारे रसूल के
l-balāghu
ٱلْبَلَٰغُ
पहुँचा देना है
l-mubīnu
ٱلْمُبِينُ
खुल्लम-खुल्ला
अल्लाह की आज्ञा का पालन करो और रसूल की आज्ञा का पालन करो, किन्तु यदि तुम मुँह मोड़ते हो तो हमारे रसूल पर बस स्पष्ट रूप से (संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है ([६४] अत-तग़ाबुन: 12)
Tafseer (तफ़सीर )
१३

اَللّٰهُ لَآ اِلٰهَ اِلَّا هُوَۗ وَعَلَى اللّٰهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُوْنَ ١٣

al-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
لَآ
नहीं
ilāha
إِلَٰهَ
कोई इलाह(बरहक़ )
illā
إِلَّا
मगर
huwa
هُوَۚ
वो ही
waʿalā
وَعَلَى
और अल्लाह ही पर
l-lahi
ٱللَّهِ
और अल्लाह ही पर
falyatawakkali
فَلْيَتَوَكَّلِ
पस चाहिए कि तवक्कुल करें
l-mu'minūna
ٱلْمُؤْمِنُونَ
मोमिन
अल्लाह वह है जिसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। अतः अल्लाह ही पर ईमानवालों को भरोसा करना चाहिए ([६४] अत-तग़ाबुन: 13)
Tafseer (तफ़सीर )
१४

يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اِنَّ مِنْ اَزْوَاجِكُمْ وَاَوْلَادِكُمْ عَدُوًّا لَّكُمْ فَاحْذَرُوْهُمْۚ وَاِنْ تَعْفُوْا وَتَصْفَحُوْا وَتَغْفِرُوْا فَاِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ١٤

yāayyuhā
يَٰٓأَيُّهَا
ऐ लोगो जो
alladhīna
ٱلَّذِينَ
ऐ लोगो जो
āmanū
ءَامَنُوٓا۟
ईमान लाए हो
inna
إِنَّ
बेशक
min
مِنْ
तुम्हारी बीवियों में से
azwājikum
أَزْوَٰجِكُمْ
तुम्हारी बीवियों में से
wa-awlādikum
وَأَوْلَٰدِكُمْ
और तुम्हारी औलाद में से
ʿaduwwan
عَدُوًّا
दुश्मन हैं
lakum
لَّكُمْ
तुम्हारे
fa-iḥ'dharūhum
فَٱحْذَرُوهُمْۚ
पस मोहतात रहो उनसे
wa-in
وَإِن
और अगर
taʿfū
تَعْفُوا۟
तुम माफ़ कर दो
wataṣfaḥū
وَتَصْفَحُوا۟
और तुम दरगुज़र करो
wataghfirū
وَتَغْفِرُوا۟
और तुम बख़्श दो
fa-inna
فَإِنَّ
तो बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
ghafūrun
غَفُورٌ
बहुत बख़्शने वाला है
raḥīmun
رَّحِيمٌ
निहायत रहम करने वाला है
ऐ ईमान लानेवालो, तुम्हारी पत्नियों और तुम्हारी सन्तान में से कुछ ऐसे भी है जो तुम्हारे शत्रु है। अतः उनसे होशियार रहो। और यदि तुम माफ़ कर दो और टाल जाओ और क्षमा कर दो निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है ([६४] अत-तग़ाबुन: 14)
Tafseer (तफ़सीर )
१५

اِنَّمَآ اَمْوَالُكُمْ وَاَوْلَادُكُمْ فِتْنَةٌ ۗوَاللّٰهُ عِنْدَهٗٓ اَجْرٌ عَظِيْمٌ ١٥

innamā
إِنَّمَآ
बेशक
amwālukum
أَمْوَٰلُكُمْ
माल तुम्हारे
wa-awlādukum
وَأَوْلَٰدُكُمْ
और औलाद तुम्हारी
fit'natun
فِتْنَةٌۚ
आज़माइश हैं
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
ʿindahu
عِندَهُۥٓ
उसी के पास
ajrun
أَجْرٌ
अजर है
ʿaẓīmun
عَظِيمٌ
बहुत बड़ा
तुम्हारे माल और तुम्हारी सन्तान तो केवल एक आज़माइश है, और अल्लाह ही है जिसके पास बड़ा प्रतिदान है ([६४] अत-तग़ाबुन: 15)
Tafseer (तफ़सीर )
१६

فَاتَّقُوا اللّٰهَ مَا اسْتَطَعْتُمْ وَاسْمَعُوْا وَاَطِيْعُوْا وَاَنْفِقُوْا خَيْرًا لِّاَنْفُسِكُمْۗ وَمَنْ يُّوْقَ شُحَّ نَفْسِهٖ فَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ ١٦

fa-ittaqū
فَٱتَّقُوا۟
पस डरो
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह से
مَا
जितनी
is'taṭaʿtum
ٱسْتَطَعْتُمْ
इस्तिताअत रखते हो तुम
wa-is'maʿū
وَٱسْمَعُوا۟
और सुनो
wa-aṭīʿū
وَأَطِيعُوا۟
और इताअत करो
wa-anfiqū
وَأَنفِقُوا۟
और ख़र्च करो
khayran
خَيْرًا
बेहतर है
li-anfusikum
لِّأَنفُسِكُمْۗ
तुम्हारे नफ़्सों के लिए
waman
وَمَن
और जो कोई
yūqa
يُوقَ
बचा लिया गया
shuḥḥa
شُحَّ
बख़ीली से
nafsihi
نَفْسِهِۦ
अपने नफ़्स की
fa-ulāika
فَأُو۟لَٰٓئِكَ
तो यही लोग हैं
humu
هُمُ
वो
l-muf'liḥūna
ٱلْمُفْلِحُونَ
जो फ़लाह पाने वाले हैं
अतः जहाँ तक तुम्हारे बस में हो अल्लाह का डर रखो और सुनो और आज्ञापालन करो और ख़र्च करो अपनी भलाई के लिए। और जो अपने मन के लोभ एवं कृपणता से सुरक्षित रहा तो ऐसे ही लोग सफल है ([६४] अत-तग़ाबुन: 16)
Tafseer (तफ़सीर )
१७

اِنْ تُقْرِضُوا اللّٰهَ قَرْضًا حَسَنًا يُّضٰعِفْهُ لَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْۗ وَاللّٰهُ شَكُوْرٌ حَلِيْمٌۙ ١٧

in
إِن
अगर
tuq'riḍū
تُقْرِضُوا۟
तुम क़र्ज़ दोगे
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह को
qarḍan
قَرْضًا
क़र्ज़
ḥasanan
حَسَنًا
अच्छा
yuḍāʿif'hu
يُضَٰعِفْهُ
वो कई गुना कर देगा उसे
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
wayaghfir
وَيَغْفِرْ
और वो बख़्श देगा
lakum
لَكُمْۚ
तुम्हें
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
shakūrun
شَكُورٌ
बहुत क़द्रदान है
ḥalīmun
حَلِيمٌ
निहायत बुर्दबार है
यदि तुम अल्लाह को अच्छा ऋण दो तो वह उसे तुम्हारे लिए कई गुना बढ़ा देगा और तुम्हें क्षमा कर देगा। अल्लाह बड़ा गुणग्राहक और सहनशील है, ([६४] अत-तग़ाबुन: 17)
Tafseer (तफ़सीर )
१८

عٰلِمُ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ الْعَزِيْزُ الْحَكِيْمُ ࣖ ١٨

ʿālimu
عَٰلِمُ
जानने वाला है
l-ghaybi
ٱلْغَيْبِ
ग़ैब
wal-shahādati
وَٱلشَّهَٰدَةِ
और हाज़िर को
l-ʿazīzu
ٱلْعَزِيزُ
बहुत ज़बरदस्त है
l-ḥakīmu
ٱلْحَكِيمُ
ख़ूब हिकमत वाला है
परोक्ष और प्रत्यक्ष को जानता है, प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है ([६४] अत-तग़ाबुन: 18)
Tafseer (तफ़सीर )