Skip to content

सूरा अल-अनाम - Page: 5

Al-An'am

(पशु)

४१

بَلْ اِيَّاهُ تَدْعُوْنَ فَيَكْشِفُ مَا تَدْعُوْنَ اِلَيْهِ اِنْ شَاۤءَ وَتَنْسَوْنَ مَا تُشْرِكُوْنَ ࣖ ٤١

bal
بَلْ
बल्कि
iyyāhu
إِيَّاهُ
सिर्फ़ उसी को
tadʿūna
تَدْعُونَ
तुम पुकारोगे
fayakshifu
فَيَكْشِفُ
फिर वो खोल देगा
مَا
उसे जो
tadʿūna
تَدْعُونَ
तुम पुकारोगे
ilayhi
إِلَيْهِ
तरफ़ उसके
in
إِن
अगर
shāa
شَآءَ
वो चाहे
watansawna
وَتَنسَوْنَ
और तुम भूल जाओगे
مَا
जिन्हें
tush'rikūna
تُشْرِكُونَ
तुम शरीक ठहराते हो
'बल्कि तुम उसी को पुकारते हो - फिर जिसके लिए तुम उसे पुकारते हो, वह चाहता है तो उसे दूर कर देता है - और उन्हें भूल जाते हो जिन्हें साझीदार ठहराते हो।' ([६] अल-अनाम: 41)
Tafseer (तफ़सीर )
४२

وَلَقَدْ اَرْسَلْنَآ اِلٰٓى اُمَمٍ مِّنْ قَبْلِكَ فَاَخَذْنٰهُمْ بِالْبَأْسَاۤءِ وَالضَّرَّاۤءِ لَعَلَّهُمْ يَتَضَرَّعُوْنَ ٤٢

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
arsalnā
أَرْسَلْنَآ
भेजा हमने
ilā
إِلَىٰٓ
तरफ़ उम्मतों के
umamin
أُمَمٍ
तरफ़ उम्मतों के
min
مِّن
आप से क़ब्ल
qablika
قَبْلِكَ
आप से क़ब्ल
fa-akhadhnāhum
فَأَخَذْنَٰهُم
पस पकड़ लिया हमने उन्हें
bil-basāi
بِٱلْبَأْسَآءِ
साथ तंगी
wal-ḍarāi
وَٱلضَّرَّآءِ
और तकलीफ़ के
laʿallahum
لَعَلَّهُمْ
शायद कि वो
yataḍarraʿūna
يَتَضَرَّعُونَ
वो आजिज़ी करें
तुमसे पहले कितने ही समुदायों की ओर हमने रसूल भेजे कि उन्हें तंगियों और मुसीबतों में डाला, ताकि वे विनम्र हों ([६] अल-अनाम: 42)
Tafseer (तफ़सीर )
४३

فَلَوْلَآ اِذْ جَاۤءَهُمْ بَأْسُنَا تَضَرَّعُوْا وَلٰكِنْ قَسَتْ قُلُوْبُهُمْ وَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطٰنُ مَا كَانُوْا يَعْمَلُوْنَ ٤٣

falawlā
فَلَوْلَآ
फिर क्यूँ ना
idh
إِذْ
जब
jāahum
جَآءَهُم
आया उनके पास
basunā
بَأْسُنَا
अज़ाब हमारा
taḍarraʿū
تَضَرَّعُوا۟
उन्होंने आजिज़ी की
walākin
وَلَٰكِن
और लेकिन
qasat
قَسَتْ
सख़्त हो गए
qulūbuhum
قُلُوبُهُمْ
दिल उनके
wazayyana
وَزَيَّنَ
और मुज़य्यन कर दिया
lahumu
لَهُمُ
उनके लिए
l-shayṭānu
ٱلشَّيْطَٰنُ
शैतान ने
مَا
जो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
yaʿmalūna
يَعْمَلُونَ
वो अमल करते
जब हमारी ओर से उनपर सख्ती आई तो फिर क्यों न विनम्र हुए? परन्तु उनके हृदय तो कठोर हो गए थे और जो कुछ वे करते थे शैतान ने उसे उनके लिए मोहक बना दिया ([६] अल-अनाम: 43)
Tafseer (तफ़सीर )
४४

فَلَمَّا نَسُوْا مَا ذُكِّرُوْا بِهٖ فَتَحْنَا عَلَيْهِمْ اَبْوَابَ كُلِّ شَيْءٍۗ حَتّٰٓى اِذَا فَرِحُوْا بِمَآ اُوْتُوْٓا اَخَذْنٰهُمْ بَغْتَةً فَاِذَا هُمْ مُّبْلِسُوْنَ ٤٤

falammā
فَلَمَّا
फिर जब
nasū
نَسُوا۟
वो भूल गए
مَا
जो कुछ
dhukkirū
ذُكِّرُوا۟
वो नसीहत किए गए थे
bihi
بِهِۦ
जिसकी
fataḥnā
فَتَحْنَا
खोल दिए हमने
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
abwāba
أَبْوَٰبَ
दरवाज़े
kulli
كُلِّ
हर
shayin
شَىْءٍ
चीज़ के
ḥattā
حَتَّىٰٓ
यहाँ तक कि
idhā
إِذَا
जब
fariḥū
فَرِحُوا۟
वो ख़ुश हो गए
bimā
بِمَآ
उस पर जो
ūtū
أُوتُوٓا۟
वो दिए गए थे
akhadhnāhum
أَخَذْنَٰهُم
पकड़ लिया हमने उन्हें
baghtatan
بَغْتَةً
अचानक
fa-idhā
فَإِذَا
तो उस वक़्त
hum
هُم
वो
mub'lisūna
مُّبْلِسُونَ
मायूस होने वाले थे
फिर जब उसे उन्होंने भुला दिया जो उन्हें याद दिलाई गई थी, तो हमने उनपर हर चीज़ के दरवाज़े खोल दिए; यहाँ तक कि जो कुछ उन्हें मिला था, जब वे उसमें मग्न हो गए तो अचानक हमने उन्हें पकड़ लिया, तो क्या देखते है कि वे बिल्कुल निराश होकर रह गए ([६] अल-अनाम: 44)
Tafseer (तफ़सीर )
४५

فَقُطِعَ دَابِرُ الْقَوْمِ الَّذِيْنَ ظَلَمُوْاۗ وَالْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ ٤٥

faquṭiʿa
فَقُطِعَ
पस काट दी गई
dābiru
دَابِرُ
जड़
l-qawmi
ٱلْقَوْمِ
उस क़ौम की
alladhīna
ٱلَّذِينَ
जिन्होंने
ẓalamū
ظَلَمُوا۟ۚ
ज़ुल्म किया
wal-ḥamdu
وَٱلْحَمْدُ
और सब तारीफ़
lillahi
لِلَّهِ
अल्लाह के लिए है
rabbi
رَبِّ
जो रब है
l-ʿālamīna
ٱلْعَٰلَمِينَ
तमाम जहानों का
इस प्रकार अत्याचारी लोगों की जड़ काटकर रख दी गई। प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, जो सारे संसार का रब है ([६] अल-अनाम: 45)
Tafseer (तफ़सीर )
४६

قُلْ اَرَاَيْتُمْ اِنْ اَخَذَ اللّٰهُ سَمْعَكُمْ وَاَبْصَارَكُمْ وَخَتَمَ عَلٰى قُلُوْبِكُمْ مَّنْ اِلٰهٌ غَيْرُ اللّٰهِ يَأْتِيْكُمْ بِهٖۗ اُنْظُرْ كَيْفَ نُصَرِّفُ الْاٰيٰتِ ثُمَّ هُمْ يَصْدِفُوْنَ ٤٦

qul
قُلْ
कह दीजिए
ara-aytum
أَرَءَيْتُمْ
क्या ग़ौर किया तुमने
in
إِنْ
अगर
akhadha
أَخَذَ
ले जाए
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
samʿakum
سَمْعَكُمْ
कान तुम्हारे
wa-abṣārakum
وَأَبْصَٰرَكُمْ
और आँखें तुम्हारी
wakhatama
وَخَتَمَ
और वो मोहर लगा दे
ʿalā
عَلَىٰ
तुम्हारे दिलों पर
qulūbikum
قُلُوبِكُم
तुम्हारे दिलों पर
man
مَّنْ
कौन है
ilāhun
إِلَٰهٌ
इलाह
ghayru
غَيْرُ
सिवाय
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
yatīkum
يَأْتِيكُم
जो लाए तुम्हारे पास
bihi
بِهِۗ
उसे
unẓur
ٱنظُرْ
देखो
kayfa
كَيْفَ
किस तरह
nuṣarrifu
نُصَرِّفُ
हम फेर-फेर कर लाते हैं
l-āyāti
ٱلْءَايَٰتِ
आयात को
thumma
ثُمَّ
फिर
hum
هُمْ
वो
yaṣdifūna
يَصْدِفُونَ
वो ऐराज़ करते हैं
कहो, 'क्या तुमने यह भी सोचा कि यदि अल्लाह तुम्हारे सुनने की और तुम्हारी देखने की शक्ति छीन ले और तुम्हारे दिलों पर ठप्पा लगा दे, तो अल्लाह के सिवा कौन पूज्य है जो तुम्हें ये चीज़े लाकर दे?' देखो, किस प्रकार हम तरह-तरह से अपनी निशानियाँ बयान करते है! फिर भी वे किनारा ही खींचते जाते है ([६] अल-अनाम: 46)
Tafseer (तफ़सीर )
४७

قُلْ اَرَاَيْتَكُمْ اِنْ اَتٰىكُمْ عَذَابُ اللّٰهِ بَغْتَةً اَوْ جَهْرَةً هَلْ يُهْلَكُ اِلَّا الْقَوْمُ الظّٰلِمُوْنَ ٤٧

qul
قُلْ
कह दीजिए
ara-aytakum
أَرَءَيْتَكُمْ
क्या ग़ौर किया तुमने
in
إِنْ
अगर
atākum
أَتَىٰكُمْ
आए तुम्हारे पास
ʿadhābu
عَذَابُ
अज़ाब
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह का
baghtatan
بَغْتَةً
अचानक
aw
أَوْ
या
jahratan
جَهْرَةً
ऐलानिया
hal
هَلْ
नहीं
yuh'laku
يُهْلَكُ
हलाक किए जाऐंगे
illā
إِلَّا
मगर
l-qawmu
ٱلْقَوْمُ
लोग
l-ẓālimūna
ٱلظَّٰلِمُونَ
जो ज़ालिम हैं
कहो, 'क्या तुमने यह भी सोचा कि यदि तुमपर अचानक या प्रत्यक्षतः अल्लाह की यातना आ जाए, तो क्या अत्याचारी लोगों के सिवा कोई और विनष्ट होगा?' ([६] अल-अनाम: 47)
Tafseer (तफ़सीर )
४८

وَمَا نُرْسِلُ الْمُرْسَلِيْنَ اِلَّا مُبَشِّرِيْنَ وَمُنْذِرِيْنَۚ فَمَنْ اٰمَنَ وَاَصْلَحَ فَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُوْنَ ٤٨

wamā
وَمَا
और नहीं
nur'silu
نُرْسِلُ
हम भेजते
l-mur'salīna
ٱلْمُرْسَلِينَ
रसूलों को
illā
إِلَّا
मगर
mubashirīna
مُبَشِّرِينَ
ख़ुशख़बरी देने वाले
wamundhirīna
وَمُنذِرِينَۖ
और डराने वाले (बनाकर)
faman
فَمَنْ
पस जो कोई
āmana
ءَامَنَ
ईमान लाया
wa-aṣlaḥa
وَأَصْلَحَ
और उसने इस्लाह कर ली
falā
فَلَا
तो ना
khawfun
خَوْفٌ
कोई ख़ौफ़ होगा
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
walā
وَلَا
और ना
hum
هُمْ
वो
yaḥzanūna
يَحْزَنُونَ
वो ग़मगीन होंगे
हम रसूलों को केवल शुभ-सूचना देनेवाले और सचेतकर्ता बनाकर भेजते रहे है। फिर जो ईमान लाए और सुधर जाए, तो ऐसे लोगों के लिए न कोई भय है और न वे कभी दुखी होंगे ([६] अल-अनाम: 48)
Tafseer (तफ़सीर )
४९

وَالَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَا يَمَسُّهُمُ الْعَذَابُ بِمَا كَانُوْا يَفْسُقُوْنَ ٤٩

wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जिन्होंने
kadhabū
كَذَّبُوا۟
झुठलाया
biāyātinā
بِـَٔايَٰتِنَا
हमारी आयात को
yamassuhumu
يَمَسُّهُمُ
छुऐगा उन्हें
l-ʿadhābu
ٱلْعَذَابُ
अज़ाब
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
yafsuqūna
يَفْسُقُونَ
वो नाफ़रमानी करते
रहे वे लोग, जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया, उन्हें यातना पहुँचकर रहेगी, क्योंकि वे अवज्ञा करते रहे है ([६] अल-अनाम: 49)
Tafseer (तफ़सीर )
५०

قُلْ لَّآ اَقُوْلُ لَكُمْ عِنْدِيْ خَزَاۤىِٕنُ اللّٰهِ وَلَآ اَعْلَمُ الْغَيْبَ وَلَآ اَقُوْلُ لَكُمْ اِنِّيْ مَلَكٌۚ اِنْ اَتَّبِعُ اِلَّا مَا يُوْحٰٓى اِلَيَّۗ قُلْ هَلْ يَسْتَوِى الْاَعْمٰى وَالْبَصِيْرُۗ اَفَلَا تَتَفَكَّرُوْنَ ࣖ ٥٠

qul
قُل
कह दीजिए
لَّآ
नहीं मैं कहता
aqūlu
أَقُولُ
नहीं मैं कहता
lakum
لَكُمْ
तुमसे
ʿindī
عِندِى
मेरे पास
khazāinu
خَزَآئِنُ
ख़ज़ाने हैं
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
walā
وَلَآ
और नहीं
aʿlamu
أَعْلَمُ
मै जानता
l-ghayba
ٱلْغَيْبَ
ग़ैब को
walā
وَلَآ
और नहीं
aqūlu
أَقُولُ
मैं कहता
lakum
لَكُمْ
तुमसे
innī
إِنِّى
बेशक मैं
malakun
مَلَكٌۖ
फ़रिश्ता हूँ
in
إِنْ
नहीं
attabiʿu
أَتَّبِعُ
मैं पैरवी करता
illā
إِلَّا
मगर
مَا
उसकी जो
yūḥā
يُوحَىٰٓ
वही की जाती है
ilayya
إِلَىَّۚ
तरफ़ मेरे
qul
قُلْ
कह दीजिए
hal
هَلْ
क्या
yastawī
يَسْتَوِى
बराबर हो सकता है
l-aʿmā
ٱلْأَعْمَىٰ
अँधा
wal-baṣīru
وَٱلْبَصِيرُۚ
और देखने वाला
afalā
أَفَلَا
क्या फिर नहीं
tatafakkarūna
تَتَفَكَّرُونَ
तुम ग़ौरो फ़िक्र करते
कह दो, 'मैं तुमसे यह नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने है, और न मैं परोक्ष का ज्ञान रखता हूँ, और न मैं तुमसे कहता हूँ कि मैं कोई फ़रिश्ता हूँ। मैं तो बस उसी का अनुपालन करता हूँ जो मेरी ओर वह्यं की जाती है।' कहो, 'क्या अंधा और आँखोंवाला दोनों बराबर हो जाएँगे? क्या तुम सोच-विचार से काम नहीं लेते?' ([६] अल-अनाम: 50)
Tafseer (तफ़सीर )