بَلْ اِيَّاهُ تَدْعُوْنَ فَيَكْشِفُ مَا تَدْعُوْنَ اِلَيْهِ اِنْ شَاۤءَ وَتَنْسَوْنَ مَا تُشْرِكُوْنَ ࣖ ٤١
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- iyyāhu
- إِيَّاهُ
- सिर्फ़ उसी को
- tadʿūna
- تَدْعُونَ
- तुम पुकारोगे
- fayakshifu
- فَيَكْشِفُ
- फिर वो खोल देगा
- mā
- مَا
- उसे जो
- tadʿūna
- تَدْعُونَ
- तुम पुकारोगे
- ilayhi
- إِلَيْهِ
- तरफ़ उसके
- in
- إِن
- अगर
- shāa
- شَآءَ
- वो चाहे
- watansawna
- وَتَنسَوْنَ
- और तुम भूल जाओगे
- mā
- مَا
- जिन्हें
- tush'rikūna
- تُشْرِكُونَ
- तुम शरीक ठहराते हो
'बल्कि तुम उसी को पुकारते हो - फिर जिसके लिए तुम उसे पुकारते हो, वह चाहता है तो उसे दूर कर देता है - और उन्हें भूल जाते हो जिन्हें साझीदार ठहराते हो।' ([६] अल-अनाम: 41)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْ اَرْسَلْنَآ اِلٰٓى اُمَمٍ مِّنْ قَبْلِكَ فَاَخَذْنٰهُمْ بِالْبَأْسَاۤءِ وَالضَّرَّاۤءِ لَعَلَّهُمْ يَتَضَرَّعُوْنَ ٤٢
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- arsalnā
- أَرْسَلْنَآ
- भेजा हमने
- ilā
- إِلَىٰٓ
- तरफ़ उम्मतों के
- umamin
- أُمَمٍ
- तरफ़ उम्मतों के
- min
- مِّن
- आप से क़ब्ल
- qablika
- قَبْلِكَ
- आप से क़ब्ल
- fa-akhadhnāhum
- فَأَخَذْنَٰهُم
- पस पकड़ लिया हमने उन्हें
- bil-basāi
- بِٱلْبَأْسَآءِ
- साथ तंगी
- wal-ḍarāi
- وَٱلضَّرَّآءِ
- और तकलीफ़ के
- laʿallahum
- لَعَلَّهُمْ
- शायद कि वो
- yataḍarraʿūna
- يَتَضَرَّعُونَ
- वो आजिज़ी करें
तुमसे पहले कितने ही समुदायों की ओर हमने रसूल भेजे कि उन्हें तंगियों और मुसीबतों में डाला, ताकि वे विनम्र हों ([६] अल-अनाम: 42)Tafseer (तफ़सीर )
فَلَوْلَآ اِذْ جَاۤءَهُمْ بَأْسُنَا تَضَرَّعُوْا وَلٰكِنْ قَسَتْ قُلُوْبُهُمْ وَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطٰنُ مَا كَانُوْا يَعْمَلُوْنَ ٤٣
- falawlā
- فَلَوْلَآ
- फिर क्यूँ ना
- idh
- إِذْ
- जब
- jāahum
- جَآءَهُم
- आया उनके पास
- basunā
- بَأْسُنَا
- अज़ाब हमारा
- taḍarraʿū
- تَضَرَّعُوا۟
- उन्होंने आजिज़ी की
- walākin
- وَلَٰكِن
- और लेकिन
- qasat
- قَسَتْ
- सख़्त हो गए
- qulūbuhum
- قُلُوبُهُمْ
- दिल उनके
- wazayyana
- وَزَيَّنَ
- और मुज़य्यन कर दिया
- lahumu
- لَهُمُ
- उनके लिए
- l-shayṭānu
- ٱلشَّيْطَٰنُ
- शैतान ने
- mā
- مَا
- जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yaʿmalūna
- يَعْمَلُونَ
- वो अमल करते
जब हमारी ओर से उनपर सख्ती आई तो फिर क्यों न विनम्र हुए? परन्तु उनके हृदय तो कठोर हो गए थे और जो कुछ वे करते थे शैतान ने उसे उनके लिए मोहक बना दिया ([६] अल-अनाम: 43)Tafseer (तफ़सीर )
فَلَمَّا نَسُوْا مَا ذُكِّرُوْا بِهٖ فَتَحْنَا عَلَيْهِمْ اَبْوَابَ كُلِّ شَيْءٍۗ حَتّٰٓى اِذَا فَرِحُوْا بِمَآ اُوْتُوْٓا اَخَذْنٰهُمْ بَغْتَةً فَاِذَا هُمْ مُّبْلِسُوْنَ ٤٤
- falammā
- فَلَمَّا
- फिर जब
- nasū
- نَسُوا۟
- वो भूल गए
- mā
- مَا
- जो कुछ
- dhukkirū
- ذُكِّرُوا۟
- वो नसीहत किए गए थे
- bihi
- بِهِۦ
- जिसकी
- fataḥnā
- فَتَحْنَا
- खोल दिए हमने
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- abwāba
- أَبْوَٰبَ
- दरवाज़े
- kulli
- كُلِّ
- हर
- shayin
- شَىْءٍ
- चीज़ के
- ḥattā
- حَتَّىٰٓ
- यहाँ तक कि
- idhā
- إِذَا
- जब
- fariḥū
- فَرِحُوا۟
- वो ख़ुश हो गए
- bimā
- بِمَآ
- उस पर जो
- ūtū
- أُوتُوٓا۟
- वो दिए गए थे
- akhadhnāhum
- أَخَذْنَٰهُم
- पकड़ लिया हमने उन्हें
- baghtatan
- بَغْتَةً
- अचानक
- fa-idhā
- فَإِذَا
- तो उस वक़्त
- hum
- هُم
- वो
- mub'lisūna
- مُّبْلِسُونَ
- मायूस होने वाले थे
फिर जब उसे उन्होंने भुला दिया जो उन्हें याद दिलाई गई थी, तो हमने उनपर हर चीज़ के दरवाज़े खोल दिए; यहाँ तक कि जो कुछ उन्हें मिला था, जब वे उसमें मग्न हो गए तो अचानक हमने उन्हें पकड़ लिया, तो क्या देखते है कि वे बिल्कुल निराश होकर रह गए ([६] अल-अनाम: 44)Tafseer (तफ़सीर )
فَقُطِعَ دَابِرُ الْقَوْمِ الَّذِيْنَ ظَلَمُوْاۗ وَالْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ ٤٥
- faquṭiʿa
- فَقُطِعَ
- पस काट दी गई
- dābiru
- دَابِرُ
- जड़
- l-qawmi
- ٱلْقَوْمِ
- उस क़ौम की
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- जिन्होंने
- ẓalamū
- ظَلَمُوا۟ۚ
- ज़ुल्म किया
- wal-ḥamdu
- وَٱلْحَمْدُ
- और सब तारीफ़
- lillahi
- لِلَّهِ
- अल्लाह के लिए है
- rabbi
- رَبِّ
- जो रब है
- l-ʿālamīna
- ٱلْعَٰلَمِينَ
- तमाम जहानों का
इस प्रकार अत्याचारी लोगों की जड़ काटकर रख दी गई। प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, जो सारे संसार का रब है ([६] अल-अनाम: 45)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ اَرَاَيْتُمْ اِنْ اَخَذَ اللّٰهُ سَمْعَكُمْ وَاَبْصَارَكُمْ وَخَتَمَ عَلٰى قُلُوْبِكُمْ مَّنْ اِلٰهٌ غَيْرُ اللّٰهِ يَأْتِيْكُمْ بِهٖۗ اُنْظُرْ كَيْفَ نُصَرِّفُ الْاٰيٰتِ ثُمَّ هُمْ يَصْدِفُوْنَ ٤٦
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- ara-aytum
- أَرَءَيْتُمْ
- क्या ग़ौर किया तुमने
- in
- إِنْ
- अगर
- akhadha
- أَخَذَ
- ले जाए
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- samʿakum
- سَمْعَكُمْ
- कान तुम्हारे
- wa-abṣārakum
- وَأَبْصَٰرَكُمْ
- और आँखें तुम्हारी
- wakhatama
- وَخَتَمَ
- और वो मोहर लगा दे
- ʿalā
- عَلَىٰ
- तुम्हारे दिलों पर
- qulūbikum
- قُلُوبِكُم
- तुम्हारे दिलों पर
- man
- مَّنْ
- कौन है
- ilāhun
- إِلَٰهٌ
- इलाह
- ghayru
- غَيْرُ
- सिवाय
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- yatīkum
- يَأْتِيكُم
- जो लाए तुम्हारे पास
- bihi
- بِهِۗ
- उसे
- unẓur
- ٱنظُرْ
- देखो
- kayfa
- كَيْفَ
- किस तरह
- nuṣarrifu
- نُصَرِّفُ
- हम फेर-फेर कर लाते हैं
- l-āyāti
- ٱلْءَايَٰتِ
- आयात को
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- hum
- هُمْ
- वो
- yaṣdifūna
- يَصْدِفُونَ
- वो ऐराज़ करते हैं
कहो, 'क्या तुमने यह भी सोचा कि यदि अल्लाह तुम्हारे सुनने की और तुम्हारी देखने की शक्ति छीन ले और तुम्हारे दिलों पर ठप्पा लगा दे, तो अल्लाह के सिवा कौन पूज्य है जो तुम्हें ये चीज़े लाकर दे?' देखो, किस प्रकार हम तरह-तरह से अपनी निशानियाँ बयान करते है! फिर भी वे किनारा ही खींचते जाते है ([६] अल-अनाम: 46)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ اَرَاَيْتَكُمْ اِنْ اَتٰىكُمْ عَذَابُ اللّٰهِ بَغْتَةً اَوْ جَهْرَةً هَلْ يُهْلَكُ اِلَّا الْقَوْمُ الظّٰلِمُوْنَ ٤٧
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- ara-aytakum
- أَرَءَيْتَكُمْ
- क्या ग़ौर किया तुमने
- in
- إِنْ
- अगर
- atākum
- أَتَىٰكُمْ
- आए तुम्हारे पास
- ʿadhābu
- عَذَابُ
- अज़ाब
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह का
- baghtatan
- بَغْتَةً
- अचानक
- aw
- أَوْ
- या
- jahratan
- جَهْرَةً
- ऐलानिया
- hal
- هَلْ
- नहीं
- yuh'laku
- يُهْلَكُ
- हलाक किए जाऐंगे
- illā
- إِلَّا
- मगर
- l-qawmu
- ٱلْقَوْمُ
- लोग
- l-ẓālimūna
- ٱلظَّٰلِمُونَ
- जो ज़ालिम हैं
कहो, 'क्या तुमने यह भी सोचा कि यदि तुमपर अचानक या प्रत्यक्षतः अल्लाह की यातना आ जाए, तो क्या अत्याचारी लोगों के सिवा कोई और विनष्ट होगा?' ([६] अल-अनाम: 47)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَا نُرْسِلُ الْمُرْسَلِيْنَ اِلَّا مُبَشِّرِيْنَ وَمُنْذِرِيْنَۚ فَمَنْ اٰمَنَ وَاَصْلَحَ فَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُوْنَ ٤٨
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- nur'silu
- نُرْسِلُ
- हम भेजते
- l-mur'salīna
- ٱلْمُرْسَلِينَ
- रसूलों को
- illā
- إِلَّا
- मगर
- mubashirīna
- مُبَشِّرِينَ
- ख़ुशख़बरी देने वाले
- wamundhirīna
- وَمُنذِرِينَۖ
- और डराने वाले (बनाकर)
- faman
- فَمَنْ
- पस जो कोई
- āmana
- ءَامَنَ
- ईमान लाया
- wa-aṣlaḥa
- وَأَصْلَحَ
- और उसने इस्लाह कर ली
- falā
- فَلَا
- तो ना
- khawfun
- خَوْفٌ
- कोई ख़ौफ़ होगा
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- walā
- وَلَا
- और ना
- hum
- هُمْ
- वो
- yaḥzanūna
- يَحْزَنُونَ
- वो ग़मगीन होंगे
हम रसूलों को केवल शुभ-सूचना देनेवाले और सचेतकर्ता बनाकर भेजते रहे है। फिर जो ईमान लाए और सुधर जाए, तो ऐसे लोगों के लिए न कोई भय है और न वे कभी दुखी होंगे ([६] अल-अनाम: 48)Tafseer (तफ़सीर )
وَالَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَا يَمَسُّهُمُ الْعَذَابُ بِمَا كَانُوْا يَفْسُقُوْنَ ٤٩
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जिन्होंने
- kadhabū
- كَذَّبُوا۟
- झुठलाया
- biāyātinā
- بِـَٔايَٰتِنَا
- हमारी आयात को
- yamassuhumu
- يَمَسُّهُمُ
- छुऐगा उन्हें
- l-ʿadhābu
- ٱلْعَذَابُ
- अज़ाब
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yafsuqūna
- يَفْسُقُونَ
- वो नाफ़रमानी करते
रहे वे लोग, जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया, उन्हें यातना पहुँचकर रहेगी, क्योंकि वे अवज्ञा करते रहे है ([६] अल-अनाम: 49)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ لَّآ اَقُوْلُ لَكُمْ عِنْدِيْ خَزَاۤىِٕنُ اللّٰهِ وَلَآ اَعْلَمُ الْغَيْبَ وَلَآ اَقُوْلُ لَكُمْ اِنِّيْ مَلَكٌۚ اِنْ اَتَّبِعُ اِلَّا مَا يُوْحٰٓى اِلَيَّۗ قُلْ هَلْ يَسْتَوِى الْاَعْمٰى وَالْبَصِيْرُۗ اَفَلَا تَتَفَكَّرُوْنَ ࣖ ٥٠
- qul
- قُل
- कह दीजिए
- lā
- لَّآ
- नहीं मैं कहता
- aqūlu
- أَقُولُ
- नहीं मैं कहता
- lakum
- لَكُمْ
- तुमसे
- ʿindī
- عِندِى
- मेरे पास
- khazāinu
- خَزَآئِنُ
- ख़ज़ाने हैं
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- walā
- وَلَآ
- और नहीं
- aʿlamu
- أَعْلَمُ
- मै जानता
- l-ghayba
- ٱلْغَيْبَ
- ग़ैब को
- walā
- وَلَآ
- और नहीं
- aqūlu
- أَقُولُ
- मैं कहता
- lakum
- لَكُمْ
- तुमसे
- innī
- إِنِّى
- बेशक मैं
- malakun
- مَلَكٌۖ
- फ़रिश्ता हूँ
- in
- إِنْ
- नहीं
- attabiʿu
- أَتَّبِعُ
- मैं पैरवी करता
- illā
- إِلَّا
- मगर
- mā
- مَا
- उसकी जो
- yūḥā
- يُوحَىٰٓ
- वही की जाती है
- ilayya
- إِلَىَّۚ
- तरफ़ मेरे
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- hal
- هَلْ
- क्या
- yastawī
- يَسْتَوِى
- बराबर हो सकता है
- l-aʿmā
- ٱلْأَعْمَىٰ
- अँधा
- wal-baṣīru
- وَٱلْبَصِيرُۚ
- और देखने वाला
- afalā
- أَفَلَا
- क्या फिर नहीं
- tatafakkarūna
- تَتَفَكَّرُونَ
- तुम ग़ौरो फ़िक्र करते
कह दो, 'मैं तुमसे यह नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने है, और न मैं परोक्ष का ज्ञान रखता हूँ, और न मैं तुमसे कहता हूँ कि मैं कोई फ़रिश्ता हूँ। मैं तो बस उसी का अनुपालन करता हूँ जो मेरी ओर वह्यं की जाती है।' कहो, 'क्या अंधा और आँखोंवाला दोनों बराबर हो जाएँगे? क्या तुम सोच-विचार से काम नहीं लेते?' ([६] अल-अनाम: 50)Tafseer (तफ़सीर )