Skip to content

सूरा अल-अनाम - Page: 4

Al-An'am

(पशु)

३१

قَدْ خَسِرَ الَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِلِقَاۤءِ اللّٰهِ ۗحَتّٰٓى اِذَا جَاۤءَتْهُمُ السَّاعَةُ بَغْتَةً قَالُوْا يٰحَسْرَتَنَا عَلٰى مَا فَرَّطْنَا فِيْهَاۙ وَهُمْ يَحْمِلُوْنَ اَوْزَارَهُمْ عَلٰى ظُهُوْرِهِمْۗ اَلَا سَاۤءَ مَا يَزِرُوْنَ ٣١

qad
قَدْ
तहक़ीक़
khasira
خَسِرَ
ख़सारे में रहे
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जिन्होंने
kadhabū
كَذَّبُوا۟
झुठलाया
biliqāi
بِلِقَآءِ
मुलाक़ात को
l-lahi
ٱللَّهِۖ
अल्लाह कि
ḥattā
حَتَّىٰٓ
यहाँ तक कि
idhā
إِذَا
जब
jāathumu
جَآءَتْهُمُ
आ जाएगी उनके पास
l-sāʿatu
ٱلسَّاعَةُ
घड़ी (क़यामत की)
baghtatan
بَغْتَةً
अचानक
qālū
قَالُوا۟
वो कहेंगे
yāḥasratanā
يَٰحَسْرَتَنَا
हाय अफ़सोस हमारा
ʿalā
عَلَىٰ
उस पर
مَا
जो
farraṭnā
فَرَّطْنَا
कमी-कोताही की हमने
fīhā
فِيهَا
उस के बारे में
wahum
وَهُمْ
और वो
yaḥmilūna
يَحْمِلُونَ
वो उठाऐंगे
awzārahum
أَوْزَارَهُمْ
बोझ अपने
ʿalā
عَلَىٰ
अपनी पुश्तों पर
ẓuhūrihim
ظُهُورِهِمْۚ
अपनी पुश्तों पर
alā
أَلَا
ख़बरदार
sāa
سَآءَ
कितना बुरा है
مَا
जो
yazirūna
يَزِرُونَ
बोझ वो उठाऐंगे
वे लोग घाटे में पड़े, जिन्होंने अल्लाह से मिलने को झुठलाया, यहाँ तक कि जब अचानक उनपर वह घड़ी आ जाएगी तो वे कहेंगे, 'हाय! अफ़सोस, उस कोताही पर जो इसके विषय में हमसे हुई।' और हाल यह होगा कि वे अपने बोझ अपनी पीठों पर उठाए होंगे। देखो, कितना बुरा बोझ है जो ये उठाए हुए है! ([६] अल-अनाम: 31)
Tafseer (तफ़सीर )
३२

وَمَا الْحَيٰوةُ الدُّنْيَآ اِلَّا لَعِبٌ وَّلَهْوٌ ۗوَلَلدَّارُ الْاٰخِرَةُ خَيْرٌ لِّلَّذِيْنَ يَتَّقُوْنَۗ اَفَلَا تَعْقِلُوْنَ ٣٢

wamā
وَمَا
और नहीं
l-ḥayatu
ٱلْحَيَوٰةُ
ज़िन्दगी
l-dun'yā
ٱلدُّنْيَآ
दुनिया की
illā
إِلَّا
मगर
laʿibun
لَعِبٌ
खेल
walahwun
وَلَهْوٌۖ
और तमाशा
walalddāru
وَلَلدَّارُ
और अलबत्ता घर
l-ākhiratu
ٱلْءَاخِرَةُ
आख़िरत का
khayrun
خَيْرٌ
बेहतर है
lilladhīna
لِّلَّذِينَ
उनके लिए जो
yattaqūna
يَتَّقُونَۗ
तक़वा करते हैं
afalā
أَفَلَا
क्या भला नहीं
taʿqilūna
تَعْقِلُونَ
तुम अक़्ल से काम लेते
सांसारिक जीवन तो एक खेल और तमाशे (ग़फलत) के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है जबकि आख़िरत का घर उन लोगों के लिए अच्छा है, जो डर रखते है। तो क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते? ([६] अल-अनाम: 32)
Tafseer (तफ़सीर )
३३

قَدْ نَعْلَمُ اِنَّهٗ لَيَحْزُنُكَ الَّذِيْ يَقُوْلُوْنَ فَاِنَّهُمْ لَا يُكَذِّبُوْنَكَ وَلٰكِنَّ الظّٰلِمِيْنَ بِاٰيٰتِ اللّٰهِ يَجْحَدُوْنَ ٣٣

qad
قَدْ
तहक़ीक़
naʿlamu
نَعْلَمُ
हम जानते हैं
innahu
إِنَّهُۥ
कि बेशक वो
layaḥzunuka
لَيَحْزُنُكَ
अलबत्ता ग़मगीन करता है आपको
alladhī
ٱلَّذِى
जो
yaqūlūna
يَقُولُونَۖ
वो कहते हैं
fa-innahum
فَإِنَّهُمْ
पस बेशक वो
لَا
नहीं वो झुठलाते आपको
yukadhibūnaka
يُكَذِّبُونَكَ
नहीं वो झुठलाते आपको
walākinna
وَلَٰكِنَّ
और लेकिन
l-ẓālimīna
ٱلظَّٰلِمِينَ
ज़ालिम
biāyāti
بِـَٔايَٰتِ
अल्लाह की आयात का ही
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की आयात का ही
yajḥadūna
يَجْحَدُونَ
वो इन्कार करते हैं
हमें मालूम है, जो कुछ वे कहते है उससे तुम्हें दुख पहुँचता है। तो वे वास्तव में तुम्हें नहीं झुठलाते, बल्कि उन अत्याचारियो को तो अल्लाह की आयतों से इनकार है ([६] अल-अनाम: 33)
Tafseer (तफ़सीर )
३४

وَلَقَدْ كُذِّبَتْ رُسُلٌ مِّنْ قَبْلِكَ فَصَبَرُوْا عَلٰى مَا كُذِّبُوْا وَاُوْذُوْا حَتّٰٓى اَتٰىهُمْ نَصْرُنَا ۚوَلَا مُبَدِّلَ لِكَلِمٰتِ اللّٰهِ ۚوَلَقَدْ جَاۤءَكَ مِنْ نَّبَإِ۟ى الْمُرْسَلِيْنَ ٣٤

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता
kudhibat
كُذِّبَتْ
झुठलाए गए
rusulun
رُسُلٌ
कई रसूल
min
مِّن
आप से पहले
qablika
قَبْلِكَ
आप से पहले
faṣabarū
فَصَبَرُوا۟
पस उन्होंने सब्र किया
ʿalā
عَلَىٰ
उस पर जो
مَا
उस पर जो
kudhibū
كُذِّبُوا۟
वो झुठलाए गए
waūdhū
وَأُوذُوا۟
और वो सताए गए
ḥattā
حَتَّىٰٓ
यहाँ तक कि
atāhum
أَتَىٰهُمْ
आ गई उनके पास
naṣrunā
نَصْرُنَاۚ
मदद हमारी
walā
وَلَا
और नहीं
mubaddila
مُبَدِّلَ
कोई बदलने वाला
likalimāti
لِكَلِمَٰتِ
कलिमात को
l-lahi
ٱللَّهِۚ
अल्लाह के
walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
jāaka
جَآءَكَ
आ गईं आपके पास
min
مِن
ख़बरें
naba-i
نَّبَإِى۟
ख़बरें
l-mur'salīna
ٱلْمُرْسَلِينَ
रसूलों की
तुमसे पहले भी बहुत-से रसूल झुठलाए जा चुके है, तो वे अपने झुठलाए जाने और कष्ट पहुँचाए जाने पर धैर्य से काम लेते रहे, यहाँ तक कि उन्हें हमारी सहायता पहुँच गई। कोई नहीं जो अल्लाह की बातों को बदल सके। तुम्हारे पास तो रसूलों की कुछ ख़बरें पहुँच ही चुकी है ([६] अल-अनाम: 34)
Tafseer (तफ़सीर )
३५

وَاِنْ كَانَ كَبُرَ عَلَيْكَ اِعْرَاضُهُمْ فَاِنِ اسْتَطَعْتَ اَنْ تَبْتَغِيَ نَفَقًا فِى الْاَرْضِ اَوْ سُلَّمًا فِى السَّمَاۤءِ فَتَأْتِيَهُمْ بِاٰيَةٍ ۗوَلَوْ شَاۤءَ اللّٰهُ لَجَمَعَهُمْ عَلَى الْهُدٰى فَلَا تَكُوْنَنَّ مِنَ الْجٰهِلِيْنَ ٣٥

wa-in
وَإِن
और अगर
kāna
كَانَ
है
kabura
كَبُرَ
भारी
ʿalayka
عَلَيْكَ
आप पर
iʿ'rāḍuhum
إِعْرَاضُهُمْ
ऐराज़ करना उनका
fa-ini
فَإِنِ
फिर अगर
is'taṭaʿta
ٱسْتَطَعْتَ
इस्तिताअत रखते हैं आप
an
أَن
कि
tabtaghiya
تَبْتَغِىَ
आप तलाश करें
nafaqan
نَفَقًا
एक सुरंग
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
aw
أَوْ
या
sullaman
سُلَّمًا
एक सीढ़ी
فِى
आसमान में
l-samāi
ٱلسَّمَآءِ
आसमान में
fatatiyahum
فَتَأْتِيَهُم
तो आप ले आऐं उनके पास
biāyatin
بِـَٔايَةٍۚ
कोई निशानी
walaw
وَلَوْ
और अगर
shāa
شَآءَ
चाहता
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
lajamaʿahum
لَجَمَعَهُمْ
अलबत्ता वो जमा कर देता उन्हें
ʿalā
عَلَى
हिदायत पर
l-hudā
ٱلْهُدَىٰۚ
हिदायत पर
falā
فَلَا
पस ना
takūnanna
تَكُونَنَّ
हरगिज़ आप हों
mina
مِنَ
नादानों में से
l-jāhilīna
ٱلْجَٰهِلِينَ
नादानों में से
और यदि उनकी विमुखता तुम्हारे लिए असहनीय है, तो यदि तुमसे हो सके कि धरती में कोई सुरंग या आकाश में कोई सीढ़ी ढूँढ़ निकालो और उनके पास कोई निशानी ले आओ, तो (ऐसा कर देखो), यदि अल्लाह चाहता तो उन सबको सीधे मार्ग पर इकट्ठा कर देता। अतः तुम उजड्ड और नादान न बनना ([६] अल-अनाम: 35)
Tafseer (तफ़सीर )
३६

۞ اِنَّمَا يَسْتَجِيْبُ الَّذِيْنَ يَسْمَعُوْنَ ۗوَالْمَوْتٰى يَبْعَثُهُمُ اللّٰهُ ثُمَّ اِلَيْهِ يُرْجَعُوْنَ ٣٦

innamā
إِنَّمَا
बेशक
yastajību
يَسْتَجِيبُ
क़ुबूल करते हैं
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वही जो
yasmaʿūna
يَسْمَعُونَۘ
सुनते हैं
wal-mawtā
وَٱلْمَوْتَىٰ
और मुर्दे
yabʿathuhumu
يَبْعَثُهُمُ
उठाएगा उन्हें
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
thumma
ثُمَّ
फिर
ilayhi
إِلَيْهِ
उसी की तरफ़
yur'jaʿūna
يُرْجَعُونَ
वो लौटाए जाऐंगे
मानते हो वही लोग है जो सुनते है, रहे मुर्दे, तो अल्लाह उन्हें (क़ियामत के दिन) उठा खड़ा करेगा; फिर वे उसी के ओर पलटेंगे ([६] अल-अनाम: 36)
Tafseer (तफ़सीर )
३७

وَقَالُوْا لَوْلَا نُزِّلَ عَلَيْهِ اٰيَةٌ مِّنْ رَّبِّهٖۗ قُلْ اِنَّ اللّٰهَ قَادِرٌ عَلٰٓى اَنْ يُّنَزِّلَ اٰيَةً وَّلٰكِنَّ اَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُوْنَ ٣٧

waqālū
وَقَالُوا۟
और वो कहते हैं
lawlā
لَوْلَا
क्यों ना
nuzzila
نُزِّلَ
नाज़िल की गई
ʿalayhi
عَلَيْهِ
उस पर
āyatun
ءَايَةٌ
कोई निशानी
min
مِّن
उसके रब की तरफ़ से
rabbihi
رَّبِّهِۦۚ
उसके रब की तरफ़ से
qul
قُلْ
कह दीजिए
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
qādirun
قَادِرٌ
क़ादिर है
ʿalā
عَلَىٰٓ
इस पर
an
أَن
कि
yunazzila
يُنَزِّلَ
वो नाज़िल करे
āyatan
ءَايَةً
कोई निशानी
walākinna
وَلَٰكِنَّ
और लेकिन
aktharahum
أَكْثَرَهُمْ
अक्सर उनके
لَا
नहीं वो इल्म रखते
yaʿlamūna
يَعْلَمُونَ
नहीं वो इल्म रखते
वे यह भी कहते है, 'उस (नबी) पर उसके रब की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं उतारी गई?' कह दो, 'अल्लाह को तो इसकी सामर्थ्य प्राप्त है कि कोई निशानी उतार दे; परन्तु उनमें से अधिकतर लोग नहीं जानते।' ([६] अल-अनाम: 37)
Tafseer (तफ़सीर )
३८

وَمَا مِنْ دَاۤبَّةٍ فِى الْاَرْضِ وَلَا طٰۤىِٕرٍ يَّطِيْرُ بِجَنَاحَيْهِ اِلَّآ اُمَمٌ اَمْثَالُكُمْ ۗمَا فَرَّطْنَا فِى الْكِتٰبِ مِنْ شَيْءٍ ثُمَّ اِلٰى رَبِّهِمْ يُحْشَرُوْنَ ٣٨

wamā
وَمَا
और नहीं
min
مِن
कोई जानदार
dābbatin
دَآبَّةٍ
कोई जानदार
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
walā
وَلَا
और ना
ṭāirin
طَٰٓئِرٍ
कोई परिन्दा
yaṭīru
يَطِيرُ
जो उड़ता हो
bijanāḥayhi
بِجَنَاحَيْهِ
साथ अपने दो परों के
illā
إِلَّآ
मगर
umamun
أُمَمٌ
गिरोह हैं
amthālukum
أَمْثَالُكُمۚ
तुम्हारी ही तरह
مَّا
नहीं
farraṭnā
فَرَّطْنَا
कमी की हमने
فِى
किताब में
l-kitābi
ٱلْكِتَٰبِ
किताब में
min
مِن
किसी चीज़ की
shayin
شَىْءٍۚ
किसी चीज़ की
thumma
ثُمَّ
फिर
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ अपने रब के
rabbihim
رَبِّهِمْ
तरफ़ अपने रब के
yuḥ'sharūna
يُحْشَرُونَ
वो इकट्ठे किए जाऐंगे
धरती में चलने-फिरनेवाला कोई भी प्राणी हो या अपने दो परो से उड़नवाला कोई पक्षी, ये सब तुम्हारी ही तरह के गिरोह है। हमने किताब में कोई भी चीज़ नहीं छोड़ी है। फिर वे अपने रब की ओर इकट्ठे किए जाएँगे ([६] अल-अनाम: 38)
Tafseer (तफ़सीर )
३९

وَالَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَا صُمٌّ وَّبُكْمٌ فِى الظُّلُمٰتِۗ مَنْ يَّشَاِ اللّٰهُ يُضْلِلْهُ وَمَنْ يَّشَأْ يَجْعَلْهُ عَلٰى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيْمٍ ٣٩

wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जिन्होंने
kadhabū
كَذَّبُوا۟
झुठलाया
biāyātinā
بِـَٔايَٰتِنَا
हमारी आयात को
ṣummun
صُمٌّ
बहरे
wabuk'mun
وَبُكْمٌ
और गूँगे हैं
فِى
अँधेरों में हैं
l-ẓulumāti
ٱلظُّلُمَٰتِۗ
अँधेरों में हैं
man
مَن
जिसको
yasha-i
يَشَإِ
चाहता है
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
yuḍ'lil'hu
يُضْلِلْهُ
भटका देता है उसे
waman
وَمَن
और जिसको
yasha
يَشَأْ
वो चाहता है
yajʿalhu
يَجْعَلْهُ
वो कर देता है उसे
ʿalā
عَلَىٰ
ऊपर रास्ते
ṣirāṭin
صِرَٰطٍ
ऊपर रास्ते
mus'taqīmin
مُّسْتَقِيمٍ
सीधे के
जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया, वे बहरे और गूँगे है, अँधेरों में पड़े हुए हैं। अल्लाह जिसे चाहे भटकने दे और जिसे चाहे सीधे मार्ग पर लगा दे ([६] अल-अनाम: 39)
Tafseer (तफ़सीर )
४०

قُلْ اَرَءَيْتَكُمْ اِنْ اَتٰىكُمْ عَذَابُ اللّٰهِ اَوْ اَتَتْكُمُ السَّاعَةُ اَغَيْرَ اللّٰهِ تَدْعُوْنَۚ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ ٤٠

qul
قُلْ
कह दीजिए
ara-aytakum
أَرَءَيْتَكُمْ
क्या ग़ौर किया तुमने
in
إِنْ
अगर
atākum
أَتَىٰكُمْ
आ जाए तुम्हारे पास
ʿadhābu
عَذَابُ
अज़ाब
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह का
aw
أَوْ
या
atatkumu
أَتَتْكُمُ
आ जाए तुम्हारे पास
l-sāʿatu
ٱلسَّاعَةُ
घड़ी (क़यामत की)
aghayra
أَغَيْرَ
क्या ग़ैर
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह को
tadʿūna
تَدْعُونَ
तुम पुकारोगे
in
إِن
अगर
kuntum
كُنتُمْ
हो तुम
ṣādiqīna
صَٰدِقِينَ
सच्चे
कहो, 'क्या तुमने यह भी सोचा कि यदि तुमपर अल्लाह की यातना आ पड़े या वह घड़ी तुम्हारे सामने आ जाए, तो क्या अल्लाह के सिवा किसी और को पुकारोगे? बोलो, यदि तुम सच्चे हो? ([६] अल-अनाम: 40)
Tafseer (तफ़सीर )