سَابِقُوْٓا اِلٰى مَغْفِرَةٍ مِّنْ رَّبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا كَعَرْضِ السَّمَاۤءِ وَالْاَرْضِۙ اُعِدَّتْ لِلَّذِيْنَ اٰمَنُوْا بِاللّٰهِ وَرُسُلِهٖۗ ذٰلِكَ فَضْلُ اللّٰهِ يُؤْتِيْهِ مَنْ يَّشَاۤءُ ۚوَاللّٰهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيْمِ ٢١
- sābiqū
- سَابِقُوٓا۟
- दौड़ो
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ बख़्शिश के
- maghfiratin
- مَغْفِرَةٍ
- तरफ़ बख़्शिश के
- min
- مِّن
- अपने रब की
- rabbikum
- رَّبِّكُمْ
- अपने रब की
- wajannatin
- وَجَنَّةٍ
- और जन्नत के
- ʿarḍuhā
- عَرْضُهَا
- चौड़ाई जिसकी
- kaʿarḍi
- كَعَرْضِ
- जैसे चौड़ाई
- l-samāi
- ٱلسَّمَآءِ
- आसमान
- wal-arḍi
- وَٱلْأَرْضِ
- और ज़मीन की
- uʿiddat
- أُعِدَّتْ
- वो तैयार की गई
- lilladhīna
- لِلَّذِينَ
- उनके लिए जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- warusulihi
- وَرُسُلِهِۦۚ
- और उसके रसूलों पर
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये
- faḍlu
- فَضْلُ
- फ़ज़ल है
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह का
- yu'tīhi
- يُؤْتِيهِ
- वो अता करता है उसे
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُۚ
- वो चाहता है
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- dhū
- ذُو
- फ़ज़ल वाल है
- l-faḍli
- ٱلْفَضْلِ
- फ़ज़ल वाल है
- l-ʿaẓīmi
- ٱلْعَظِيمِ
- बहुत बड़े
अपने रब की क्षमा और उस जन्नत की ओर अग्रसर होने में एक-दूसरे से बाज़ी ले जाओ, जिसका विस्तार आकाश और धरती के विस्तार जैसा है, जो उन लोगों के लिए तैयार की गई है जो अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाए हों। यह अल्लाह का उदार अनुग्रह है, जिसे चाहता है प्रदान करता है। अल्लाह बड़े उदार अनुग्रह का मालिक है ([५७] अल-हदीद: 21)Tafseer (तफ़सीर )
مَآ اَصَابَ مِنْ مُّصِيْبَةٍ فِى الْاَرْضِ وَلَا فِيْٓ اَنْفُسِكُمْ اِلَّا فِيْ كِتٰبٍ مِّنْ قَبْلِ اَنْ نَّبْرَاَهَا ۗاِنَّ ذٰلِكَ عَلَى اللّٰهِ يَسِيْرٌۖ ٢٢
- mā
- مَآ
- नहीं
- aṣāba
- أَصَابَ
- पहुँचती
- min
- مِن
- कोई मुसीबत
- muṣībatin
- مُّصِيبَةٍ
- कोई मुसीबत
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- walā
- وَلَا
- और ना
- fī
- فِىٓ
- तुम्हारे नफ़्सों में
- anfusikum
- أَنفُسِكُمْ
- तुम्हारे नफ़्सों में
- illā
- إِلَّا
- मगर
- fī
- فِى
- एक किताब में है
- kitābin
- كِتَٰبٍ
- एक किताब में है
- min
- مِّن
- इससे पहले
- qabli
- قَبْلِ
- इससे पहले
- an
- أَن
- कि
- nabra-ahā
- نَّبْرَأَهَآۚ
- हम पैदा करें उसे
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये
- ʿalā
- عَلَى
- अल्लाह पर
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- yasīrun
- يَسِيرٌ
- बहुत आसान है
जो मुसीबतें भी धरती में आती है और तुम्हारे अपने ऊपर, वह अनिवार्यतः एक किताब में अंकित है, इससे पहले कि हम उसे अस्तित्व में लाएँ - निश्चय ही यह अल्लाह के लिए आसान है - ([५७] अल-हदीद: 22)Tafseer (तफ़सीर )
لِّكَيْلَا تَأْسَوْا عَلٰى مَا فَاتَكُمْ وَلَا تَفْرَحُوْا بِمَآ اٰتٰىكُمْ ۗوَاللّٰهُ لَا يُحِبُّ كُلَّ مُخْتَالٍ فَخُوْرٍۙ ٢٣
- likaylā
- لِّكَيْلَا
- ताकि ना
- tasaw
- تَأْسَوْا۟
- तुम अफ़सोस करो
- ʿalā
- عَلَىٰ
- उस पर जो
- mā
- مَا
- उस पर जो
- fātakum
- فَاتَكُمْ
- खो जाए तुमसे
- walā
- وَلَا
- और ना
- tafraḥū
- تَفْرَحُوا۟
- तुम इतराओ
- bimā
- بِمَآ
- उस पर जो
- ātākum
- ءَاتَىٰكُمْۗ
- उसने दिया तुम्हें
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- lā
- لَا
- नहीं
- yuḥibbu
- يُحِبُّ
- वो पसंद करता
- kulla
- كُلَّ
- हर
- mukh'tālin
- مُخْتَالٍ
- ख़ुदपसंद
- fakhūrin
- فَخُورٍ
- फ़ख़्र करने वाले को
(यह बात तुम्हें इसलिए बता दी गई) ताकि तुम उस चीज़ का अफ़सोस न करो जो तुम पर जाती रहे और न उसपर फूल जाओ जो उसने तुम्हें प्रदान की हो। अल्लाह किसी इतरानेवाले, बड़ाई जतानेवाले को पसन्द नहीं करता ([५७] अल-हदीद: 23)Tafseer (तफ़सीर )
ۨالَّذِيْنَ يَبْخَلُوْنَ وَيَأْمُرُوْنَ النَّاسَ بِالْبُخْلِ ۗوَمَنْ يَّتَوَلَّ فَاِنَّ اللّٰهَ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيْدُ ٢٤
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- yabkhalūna
- يَبْخَلُونَ
- बुख़्ल करते हैं
- wayamurūna
- وَيَأْمُرُونَ
- और वो हुक्म देते हैं
- l-nāsa
- ٱلنَّاسَ
- लोगों को
- bil-bukh'li
- بِٱلْبُخْلِۗ
- बुख़्ल का
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- yatawalla
- يَتَوَلَّ
- मुँह फेरता है
- fa-inna
- فَإِنَّ
- तो बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- huwa
- هُوَ
- वो ही है
- l-ghaniyu
- ٱلْغَنِىُّ
- बहुत बेनियाज़
- l-ḥamīdu
- ٱلْحَمِيدُ
- ख़ूब तारीफ़ वाला
जो स्वयं कंजूसी करते है और लोगों को भी कंजूसी करने पर उकसाते है, और जो कोई मुँह मोड़े तो अल्लाह तो निस्पृह प्रशंसनीय है ([५७] अल-हदीद: 24)Tafseer (तफ़सीर )
لَقَدْ اَرْسَلْنَا رُسُلَنَا بِالْبَيِّنٰتِ وَاَنْزَلْنَا مَعَهُمُ الْكِتٰبَ وَالْمِيْزَانَ لِيَقُوْمَ النَّاسُ بِالْقِسْطِۚ وَاَنْزَلْنَا الْحَدِيْدَ فِيْهِ بَأْسٌ شَدِيْدٌ وَّمَنَافِعُ لِلنَّاسِ وَلِيَعْلَمَ اللّٰهُ مَنْ يَّنْصُرُهٗ وَرُسُلَهٗ بِالْغَيْبِۗ اِنَّ اللّٰهَ قَوِيٌّ عَزِيْزٌ ࣖ ٢٥
- laqad
- لَقَدْ
- अलबत्ता तहक़ीक़
- arsalnā
- أَرْسَلْنَا
- भेजा हमने
- rusulanā
- رُسُلَنَا
- अपने रसूलों को
- bil-bayināti
- بِٱلْبَيِّنَٰتِ
- साथ वाज़ेह निशानियों के
- wa-anzalnā
- وَأَنزَلْنَا
- और नाज़िल की हमने
- maʿahumu
- مَعَهُمُ
- साथ उनके
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब
- wal-mīzāna
- وَٱلْمِيزَانَ
- और मीज़ान
- liyaqūma
- لِيَقُومَ
- ताकि क़ायम हों
- l-nāsu
- ٱلنَّاسُ
- लोग
- bil-qis'ṭi
- بِٱلْقِسْطِۖ
- इन्साफ़ पर
- wa-anzalnā
- وَأَنزَلْنَا
- और उतारा हमने
- l-ḥadīda
- ٱلْحَدِيدَ
- लोहा
- fīhi
- فِيهِ
- जिसमें
- basun
- بَأْسٌ
- ज़ोर है
- shadīdun
- شَدِيدٌ
- सख़्त
- wamanāfiʿu
- وَمَنَٰفِعُ
- और कई फ़ायदे हैं
- lilnnāsi
- لِلنَّاسِ
- लोगों के लिए
- waliyaʿlama
- وَلِيَعْلَمَ
- और ताकि जान ले
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- man
- مَن
- कौन
- yanṣuruhu
- يَنصُرُهُۥ
- मदद करता है उसकी
- warusulahu
- وَرُسُلَهُۥ
- और उसके रसूलों की
- bil-ghaybi
- بِٱلْغَيْبِۚ
- ग़ायबाना
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- qawiyyun
- قَوِىٌّ
- बहुत क़ुव्वत वाला है
- ʿazīzun
- عَزِيزٌ
- बहुत ज़बरदस्त है
निश्चय ही हमने अपने रसूलों को स्पष्ट प्रमाणों के साथ भेजा और उनके लिए किताब और तुला उतारी, ताकि लोग इनसाफ़ पर क़ायम हों। और लोहा भी उतारा, जिसमें बड़ी दहशत है और लोगों के लिए कितने ही लाभ है., और (किताब एवं तुला इसलिए भी उतारी) ताकि अल्लाह जान ले कि कौन परोक्ष में रहते हुए उसकी और उसके रसूलों की सहायता करता है। निश्चय ही अल्लाह शक्तिशाली, प्रभुत्वशाली है ([५७] अल-हदीद: 25)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْ اَرْسَلْنَا نُوْحًا وَّاِبْرٰهِيْمَ وَجَعَلْنَا فِيْ ذُرِّيَّتِهِمَا النُّبُوَّةَ وَالْكِتٰبَ فَمِنْهُمْ مُّهْتَدٍۚ وَكَثِيْرٌ مِّنْهُمْ فٰسِقُوْنَ ٢٦
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- arsalnā
- أَرْسَلْنَا
- भेजा हमने
- nūḥan
- نُوحًا
- नूह
- wa-ib'rāhīma
- وَإِبْرَٰهِيمَ
- और इब्राहीम को
- wajaʿalnā
- وَجَعَلْنَا
- और रखी हमने
- fī
- فِى
- उन दोनों की औलाद में
- dhurriyyatihimā
- ذُرِّيَّتِهِمَا
- उन दोनों की औलाद में
- l-nubuwata
- ٱلنُّبُوَّةَ
- नुबूव्वत
- wal-kitāba
- وَٱلْكِتَٰبَۖ
- और किताब
- famin'hum
- فَمِنْهُم
- तो कुछ उनमें से
- muh'tadin
- مُّهْتَدٍۖ
- हिदायत याफ़्ता हैं
- wakathīrun
- وَكَثِيرٌ
- और अक्सर
- min'hum
- مِّنْهُمْ
- उनमें से
- fāsiqūna
- فَٰسِقُونَ
- फ़ासिक़ हैं
हमने नूह और इबराहीम को भेजा और उन दोनों की सन्तान में पैग़म्बरी और क़िताब रख दी। फिर उनमें से किसी ने तो संमार्ग अपनाया; किन्तु उनमें से अधिकतर अवज्ञाकारी थे ([५७] अल-हदीद: 26)Tafseer (तफ़सीर )
ثُمَّ قَفَّيْنَا عَلٰٓى اٰثَارِهِمْ بِرُسُلِنَا وَقَفَّيْنَا بِعِيْسَى ابْنِ مَرْيَمَ وَاٰتَيْنٰهُ الْاِنْجِيْلَ ەۙ وَجَعَلْنَا فِيْ قُلُوْبِ الَّذِيْنَ اتَّبَعُوْهُ رَأْفَةً وَّرَحْمَةً ۗوَرَهْبَانِيَّةَ ِۨابْتَدَعُوْهَا مَا كَتَبْنٰهَا عَلَيْهِمْ اِلَّا ابْتِغَاۤءَ رِضْوَانِ اللّٰهِ فَمَا رَعَوْهَا حَقَّ رِعَايَتِهَا ۚفَاٰتَيْنَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا مِنْهُمْ اَجْرَهُمْ ۚ وَكَثِيْرٌ مِّنْهُمْ فٰسِقُوْنَ ٢٧
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- qaffaynā
- قَفَّيْنَا
- पै दर पै भेजे हमने
- ʿalā
- عَلَىٰٓ
- उनके आसार पर
- āthārihim
- ءَاثَٰرِهِم
- उनके आसार पर
- birusulinā
- بِرُسُلِنَا
- अपने रसूल
- waqaffaynā
- وَقَفَّيْنَا
- और पीछे भेजा हमने
- biʿīsā
- بِعِيسَى
- ईसा इब्ने मरियम को
- ib'ni
- ٱبْنِ
- ईसा इब्ने मरियम को
- maryama
- مَرْيَمَ
- ईसा इब्ने मरियम को
- waātaynāhu
- وَءَاتَيْنَٰهُ
- और अता किया हमने उसे
- l-injīla
- ٱلْإِنجِيلَ
- इन्जील
- wajaʿalnā
- وَجَعَلْنَا
- और डाल दी हमने
- fī
- فِى
- दिलों में
- qulūbi
- قُلُوبِ
- दिलों में
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों के जिन्होंने
- ittabaʿūhu
- ٱتَّبَعُوهُ
- पैरवी की उसकी
- rafatan
- رَأْفَةً
- शफ़्क़त
- waraḥmatan
- وَرَحْمَةً
- और रहमत को
- warahbāniyyatan
- وَرَهْبَانِيَّةً
- और रहबानियत/तर्क दुनिया
- ib'tadaʿūhā
- ٱبْتَدَعُوهَا
- उन्होंने ईजाद कर लिया उसे
- mā
- مَا
- नहीं फ़र्ज़ किया था हमने उसे
- katabnāhā
- كَتَبْنَٰهَا
- नहीं फ़र्ज़ किया था हमने उसे
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- illā
- إِلَّا
- मगर
- ib'tighāa
- ٱبْتِغَآءَ
- हासिल करने को
- riḍ'wāni
- رِضْوَٰنِ
- रज़ा
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की
- famā
- فَمَا
- तो नहीं
- raʿawhā
- رَعَوْهَا
- उन्होंने ख़्याल रखा उसका
- ḥaqqa
- حَقَّ
- जैसे हक़ था
- riʿāyatihā
- رِعَايَتِهَاۖ
- उसका ख़्याल रखने का
- faātaynā
- فَـَٔاتَيْنَا
- तो दिया हमने
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों को जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- min'hum
- مِنْهُمْ
- उनमें से
- ajrahum
- أَجْرَهُمْۖ
- अजर उनका
- wakathīrun
- وَكَثِيرٌ
- और अक्सर
- min'hum
- مِّنْهُمْ
- उनमें से
- fāsiqūna
- فَٰسِقُونَ
- फ़ासिक़ हैं
फिर उनके पीछ उन्हीं के पद-चिन्हों पर हमने अपने दूसरे रसूलों को भेजा और हमने उनके पीछे मरयम के बेटे ईसा को भेजा और उसे इंजील प्रदान की। और जिन लोगों ने उसका अनुसरण किया, उनके दिलों में हमने करुणा और दया रख दी। रहा संन्यास, तो उसे उन्होंने स्वयं घड़ा था। हमने उसे उनके लिए अनिवार्य नहीं किया था, यदि अनिवार्य किया था तो केवल अल्लाह की प्रसन्नता की चाहत। फिर वे उसका निर्वाह न कर सकें, जैसा कि उनका निर्वाह करना चाहिए था। अतः उन लोगों को, जो उनमें से वास्तव में ईमान लाए थे, उनका बदला हमने (उन्हें) प्रदान किया। किन्तु उनमें से अधिकतर अवज्ञाकारी ही है ([५७] अल-हदीद: 27)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوا اتَّقُوا اللّٰهَ وَاٰمِنُوْا بِرَسُوْلِهٖ يُؤْتِكُمْ كِفْلَيْنِ مِنْ رَّحْمَتِهٖ وَيَجْعَلْ لَّكُمْ نُوْرًا تَمْشُوْنَ بِهٖ وَيَغْفِرْ لَكُمْۗ وَاللّٰهُ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌۙ ٢٨
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगों जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगों जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हो
- ittaqū
- ٱتَّقُوا۟
- डरो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- waāminū
- وَءَامِنُوا۟
- और ईमान लाओ
- birasūlihi
- بِرَسُولِهِۦ
- उसके रसूल पर
- yu'tikum
- يُؤْتِكُمْ
- वो देगा तुम्हें
- kif'layni
- كِفْلَيْنِ
- दो हिस्से
- min
- مِن
- अपनी रहमत में से
- raḥmatihi
- رَّحْمَتِهِۦ
- अपनी रहमत में से
- wayajʿal
- وَيَجْعَل
- और वो बना देगा
- lakum
- لَّكُمْ
- तुम्हारे लिए
- nūran
- نُورًا
- एक नूर
- tamshūna
- تَمْشُونَ
- तुम चलोगे
- bihi
- بِهِۦ
- साथ उसके
- wayaghfir
- وَيَغْفِرْ
- और वो बख़्श देगा
- lakum
- لَكُمْۚ
- तुम्हें
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- ghafūrun
- غَفُورٌ
- बहुत बख़्शने वाला है
- raḥīmun
- رَّحِيمٌ
- निहायत रहम करने वाला है
ऐ लोगों, जो ईमान लाए हो! अल्लाह का डर रखो और उसके रसूल पर ईमान लाओ। वह तुम्हें अपनी दयालुता का दोहरा हिस्सा प्रदान करेगा और तुम्हारे लिए एक प्रकाश कर देगा, जिसमें तुम चलोगे और तुम्हें क्षमा कर देगा। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है ([५७] अल-हदीद: 28)Tafseer (तफ़सीर )
لِّئَلَّا يَعْلَمَ اَهْلُ الْكِتٰبِ اَلَّا يَقْدِرُوْنَ عَلٰى شَيْءٍ مِّنْ فَضْلِ اللّٰهِ وَاَنَّ الْفَضْلَ بِيَدِ اللّٰهِ يُؤْتِيْهِ مَنْ يَّشَاۤءُ ۗوَاللّٰهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيْمِ ࣖ ۔ ٢٩
- li-allā
- لِّئَلَّا
- ताकि
- yaʿlama
- يَعْلَمَ
- जान लें
- ahlu
- أَهْلُ
- एहले किताब
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- एहले किताब
- allā
- أَلَّا
- ये कि नहीं
- yaqdirūna
- يَقْدِرُونَ
- वो क़ुदरत रखते
- ʿalā
- عَلَىٰ
- किसी चीज़ पर
- shayin
- شَىْءٍ
- किसी चीज़ पर
- min
- مِّن
- फ़ज़ल में से
- faḍli
- فَضْلِ
- फ़ज़ल में से
- l-lahi
- ٱللَّهِۙ
- अल्लाह के
- wa-anna
- وَأَنَّ
- और बेशक
- l-faḍla
- ٱلْفَضْلَ
- फ़ज़ल
- biyadi
- بِيَدِ
- अल्लाह के हाथ में है
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के हाथ में है
- yu'tīhi
- يُؤْتِيهِ
- वो देता है उसे
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُۚ
- वो चाहता है
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- dhū
- ذُو
- फ़ज़ल वाला है
- l-faḍli
- ٱلْفَضْلِ
- फ़ज़ल वाला है
- l-ʿaẓīmi
- ٱلْعَظِيمِ
- बहुत बड़े
ताकि किताबवाले यह न समझें कि अल्लाह के अनुग्रह में से वे किसी चीज़ पर अधिकार न प्राप्त कर सकेंगे और यह कि अनुग्रह अल्लाह के हाथ में है, जिसे चाहता है प्रदान करता है। अल्लाह बड़े अनुग्रह का मालिक है ([५७] अल-हदीद: 29)Tafseer (तफ़सीर )