مَنْ ذَا الَّذِيْ يُقْرِضُ اللّٰهَ قَرْضًا حَسَنًا فَيُضٰعِفَهٗ لَهٗ وَلَهٗٓ اَجْرٌ كَرِيْمٌ ١١
- man
- مَّن
- कौन है जो
- dhā
- ذَا
- कौन है जो
- alladhī
- ٱلَّذِى
- कौन है जो
- yuq'riḍu
- يُقْرِضُ
- क़र्ज़ देगा
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह को
- qarḍan
- قَرْضًا
- क़र्ज़
- ḥasanan
- حَسَنًا
- अच्छा
- fayuḍāʿifahu
- فَيُضَٰعِفَهُۥ
- फिर वो दोगुना करेगा उसे
- lahu
- لَهُۥ
- उसके लिए
- walahu
- وَلَهُۥٓ
- और उसी के लिए है
- ajrun
- أَجْرٌ
- अजर
- karīmun
- كَرِيمٌ
- इज़्ज़त वाला
कौन है जो अल्लाह को ऋण दे, अच्छा ऋण कि वह उसे उसके लिए कई गुना कर दे। और उसके लिए सम्मानित प्रतिदान है ([५७] अल-हदीद: 11)Tafseer (तफ़सीर )
يَوْمَ تَرَى الْمُؤْمِنِيْنَ وَالْمُؤْمِنٰتِ يَسْعٰى نُوْرُهُمْ بَيْنَ اَيْدِيْهِمْ وَبِاَيْمَانِهِمْ بُشْرٰىكُمُ الْيَوْمَ جَنّٰتٌ تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِيْنَ فِيْهَاۗ ذٰلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيْمُۚ ١٢
- yawma
- يَوْمَ
- जिस दिन
- tarā
- تَرَى
- आप देखेंगे
- l-mu'minīna
- ٱلْمُؤْمِنِينَ
- मोमिन मर्दों
- wal-mu'mināti
- وَٱلْمُؤْمِنَٰتِ
- और मोमिन औरतों को
- yasʿā
- يَسْعَىٰ
- दौड़ता होगा
- nūruhum
- نُورُهُم
- नूर उनका
- bayna
- بَيْنَ
- उनके आगे-आगे
- aydīhim
- أَيْدِيهِمْ
- उनके आगे-आगे
- wabi-aymānihim
- وَبِأَيْمَٰنِهِم
- और उनके दाऐं जानिब
- bush'rākumu
- بُشْرَىٰكُمُ
- ख़ुशख़बरी है तुम्हें
- l-yawma
- ٱلْيَوْمَ
- आज के दिन
- jannātun
- جَنَّٰتٌ
- ऐसे बाग़ात की
- tajrī
- تَجْرِى
- बहती हैं
- min
- مِن
- जिनके नीचे से
- taḥtihā
- تَحْتِهَا
- जिनके नीचे से
- l-anhāru
- ٱلْأَنْهَٰرُ
- नहरें
- khālidīna
- خَٰلِدِينَ
- हमेशा रहने वाले हैं
- fīhā
- فِيهَاۚ
- उनमें
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- यही है
- huwa
- هُوَ
- वो
- l-fawzu
- ٱلْفَوْزُ
- कामयाबी
- l-ʿaẓīmu
- ٱلْعَظِيمُ
- बहुत बड़ी
जिस दिन तुम मोमिन पुरुषों और मोमिन स्त्रियों को देखोगे कि उनका प्रकाश उनके आगे-आगे दौड़ रहा है और उनके दाएँ हाथ में है। (कहा जाएगा,) 'आज शुभ सूचना है तुम्हारे लिए ऐसी जन्नतों की जिनके नीचे नहरें बह रही है, जिनमें सदैव रहना है। वही बड़ी सफलता है।' ([५७] अल-हदीद: 12)Tafseer (तफ़सीर )
يَوْمَ يَقُوْلُ الْمُنٰفِقُوْنَ وَالْمُنٰفِقٰتُ لِلَّذِيْنَ اٰمَنُوا انْظُرُوْنَا نَقْتَبِسْ مِنْ نُّوْرِكُمْۚ قِيْلَ ارْجِعُوْا وَرَاۤءَكُمْ فَالْتَمِسُوْا نُوْرًاۗ فَضُرِبَ بَيْنَهُمْ بِسُوْرٍ لَّهٗ بَابٌۗ بَاطِنُهٗ فِيْهِ الرَّحْمَةُ وَظَاهِرُهٗ مِنْ قِبَلِهِ الْعَذَابُۗ ١٣
- yawma
- يَوْمَ
- जिस दिन
- yaqūlu
- يَقُولُ
- कहेंगे
- l-munāfiqūna
- ٱلْمُنَٰفِقُونَ
- मुनाफ़िक़ मर्द
- wal-munāfiqātu
- وَٱلْمُنَٰفِقَٰتُ
- और मुनाफ़िक़ औरतें
- lilladhīna
- لِلَّذِينَ
- उन्हें जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- unẓurūnā
- ٱنظُرُونَا
- इन्तिज़ार करो हमारा
- naqtabis
- نَقْتَبِسْ
- हम रौशनी हासिल करें
- min
- مِن
- तुम्हारे नूर से
- nūrikum
- نُّورِكُمْ
- तुम्हारे नूर से
- qīla
- قِيلَ
- कह दिया जाएगा
- ir'jiʿū
- ٱرْجِعُوا۟
- लौट जाओ
- warāakum
- وَرَآءَكُمْ
- अपने पीछे
- fal-tamisū
- فَٱلْتَمِسُوا۟
- फिर तलाश करो
- nūran
- نُورًا
- नूर को
- faḍuriba
- فَضُرِبَ
- तो हाइल कर दी जाएगी
- baynahum
- بَيْنَهُم
- दर्मियान उनके
- bisūrin
- بِسُورٍ
- एक दीवार
- lahu
- لَّهُۥ
- उसका
- bābun
- بَابٌۢ
- एक दरवाज़ा होगा
- bāṭinuhu
- بَاطِنُهُۥ
- उसकी अन्दरूनी जानिब
- fīhi
- فِيهِ
- जिसमें
- l-raḥmatu
- ٱلرَّحْمَةُ
- रहमत होगी
- waẓāhiruhu
- وَظَٰهِرُهُۥ
- और उसकी बैरूनी जानिब
- min
- مِن
- उस तरफ़ से
- qibalihi
- قِبَلِهِ
- उस तरफ़ से
- l-ʿadhābu
- ٱلْعَذَابُ
- अज़ाब होगा
जिस दिन कपटाचारी पुरुष और कपटाचारी स्त्रियाँ मोमिनों से कहेंगी, 'तनिक हमारी प्रतिक्षा करो। हम भी तुम्हारे प्रकाश मे से कुछ प्रकाश ले लें!' कहा जाएगा, 'अपने पीछे लौट जाओ। फिर प्रकाश तलाश करो!' इतने में उनके बीच एक दीवार खड़ी कर दी जाएगी, जिसमें एक द्वार होगा। उसके भीतर का हाल यह होगा कि उसमें दयालुता होगी और उसके बाहर का यह कि उस ओर से यातना होगी ([५७] अल-हदीद: 13)Tafseer (तफ़सीर )
يُنَادُوْنَهُمْ اَلَمْ نَكُنْ مَّعَكُمْۗ قَالُوْا بَلٰى وَلٰكِنَّكُمْ فَتَنْتُمْ اَنْفُسَكُمْ وَتَرَبَّصْتُمْ وَارْتَبْتُمْ وَغَرَّتْكُمُ الْاَمَانِيُّ حَتّٰى جَاۤءَ اَمْرُ اللّٰهِ وَغَرَّكُمْ بِاللّٰهِ الْغَرُوْرُ ١٤
- yunādūnahum
- يُنَادُونَهُمْ
- वो पुकारेंगे उन्हें
- alam
- أَلَمْ
- क्या ना
- nakun
- نَكُن
- थे हम
- maʿakum
- مَّعَكُمْۖ
- साथ तुम्हारे
- qālū
- قَالُوا۟
- वो कहेंगे
- balā
- بَلَىٰ
- क्यों नहीं
- walākinnakum
- وَلَٰكِنَّكُمْ
- और लेकिन तुम
- fatantum
- فَتَنتُمْ
- फ़ितने में डाला तुमने
- anfusakum
- أَنفُسَكُمْ
- अपने आपको
- watarabbaṣtum
- وَتَرَبَّصْتُمْ
- और इन्तिज़ार में रहे तुम
- wa-ir'tabtum
- وَٱرْتَبْتُمْ
- और शक किया तुमने
- wagharratkumu
- وَغَرَّتْكُمُ
- और धोखे में डाला तुम्हें
- l-amāniyu
- ٱلْأَمَانِىُّ
- तमन्नाओं ने
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- यहाँ तक कि
- jāa
- جَآءَ
- आ गया
- amru
- أَمْرُ
- फ़ैसला
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह का
- wagharrakum
- وَغَرَّكُم
- और धोखे में डाला तुम्हें
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह के बारे में
- l-gharūru
- ٱلْغَرُورُ
- उस बड़े धोखेबाज़ ने
वे उन्हें पुकारकर कहेंगे, 'क्या हम तुम्हारे साथी नहीं थे?' वे कहेंगे, 'क्यों नहीं? किन्तु तुमने तो अपने आपको फ़ितने (गुमराही) में डाला और प्रतीक्षा करते रहे और सन्देह में पड़े रहे और कामनाओं ने तुम्हें धोखे में डाले रखा है ([५७] अल-हदीद: 14)Tafseer (तफ़सीर )
فَالْيَوْمَ لَا يُؤْخَذُ مِنْكُمْ فِدْيَةٌ وَّلَا مِنَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْاۗ مَأْوٰىكُمُ النَّارُۗ هِيَ مَوْلٰىكُمْۗ وَبِئْسَ الْمَصِيْرُ ١٥
- fal-yawma
- فَٱلْيَوْمَ
- तो आज
- lā
- لَا
- ना लिया जाएगा
- yu'khadhu
- يُؤْخَذُ
- ना लिया जाएगा
- minkum
- مِنكُمْ
- तुमसे
- fid'yatun
- فِدْيَةٌ
- कोई फ़िदया
- walā
- وَلَا
- और ना
- mina
- مِنَ
- उनसे जिन्होंने
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनसे जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟ۚ
- कुफ़्र किया
- mawākumu
- مَأْوَىٰكُمُ
- ठिकाना तुम्हारा
- l-nāru
- ٱلنَّارُۖ
- आग है
- hiya
- هِىَ
- वो ही
- mawlākum
- مَوْلَىٰكُمْۖ
- दोस्त है तुम्हारी
- wabi'sa
- وَبِئْسَ
- और कितनी बुरी है
- l-maṣīru
- ٱلْمَصِيرُ
- लौटने की जगह
'अब आज न तुमसे कोई फ़िदया (मुक्ति-प्रतिदान) लिया जाएगा और न उन लोगों से जिन्होंने इनकार किया। तुम्हारा ठिकाना आग है, और वही तुम्हारी संरक्षिका है। और बहुत ही बुरी जगह है अन्त में पहुँचने की!' ([५७] अल-हदीद: 15)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَمْ يَأْنِ لِلَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اَنْ تَخْشَعَ قُلُوْبُهُمْ لِذِكْرِ اللّٰهِ وَمَا نَزَلَ مِنَ الْحَقِّۙ وَلَا يَكُوْنُوْا كَالَّذِيْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ مِنْ قَبْلُ فَطَالَ عَلَيْهِمُ الْاَمَدُ فَقَسَتْ قُلُوْبُهُمْۗ وَكَثِيْرٌ مِّنْهُمْ فٰسِقُوْنَ ١٦
- alam
- أَلَمْ
- क्या नहीं
- yani
- يَأْنِ
- वक़्त आया
- lilladhīna
- لِلَّذِينَ
- उनके लिए जो
- āmanū
- ءَامَنُوٓا۟
- ईमान लाए
- an
- أَن
- कि
- takhshaʿa
- تَخْشَعَ
- झुक जाऐं
- qulūbuhum
- قُلُوبُهُمْ
- दिल उनके
- lidhik'ri
- لِذِكْرِ
- ज़िक्र के लिए
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- wamā
- وَمَا
- और जो
- nazala
- نَزَلَ
- नाज़िल हुआ
- mina
- مِنَ
- हक़ में से
- l-ḥaqi
- ٱلْحَقِّ
- हक़ में से
- walā
- وَلَا
- और ना
- yakūnū
- يَكُونُوا۟
- वो हो जाऐं
- ka-alladhīna
- كَٱلَّذِينَ
- उन लोगों की तरह जो
- ūtū
- أُوتُوا۟
- दिए गए
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब
- min
- مِن
- उससे क़ब्ल
- qablu
- قَبْلُ
- उससे क़ब्ल
- faṭāla
- فَطَالَ
- तो तवील हो गई
- ʿalayhimu
- عَلَيْهِمُ
- उन पर
- l-amadu
- ٱلْأَمَدُ
- मुद्दत
- faqasat
- فَقَسَتْ
- तो सख़्त हो गए
- qulūbuhum
- قُلُوبُهُمْۖ
- दिल उनके
- wakathīrun
- وَكَثِيرٌ
- और अक्सर
- min'hum
- مِّنْهُمْ
- उनमें से
- fāsiqūna
- فَٰسِقُونَ
- नाफ़रमान हैं
क्या उन लोगों के लिए, जो ईमान लाए, अभी वह समय नहीं आया कि उनके दिल अल्लाह की याद के लिए और जो सत्य अवतरित हुआ है उसके आगे झुक जाएँ? और वे उन लोगों की तरह न हो जाएँ, जिन्हें किताब दी गई थी, फिर उनपर दीर्ध समय बीत गया। अन्ततः उनके दिल कठोर हो गए और उनमें से अधिकांश अवज्ञाकारी रहे ([५७] अल-हदीद: 16)Tafseer (तफ़सीर )
اِعْلَمُوْٓا اَنَّ اللّٰهَ يُحْيِ الْاَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَاۗ قَدْ بَيَّنَّا لَكُمُ الْاٰيٰتِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُوْنَ ١٧
- iʿ'lamū
- ٱعْلَمُوٓا۟
- जान लो
- anna
- أَنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- yuḥ'yī
- يُحْىِ
- वो ज़िन्दा करता है
- l-arḍa
- ٱلْأَرْضَ
- ज़मीन को
- baʿda
- بَعْدَ
- बाद
- mawtihā
- مَوْتِهَاۚ
- उसकी मौत के
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- bayyannā
- بَيَّنَّا
- बयान कर दीं हमने
- lakumu
- لَكُمُ
- तुम्हारे लिए
- l-āyāti
- ٱلْءَايَٰتِ
- आयात
- laʿallakum
- لَعَلَّكُمْ
- ताकि तुम
- taʿqilūna
- تَعْقِلُونَ
- तुम अक़्ल से काम लो
जान लो, अल्लाह धरती को उसकी मृत्यु के पश्चात जीवन प्रदान करता है। हमने तुम्हारे लिए आयतें खोल-खोलकर बयान कर दी है, ताकि तुम बुद्धि से काम लो ([५७] अल-हदीद: 17)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ الْمُصَّدِّقِيْنَ وَالْمُصَّدِّقٰتِ وَاَقْرَضُوا اللّٰهَ قَرْضًا حَسَنًا يُّضٰعَفُ لَهُمْ وَلَهُمْ اَجْرٌ كَرِيْمٌ ١٨
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-muṣadiqīna
- ٱلْمُصَّدِّقِينَ
- सदक़ा करने वाले मर्द
- wal-muṣadiqāti
- وَٱلْمُصَّدِّقَٰتِ
- और सदक़ा करने वाली औरतें
- wa-aqraḍū
- وَأَقْرَضُوا۟
- और जिन्होंने क़र्ज़ दिया
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह को
- qarḍan
- قَرْضًا
- क़र्ज़
- ḥasanan
- حَسَنًا
- अच्छा
- yuḍāʿafu
- يُضَٰعَفُ
- दोगुना कर दिया जाएगा
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- walahum
- وَلَهُمْ
- और उन्हीं के लिए है
- ajrun
- أَجْرٌ
- अजर
- karīmun
- كَرِيمٌ
- इज़्ज़त वाला
निश्चय ही जो सदका देनेवाले पुरुष और सदका देनेवाली स्त्रियाँ है और उन्होंने अल्लाह को अच्छा ऋण दिया, उसे उसके लिए कई गुना कर दिया जाएगा। और उनके लिए सम्मानित प्रतिदान है ([५७] अल-हदीद: 18)Tafseer (तफ़सीर )
وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا بِاللّٰهِ وَرُسُلِهٖٓ اُولٰۤىِٕكَ هُمُ الصِّدِّيْقُوْنَ ۖوَالشُّهَدَاۤءُ عِنْدَ رَبِّهِمْۗ لَهُمْ اَجْرُهُمْ وَنُوْرُهُمْۗ وَالَّذِيْنَ كَفَرُوْا وَكَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَآ اُولٰۤىِٕكَ اَصْحٰبُ الْجَحِيْمِ ࣖ ١٩
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- warusulihi
- وَرُسُلِهِۦٓ
- और उसके रसूलों पर
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- humu
- هُمُ
- वो
- l-ṣidīqūna
- ٱلصِّدِّيقُونَۖ
- जो सच्चे हैं
- wal-shuhadāu
- وَٱلشُّهَدَآءُ
- और गवाही देने वाले हैं
- ʿinda
- عِندَ
- अपने रब के पास
- rabbihim
- رَبِّهِمْ
- अपने रब के पास
- lahum
- لَهُمْ
- उन्हीं के लिए है
- ajruhum
- أَجْرُهُمْ
- अजर उनका
- wanūruhum
- وَنُورُهُمْۖ
- और नूर उनका
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- wakadhabū
- وَكَذَّبُوا۟
- और उन्होंने झुठलाया
- biāyātinā
- بِـَٔايَٰتِنَآ
- हमारी आयात को
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- aṣḥābu
- أَصْحَٰبُ
- साथी
- l-jaḥīmi
- ٱلْجَحِيمِ
- जहन्नम के
जो लोग अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए, वही अपने रब के यहाण सिद्दीक और शहीद है। उनके लिए उनका प्रतिदान और उनका प्रकाश है। किन्तु जिन लोगों ने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वही भड़कती आगवाले हैं ([५७] अल-हदीद: 19)Tafseer (तफ़सीर )
اِعْلَمُوْٓا اَنَّمَا الْحَيٰوةُ الدُّنْيَا لَعِبٌ وَّلَهْوٌ وَّزِيْنَةٌ وَّتَفَاخُرٌۢ بَيْنَكُمْ وَتَكَاثُرٌ فِى الْاَمْوَالِ وَالْاَوْلَادِۗ كَمَثَلِ غَيْثٍ اَعْجَبَ الْكُفَّارَ نَبَاتُهٗ ثُمَّ يَهِيْجُ فَتَرٰىهُ مُصْفَرًّا ثُمَّ يَكُوْنُ حُطَامًاۗ وَفِى الْاٰخِرَةِ عَذَابٌ شَدِيْدٌۙ وَّمَغْفِرَةٌ مِّنَ اللّٰهِ وَرِضْوَانٌ ۗوَمَا الْحَيٰوةُ الدُّنْيَآ اِلَّا مَتَاعُ الْغُرُوْرِ ٢٠
- iʿ'lamū
- ٱعْلَمُوٓا۟
- जान लो
- annamā
- أَنَّمَا
- बेशक
- l-ḥayatu
- ٱلْحَيَوٰةُ
- ज़िन्दगी
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- दुनिया की
- laʿibun
- لَعِبٌ
- खेल
- walahwun
- وَلَهْوٌ
- और तमाशा
- wazīnatun
- وَزِينَةٌ
- और ज़ीनत
- watafākhurun
- وَتَفَاخُرٌۢ
- और बाहम फ़ख़्र करना है
- baynakum
- بَيْنَكُمْ
- आपस में
- watakāthurun
- وَتَكَاثُرٌ
- और एक दूसरे पर कसरत हासिल करना है
- fī
- فِى
- मालों में
- l-amwāli
- ٱلْأَمْوَٰلِ
- मालों में
- wal-awlādi
- وَٱلْأَوْلَٰدِۖ
- और औलाद में
- kamathali
- كَمَثَلِ
- मानिन्द मिसाल
- ghaythin
- غَيْثٍ
- बारिश के है
- aʿjaba
- أَعْجَبَ
- ख़ुश कर दिया
- l-kufāra
- ٱلْكُفَّارَ
- किसानों को
- nabātuhu
- نَبَاتُهُۥ
- उसकी नबातात ने
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- yahīju
- يَهِيجُ
- वो ख़ुश्क हो जाती है
- fatarāhu
- فَتَرَىٰهُ
- फिर आप देखते हैं उसे
- muṣ'farran
- مُصْفَرًّا
- कि ज़र्द हो गई
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- yakūnu
- يَكُونُ
- वो हो जाती है
- ḥuṭāman
- حُطَٰمًاۖ
- चूरा-चूरा
- wafī
- وَفِى
- और आख़िरत में
- l-ākhirati
- ٱلْءَاخِرَةِ
- और आख़िरत में
- ʿadhābun
- عَذَابٌ
- अज़ाब है
- shadīdun
- شَدِيدٌ
- सख़्त
- wamaghfiratun
- وَمَغْفِرَةٌ
- और बख़्शिश
- mina
- مِّنَ
- अल्लाह की तरफ़ से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की तरफ़ से
- wariḍ'wānun
- وَرِضْوَٰنٌۚ
- और रज़ामन्दी
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- l-ḥayatu
- ٱلْحَيَوٰةُ
- ज़िन्दगी
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَآ
- दुनिया की
- illā
- إِلَّا
- मगर
- matāʿu
- مَتَٰعُ
- सामान
- l-ghurūri
- ٱلْغُرُورِ
- धोखे का
जान लो, सांसारिक जीवन तो बस एक खेल और तमाशा है और एक साज-सज्जा, और तुम्हारा आपस में एक-दूसरे पर बड़ाई जताना, और धन और सन्तान में परस्पर एक-दूसरे से बढ़ा हुआ प्रदर्शित करना। वर्षा का मिसाल की तरह जिसकी वनस्पति ने किसान का दिल मोह लिया। फिर वह पक जाती है; फिर तुम उसे देखते हो कि वह पीली हो गई। फिर वह चूर्ण-विचूर्ण होकर रह जाती है, जबकि आख़िरत में कठोर यातना भी है और अल्लाह की क्षमा और प्रसन्नता भी। सांसारिक जीवन तो केवल धोखे की सुख-सामग्री है ([५७] अल-हदीद: 20)Tafseer (तफ़सीर )