८१
اَفَبِهٰذَا الْحَدِيْثِ اَنْتُمْ مُّدْهِنُوْنَ ٨١
- afabihādhā
- أَفَبِهَٰذَا
- क्या भला इस
- l-ḥadīthi
- ٱلْحَدِيثِ
- बात से
- antum
- أَنتُم
- तुम
- mud'hinūna
- مُّدْهِنُونَ
- बेपरवाई करने वाले हो
फिर क्या तुम उस वाणी के प्रति उपेक्षा दर्शाते हो? ([५६] अल-वाकिया: 81)Tafseer (तफ़सीर )
८२
وَتَجْعَلُوْنَ رِزْقَكُمْ اَنَّكُمْ تُكَذِّبُوْنَ ٨٢
- watajʿalūna
- وَتَجْعَلُونَ
- और तुम बनाते हो
- riz'qakum
- رِزْقَكُمْ
- हिस्सा अपना
- annakum
- أَنَّكُمْ
- ये कि तुम
- tukadhibūna
- تُكَذِّبُونَ
- तुम झुठलाते हो
और तुम इसको अपनी वृत्ति बना रहे हो कि झुठलाते हो? ([५६] अल-वाकिया: 82)Tafseer (तफ़सीर )
८३
فَلَوْلَآ اِذَا بَلَغَتِ الْحُلْقُوْمَۙ ٨٣
- falawlā
- فَلَوْلَآ
- पस क्यों नहीं
- idhā
- إِذَا
- जब
- balaghati
- بَلَغَتِ
- पहुँच जाती है (जान)
- l-ḥul'qūma
- ٱلْحُلْقُومَ
- हलक़ को
फिर ऐसा क्यों नहीं होता, जबकि प्राण कंठ को आ लगते है ([५६] अल-वाकिया: 83)Tafseer (तफ़सीर )
८४
وَاَنْتُمْ حِيْنَىِٕذٍ تَنْظُرُوْنَۙ ٨٤
- wa-antum
- وَأَنتُمْ
- और तुम
- ḥīna-idhin
- حِينَئِذٍ
- उस वक़्त
- tanẓurūna
- تَنظُرُونَ
- तुम देख रहे होते हो
और उस समय तुम देख रहे होते हो - ([५६] अल-वाकिया: 84)Tafseer (तफ़सीर )
८५
وَنَحْنُ اَقْرَبُ اِلَيْهِ مِنْكُمْ وَلٰكِنْ لَّا تُبْصِرُوْنَ ٨٥
- wanaḥnu
- وَنَحْنُ
- और हम
- aqrabu
- أَقْرَبُ
- ज़्यादा क़रीब होते हैं
- ilayhi
- إِلَيْهِ
- उसके
- minkum
- مِنكُمْ
- तुम से
- walākin
- وَلَٰكِن
- और लेकिन
- lā
- لَّا
- नहीं
- tub'ṣirūna
- تُبْصِرُونَ
- तुम देखते
और हम तुम्हारी अपेक्षा उससे अधिक निकट होते है। किन्तु तुम देखते नहीं – ([५६] अल-वाकिया: 85)Tafseer (तफ़सीर )
८६
فَلَوْلَآ اِنْ كُنْتُمْ غَيْرَ مَدِيْنِيْنَۙ ٨٦
- falawlā
- فَلَوْلَآ
- पस क्यों नहीं
- in
- إِن
- अगर
- kuntum
- كُنتُمْ
- हो तुम
- ghayra
- غَيْرَ
- नहीं बदला दिए जाने वाले
- madīnīna
- مَدِينِينَ
- नहीं बदला दिए जाने वाले
फिर ऐसा क्यों नहीं होता कि यदि तुम अधीन नहीं हो ([५६] अल-वाकिया: 86)Tafseer (तफ़सीर )
८७
تَرْجِعُوْنَهَآ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ ٨٧
- tarjiʿūnahā
- تَرْجِعُونَهَآ
- तुम लौटाते उसे
- in
- إِن
- अगर
- kuntum
- كُنتُمْ
- हो तुम
- ṣādiqīna
- صَٰدِقِينَ
- सच्चे
तो उसे (प्राण को) लौटा दो, यदि तुम सच्चे हो ([५६] अल-वाकिया: 87)Tafseer (तफ़सीर )
८८
فَاَمَّآ اِنْ كَانَ مِنَ الْمُقَرَّبِيْنَۙ ٨٨
- fa-ammā
- فَأَمَّآ
- पस लेकिन
- in
- إِن
- अगर
- kāna
- كَانَ
- है वो
- mina
- مِنَ
- मुक़र्रबीन में से
- l-muqarabīna
- ٱلْمُقَرَّبِينَ
- मुक़र्रबीन में से
फिर यदि वह (अल्लाह के) निकटवर्तियों में से है; ([५६] अल-वाकिया: 88)Tafseer (तफ़सीर )
८९
فَرَوْحٌ وَّرَيْحَانٌ ەۙ وَّجَنَّتُ نَعِيْمٍ ٨٩
- farawḥun
- فَرَوْحٌ
- तो राहत है
- warayḥānun
- وَرَيْحَانٌ
- और उम्दा रिज़्क़ है
- wajannatu
- وَجَنَّتُ
- और जन्नत
- naʿīmin
- نَعِيمٍ
- नेअमतों वाली
तो (उसके लिए) आराम, सुख-सामग्री और सुगंध है, और नेमतवाला बाग़ है ([५६] अल-वाकिया: 89)Tafseer (तफ़सीर )
९०
وَاَمَّآ اِنْ كَانَ مِنْ اَصْحٰبِ الْيَمِيْنِۙ ٩٠
- wa-ammā
- وَأَمَّآ
- और लेकिन
- in
- إِن
- अगर
- kāna
- كَانَ
- है वो
- min
- مِنْ
- दाऐं जानिब वालों में से
- aṣḥābi
- أَصْحَٰبِ
- दाऐं जानिब वालों में से
- l-yamīni
- ٱلْيَمِينِ
- दाऐं जानिब वालों में से
और यदि वह भाग्यशालियों में से है, ([५६] अल-वाकिया: 90)Tafseer (तफ़सीर )