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सूरा अल-वाकिया - Page: 9

Al-Waqi'ah

(घटना, आरोध्य)

८१

اَفَبِهٰذَا الْحَدِيْثِ اَنْتُمْ مُّدْهِنُوْنَ ٨١

afabihādhā
أَفَبِهَٰذَا
क्या भला इस
l-ḥadīthi
ٱلْحَدِيثِ
बात से
antum
أَنتُم
तुम
mud'hinūna
مُّدْهِنُونَ
बेपरवाई करने वाले हो
फिर क्या तुम उस वाणी के प्रति उपेक्षा दर्शाते हो? ([५६] अल-वाकिया: 81)
Tafseer (तफ़सीर )
८२

وَتَجْعَلُوْنَ رِزْقَكُمْ اَنَّكُمْ تُكَذِّبُوْنَ ٨٢

watajʿalūna
وَتَجْعَلُونَ
और तुम बनाते हो
riz'qakum
رِزْقَكُمْ
हिस्सा अपना
annakum
أَنَّكُمْ
ये कि तुम
tukadhibūna
تُكَذِّبُونَ
तुम झुठलाते हो
और तुम इसको अपनी वृत्ति बना रहे हो कि झुठलाते हो? ([५६] अल-वाकिया: 82)
Tafseer (तफ़सीर )
८३

فَلَوْلَآ اِذَا بَلَغَتِ الْحُلْقُوْمَۙ ٨٣

falawlā
فَلَوْلَآ
पस क्यों नहीं
idhā
إِذَا
जब
balaghati
بَلَغَتِ
पहुँच जाती है (जान)
l-ḥul'qūma
ٱلْحُلْقُومَ
हलक़ को
फिर ऐसा क्यों नहीं होता, जबकि प्राण कंठ को आ लगते है ([५६] अल-वाकिया: 83)
Tafseer (तफ़सीर )
८४

وَاَنْتُمْ حِيْنَىِٕذٍ تَنْظُرُوْنَۙ ٨٤

wa-antum
وَأَنتُمْ
और तुम
ḥīna-idhin
حِينَئِذٍ
उस वक़्त
tanẓurūna
تَنظُرُونَ
तुम देख रहे होते हो
और उस समय तुम देख रहे होते हो - ([५६] अल-वाकिया: 84)
Tafseer (तफ़सीर )
८५

وَنَحْنُ اَقْرَبُ اِلَيْهِ مِنْكُمْ وَلٰكِنْ لَّا تُبْصِرُوْنَ ٨٥

wanaḥnu
وَنَحْنُ
और हम
aqrabu
أَقْرَبُ
ज़्यादा क़रीब होते हैं
ilayhi
إِلَيْهِ
उसके
minkum
مِنكُمْ
तुम से
walākin
وَلَٰكِن
और लेकिन
لَّا
नहीं
tub'ṣirūna
تُبْصِرُونَ
तुम देखते
और हम तुम्हारी अपेक्षा उससे अधिक निकट होते है। किन्तु तुम देखते नहीं – ([५६] अल-वाकिया: 85)
Tafseer (तफ़सीर )
८६

فَلَوْلَآ اِنْ كُنْتُمْ غَيْرَ مَدِيْنِيْنَۙ ٨٦

falawlā
فَلَوْلَآ
पस क्यों नहीं
in
إِن
अगर
kuntum
كُنتُمْ
हो तुम
ghayra
غَيْرَ
नहीं बदला दिए जाने वाले
madīnīna
مَدِينِينَ
नहीं बदला दिए जाने वाले
फिर ऐसा क्यों नहीं होता कि यदि तुम अधीन नहीं हो ([५६] अल-वाकिया: 86)
Tafseer (तफ़सीर )
८७

تَرْجِعُوْنَهَآ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ ٨٧

tarjiʿūnahā
تَرْجِعُونَهَآ
तुम लौटाते उसे
in
إِن
अगर
kuntum
كُنتُمْ
हो तुम
ṣādiqīna
صَٰدِقِينَ
सच्चे
तो उसे (प्राण को) लौटा दो, यदि तुम सच्चे हो ([५६] अल-वाकिया: 87)
Tafseer (तफ़सीर )
८८

فَاَمَّآ اِنْ كَانَ مِنَ الْمُقَرَّبِيْنَۙ ٨٨

fa-ammā
فَأَمَّآ
पस लेकिन
in
إِن
अगर
kāna
كَانَ
है वो
mina
مِنَ
मुक़र्रबीन में से
l-muqarabīna
ٱلْمُقَرَّبِينَ
मुक़र्रबीन में से
फिर यदि वह (अल्लाह के) निकटवर्तियों में से है; ([५६] अल-वाकिया: 88)
Tafseer (तफ़सीर )
८९

فَرَوْحٌ وَّرَيْحَانٌ ەۙ وَّجَنَّتُ نَعِيْمٍ ٨٩

farawḥun
فَرَوْحٌ
तो राहत है
warayḥānun
وَرَيْحَانٌ
और उम्दा रिज़्क़ है
wajannatu
وَجَنَّتُ
और जन्नत
naʿīmin
نَعِيمٍ
नेअमतों वाली
तो (उसके लिए) आराम, सुख-सामग्री और सुगंध है, और नेमतवाला बाग़ है ([५६] अल-वाकिया: 89)
Tafseer (तफ़सीर )
९०

وَاَمَّآ اِنْ كَانَ مِنْ اَصْحٰبِ الْيَمِيْنِۙ ٩٠

wa-ammā
وَأَمَّآ
और लेकिन
in
إِن
अगर
kāna
كَانَ
है वो
min
مِنْ
दाऐं जानिब वालों में से
aṣḥābi
أَصْحَٰبِ
दाऐं जानिब वालों में से
l-yamīni
ٱلْيَمِينِ
दाऐं जानिब वालों में से
और यदि वह भाग्यशालियों में से है, ([५६] अल-वाकिया: 90)
Tafseer (तफ़सीर )