६१
عَلٰٓى اَنْ نُّبَدِّلَ اَمْثَالَكُمْ وَنُنْشِئَكُمْ فِيْ مَا لَا تَعْلَمُوْنَ ٦١
- ʿalā
- عَلَىٰٓ
- इस पर
- an
- أَن
- कि
- nubaddila
- نُّبَدِّلَ
- हम बदल डालें
- amthālakum
- أَمْثَٰلَكُمْ
- तुम जैसों को
- wanunshi-akum
- وَنُنشِئَكُمْ
- और हम नए सिरे से पैदा करदें तुम्हें
- fī
- فِى
- ऐसी सूरत में जो
- mā
- مَا
- ऐसी सूरत में जो
- lā
- لَا
- तुम नहीं जानते
- taʿlamūna
- تَعْلَمُونَ
- तुम नहीं जानते
कि हम तुम्हारे जैसों को बदल दें और तुम्हें ऐसी हालत में उठा खड़ा करें जिसे तुम जानते नहीं ([५६] अल-वाकिया: 61)Tafseer (तफ़सीर )
६२
وَلَقَدْ عَلِمْتُمُ النَّشْاَةَ الْاُوْلٰى فَلَوْلَا تَذَكَّرُوْنَ ٦٢
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- ʿalim'tumu
- عَلِمْتُمُ
- जान लिया तुमने
- l-nashata
- ٱلنَّشْأَةَ
- पैदाइश
- l-ūlā
- ٱلْأُولَىٰ
- पहली को
- falawlā
- فَلَوْلَا
- तो क्यों नहीं
- tadhakkarūna
- تَذَكَّرُونَ
- तुम नसीहत पकड़ते
तुम तो पहली पैदाइश को जान चुके हो, फिर तुम ध्यान क्यों नहीं देते? ([५६] अल-वाकिया: 62)Tafseer (तफ़सीर )
६३
اَفَرَءَيْتُمْ مَّا تَحْرُثُوْنَۗ ٦٣
- afara-aytum
- أَفَرَءَيْتُم
- क्या भला देखा तुमने
- mā
- مَّا
- जो
- taḥruthūna
- تَحْرُثُونَ
- तुम बोते हो
फिर क्या तुमने देखा तो कुछ तुम खेती करते हो? ([५६] अल-वाकिया: 63)Tafseer (तफ़सीर )
६४
ءَاَنْتُمْ تَزْرَعُوْنَهٗٓ اَمْ نَحْنُ الزَّارِعُوْنَ ٦٤
- a-antum
- ءَأَنتُمْ
- क्या तुम
- tazraʿūnahu
- تَزْرَعُونَهُۥٓ
- उगाते हो उसे
- am
- أَمْ
- या
- naḥnu
- نَحْنُ
- हम हैं
- l-zāriʿūna
- ٱلزَّٰرِعُونَ
- उगाने वाले
क्या उसे तुम उगाते हो या हम उसे उगाते है? ([५६] अल-वाकिया: 64)Tafseer (तफ़सीर )
६५
لَوْ نَشَاۤءُ لَجَعَلْنٰهُ حُطَامًا فَظَلْتُمْ تَفَكَّهُوْنَۙ ٦٥
- law
- لَوْ
- अगर
- nashāu
- نَشَآءُ
- हम चाहें
- lajaʿalnāhu
- لَجَعَلْنَٰهُ
- अलबत्ता कर दें हम उसे
- ḥuṭāman
- حُطَٰمًا
- चूरा-चूरा
- faẓaltum
- فَظَلْتُمْ
- तो रह जाओ तुम
- tafakkahūna
- تَفَكَّهُونَ
- तुम बातें बनाते
यदि हम चाहें तो उसे चूर-चूर कर दें। फिर तुम बातें बनाते रह जाओ ([५६] अल-वाकिया: 65)Tafseer (तफ़सीर )
६६
اِنَّا لَمُغْرَمُوْنَۙ ٦٦
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- lamugh'ramūna
- لَمُغْرَمُونَ
- अलबत्ता तावान डाले गए हैं
कि 'हमपर उलटा डाँड पड़ गया, ([५६] अल-वाकिया: 66)Tafseer (तफ़सीर )
६७
بَلْ نَحْنُ مَحْرُوْمُوْنَ ٦٧
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- naḥnu
- نَحْنُ
- हम तो
- maḥrūmūna
- مَحْرُومُونَ
- महरूम कर दिए गए हैं
बल्कि हम वंचित होकर रह गए!' ([५६] अल-वाकिया: 67)Tafseer (तफ़सीर )
६८
اَفَرَءَيْتُمُ الْمَاۤءَ الَّذِيْ تَشْرَبُوْنَۗ ٦٨
- afara-aytumu
- أَفَرَءَيْتُمُ
- क्या भला देखा तुमने
- l-māa
- ٱلْمَآءَ
- पानी को
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो जो
- tashrabūna
- تَشْرَبُونَ
- तुम पीते हो
फिर क्या तुमने उस पानी को देखा जिसे तुम पीते हो? ([५६] अल-वाकिया: 68)Tafseer (तफ़सीर )
६९
ءَاَنْتُمْ اَنْزَلْتُمُوْهُ مِنَ الْمُزْنِ اَمْ نَحْنُ الْمُنْزِلُوْنَ ٦٩
- a-antum
- ءَأَنتُمْ
- क्या तुम
- anzaltumūhu
- أَنزَلْتُمُوهُ
- उतारते हो तुम उसे
- mina
- مِنَ
- बादल से
- l-muz'ni
- ٱلْمُزْنِ
- बादल से
- am
- أَمْ
- या
- naḥnu
- نَحْنُ
- हम हैं
- l-munzilūna
- ٱلْمُنزِلُونَ
- उतारने वाले
क्या उसे बादलों से तुमने पानी बरसाया या बरसानेवाले हम है? ([५६] अल-वाकिया: 69)Tafseer (तफ़सीर )
७०
لَوْ نَشَاۤءُ جَعَلْنٰهُ اُجَاجًا فَلَوْلَا تَشْكُرُوْنَ ٧٠
- law
- لَوْ
- अगर
- nashāu
- نَشَآءُ
- हम चाहें
- jaʿalnāhu
- جَعَلْنَٰهُ
- बनादें हम उसे
- ujājan
- أُجَاجًا
- सख़्त खारा
- falawlā
- فَلَوْلَا
- पस क्यों नहीं
- tashkurūna
- تَشْكُرُونَ
- तुम शुक्र करते
यदि हम चाहें तो उसे अत्यन्त खारा बनाकर रख दें। फिर तुम कृतज्ञता क्यों नहीं दिखाते? ([५६] अल-वाकिया: 70)Tafseer (तफ़सीर )