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सूरा अल-कमर - Page: 4

Al-Qamar

(चाँद)

३१

اِنَّآ اَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ صَيْحَةً وَّاحِدَةً فَكَانُوْا كَهَشِيْمِ الْمُحْتَظِرِ ٣١

innā
إِنَّآ
बेशक हम
arsalnā
أَرْسَلْنَا
भेजी हमने
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
ṣayḥatan
صَيْحَةً
चिंघाड़
wāḥidatan
وَٰحِدَةً
एक ही
fakānū
فَكَانُوا۟
तो हो गए वो
kahashīmi
كَهَشِيمِ
मानिन्द रौंदी हुई बाड़ के
l-muḥ'taẓiri
ٱلْمُحْتَظِرِ
बाड़ लगाने वाले की
हमने उनपर एक धमाका छोड़ा, फिर वे बाड़ लगानेवाले की रौंदी हुई बाड़ की तरह चूरा होकर रह गए ([५४] अल-कमर: 31)
Tafseer (तफ़सीर )
३२

وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْاٰنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِنْ مُّدَّكِرٍ ٣٢

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
yassarnā
يَسَّرْنَا
आसान कर दिया हमने
l-qur'āna
ٱلْقُرْءَانَ
क़ुरआन को
lildhik'ri
لِلذِّكْرِ
नसीहत के लिए
fahal
فَهَلْ
तो क्या है
min
مِن
कोई नसीहत पकड़ने वाला
muddakirin
مُّدَّكِرٍ
कोई नसीहत पकड़ने वाला
हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या कोई नसीहत हासिल करनेवाला? ([५४] अल-कमर: 32)
Tafseer (तफ़सीर )
३३

كَذَّبَتْ قَوْمُ لُوْطٍ ۢبِالنُّذُرِ ٣٣

kadhabat
كَذَّبَتْ
झुठलाया
qawmu
قَوْمُ
क़ौमे
lūṭin
لُوطٍۭ
लूत ने
bil-nudhuri
بِٱلنُّذُرِ
डराने वालों को
लूत की क़ौम ने भी चेतावनियों को झुठलाया ([५४] अल-कमर: 33)
Tafseer (तफ़सीर )
३४

اِنَّآ اَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ حَاصِبًا اِلَّآ اٰلَ لُوْطٍ ۗنَجَّيْنٰهُمْ بِسَحَرٍۙ ٣٤

innā
إِنَّآ
बेशक हम
arsalnā
أَرْسَلْنَا
भेजी हमने
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
ḥāṣiban
حَاصِبًا
पत्थरों की आँधी
illā
إِلَّآ
सिवाए
āla
ءَالَ
आले लूत के
lūṭin
لُوطٍۖ
आले लूत के
najjaynāhum
نَّجَّيْنَٰهُم
निजात दी हमने उन्हें
bisaḥarin
بِسَحَرٍ
सहर के वक़्त
हमने लूत के घरवालों के सिवा उनपर पथराव करनेवाली तेज़ वायु भेजी। ([५४] अल-कमर: 34)
Tafseer (तफ़सीर )
३५

نِّعْمَةً مِّنْ عِنْدِنَاۗ كَذٰلِكَ نَجْزِيْ مَنْ شَكَرَ ٣٥

niʿ'matan
نِّعْمَةً
बतौर इनआम
min
مِّنْ
हमारे पास से
ʿindinā
عِندِنَاۚ
हमारे पास से
kadhālika
كَذَٰلِكَ
इसी तरह
najzī
نَجْزِى
हम बदला देते हैं
man
مَن
उसे जो
shakara
شَكَرَ
शुक्र अदा करे
हमने अपनी विशेष अनुकम्पा से प्रातःकाल उन्हें बचा लिया। हम इसी तरह उस व्यक्ति को बदला देते है जो कृतज्ञता दिखाए ([५४] अल-कमर: 35)
Tafseer (तफ़सीर )
३६

وَلَقَدْ اَنْذَرَهُمْ بَطْشَتَنَا فَتَمَارَوْا بِالنُّذُرِ ٣٦

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
andharahum
أَنذَرَهُم
उसने डराया उन्हें
baṭshatanā
بَطْشَتَنَا
हमारी पकड़ से
fatamāraw
فَتَمَارَوْا۟
तो उन्होंने शक किया
bil-nudhuri
بِٱلنُّذُرِ
डरावों पर
उसने जो उन्हें हमारी पकड़ से सावधान कर दिया था। किन्तु वे चेतावनियों के विषय में संदेह करते रहे ([५४] अल-कमर: 36)
Tafseer (तफ़सीर )
३७

وَلَقَدْ رَاوَدُوْهُ عَنْ ضَيْفِهٖ فَطَمَسْنَآ اَعْيُنَهُمْ فَذُوْقُوْا عَذَابِيْ وَنُذُرِ ٣٧

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
rāwadūhu
رَٰوَدُوهُ
उन्होंने फुसलाना चाहा उसे
ʿan
عَن
उसके मेहमानों के बारे में
ḍayfihi
ضَيْفِهِۦ
उसके मेहमानों के बारे में
faṭamasnā
فَطَمَسْنَآ
तो मिटा दीं हमने
aʿyunahum
أَعْيُنَهُمْ
आँखें उनकी
fadhūqū
فَذُوقُوا۟
तो चखो
ʿadhābī
عَذَابِى
अज़ाब मेरा
wanudhuri
وَنُذُرِ
और डराना मेरा
उन्होंने उसे फुसलाकर उसके पास से उसके अतिथियों को बलाना चाहा। अन्ततः हमने उसकी आँखें मेट दीं, 'लो, अब चखो मज़ा मेरी यातना और चेतावनियों का!' ([५४] अल-कमर: 37)
Tafseer (तफ़सीर )
३८

وَلَقَدْ صَبَّحَهُمْ بُكْرَةً عَذَابٌ مُّسْتَقِرٌّۚ ٣٨

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
ṣabbaḥahum
صَبَّحَهُم
सुबह की उन पर
buk'ratan
بُكْرَةً
सुबह सवेरे
ʿadhābun
عَذَابٌ
एक अज़ाब
mus'taqirrun
مُّسْتَقِرٌّ
मुसलसल ने
सुबह सवेरे ही एक अटल यातना उनपर आ पहुँची, ([५४] अल-कमर: 38)
Tafseer (तफ़सीर )
३९

فَذُوْقُوْا عَذَابِيْ وَنُذُرِ ٣٩

fadhūqū
فَذُوقُوا۟
तो चखो
ʿadhābī
عَذَابِى
अज़ाब मेरा
wanudhuri
وَنُذُرِ
और डराना मेरा
'लो, अब चखो मज़ा मेरी यातना और चेतावनियों का!' ([५४] अल-कमर: 39)
Tafseer (तफ़सीर )
४०

وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْاٰنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِنْ مُّدَّكِرٍ ࣖ ٤٠

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
yassarnā
يَسَّرْنَا
आसान कर दिया हमने
l-qur'āna
ٱلْقُرْءَانَ
क़ुरआन को
lildhik'ri
لِلذِّكْرِ
नसीहत के लिए
fahal
فَهَلْ
तो क्या है
min
مِن
कोई नसीहत पकड़ने वाला
muddakirin
مُّدَّكِرٍ
कोई नसीहत पकड़ने वाला
और हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला? ([५४] अल-कमर: 40)
Tafseer (तफ़सीर )