२१
فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِيْ وَنُذُرِ ٢١
- fakayfa
- فَكَيْفَ
- तो कैसा
- kāna
- كَانَ
- था
- ʿadhābī
- عَذَابِى
- अज़ाब मेरा
- wanudhuri
- وَنُذُرِ
- और डराना मेरा
फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरे डरावे? ([५४] अल-कमर: 21)Tafseer (तफ़सीर )
२२
وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْاٰنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِنْ مُّدَّكِرٍ ࣖ ٢٢
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- yassarnā
- يَسَّرْنَا
- आसान कर दिया हमने
- l-qur'āna
- ٱلْقُرْءَانَ
- क़ुरआन को
- lildhik'ri
- لِلذِّكْرِ
- नसीहत के लिए
- fahal
- فَهَلْ
- तो क्या है
- min
- مِن
- कोई नसीहत पकड़ने वाला
- muddakirin
- مُّدَّكِرٍ
- कोई नसीहत पकड़ने वाला
और हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला? ([५४] अल-कमर: 22)Tafseer (तफ़सीर )
२३
كَذَّبَتْ ثَمُوْدُ بِالنُّذُرِ ٢٣
- kadhabat
- كَذَّبَتْ
- झुठलाया
- thamūdu
- ثَمُودُ
- समूद ने
- bil-nudhuri
- بِٱلنُّذُرِ
- डराने वालों को
समूद ने चेतावनियों को झुठलाया; ([५४] अल-कमर: 23)Tafseer (तफ़सीर )
२४
فَقَالُوْٓا اَبَشَرًا مِّنَّا وَاحِدًا نَّتَّبِعُهٗٓ ۙاِنَّآ اِذًا لَّفِيْ ضَلٰلٍ وَّسُعُرٍ ٢٤
- faqālū
- فَقَالُوٓا۟
- तो उन्होंने कहा
- abasharan
- أَبَشَرًا
- क्या एक आदमी
- minnā
- مِّنَّا
- हम में से
- wāḥidan
- وَٰحِدًا
- अकेला
- nattabiʿuhu
- نَّتَّبِعُهُۥٓ
- हम पैरवी करें उसकी
- innā
- إِنَّآ
- बेशक हम
- idhan
- إِذًا
- तब
- lafī
- لَّفِى
- अलबत्ता गुमराही में होंगे
- ḍalālin
- ضَلَٰلٍ
- अलबत्ता गुमराही में होंगे
- wasuʿurin
- وَسُعُرٍ
- और जुनून में
और कहने लगे, 'एक अकेला आदमी, जो हम ही में से है, क्या हम उसके पीछे चलेंगे? तब तो वास्तव में हम गुमराही और दीवानापन में पड़ गए! ([५४] अल-कमर: 24)Tafseer (तफ़सीर )
२५
ءَاُلْقِيَ الذِّكْرُ عَلَيْهِ مِنْۢ بَيْنِنَا بَلْ هُوَ كَذَّابٌ اَشِرٌ ٢٥
- a-ul'qiya
- أَءُلْقِىَ
- क्या डाला गया
- l-dhik'ru
- ٱلذِّكْرُ
- ज़िक्र /नसीहत
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- उस पर
- min
- مِنۢ
- हमारे दर्मियान से
- bayninā
- بَيْنِنَا
- हमारे दर्मियान से
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- huwa
- هُوَ
- वो है
- kadhābun
- كَذَّابٌ
- सख़्त झूठा
- ashirun
- أَشِرٌ
- बहुत इतराने वाला
'क्या हमारे बीच उसी पर अनुस्मृति उतारी है? नहीं, बल्कि वह तो परले दरजे का झूठा, बड़ा आत्मश्लाघी है।' ([५४] अल-कमर: 25)Tafseer (तफ़सीर )
२६
سَيَعْلَمُوْنَ غَدًا مَّنِ الْكَذَّابُ الْاَشِرُ ٢٦
- sayaʿlamūna
- سَيَعْلَمُونَ
- अनक़रीब वो जान लोंगे
- ghadan
- غَدًا
- कल
- mani
- مَّنِ
- कौन है
- l-kadhābu
- ٱلْكَذَّابُ
- सख़्त झूठा
- l-ashiru
- ٱلْأَشِرُ
- बहुत इतराने वाला
'कल को ही वे जान लेंगे कि कौन परले दरजे का झूठा, बड़ा आत्मश्लाघी है। ([५४] अल-कमर: 26)Tafseer (तफ़सीर )
२७
اِنَّا مُرْسِلُوا النَّاقَةِ فِتْنَةً لَّهُمْ فَارْتَقِبْهُمْ وَاصْطَبِرْۖ ٢٧
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- mur'silū
- مُرْسِلُوا۟
- भेजने वाले हैं
- l-nāqati
- ٱلنَّاقَةِ
- ऊँटनी को
- fit'natan
- فِتْنَةً
- बतौर आज़माइश
- lahum
- لَّهُمْ
- उनके लिए
- fa-ir'taqib'hum
- فَٱرْتَقِبْهُمْ
- पस इन्तिज़ार करो उनका
- wa-iṣ'ṭabir
- وَٱصْطَبِرْ
- और सब्र करो
हम ऊँटनी को उनके लिए परीक्षा के रूप में भेज रहे है। अतः तुम उन्हें देखते जाओ और धैर्य से काम लो ([५४] अल-कमर: 27)Tafseer (तफ़सीर )
२८
وَنَبِّئْهُمْ اَنَّ الْمَاۤءَ قِسْمَةٌ ۢ بَيْنَهُمْۚ كُلُّ شِرْبٍ مُّحْتَضَرٌ ٢٨
- wanabbi'hum
- وَنَبِّئْهُمْ
- और आगाह कर दो उन्हें
- anna
- أَنَّ
- बेशक
- l-māa
- ٱلْمَآءَ
- पानी
- qis'matun
- قِسْمَةٌۢ
- तक़सीम करदा है
- baynahum
- بَيْنَهُمْۖ
- दर्मियान उनके
- kullu
- كُلُّ
- हर एक के
- shir'bin
- شِرْبٍ
- पानी की बारी
- muḥ'taḍarun
- مُّحْتَضَرٌ
- हाज़िर की गई है
'और उन्हें सूचित कर दो कि पानी उनके बीच बाँट दिया गया है। हर एक पीने की बारी पर बारीवाला उपस्थित होगा।' ([५४] अल-कमर: 28)Tafseer (तफ़सीर )
२९
فَنَادَوْا صَاحِبَهُمْ فَتَعَاطٰى فَعَقَرَ ٢٩
- fanādaw
- فَنَادَوْا۟
- तो उन्होंने पुकारा
- ṣāḥibahum
- صَاحِبَهُمْ
- अपने साथी को
- fataʿāṭā
- فَتَعَاطَىٰ
- तो उसने पकड़ा
- faʿaqara
- فَعَقَرَ
- फिर उसने कूँचें काट डालीं
अन्ततः उन्होंने अपने साथी को पुकारा, तो उसने ज़िम्मा लिया फिर उसने उसकी कूचें काट दी ([५४] अल-कमर: 29)Tafseer (तफ़सीर )
३०
فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِيْ وَنُذُرِ ٣٠
- fakayfa
- فَكَيْفَ
- फिर कैसा
- kāna
- كَانَ
- था
- ʿadhābī
- عَذَابِى
- अज़ाब मेरा
- wanudhuri
- وَنُذُرِ
- और डराना मेरा
फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरे डरावे? ([५४] अल-कमर: 30)Tafseer (तफ़सीर )