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सूरा अल-कमर - Page: 2

Al-Qamar

(चाँद)

११

فَفَتَحْنَآ اَبْوَابَ السَّمَاۤءِ بِمَاۤءٍ مُّنْهَمِرٍۖ ١١

fafataḥnā
فَفَتَحْنَآ
तो खोल दिए हमने
abwāba
أَبْوَٰبَ
दरवाज़े
l-samāi
ٱلسَّمَآءِ
आसमान के
bimāin
بِمَآءٍ
साथ एक पानी
mun'hamirin
مُّنْهَمِرٍ
ख़ूब बरसने वाले के
तब हमने मूसलाधार बरसते हुए पानी से आकाश के द्वार खोल दिए; ([५४] अल-कमर: 11)
Tafseer (तफ़सीर )
१२

وَّفَجَّرْنَا الْاَرْضَ عُيُوْنًا فَالْتَقَى الْمَاۤءُ عَلٰٓى اَمْرٍ قَدْ قُدِرَ ۚ ١٢

wafajjarnā
وَفَجَّرْنَا
और फाड़ दिया हमने
l-arḍa
ٱلْأَرْضَ
ज़मीन से
ʿuyūnan
عُيُونًا
चश्मों को
fal-taqā
فَٱلْتَقَى
पस मिल गया
l-māu
ٱلْمَآءُ
पानी
ʿalā
عَلَىٰٓ
एक काम पर
amrin
أَمْرٍ
एक काम पर
qad
قَدْ
तहक़ीक़
qudira
قُدِرَ
जो मुक़द्दर हो चुका था
और धरती को प्रवाहित स्रोतों में परिवर्तित कर दिया, और सारा पानी उस काम के लिए मिल गया जो नियत हो चुका था ([५४] अल-कमर: 12)
Tafseer (तफ़सीर )
१३

وَحَمَلْنٰهُ عَلٰى ذَاتِ اَلْوَاحٍ وَّدُسُرٍۙ ١٣

waḥamalnāhu
وَحَمَلْنَٰهُ
और सवार किया हमने उसे
ʿalā
عَلَىٰ
ऊपर तख़्तों वाली के
dhāti
ذَاتِ
ऊपर तख़्तों वाली के
alwāḥin
أَلْوَٰحٍ
ऊपर तख़्तों वाली के
wadusurin
وَدُسُرٍ
और मेख़ों वाली के
और हमने उसे एक तख़्तों और कीलोंवाली (नौका) पर सवार किया, ([५४] अल-कमर: 13)
Tafseer (तफ़सीर )
१४

تَجْرِيْ بِاَعْيُنِنَاۚ جَزَاۤءً لِّمَنْ كَانَ كُفِرَ ١٤

tajrī
تَجْرِى
जो चल रही थी
bi-aʿyuninā
بِأَعْيُنِنَا
हमारी निगाहों के सामने
jazāan
جَزَآءً
बदला था
liman
لِّمَن
उसका जिसका
kāna
كَانَ
था
kufira
كُفِرَ
इन्कार किया गया
जो हमारी निगाहों के सामने चल रही थी - यह बदला था उस व्यक्ति के लिए जिसकी क़द्र नहीं की गई। ([५४] अल-कमर: 14)
Tafseer (तफ़सीर )
१५

وَلَقَدْ تَّرَكْنٰهَآ اٰيَةً فَهَلْ مِنْ مُّدَّكِرٍ ١٥

walaqad
وَلَقَد
और अलबत्ता तहक़ीक़
taraknāhā
تَّرَكْنَٰهَآ
छोड़ दिया हमने उसे
āyatan
ءَايَةً
एक निशानी (बनाकर)
fahal
فَهَلْ
तो क्या है
min
مِن
कोई नसीहत पकड़ने वाला
muddakirin
مُّدَّكِرٍ
कोई नसीहत पकड़ने वाला
हमने उसे एक निशानी बनाकर छोड़ दिया; फिर क्या कोई नसीहत हासिल करनेवाला? ([५४] अल-कमर: 15)
Tafseer (तफ़सीर )
१६

فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِيْ وَنُذُرِ ١٦

fakayfa
فَكَيْفَ
तो कैसा
kāna
كَانَ
था
ʿadhābī
عَذَابِى
अज़ाब मेरा
wanudhuri
وَنُذُرِ
और डराना मेरा
फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरे डरावे? ([५४] अल-कमर: 16)
Tafseer (तफ़सीर )
१७

وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْاٰنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِنْ مُّدَّكِرٍ ١٧

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
yassarnā
يَسَّرْنَا
आसान कर दिया हमने
l-qur'āna
ٱلْقُرْءَانَ
क़ुरान को
lildhik'ri
لِلذِّكْرِ
नसीहत के लिए
fahal
فَهَلْ
तो क्या है
min
مِن
कोई नसीहत पकड़ने वाला
muddakirin
مُّدَّكِرٍ
कोई नसीहत पकड़ने वाला
और हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या है कोई नसीहत करनेवाला? ([५४] अल-कमर: 17)
Tafseer (तफ़सीर )
१८

كَذَّبَتْ عَادٌ فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِيْ وَنُذُرِ ١٨

kadhabat
كَذَّبَتْ
झुठलाया
ʿādun
عَادٌ
आद ने
fakayfa
فَكَيْفَ
तो कैसा
kāna
كَانَ
था
ʿadhābī
عَذَابِى
अज़ाब मेरा
wanudhuri
وَنُذُرِ
और डराना मेरा
आद ने भी झुठलाया, फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरा डराना? ([५४] अल-कमर: 18)
Tafseer (तफ़सीर )
१९

اِنَّآ اَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِيْحًا صَرْصَرًا فِيْ يَوْمِ نَحْسٍ مُّسْتَمِرٍّۙ ١٩

innā
إِنَّآ
बेशक हम
arsalnā
أَرْسَلْنَا
भेजा हमने
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
rīḥan
رِيحًا
एक हवा
ṣarṣaran
صَرْصَرًا
तुंद व तेज़ को
فِى
एक दिन में
yawmi
يَوْمِ
एक दिन में
naḥsin
نَحْسٍ
मुसलसल नहूसत वाले
mus'tamirrin
مُّسْتَمِرٍّ
मुसलसल नहूसत वाले
निश्चय ही हमने एक निरन्तर अशुभ दिन में तेज़ प्रचंड ठंडी हवा भेजी, उसे उनपर मुसल्लत कर दिया, तो वह लोगों को उखाड़ फेंक रही थी ([५४] अल-कमर: 19)
Tafseer (तफ़सीर )
२०

تَنْزِعُ النَّاسَۙ كَاَنَّهُمْ اَعْجَازُ نَخْلٍ مُّنْقَعِرٍ ٢٠

tanziʿu
تَنزِعُ
उखाड़ कर फेंक रही थी
l-nāsa
ٱلنَّاسَ
लोगों को
ka-annahum
كَأَنَّهُمْ
गोया कि वो
aʿjāzu
أَعْجَازُ
तने थे
nakhlin
نَخْلٍ
खजूर के
munqaʿirin
مُّنقَعِرٍ
जड़ से उखड़े हुए
मानो वे उखड़े खजूर के तने हो ([५४] अल-कमर: 20)
Tafseer (तफ़सीर )