وَلِلّٰهِ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَمَا فِى الْاَرْضِۗ لِيَجْزِيَ الَّذِيْنَ اَسَاۤءُوْا بِمَا عَمِلُوْا وَيَجْزِيَ الَّذِيْنَ اَحْسَنُوْا بِالْحُسْنٰىۚ ٣١
- walillahi
- وَلِلَّهِ
- और अल्लाह ही के लिए है
- mā
- مَا
- जो कुछ
- fī
- فِى
- आसमानों में है
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों में है
- wamā
- وَمَا
- और जो कुछ
- fī
- فِى
- ज़मीन में है
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में है
- liyajziya
- لِيَجْزِىَ
- ताकि वो बदला दे
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनको जिन्होंने
- asāū
- أَسَٰٓـُٔوا۟
- बुरा किया
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- ʿamilū
- عَمِلُوا۟
- उन्होंने अमल किए
- wayajziya
- وَيَجْزِىَ
- और वो बदला दे
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनको जिन्होंने
- aḥsanū
- أَحْسَنُوا۟
- अच्छा किया
- bil-ḥus'nā
- بِٱلْحُسْنَى
- साथ भलाई के
अल्लाह ही का है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है, ताकि जिन लोगों ने बुराई की वह उन्हें उनके किए का बदला दे। और जिन लोगों ने भलाई की उन्हें अच्छा बदला दे; ([५३] अन-नज्म: 31)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَّذِيْنَ يَجْتَنِبُوْنَ كَبٰۤىِٕرَ الْاِثْمِ وَالْفَوَاحِشَ اِلَّا اللَّمَمَۙ اِنَّ رَبَّكَ وَاسِعُ الْمَغْفِرَةِۗ هُوَ اَعْلَمُ بِكُمْ اِذْ اَنْشَاَكُمْ مِّنَ الْاَرْضِ وَاِذْ اَنْتُمْ اَجِنَّةٌ فِيْ بُطُوْنِ اُمَّهٰتِكُمْۗ فَلَا تُزَكُّوْٓا اَنْفُسَكُمْۗ هُوَ اَعْلَمُ بِمَنِ اتَّقٰى ࣖ ٣٢
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- yajtanibūna
- يَجْتَنِبُونَ
- इज्तिनाब करते हैं
- kabāira
- كَبَٰٓئِرَ
- कबीरा
- l-ith'mi
- ٱلْإِثْمِ
- गुनाहों से
- wal-fawāḥisha
- وَٱلْفَوَٰحِشَ
- और बेहयाई से
- illā
- إِلَّا
- सिवाए
- l-lamama
- ٱللَّمَمَۚ
- छोटे गुनाहों के
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- rabbaka
- رَبَّكَ
- रब आपका
- wāsiʿu
- وَٰسِعُ
- वसीअ
- l-maghfirati
- ٱلْمَغْفِرَةِۚ
- मग़्फ़िरत वाला है
- huwa
- هُوَ
- वो
- aʿlamu
- أَعْلَمُ
- ज़्यादा जानता है
- bikum
- بِكُمْ
- तुम्हें
- idh
- إِذْ
- जब
- ansha-akum
- أَنشَأَكُم
- उसने पैदा किया तुम्हें
- mina
- مِّنَ
- ज़मीन से
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन से
- wa-idh
- وَإِذْ
- और जब
- antum
- أَنتُمْ
- तुम
- ajinnatun
- أَجِنَّةٌ
- जनीन थे
- fī
- فِى
- पेटों में
- buṭūni
- بُطُونِ
- पेटों में
- ummahātikum
- أُمَّهَٰتِكُمْۖ
- अपनी माओं के
- falā
- فَلَا
- पस ना
- tuzakkū
- تُزَكُّوٓا۟
- तुम पाक ठहराओ
- anfusakum
- أَنفُسَكُمْۖ
- अपने नफ़्सों को
- huwa
- هُوَ
- वो
- aʿlamu
- أَعْلَمُ
- ज़्यादा जानता है
- bimani
- بِمَنِ
- उसे जिसने
- ittaqā
- ٱتَّقَىٰٓ
- तक़्वा इख़्तियार किया
वे लोग जो बड़े गुनाहों और अश्लील कर्मों से बचते है, यह और बात है कि संयोगबश कोई छोटी बुराई उनसे हो जाए। निश्चय ही तुम्हारा रब क्षमाशीलता मे बड़ा व्यापक है। वह तुम्हें उस समय से भली-भाँति जानता है, जबकि उसने तुम्हें धरती से पैदा किया और जबकि तुम अपनी माँओ के पेटों में भ्रुण अवस्था में थे। अतः अपने मन की पवित्रता और निखार का दावा न करो। वह उस व्यक्ति को भली-भाँति जानता है, जिसने डर रखा ([५३] अन-नज्म: 32)Tafseer (तफ़सीर )
اَفَرَءَيْتَ الَّذِيْ تَوَلّٰىۙ ٣٣
- afara-ayta
- أَفَرَءَيْتَ
- क्या भला देखा आपने
- alladhī
- ٱلَّذِى
- उसे जो
- tawallā
- تَوَلَّىٰ
- मुँह मोड़ गया
क्या तुमने उस व्यक्ति को देखा जिसने मुँह फेरा, ([५३] अन-नज्म: 33)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَعْطٰى قَلِيْلًا وَّاَكْدٰى ٣٤
- wa-aʿṭā
- وَأَعْطَىٰ
- और उसने दिया
- qalīlan
- قَلِيلًا
- थोड़ा सा
- wa-akdā
- وَأَكْدَىٰٓ
- और उसने रोक लिया
और थोड़ा-सा देकर रुक गया; ([५३] अन-नज्म: 34)Tafseer (तफ़सीर )
اَعِنْدَهٗ عِلْمُ الْغَيْبِ فَهُوَ يَرٰى ٣٥
- aʿindahu
- أَعِندَهُۥ
- क्या उसके पास
- ʿil'mu
- عِلْمُ
- इल्म है
- l-ghaybi
- ٱلْغَيْبِ
- ग़ैब का
- fahuwa
- فَهُوَ
- तो वो
- yarā
- يَرَىٰٓ
- वो देख रहा है
क्या उसके पास परोक्ष का ज्ञान है कि वह देख रहा है; ([५३] अन-नज्म: 35)Tafseer (तफ़सीर )
اَمْ لَمْ يُنَبَّأْ بِمَا فِيْ صُحُفِ مُوْسٰى ٣٦
- am
- أَمْ
- या
- lam
- لَمْ
- नहीं
- yunabba
- يُنَبَّأْ
- वो ख़बर दिया गया
- bimā
- بِمَا
- उसकी जो
- fī
- فِى
- सहीफ़ों में है
- ṣuḥufi
- صُحُفِ
- सहीफ़ों में है
- mūsā
- مُوسَىٰ
- मूसा के
या उसको उन बातों की ख़बर नहीं पहुँची, जो मूसा की किताबों में है ([५३] अन-नज्म: 36)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِبْرٰهِيْمَ الَّذِيْ وَفّٰىٓ ۙ ٣٧
- wa-ib'rāhīma
- وَإِبْرَٰهِيمَ
- और इब्राहीम के
- alladhī
- ٱلَّذِى
- जिसने
- waffā
- وَفَّىٰٓ
- वफ़ा की
और इबराहीम की (किताबों में है), जिसने अल्लाह की बन्दगी का) पूरा-पूरा हक़ अदा कर दिया? ([५३] अन-नज्म: 37)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَّا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِّزْرَ اُخْرٰىۙ ٣٨
- allā
- أَلَّا
- कि ना
- taziru
- تَزِرُ
- बोझ उठाएगी
- wāziratun
- وَازِرَةٌ
- कोई बोझ उठाने वाली
- wiz'ra
- وِزْرَ
- बोझ
- ukh'rā
- أُخْرَىٰ
- किसी दूसरे की
यह कि कोई बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ न उठाएगा; ([५३] अन-नज्म: 38)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَنْ لَّيْسَ لِلْاِنْسَانِ اِلَّا مَا سَعٰىۙ ٣٩
- wa-an
- وَأَن
- और ये कि
- laysa
- لَّيْسَ
- नहीं है
- lil'insāni
- لِلْإِنسَٰنِ
- इन्सान के लिए
- illā
- إِلَّا
- मगर
- mā
- مَا
- जो
- saʿā
- سَعَىٰ
- उसने कोशिश की
और यह कि मनुष्य के लिए बस वही है जिसके लिए उसने प्रयास किया; ([५३] अन-नज्म: 39)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَنَّ سَعْيَهٗ سَوْفَ يُرٰىۖ ٤٠
- wa-anna
- وَأَنَّ
- और ये कि
- saʿyahu
- سَعْيَهُۥ
- कोशिश उसकी
- sawfa
- سَوْفَ
- अनक़रीब
- yurā
- يُرَىٰ
- वो देखी जाएगी
और यह कि उसका प्रयास शीघ्र ही देखा जाएगा। ([५३] अन-नज्म: 40)Tafseer (तफ़सीर )