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सूरा अज़-ज़ारियात - Page: 6

Adh-Dhariyat

(The Winnowing Winds)

५१

وَلَا تَجْعَلُوْا مَعَ اللّٰهِ اِلٰهًا اٰخَرَۗ اِنِّيْ لَكُمْ مِّنْهُ نَذِيْرٌ مُّبِيْنٌ ٥١

walā
وَلَا
और ना
tajʿalū
تَجْعَلُوا۟
तुम बनाओ
maʿa
مَعَ
साथ
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
ilāhan
إِلَٰهًا
इलाह
ākhara
ءَاخَرَۖ
कोई दूसरा
innī
إِنِّى
बेशक मैं
lakum
لَكُم
तुम्हारे लिए
min'hu
مِّنْهُ
उसकी तरफ़ से
nadhīrun
نَذِيرٌ
डराने वाला हूँ
mubīnun
مُّبِينٌ
खुल्लम-खुल्ला
और अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य-प्रभु न ठहराओ। मैं उसकी ओर से तुम्हारे लिए एक प्रत्यक्ष सावधान करनेवाला हूँ ([५१] अज़-ज़ारियात: 51)
Tafseer (तफ़सीर )
५२

كَذٰلِكَ مَآ اَتَى الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ مِّنْ رَّسُوْلٍ اِلَّا قَالُوْا سَاحِرٌ اَوْ مَجْنُوْنٌ ٥٢

kadhālika
كَذَٰلِكَ
इसी तरह
مَآ
नहीं
atā
أَتَى
आया
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उनके पास जो
min
مِن
उनसे पहले थे
qablihim
قَبْلِهِم
उनसे पहले थे
min
مِّن
कोई रसूल
rasūlin
رَّسُولٍ
कोई रसूल
illā
إِلَّا
मगर
qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
sāḥirun
سَاحِرٌ
जादूगर है
aw
أَوْ
या
majnūnun
مَجْنُونٌ
मजनून
इसी तरह उन लोगों के पास भी, जो उनसे पहले गुज़र चुके है, जो भी रसूल आया तो उन्होंने बस यही कहा, 'जादूगर है या दीवाना!' ([५१] अज़-ज़ारियात: 52)
Tafseer (तफ़सीर )
५३

اَتَوَاصَوْا بِهٖۚ بَلْ هُمْ قَوْمٌ طَاغُوْنَۚ ٥٣

atawāṣaw
أَتَوَاصَوْا۟
क्या वो एक दूसरे को वसीयत करते हैं
bihi
بِهِۦۚ
इसकी
bal
بَلْ
बल्कि
hum
هُمْ
वो
qawmun
قَوْمٌ
लोग हैं
ṭāghūna
طَاغُونَ
सरकश
क्या उन्होंने एक-दूसरे को इसकी वसीयत कर रखी है? नहीं, बल्कि वे है ही सरकश लोग ([५१] अज़-ज़ारियात: 53)
Tafseer (तफ़सीर )
५४

فَتَوَلَّ عَنْهُمْ فَمَآ اَنْتَ بِمَلُوْمٍ ٥٤

fatawalla
فَتَوَلَّ
पस मुँह मोड़ लीजिए
ʿanhum
عَنْهُمْ
उनसे
famā
فَمَآ
पस नहीं
anta
أَنتَ
आप
bimalūmin
بِمَلُومٍ
क़ाबिले मलामत
अतः उनसे मुँह फेर लो अब तुमपर कोई मलामत नहीं ([५१] अज़-ज़ारियात: 54)
Tafseer (तफ़सीर )
५५

وَذَكِّرْ فَاِنَّ الذِّكْرٰى تَنْفَعُ الْمُؤْمِنِيْنَ ٥٥

wadhakkir
وَذَكِّرْ
और नसीहत कीजिए
fa-inna
فَإِنَّ
पस बेशक
l-dhik'rā
ٱلذِّكْرَىٰ
नसीहत
tanfaʿu
تَنفَعُ
वो फ़ायदा देती है
l-mu'minīna
ٱلْمُؤْمِنِينَ
मोमिनों को
और याद दिलाते रहो, क्योंकि याद दिलाना ईमानवालों को लाभ पहुँचाता है ([५१] अज़-ज़ारियात: 55)
Tafseer (तफ़सीर )
५६

وَمَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَالْاِنْسَ اِلَّا لِيَعْبُدُوْنِ ٥٦

wamā
وَمَا
और नहीं
khalaqtu
خَلَقْتُ
पैदा किया मैं ने
l-jina
ٱلْجِنَّ
जिन्नों
wal-insa
وَٱلْإِنسَ
और इन्सानों को
illā
إِلَّا
मगर
liyaʿbudūni
لِيَعْبُدُونِ
इस लिए कि वो इबादत करें मेरी
मैंने तो जिन्नों और मनुष्यों को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी बन्दगी करे ([५१] अज़-ज़ारियात: 56)
Tafseer (तफ़सीर )
५७

مَآ اُرِيْدُ مِنْهُمْ مِّنْ رِّزْقٍ وَّمَآ اُرِيْدُ اَنْ يُّطْعِمُوْنِ ٥٧

مَآ
नहीं
urīdu
أُرِيدُ
मैं चाहता
min'hum
مِنْهُم
उनसे
min
مِّن
कोई रिज़्क़
riz'qin
رِّزْقٍ
कोई रिज़्क़
wamā
وَمَآ
और नहीं
urīdu
أُرِيدُ
मैं चाहता
an
أَن
कि
yuṭ'ʿimūni
يُطْعِمُونِ
वो खिलाऐ मुझे
मैं उनसे कोई रोज़ी नहीं चाहता और न यह चाहता हूँ कि वे मुझे खिलाएँ ([५१] अज़-ज़ारियात: 57)
Tafseer (तफ़सीर )
५८

اِنَّ اللّٰهَ هُوَ الرَّزَّاقُ ذُو الْقُوَّةِ الْمَتِيْنُ ٥٨

inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
huwa
هُوَ
वो ही है
l-razāqu
ٱلرَّزَّاقُ
ख़ूब रिज़्क़ देने वाला
dhū
ذُو
क़ुव्वत वाला
l-quwati
ٱلْقُوَّةِ
क़ुव्वत वाला
l-matīnu
ٱلْمَتِينُ
निहायत मज़बूत
निश्चय ही अल्लाह ही है रोज़ी देनेवाला, शक्तिशाली, दृढ़ ([५१] अज़-ज़ारियात: 58)
Tafseer (तफ़सीर )
५९

فَاِنَّ لِلَّذِيْنَ ظَلَمُوْا ذَنُوْبًا مِّثْلَ ذَنُوْبِ اَصْحٰبِهِمْ فَلَا يَسْتَعْجِلُوْنِ ٥٩

fa-inna
فَإِنَّ
तो बेशक
lilladhīna
لِلَّذِينَ
उनके लिए जिन्होंने
ẓalamū
ظَلَمُوا۟
ज़ुल्म किया
dhanūban
ذَنُوبًا
हिस्सा है
mith'la
مِّثْلَ
मानिन्द
dhanūbi
ذَنُوبِ
हिस्से के
aṣḥābihim
أَصْحَٰبِهِمْ
उनके साथियों के
falā
فَلَا
पस ना
yastaʿjilūni
يَسْتَعْجِلُونِ
वो जल्दी तलब करें मुझसे
अतः जिन लोगों ने ज़ुल्म किया है उनके लिए एक नियत पैमाना है; जैसा उनके साथियों का नियत पैमाना था। अतः वे मुझसे जल्दी न मचाएँ! ([५१] अज़-ज़ारियात: 59)
Tafseer (तफ़सीर )
६०

فَوَيْلٌ لِّلَّذِيْنَ كَفَرُوْا مِنْ يَّوْمِهِمُ الَّذِيْ يُوْعَدُوْنَ ࣖ ٦٠

fawaylun
فَوَيْلٌ
पस हलाकत है
lilladhīna
لِّلَّذِينَ
उनके लिए जिन्होंने
kafarū
كَفَرُوا۟
कुफ़्र किया
min
مِن
उनके उस दिन से
yawmihimu
يَوْمِهِمُ
उनके उस दिन से
alladhī
ٱلَّذِى
जिसका
yūʿadūna
يُوعَدُونَ
वो वादा दिए जाते हैं
अतः इनकार करनेवालों के लिए बड़ी खराबी है, उनके उस दिन के कारण जिसकी उन्हें धमकी दी जा रही है ([५१] अज़-ज़ारियात: 60)
Tafseer (तफ़सीर )