३१
قَالَ فَمَا خَطْبُكُمْ اَيُّهَا الْمُرْسَلُوْنَۚ ٣١
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- famā
- فَمَا
- तो क्या
- khaṭbukum
- خَطْبُكُمْ
- मामला है तुम्हारा
- ayyuhā
- أَيُّهَا
- ऐ भेजे जाने वालो(फ़रिश्तो)
- l-mur'salūna
- ٱلْمُرْسَلُونَ
- ऐ भेजे जाने वालो(फ़रिश्तो)
उसने कहा, 'ऐ (अल्लाह के भेजे हुए) दूतों, तुम्हारे सामने क्या मुहिम है?' ([५१] अज़-ज़ारियात: 31)Tafseer (तफ़सीर )
३२
قَالُوْٓ اِنَّآ اُرْسِلْنَآ اِلٰى قَوْمٍ مُّجْرِمِيْنَۙ ٣٢
- qālū
- قَالُوٓا۟
- उन्होंने कहा
- innā
- إِنَّآ
- बेशक हम
- ur'sil'nā
- أُرْسِلْنَآ
- भेजे गए हम
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ उन लोगों के
- qawmin
- قَوْمٍ
- तरफ़ उन लोगों के
- muj'rimīna
- مُّجْرِمِينَ
- जो मुजरिम हैं
उन्होंने कहा, 'हम एक अपराधी क़ौम की ओर भेजे गए है; ([५१] अज़-ज़ारियात: 32)Tafseer (तफ़सीर )
३३
لِنُرْسِلَ عَلَيْهِمْ حِجَارَةً مِّنْ طِيْنٍۙ ٣٣
- linur'sila
- لِنُرْسِلَ
- ताकि हम भेजें
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- ḥijāratan
- حِجَارَةً
- पत्थर
- min
- مِّن
- मिट्टी के
- ṭīnin
- طِينٍ
- मिट्टी के
'ताकि उनके ऊपर मिट्टी के पत्थर (कंकड़) बरसाएँ, ([५१] अज़-ज़ारियात: 33)Tafseer (तफ़सीर )
३४
مُّسَوَّمَةً عِنْدَ رَبِّكَ لِلْمُسْرِفِيْنَ ٣٤
- musawwamatan
- مُّسَوَّمَةً
- निशानज़दा
- ʿinda
- عِندَ
- तेरे रब के यहाँ से
- rabbika
- رَبِّكَ
- तेरे रब के यहाँ से
- lil'mus'rifīna
- لِلْمُسْرِفِينَ
- हद से बढ़ने वालों के लिए
जो आपके रब के यहाँ सीमा का अतिक्रमण करनेवालों के लिए चिन्हित है।' ([५१] अज़-ज़ारियात: 34)Tafseer (तफ़सीर )
३५
فَاَخْرَجْنَا مَنْ كَانَ فِيْهَا مِنَ الْمُؤْمِنِيْنَۚ ٣٥
- fa-akhrajnā
- فَأَخْرَجْنَا
- तो निकाल लिया हमने
- man
- مَن
- जो कोई
- kāna
- كَانَ
- था
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- mina
- مِنَ
- मोमिनों में से
- l-mu'minīna
- ٱلْمُؤْمِنِينَ
- मोमिनों में से
फिर वहाँ जो ईमानवाले थे, उन्हें हमने निकाल लिया; ([५१] अज़-ज़ारियात: 35)Tafseer (तफ़सीर )
३६
فَمَا وَجَدْنَا فِيْهَا غَيْرَ بَيْتٍ مِّنَ الْمُسْلِمِيْنَۚ ٣٦
- famā
- فَمَا
- तो ना
- wajadnā
- وَجَدْنَا
- पाया हमने
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- ghayra
- غَيْرَ
- सिवाए
- baytin
- بَيْتٍ
- एक घर के
- mina
- مِّنَ
- मुसलमानों में से
- l-mus'limīna
- ٱلْمُسْلِمِينَ
- मुसलमानों में से
किन्तु हमने वहाँ एक घर के अतिरिक्त मुसलमानों (आज्ञाकारियों) का और कोई घर न पाया ([५१] अज़-ज़ारियात: 36)Tafseer (तफ़सीर )
३७
وَتَرَكْنَا فِيْهَآ اٰيَةً لِّلَّذِيْنَ يَخَافُوْنَ الْعَذَابَ الْاَلِيْمَۗ ٣٧
- wataraknā
- وَتَرَكْنَا
- और छोड़ दी हमने
- fīhā
- فِيهَآ
- उसमें
- āyatan
- ءَايَةً
- एक निशानी
- lilladhīna
- لِّلَّذِينَ
- उन लोगों के लिए जो
- yakhāfūna
- يَخَافُونَ
- डरते हैं
- l-ʿadhāba
- ٱلْعَذَابَ
- अज़ाब
- l-alīma
- ٱلْأَلِيمَ
- दर्दनाक से
इसके पश्चात हमने वहाँ उन लोगों के लिए एक निशानी छोड़ दी, जो दुखद यातना से डरते है ([५१] अज़-ज़ारियात: 37)Tafseer (तफ़सीर )
३८
وَفِيْ مُوْسٰىٓ اِذْ اَرْسَلْنٰهُ اِلٰى فِرْعَوْنَ بِسُلْطٰنٍ مُّبِيْنٍ ٣٨
- wafī
- وَفِى
- और मूसा में(निशानी है)
- mūsā
- مُوسَىٰٓ
- और मूसा में(निशानी है)
- idh
- إِذْ
- जब
- arsalnāhu
- أَرْسَلْنَٰهُ
- भेजा हमने उसे
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ फ़िरऔन के
- fir'ʿawna
- فِرْعَوْنَ
- तरफ़ फ़िरऔन के
- bisul'ṭānin
- بِسُلْطَٰنٍ
- साथ दलील
- mubīnin
- مُّبِينٍ
- खुली के
और मूसा के वृतान्त में भी (निशानी है) जब हमने फ़िरऔन के पास के स्पष्ट प्रमाण के साथ भेजा, ([५१] अज़-ज़ारियात: 38)Tafseer (तफ़सीर )
३९
فَتَوَلّٰى بِرُكْنِهٖ وَقَالَ سٰحِرٌ اَوْ مَجْنُوْنٌ ٣٩
- fatawallā
- فَتَوَلَّىٰ
- तो उसने मुँह मोड़ लिया
- biruk'nihi
- بِرُكْنِهِۦ
- बवजह अपनी क़ुव्वत के
- waqāla
- وَقَالَ
- और वो कहने लगा
- sāḥirun
- سَٰحِرٌ
- जादूगर है
- aw
- أَوْ
- या
- majnūnun
- مَجْنُونٌ
- मजनून
किन्तु उसने अपनी शक्ति के कारण मुँह फेर लिया और कहा, 'जादूगर है या दीवाना।' ([५१] अज़-ज़ारियात: 39)Tafseer (तफ़सीर )
४०
فَاَخَذْنٰهُ وَجُنُوْدَهٗ فَنَبَذْنٰهُمْ فِى الْيَمِّ وَهُوَ مُلِيْمٌۗ ٤٠
- fa-akhadhnāhu
- فَأَخَذْنَٰهُ
- तो पकड़ लिया हमने उसे
- wajunūdahu
- وَجُنُودَهُۥ
- और उसके लश्करों को
- fanabadhnāhum
- فَنَبَذْنَٰهُمْ
- तो फ़ेंक दिया हमने उन्हें
- fī
- فِى
- समुन्दर में
- l-yami
- ٱلْيَمِّ
- समुन्दर में
- wahuwa
- وَهُوَ
- और वो
- mulīmun
- مُلِيمٌ
- मलामत ज़दा था
अन्ततः हमने उसे और उसकी सेनाओं को पकड़ लिया और उन्हें गहरे पानी में फेंक दिया, इस दशा में कि वह निन्दनीय था ([५१] अज़-ज़ारियात: 40)Tafseer (तफ़सीर )