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सूरा अज़-ज़ारियात - Page: 4

Adh-Dhariyat

(The Winnowing Winds)

३१

قَالَ فَمَا خَطْبُكُمْ اَيُّهَا الْمُرْسَلُوْنَۚ ٣١

qāla
قَالَ
उसने कहा
famā
فَمَا
तो क्या
khaṭbukum
خَطْبُكُمْ
मामला है तुम्हारा
ayyuhā
أَيُّهَا
ऐ भेजे जाने वालो(फ़रिश्तो)
l-mur'salūna
ٱلْمُرْسَلُونَ
ऐ भेजे जाने वालो(फ़रिश्तो)
उसने कहा, 'ऐ (अल्लाह के भेजे हुए) दूतों, तुम्हारे सामने क्या मुहिम है?' ([५१] अज़-ज़ारियात: 31)
Tafseer (तफ़सीर )
३२

قَالُوْٓ اِنَّآ اُرْسِلْنَآ اِلٰى قَوْمٍ مُّجْرِمِيْنَۙ ٣٢

qālū
قَالُوٓا۟
उन्होंने कहा
innā
إِنَّآ
बेशक हम
ur'sil'nā
أُرْسِلْنَآ
भेजे गए हम
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ उन लोगों के
qawmin
قَوْمٍ
तरफ़ उन लोगों के
muj'rimīna
مُّجْرِمِينَ
जो मुजरिम हैं
उन्होंने कहा, 'हम एक अपराधी क़ौम की ओर भेजे गए है; ([५१] अज़-ज़ारियात: 32)
Tafseer (तफ़सीर )
३३

لِنُرْسِلَ عَلَيْهِمْ حِجَارَةً مِّنْ طِيْنٍۙ ٣٣

linur'sila
لِنُرْسِلَ
ताकि हम भेजें
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
ḥijāratan
حِجَارَةً
पत्थर
min
مِّن
मिट्टी के
ṭīnin
طِينٍ
मिट्टी के
'ताकि उनके ऊपर मिट्टी के पत्थर (कंकड़) बरसाएँ, ([५१] अज़-ज़ारियात: 33)
Tafseer (तफ़सीर )
३४

مُّسَوَّمَةً عِنْدَ رَبِّكَ لِلْمُسْرِفِيْنَ ٣٤

musawwamatan
مُّسَوَّمَةً
निशानज़दा
ʿinda
عِندَ
तेरे रब के यहाँ से
rabbika
رَبِّكَ
तेरे रब के यहाँ से
lil'mus'rifīna
لِلْمُسْرِفِينَ
हद से बढ़ने वालों के लिए
जो आपके रब के यहाँ सीमा का अतिक्रमण करनेवालों के लिए चिन्हित है।' ([५१] अज़-ज़ारियात: 34)
Tafseer (तफ़सीर )
३५

فَاَخْرَجْنَا مَنْ كَانَ فِيْهَا مِنَ الْمُؤْمِنِيْنَۚ ٣٥

fa-akhrajnā
فَأَخْرَجْنَا
तो निकाल लिया हमने
man
مَن
जो कोई
kāna
كَانَ
था
fīhā
فِيهَا
उसमें
mina
مِنَ
मोमिनों में से
l-mu'minīna
ٱلْمُؤْمِنِينَ
मोमिनों में से
फिर वहाँ जो ईमानवाले थे, उन्हें हमने निकाल लिया; ([५१] अज़-ज़ारियात: 35)
Tafseer (तफ़सीर )
३६

فَمَا وَجَدْنَا فِيْهَا غَيْرَ بَيْتٍ مِّنَ الْمُسْلِمِيْنَۚ ٣٦

famā
فَمَا
तो ना
wajadnā
وَجَدْنَا
पाया हमने
fīhā
فِيهَا
उसमें
ghayra
غَيْرَ
सिवाए
baytin
بَيْتٍ
एक घर के
mina
مِّنَ
मुसलमानों में से
l-mus'limīna
ٱلْمُسْلِمِينَ
मुसलमानों में से
किन्तु हमने वहाँ एक घर के अतिरिक्त मुसलमानों (आज्ञाकारियों) का और कोई घर न पाया ([५१] अज़-ज़ारियात: 36)
Tafseer (तफ़सीर )
३७

وَتَرَكْنَا فِيْهَآ اٰيَةً لِّلَّذِيْنَ يَخَافُوْنَ الْعَذَابَ الْاَلِيْمَۗ ٣٧

wataraknā
وَتَرَكْنَا
और छोड़ दी हमने
fīhā
فِيهَآ
उसमें
āyatan
ءَايَةً
एक निशानी
lilladhīna
لِّلَّذِينَ
उन लोगों के लिए जो
yakhāfūna
يَخَافُونَ
डरते हैं
l-ʿadhāba
ٱلْعَذَابَ
अज़ाब
l-alīma
ٱلْأَلِيمَ
दर्दनाक से
इसके पश्चात हमने वहाँ उन लोगों के लिए एक निशानी छोड़ दी, जो दुखद यातना से डरते है ([५१] अज़-ज़ारियात: 37)
Tafseer (तफ़सीर )
३८

وَفِيْ مُوْسٰىٓ اِذْ اَرْسَلْنٰهُ اِلٰى فِرْعَوْنَ بِسُلْطٰنٍ مُّبِيْنٍ ٣٨

wafī
وَفِى
और मूसा में(निशानी है)
mūsā
مُوسَىٰٓ
और मूसा में(निशानी है)
idh
إِذْ
जब
arsalnāhu
أَرْسَلْنَٰهُ
भेजा हमने उसे
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ फ़िरऔन के
fir'ʿawna
فِرْعَوْنَ
तरफ़ फ़िरऔन के
bisul'ṭānin
بِسُلْطَٰنٍ
साथ दलील
mubīnin
مُّبِينٍ
खुली के
और मूसा के वृतान्त में भी (निशानी है) जब हमने फ़िरऔन के पास के स्पष्ट प्रमाण के साथ भेजा, ([५१] अज़-ज़ारियात: 38)
Tafseer (तफ़सीर )
३९

فَتَوَلّٰى بِرُكْنِهٖ وَقَالَ سٰحِرٌ اَوْ مَجْنُوْنٌ ٣٩

fatawallā
فَتَوَلَّىٰ
तो उसने मुँह मोड़ लिया
biruk'nihi
بِرُكْنِهِۦ
बवजह अपनी क़ुव्वत के
waqāla
وَقَالَ
और वो कहने लगा
sāḥirun
سَٰحِرٌ
जादूगर है
aw
أَوْ
या
majnūnun
مَجْنُونٌ
मजनून
किन्तु उसने अपनी शक्ति के कारण मुँह फेर लिया और कहा, 'जादूगर है या दीवाना।' ([५१] अज़-ज़ारियात: 39)
Tafseer (तफ़सीर )
४०

فَاَخَذْنٰهُ وَجُنُوْدَهٗ فَنَبَذْنٰهُمْ فِى الْيَمِّ وَهُوَ مُلِيْمٌۗ ٤٠

fa-akhadhnāhu
فَأَخَذْنَٰهُ
तो पकड़ लिया हमने उसे
wajunūdahu
وَجُنُودَهُۥ
और उसके लश्करों को
fanabadhnāhum
فَنَبَذْنَٰهُمْ
तो फ़ेंक दिया हमने उन्हें
فِى
समुन्दर में
l-yami
ٱلْيَمِّ
समुन्दर में
wahuwa
وَهُوَ
और वो
mulīmun
مُلِيمٌ
मलामत ज़दा था
अन्ततः हमने उसे और उसकी सेनाओं को पकड़ लिया और उन्हें गहरे पानी में फेंक दिया, इस दशा में कि वह निन्दनीय था ([५१] अज़-ज़ारियात: 40)
Tafseer (तफ़सीर )