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सूरा अज़-ज़ारियात - Page: 3

Adh-Dhariyat

(The Winnowing Winds)

२१

وَفِيْٓ اَنْفُسِكُمْ ۗ اَفَلَا تُبْصِرُوْنَ ٢١

wafī
وَفِىٓ
और तुम्हारे नफ़्सों में भी
anfusikum
أَنفُسِكُمْۚ
और तुम्हारे नफ़्सों में भी
afalā
أَفَلَا
क्या भला नहीं
tub'ṣirūna
تُبْصِرُونَ
तुम देखते
और ,स्वयं तुम्हारे अपने आप में भी। तो क्या तुम देखते नहीं? ([५१] अज़-ज़ारियात: 21)
Tafseer (तफ़सीर )
२२

وَفِى السَّمَاۤءِ رِزْقُكُمْ وَمَا تُوْعَدُوْنَ ٢٢

wafī
وَفِى
और आसमान में
l-samāi
ٱلسَّمَآءِ
और आसमान में
riz'qukum
رِزْقُكُمْ
रिज़्क़ है तुम्हारा
wamā
وَمَا
और जो
tūʿadūna
تُوعَدُونَ
तुम वादा किए जाते हो
और आकाश मे ही तुम्हारी रोज़ी है और वह चीज़ भी जिसका तुमसे वादा किया जा रहा है ([५१] अज़-ज़ारियात: 22)
Tafseer (तफ़सीर )
२३

فَوَرَبِّ السَّمَاۤءِ وَالْاَرْضِ اِنَّهٗ لَحَقٌّ مِّثْلَ مَآ اَنَّكُمْ تَنْطِقُوْنَ ࣖ ٢٣

fawarabbi
فَوَرَبِّ
पस क़सम है रब की
l-samāi
ٱلسَّمَآءِ
आसमान
wal-arḍi
وَٱلْأَرْضِ
और ज़मीन के
innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
laḥaqqun
لَحَقٌّ
अलबत्ता हक़ है
mith'la
مِّثْلَ
मानिन्द
مَآ
उसके जो
annakum
أَنَّكُمْ
बेशक तुम
tanṭiqūna
تَنطِقُونَ
तुम बोलते हो
अतः सौगन्ध है आकाश और धरती के रब की। निश्चय ही वह सत्य बात है ऐसे ही जैसे तुम बोलते हो ([५१] अज़-ज़ारियात: 23)
Tafseer (तफ़सीर )
२४

هَلْ اَتٰىكَ حَدِيْثُ ضَيْفِ اِبْرٰهِيْمَ الْمُكْرَمِيْنَۘ ٢٤

hal
هَلْ
क्या
atāka
أَتَىٰكَ
आई आपके पास
ḥadīthu
حَدِيثُ
ख़बर
ḍayfi
ضَيْفِ
मेहमानों की
ib'rāhīma
إِبْرَٰهِيمَ
इब्राहीम के
l-muk'ramīna
ٱلْمُكْرَمِينَ
जो मोअज़्ज़िज़ थे
क्या इबराईम के प्रतिष्ठित अतिथियों का वृतान्त तुम तक पहँचा? ([५१] अज़-ज़ारियात: 24)
Tafseer (तफ़सीर )
२५

اِذْ دَخَلُوْا عَلَيْهِ فَقَالُوْا سَلٰمًا ۗقَالَ سَلٰمٌۚ قَوْمٌ مُّنْكَرُوْنَ ٢٥

idh
إِذْ
जब
dakhalū
دَخَلُوا۟
वो दाख़िल हुए
ʿalayhi
عَلَيْهِ
उस पर
faqālū
فَقَالُوا۟
तो उन्होंने कहा
salāman
سَلَٰمًاۖ
सलाम हो
qāla
قَالَ
उसने कहा
salāmun
سَلَٰمٌ
सलाम हो
qawmun
قَوْمٌ
लोग हो
munkarūna
مُّنكَرُونَ
अजनबी
जब वे उसके पास आए तो कहा, 'सलाम है तुमपर!' उसने भी कहा, 'सलाम है आप लोगों पर भी!' (और जी में कहा) 'ये तो अपरिचित लोग हैं।' ([५१] अज़-ज़ारियात: 25)
Tafseer (तफ़सीर )
२६

فَرَاغَ اِلٰٓى اَهْلِهٖ فَجَاۤءَ بِعِجْلٍ سَمِيْنٍۙ ٢٦

farāgha
فَرَاغَ
फिर वो गया
ilā
إِلَىٰٓ
तरफ़ अपने घर वालों के
ahlihi
أَهْلِهِۦ
तरफ़ अपने घर वालों के
fajāa
فَجَآءَ
पस वो ले आया
biʿij'lin
بِعِجْلٍ
एक बछड़ा (भुना हुआ)
samīnin
سَمِينٍ
मोटा ताज़ा
फिर वह चुपके से अपने घरवालों के पास गया और एक मोटा-ताज़ा बछड़ा (का भूना हुआ मांस) ले आया ([५१] अज़-ज़ारियात: 26)
Tafseer (तफ़सीर )
२७

فَقَرَّبَهٗٓ اِلَيْهِمْۚ قَالَ اَلَا تَأْكُلُوْنَ ٢٧

faqarrabahu
فَقَرَّبَهُۥٓ
फिर उसने क़रीब किया उसे
ilayhim
إِلَيْهِمْ
तरफ़ उनके
qāla
قَالَ
उसने कहा
alā
أَلَا
क्या नहीं
takulūna
تَأْكُلُونَ
तुम खाते
और उसे उनके सामने पेश किया। कहा, 'क्या आप खाते नहीं?' ([५१] अज़-ज़ारियात: 27)
Tafseer (तफ़सीर )
२८

فَاَوْجَسَ مِنْهُمْ خِيْفَةً ۗقَالُوْا لَا تَخَفْۗ وَبَشَّرُوْهُ بِغُلٰمٍ عَلِيْمٍ ٢٨

fa-awjasa
فَأَوْجَسَ
तो उसने महसूस किया
min'hum
مِنْهُمْ
उनसे
khīfatan
خِيفَةًۖ
ख़ौफ़
qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
لَا
ना तुम डरो
takhaf
تَخَفْۖ
ना तुम डरो
wabasharūhu
وَبَشَّرُوهُ
और उन्होंने ख़ुशख़बरी दी उसे
bighulāmin
بِغُلَٰمٍ
एक लड़के
ʿalīmin
عَلِيمٍ
बहुत इल्म वाले की
फिर उसने दिल में उनसे डर महसूस किया। उन्होंने कहा, 'डरिए नहीं।' और उन्होंने उसे एक ज्ञानवान लड़के की मंगल-सूचना दी ([५१] अज़-ज़ारियात: 28)
Tafseer (तफ़सीर )
२९

فَاَقْبَلَتِ امْرَاَتُهٗ فِيْ صَرَّةٍ فَصَكَّتْ وَجْهَهَا وَقَالَتْ عَجُوْزٌ عَقِيْمٌ ٢٩

fa-aqbalati
فَأَقْبَلَتِ
तो आगे बढ़ी
im'ra-atuhu
ٱمْرَأَتُهُۥ
बीवी उसकी
فِى
एक चीख़ के साथ
ṣarratin
صَرَّةٍ
एक चीख़ के साथ
faṣakkat
فَصَكَّتْ
तो उसने हाथ मारा
wajhahā
وَجْهَهَا
अपने चेहरे पर
waqālat
وَقَالَتْ
और वो कहने लगी
ʿajūzun
عَجُوزٌ
बुढ़िया
ʿaqīmun
عَقِيمٌ
बाँझ
इसपर उसकी स्त्री (चकित होकर) आगे बढ़ी और उसने अपना मुँह पीट लिया और कहने लगी, 'एक बूढ़ी बाँझ (के यहाँ बच्चा पैदा होगा)!' ([५१] अज़-ज़ारियात: 29)
Tafseer (तफ़सीर )
३०

قَالُوْا كَذٰلِكِۙ قَالَ رَبُّكِ ۗاِنَّهٗ هُوَ الْحَكِيْمُ الْعَلِيْمُ ۔ ٣٠

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
kadhāliki
كَذَٰلِكِ
इसी तरह होगा
qāla
قَالَ
फ़रमाया है
rabbuki
رَبُّكِۖ
तेरे रब ने
innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
huwa
هُوَ
वो ही है
l-ḥakīmu
ٱلْحَكِيمُ
ख़ूब हिकमत वाला
l-ʿalīmu
ٱلْعَلِيمُ
बहुत इल्म वाला
उन्होंने कहा, 'ऐसी ही तेरे रब ने कहा है। निश्चय ही वह बड़ा तत्वदर्शी, ज्ञानवान है।' ([५१] अज़-ज़ारियात: 30)
Tafseer (तफ़सीर )