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सूरा काफ - Page: 4

Qaf

(क़ाफ़ अक्षर)

३१

وَاُزْلِفَتِ الْجَنَّةُ لِلْمُتَّقِيْنَ غَيْرَ بَعِيْدٍ ٣١

wa-uz'lifati
وَأُزْلِفَتِ
और क़रीब लाई जाएगी
l-janatu
ٱلْجَنَّةُ
जन्नत
lil'muttaqīna
لِلْمُتَّقِينَ
मुत्तक़ी लोगों के लिए
ghayra
غَيْرَ
कुछ दूर ना होगी
baʿīdin
بَعِيدٍ
कुछ दूर ना होगी
और जन्नत डर रखनेवालों के लिए निकट कर दी गई, कुछ भी दूर न रही ([५०] काफ: 31)
Tafseer (तफ़सीर )
३२

هٰذَا مَا تُوْعَدُوْنَ لِكُلِّ اَوَّابٍ حَفِيْظٍۚ ٣٢

hādhā
هَٰذَا
ये है
مَا
वो जो
tūʿadūna
تُوعَدُونَ
तुम वादा किए जाते थे
likulli
لِكُلِّ
वास्ते हर
awwābin
أَوَّابٍ
बहुत रुजूअ करने वाले
ḥafīẓin
حَفِيظٍ
बहुत हिफ़ाज़त करने वाले के
'यह है वह चीज़ जिसका तुमसे वादा किया जाता था हर रुजू करनेवाले, बड़ी निगरानी रखनेवाले के लिए; - ([५०] काफ: 32)
Tafseer (तफ़सीर )
३३

مَنْ خَشِيَ الرَّحْمٰنَ بِالْغَيْبِ وَجَاۤءَ بِقَلْبٍ مُّنِيْبٍۙ ٣٣

man
مَّنْ
जो
khashiya
خَشِىَ
डरा
l-raḥmāna
ٱلرَّحْمَٰنَ
रहमान से
bil-ghaybi
بِٱلْغَيْبِ
ग़ायबाना/ बिन देखे
wajāa
وَجَآءَ
और वो लाया
biqalbin
بِقَلْبٍ
दिल
munībin
مُّنِيبٍ
रुजूअ करने वाला
'जो रहमान से डरा परोक्ष में और आया रुजू रहनेवाला हृदय लेकर - ([५०] काफ: 33)
Tafseer (तफ़सीर )
३४

ۨادْخُلُوْهَا بِسَلٰمٍ ۗذٰلِكَ يَوْمُ الْخُلُوْدِ ٣٤

ud'khulūhā
ٱدْخُلُوهَا
दाख़िल हो जाओ उसमें
bisalāmin
بِسَلَٰمٍۖ
साथ सलामती के
dhālika
ذَٰلِكَ
ये
yawmu
يَوْمُ
दिन है
l-khulūdi
ٱلْخُلُودِ
हमेशगी का
'प्रवेश करो उस (जन्नत) में सलामती के साथ' वह शाश्वत दिवस है ([५०] काफ: 34)
Tafseer (तफ़सीर )
३५

لَهُمْ مَّا يَشَاۤءُوْنَ فِيْهَا وَلَدَيْنَا مَزِيْدٌ ٣٥

lahum
لَهُم
उनके लिए होगा
مَّا
जो
yashāūna
يَشَآءُونَ
वो चाहेंगे
fīhā
فِيهَا
उसमें
waladaynā
وَلَدَيْنَا
और हमारे पास
mazīdun
مَزِيدٌ
मज़ीद है
उनके लिए उसमें वह सब कुछ है जो वे चाहे और हमारे पास उससे अधिक भी है ([५०] काफ: 35)
Tafseer (तफ़सीर )
३६

وَكَمْ اَهْلَكْنَا قَبْلَهُمْ مِّنْ قَرْنٍ هُمْ اَشَدُّ مِنْهُمْ بَطْشًا فَنَقَّبُوْا فِى الْبِلَادِۗ هَلْ مِنْ مَّحِيْصٍ ٣٦

wakam
وَكَمْ
और कितनी ही
ahlaknā
أَهْلَكْنَا
हलाक कीं हमने
qablahum
قَبْلَهُم
उनसे पहले
min
مِّن
उम्मतें
qarnin
قَرْنٍ
उम्मतें
hum
هُمْ
वो
ashaddu
أَشَدُّ
ज़्यादा शदीद थीं
min'hum
مِنْهُم
उनसे
baṭshan
بَطْشًا
पकड़ में
fanaqqabū
فَنَقَّبُوا۟
तो उन्होंने छान मारा था
فِى
मुल्कों को
l-bilādi
ٱلْبِلَٰدِ
मुल्कों को
hal
هَلْ
क्या है
min
مِن
कोई जाए पनाह
maḥīṣin
مَّحِيصٍ
कोई जाए पनाह
उनसे पहले हम कितनी ही नस्लों को विनष्ट कर चुके है। वे लोग शक्ति में उनसे कहीं बढ़-चढ़कर थे। (पनाह की तलाश में) उन्होंने नगरों को छान मारा, कोई है भागने को ठिकाना? ([५०] काफ: 36)
Tafseer (तफ़सीर )
३७

اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَذِكْرٰى لِمَنْ كَانَ لَهٗ قَلْبٌ اَوْ اَلْقَى السَّمْعَ وَهُوَ شَهِيْدٌ ٣٧

inna
إِنَّ
यक़ीनन
فِى
इसमें
dhālika
ذَٰلِكَ
इसमें
ladhik'rā
لَذِكْرَىٰ
अलबत्ता नसीहत है
liman
لِمَن
वास्ते उसके जो
kāna
كَانَ
हो
lahu
لَهُۥ
उसके लिए
qalbun
قَلْبٌ
दिल
aw
أَوْ
या
alqā
أَلْقَى
वो लगाए
l-samʿa
ٱلسَّمْعَ
कान
wahuwa
وَهُوَ
जबकि वो
shahīdun
شَهِيدٌ
हाज़िर हो
निश्चय ही इसमें उस व्यक्ति के लिए शिक्षा-सामग्री है जिसके पास दिल हो या वह (दिल से) हाजिर रहकर कान लगाए ([५०] काफ: 37)
Tafseer (तफ़सीर )
३८

وَلَقَدْ خَلَقْنَا السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِيْ سِتَّةِ اَيَّامٍۖ وَّمَا مَسَّنَا مِنْ لُّغُوْبٍ ٣٨

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
khalaqnā
خَلَقْنَا
पैदा किया हमने
l-samāwāti
ٱلسَّمَٰوَٰتِ
आसमानों
wal-arḍa
وَٱلْأَرْضَ
और ज़मीन को
wamā
وَمَا
और जो
baynahumā
بَيْنَهُمَا
दर्मियान है उन दोनों के
فِى
छ: दिनों में
sittati
سِتَّةِ
छ: दिनों में
ayyāmin
أَيَّامٍ
छ: दिनों में
wamā
وَمَا
और नहीं
massanā
مَسَّنَا
छुआ हमें
min
مِن
किसी थकावट ने
lughūbin
لُّغُوبٍ
किसी थकावट ने
हमने आकाशों और धरती को और जो कुछ उनके बीच है छः दिनों में पैदा कर दिया और हमें कोई थकान न छू सकी ([५०] काफ: 38)
Tafseer (तफ़सीर )
३९

فَاصْبِرْ عَلٰى مَا يَقُوْلُوْنَ وَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ قَبْلَ طُلُوْعِ الشَّمْسِ وَقَبْلَ الْغُرُوْبِ ٣٩

fa-iṣ'bir
فَٱصْبِرْ
पस सब्र कीजिए
ʿalā
عَلَىٰ
ऊपर
مَا
उसके जो
yaqūlūna
يَقُولُونَ
वो कहते हैं
wasabbiḥ
وَسَبِّحْ
और तस्बीह कीजिए
biḥamdi
بِحَمْدِ
साथ हम्द के
rabbika
رَبِّكَ
अपने रब की
qabla
قَبْلَ
पहले
ṭulūʿi
طُلُوعِ
तुलूअ होने से
l-shamsi
ٱلشَّمْسِ
सूरज के
waqabla
وَقَبْلَ
और पहले
l-ghurūbi
ٱلْغُرُوبِ
ग़ुरूब होने से
अतः जो कुछ वे कहते है उसपर धैर्य से काम लो और अपने रब की प्रशंसा की तसबीह करो; सूर्योदय से पूर्व और सूर्यास्त के पूर्व, ([५०] काफ: 39)
Tafseer (तफ़सीर )
४०

وَمِنَ الَّيْلِ فَسَبِّحْهُ وَاَدْبَارَ السُّجُوْدِ ٤٠

wamina
وَمِنَ
और रात में से
al-layli
ٱلَّيْلِ
और रात में से
fasabbiḥ'hu
فَسَبِّحْهُ
पस तस्बीह कीजिए उसकी
wa-adbāra
وَأَدْبَٰرَ
और बाद
l-sujūdi
ٱلسُّجُودِ
सजदों के
और रात की घड़ियों में फिर उसकी तसबीह करो और सजदों के पश्चात भी ([५०] काफ: 40)
Tafseer (तफ़सीर )