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सूरा अल-माइदा - Page: 9

Al-Ma'idah

(मेज़)

८१

وَلَوْ كَانُوْا يُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ وَالنَّبِيِّ وَمَآ اُنْزِلَ اِلَيْهِ مَا اتَّخَذُوْهُمْ اَوْلِيَاۤءَ وَلٰكِنَّ كَثِيْرًا مِّنْهُمْ فٰسِقُوْنَ ٨١

walaw
وَلَوْ
और अगर
kānū
كَانُوا۟
होते वो
yu'minūna
يُؤْمِنُونَ
वो ईमान लाते
bil-lahi
بِٱللَّهِ
अल्लाह पर
wal-nabiyi
وَٱلنَّبِىِّ
और नबी पर
wamā
وَمَآ
और जो कुछ
unzila
أُنزِلَ
नाज़िल किया गया
ilayhi
إِلَيْهِ
तरफ़ उनके
مَا
ना
ittakhadhūhum
ٱتَّخَذُوهُمْ
वो बनाते उन्हें
awliyāa
أَوْلِيَآءَ
दोस्त
walākinna
وَلَٰكِنَّ
और लेकिन
kathīran
كَثِيرًا
बहुत से
min'hum
مِّنْهُمْ
उनमें से
fāsiqūna
فَٰسِقُونَ
नाफ़रमान हैं
और यदि वे अल्लाह और नबी पर और उस चीज़ पर ईमान लाते, जो उसकी ओर अवतरित हुईस तो वे उनको मित्र न बनाते। किन्तु उनमें अधिकतर अवज्ञाकारी है ([५] अल-माइदा: 81)
Tafseer (तफ़सीर )
८२

۞ لَتَجِدَنَّ اَشَدَّ النَّاسِ عَدَاوَةً لِّلَّذِيْنَ اٰمَنُوا الْيَهُوْدَ وَالَّذِيْنَ اَشْرَكُوْاۚ وَلَتَجِدَنَّ اَقْرَبَهُمْ مَّوَدَّةً لِّلَّذِيْنَ اٰمَنُوا الَّذِيْنَ قَالُوْٓا اِنَّا نَصٰرٰىۗ ذٰلِكَ بِاَنَّ مِنْهُمْ قِسِّيْسِيْنَ وَرُهْبَانًا وَّاَنَّهُمْ لَا يَسْتَكْبِرُوْنَ ۔ ٨٢

latajidanna
لَتَجِدَنَّ
अलबत्ता आप ज़रूर पाऐंगे
ashadda
أَشَدَّ
सबसे ज़्यादा सख़्त
l-nāsi
ٱلنَّاسِ
लोगों में से
ʿadāwatan
عَدَٰوَةً
अदावत/दुश्मनी में
lilladhīna
لِّلَّذِينَ
उन लोगों के लिए जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
l-yahūda
ٱلْيَهُودَ
यहूद को
wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और उनको जिन्होंने
ashrakū
أَشْرَكُوا۟ۖ
शिर्क किया
walatajidanna
وَلَتَجِدَنَّ
और अलबत्ता आप ज़रूर पाऐंगे
aqrabahum
أَقْرَبَهُم
सबसे क़रीब उनमें
mawaddatan
مَّوَدَّةً
मोहब्बत में
lilladhīna
لِّلَّذِينَ
उनके लिए जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उनको जिन्होंने
qālū
قَالُوٓا۟
कहा
innā
إِنَّا
बेशक हम
naṣārā
نَصَٰرَىٰۚ
नसारा हैं
dhālika
ذَٰلِكَ
ये
bi-anna
بِأَنَّ
बवजह उसके कि
min'hum
مِنْهُمْ
उनमें
qissīsīna
قِسِّيسِينَ
उलेमा हैं
waruh'bānan
وَرُهْبَانًا
और राहिब हैं
wa-annahum
وَأَنَّهُمْ
और बेशक वो
لَا
नहीं वो तकब्बुर करते
yastakbirūna
يَسْتَكْبِرُونَ
नहीं वो तकब्बुर करते
तुम ईमानवालों का शत्रु सब लोगों से बढ़कर यहूदियों और बहुदेववादियों को पाओगे। और ईमान लानेवालो के लिए मित्रता में सबसे निकट उन लोगों को पाओगे, जिन्होंने कहा कि 'हम नसारा हैं।' यह इस कारण है कि उनमें बहुत-से धर्मज्ञाता और संसार-त्यागी सन्त पाए जाते हैं। और इस कारण कि वे अहंकार नहीं करते ([५] अल-माइदा: 82)
Tafseer (तफ़सीर )
८३

وَاِذَا سَمِعُوْا مَآ اُنْزِلَ اِلَى الرَّسُوْلِ تَرٰٓى اَعْيُنَهُمْ تَفِيْضُ مِنَ الدَّمْعِ مِمَّا عَرَفُوْا مِنَ الْحَقِّۚ يَقُوْلُوْنَ رَبَّنَآ اٰمَنَّا فَاكْتُبْنَا مَعَ الشّٰهِدِيْنَ ٨٣

wa-idhā
وَإِذَا
और जब
samiʿū
سَمِعُوا۟
वो सुनते हैं
مَآ
जो
unzila
أُنزِلَ
नाज़िल किया गया
ilā
إِلَى
तरफ़ रसूल के
l-rasūli
ٱلرَّسُولِ
तरफ़ रसूल के
tarā
تَرَىٰٓ
आप देखते हैं
aʿyunahum
أَعْيُنَهُمْ
उनकी आँखों को
tafīḍu
تَفِيضُ
बह पड़ती हैं
mina
مِنَ
आँसुओं से
l-damʿi
ٱلدَّمْعِ
आँसुओं से
mimmā
مِمَّا
इस (वजह) से जो
ʿarafū
عَرَفُوا۟
उन्होंने पहचान लिया
mina
مِنَ
हक़ को
l-ḥaqi
ٱلْحَقِّۖ
हक़ को
yaqūlūna
يَقُولُونَ
वो कहते हैं
rabbanā
رَبَّنَآ
ऐ हमारे रब
āmannā
ءَامَنَّا
ईमान लाए हम
fa-uk'tub'nā
فَٱكْتُبْنَا
पस लिख दे हमें
maʿa
مَعَ
साथ
l-shāhidīna
ٱلشَّٰهِدِينَ
शहादत देने वालों के
जब वे उसे सुनते है जो रसूल पर अवतरित हुआ तो तुम देखते हो कि उनकी आँखे आँसुओ से छलकने लगती है। इसका कारण यह है कि उन्होंने सत्य को पहचान लिया। वे कहते हैं, 'हमारे रब! हम ईमान ले आए। अतएव तू हमारा नाम गवाही देनेवालों में लिख ले ([५] अल-माइदा: 83)
Tafseer (तफ़सीर )
८४

وَمَا لَنَا لَا نُؤْمِنُ بِاللّٰهِ وَمَا جَاۤءَنَا مِنَ الْحَقِّۙ وَنَطْمَعُ اَنْ يُّدْخِلَنَا رَبُّنَا مَعَ الْقَوْمِ الصّٰلِحِيْنَ ٨٤

wamā
وَمَا
और क्या है
lanā
لَنَا
हमें
لَا
कि ना हम ईमान लाऐं
nu'minu
نُؤْمِنُ
कि ना हम ईमान लाऐं
bil-lahi
بِٱللَّهِ
अल्लाह पर
wamā
وَمَا
और (उस पर) जो
jāanā
جَآءَنَا
आया हमारे पास
mina
مِنَ
हक़ में से
l-ḥaqi
ٱلْحَقِّ
हक़ में से
wanaṭmaʿu
وَنَطْمَعُ
और हम उम्मीद रखते हैं
an
أَن
कि
yud'khilanā
يُدْخِلَنَا
दाख़िल करेगा हमें
rabbunā
رَبُّنَا
रब हमारा
maʿa
مَعَ
साथ
l-qawmi
ٱلْقَوْمِ
उन लोगों के
l-ṣāliḥīna
ٱلصَّٰلِحِينَ
जो सालेह हैं
'और हम अल्लाह पर और जो सत्य हमारे पास पहुँचा है उसपर ईमान क्यों न लाएँ, जबकि हमें आशा है कि हमारा रब हमें अच्छे लोगों के साथ (जन्नत में) प्रविष्ट, करेगा।' ([५] अल-माइदा: 84)
Tafseer (तफ़सीर )
८५

فَاَثَابَهُمُ اللّٰهُ بِمَا قَالُوْا جَنّٰتٍ تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِيْنَ فِيْهَاۗ وَذٰلِكَ جَزَاۤءُ الْمُحْسِنِيْنَ ٨٥

fa-athābahumu
فَأَثَٰبَهُمُ
पस बदले में दिया उन्हें
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
jannātin
جَنَّٰتٍ
बाग़ात को
tajrī
تَجْرِى
बहती हैं
min
مِن
उनके नीचे से
taḥtihā
تَحْتِهَا
उनके नीचे से
l-anhāru
ٱلْأَنْهَٰرُ
नहरें
khālidīna
خَٰلِدِينَ
हमेशा रहने वाले हैं
fīhā
فِيهَاۚ
उनमें
wadhālika
وَذَٰلِكَ
और ये
jazāu
جَزَآءُ
बदला है
l-muḥ'sinīna
ٱلْمُحْسِنِينَ
एहसान करने वालों का
फिर अल्लाह ने उनके इस कथन के कारण उन्हें ऐसे बाग़ प्रदान किए, जिनके नीचे नहरें बहती है, जिनमें वे सदैव रहेंगे। और यही सत्कर्मी लोगो का बदला है ([५] अल-माइदा: 85)
Tafseer (तफ़सीर )
८६

وَالَّذِيْنَ كَفَرُوْا وَكَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَآ اُولٰۤىِٕكَ اَصْحٰبُ الْجَحِيْمِ ࣖ ٨٦

wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जिन्होंने
kafarū
كَفَرُوا۟
कुफ़्र किया
wakadhabū
وَكَذَّبُوا۟
और उन्होंने झुठलाया
biāyātinā
بِـَٔايَٰتِنَآ
हमारी आयात को
ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही लोग हैं
aṣḥābu
أَصْحَٰبُ
साथी
l-jaḥīmi
ٱلْجَحِيمِ
जहन्नम के
रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वे भड़कती आग (में पड़ने) वाले है ([५] अल-माइदा: 86)
Tafseer (तफ़सीर )
८७

يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تُحَرِّمُوْا طَيِّبٰتِ مَآ اَحَلَّ اللّٰهُ لَكُمْ وَلَا تَعْتَدُوْا ۗاِنَّ اللّٰهَ لَا يُحِبُّ الْمُعْتَدِيْنَ ٨٧

yāayyuhā
يَٰٓأَيُّهَا
ऐ लोगो जो
alladhīna
ٱلَّذِينَ
ऐ लोगो जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए हो
لَا
ना तुम हराम करो
tuḥarrimū
تُحَرِّمُوا۟
ना तुम हराम करो
ṭayyibāti
طَيِّبَٰتِ
पाकीज़ा चीज़ें
مَآ
जो
aḥalla
أَحَلَّ
हलाल कीं
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
walā
وَلَا
और ना
taʿtadū
تَعْتَدُوٓا۟ۚ
तुम हद से तजावुज़ करो
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
لَا
नहीं वो पसंद करता
yuḥibbu
يُحِبُّ
नहीं वो पसंद करता
l-muʿ'tadīna
ٱلْمُعْتَدِينَ
हद से तजावुज़ करने वालों को
ऐ ईमान लानेवालो! जो अच्छी पाक चीज़े अल्लाह ने तुम्हारे लिए हलाल की है, उन्हें हराम न कर लो और हद से आगे न बढ़ो। निश्चय ही अल्लाह को वे लोग प्रिय नहीं है, जो हद से आगे बढ़ते है ([५] अल-माइदा: 87)
Tafseer (तफ़सीर )
८८

وَكُلُوْا مِمَّا رَزَقَكُمُ اللّٰهُ حَلٰلًا طَيِّبًا ۖوَّاتَّقُوا اللّٰهَ الَّذِيْٓ اَنْتُمْ بِهٖ مُؤْمِنُوْنَ ٨٨

wakulū
وَكُلُوا۟
और खाओ
mimmā
مِمَّا
उसमें से जो
razaqakumu
رَزَقَكُمُ
रिज़्क़ दिया तुम्हें
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
ḥalālan
حَلَٰلًا
हलाल
ṭayyiban
طَيِّبًاۚ
पाकीज़ा
wa-ittaqū
وَٱتَّقُوا۟
और डरो
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह से
alladhī
ٱلَّذِىٓ
वो जो
antum
أَنتُم
तुम
bihi
بِهِۦ
जिस पर
mu'minūna
مُؤْمِنُونَ
ईमान रखते हो
जो कुछ अल्लाह ने हलाल और पाक रोज़ी तुम्हें ही है, उसे खाओ और अल्लाह का डर रखो, जिसपर तुम ईमान लाए हो ([५] अल-माइदा: 88)
Tafseer (तफ़सीर )
८९

لَا يُؤَاخِذُكُمُ اللّٰهُ بِاللَّغْوِ فِيْٓ اَيْمَانِكُمْ وَلٰكِنْ يُّؤَاخِذُكُمْ بِمَا عَقَّدْتُّمُ الْاَيْمَانَۚ فَكَفَّارَتُهٗٓ اِطْعَامُ عَشَرَةِ مَسٰكِيْنَ مِنْ اَوْسَطِ مَا تُطْعِمُوْنَ اَهْلِيْكُمْ اَوْ كِسْوَتُهُمْ اَوْ تَحْرِيْرُ رَقَبَةٍ ۗفَمَنْ لَّمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلٰثَةِ اَيَّامٍ ۗذٰلِكَ كَفَّارَةُ اَيْمَانِكُمْ اِذَا حَلَفْتُمْ ۗوَاحْفَظُوْٓا اَيْمَانَكُمْ ۗ كَذٰلِكَ يُبَيِّنُ اللّٰهُ لَكُمْ اٰيٰتِهٖ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُوْنَ ٨٩

لَا
नहीं मुआख़ज़ा करता तुम्हारा
yuākhidhukumu
يُؤَاخِذُكُمُ
नहीं मुआख़ज़ा करता तुम्हारा
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
bil-laghwi
بِٱللَّغْوِ
लग़्व पर
فِىٓ
तुम्हारी क़समों में
aymānikum
أَيْمَٰنِكُمْ
तुम्हारी क़समों में
walākin
وَلَٰكِن
और लेकिन
yuākhidhukum
يُؤَاخِذُكُم
वो मुआख़ज़ा करता है तुम्हारा
bimā
بِمَا
उन पर जो
ʿaqqadttumu
عَقَّدتُّمُ
मज़बूत बाँधीं तुम ने
l-aymāna
ٱلْأَيْمَٰنَۖ
क़समें
fakaffāratuhu
فَكَفَّٰرَتُهُۥٓ
तो कफ़्फ़ारा है उसका
iṭ'ʿāmu
إِطْعَامُ
खाना खिलाना
ʿasharati
عَشَرَةِ
दस
masākīna
مَسَٰكِينَ
मिस्कीनों को
min
مِنْ
औसत दर्जे का
awsaṭi
أَوْسَطِ
औसत दर्जे का
مَا
जो
tuṭ'ʿimūna
تُطْعِمُونَ
तुम खिलाते हो
ahlīkum
أَهْلِيكُمْ
अपने घर वालों को
aw
أَوْ
या
kis'watuhum
كِسْوَتُهُمْ
कपड़े पहनाना उन्हें
aw
أَوْ
या
taḥrīru
تَحْرِيرُ
आज़ाद करना
raqabatin
رَقَبَةٍۖ
एक गर्दन का
faman
فَمَن
पस जो कोई
lam
لَّمْ
ना
yajid
يَجِدْ
पाए
faṣiyāmu
فَصِيَامُ
तो रोज़े रखना हैं
thalāthati
ثَلَٰثَةِ
तीन
ayyāmin
أَيَّامٍۚ
दिनों के
dhālika
ذَٰلِكَ
ये
kaffāratu
كَفَّٰرَةُ
कफ़्फ़ारा है
aymānikum
أَيْمَٰنِكُمْ
तुम्हारी क़समों का
idhā
إِذَا
जब
ḥalaftum
حَلَفْتُمْۚ
क़सम खाओ तुम
wa-iḥ'faẓū
وَٱحْفَظُوٓا۟
और हिफ़ाज़त किया करो
aymānakum
أَيْمَٰنَكُمْۚ
अपनी क़समों की
kadhālika
كَذَٰلِكَ
इसी तरह
yubayyinu
يُبَيِّنُ
वाज़ेह करता है
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
āyātihi
ءَايَٰتِهِۦ
अपनी आयात को
laʿallakum
لَعَلَّكُمْ
ताकि तुम
tashkurūna
تَشْكُرُونَ
तुम शुक्र करो
तुम्हारी उन क़समों पर अल्लाह तुम्हें नहीं पकड़ता जो यूँ ही असावधानी से ज़बान से निकल जाती है। परन्तु जो तुमने पक्की क़समें खाई हों, उनपर वह तुम्हें पकड़ेगा। तो इसका प्रायश्चित दस मुहताजों को औसत दर्जें का खाना खिला देना है, जो तुम अपने बाल-बच्चों को खिलाते हो या फिर उन्हें कपड़े पहनाना या एक ग़ुलाम आज़ाद करना होगा। और जिसे इसकी सामर्थ्य न हो, तो उसे तीन दिन के रोज़े रखने होंगे। यह तुम्हारी क़समों का प्रायश्चित है, जबकि तुम क़सम खा बैठो। तुम अपनी क़समों की हिफ़ाजत किया करो। इस प्रकार अल्लाह अपनी आयतें तुम्हारे सामने खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ ([५] अल-माइदा: 89)
Tafseer (तफ़सीर )
९०

يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اِنَّمَا الْخَمْرُ وَالْمَيْسِرُ وَالْاَنْصَابُ وَالْاَزْلَامُ رِجْسٌ مِّنْ عَمَلِ الشَّيْطٰنِ فَاجْتَنِبُوْهُ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُوْنَ ٩٠

yāayyuhā
يَٰٓأَيُّهَا
ऐ लोगो जो
alladhīna
ٱلَّذِينَ
ऐ लोगो जो
āmanū
ءَامَنُوٓا۟
ईमान लाए हो
innamā
إِنَّمَا
बेशक
l-khamru
ٱلْخَمْرُ
शराब (नशा)
wal-maysiru
وَٱلْمَيْسِرُ
और जुआ
wal-anṣābu
وَٱلْأَنصَابُ
और बुत
wal-azlāmu
وَٱلْأَزْلَٰمُ
और फ़ाल के तीर
rij'sun
رِجْسٌ
नापाक हैं
min
مِّنْ
अमल से हैं
ʿamali
عَمَلِ
अमल से हैं
l-shayṭāni
ٱلشَّيْطَٰنِ
शैतान के
fa-ij'tanibūhu
فَٱجْتَنِبُوهُ
पस बचो इससे
laʿallakum
لَعَلَّكُمْ
ताकि तुम
tuf'liḥūna
تُفْلِحُونَ
तुम फ़लाह पाओ
ऐ ईमान लानेवालो! ये शराब और जुआ और देवस्थान और पाँसे तो गन्दे शैतानी काम है। अतः तुम इनसे अलग रहो, ताकि तुम सफल हो ([५] अल-माइदा: 90)
Tafseer (तफ़सीर )