وَاِذَا جَاۤءُوْكُمْ قَالُوْٓا اٰمَنَّا وَقَدْ دَّخَلُوْا بِالْكُفْرِ وَهُمْ قَدْ خَرَجُوْا بِهٖ ۗوَاللّٰهُ اَعْلَمُ بِمَا كَانُوْا يَكْتُمُوْنَ ٦١
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- jāūkum
- جَآءُوكُمْ
- वो आते हैं तुम्हारे पास
- qālū
- قَالُوٓا۟
- वो कहते हैं
- āmannā
- ءَامَنَّا
- ईमान लाए हम
- waqad
- وَقَد
- हालाँकि तहक़ीक़
- dakhalū
- دَّخَلُوا۟
- वो दाख़िल हुए थे
- bil-kuf'ri
- بِٱلْكُفْرِ
- साथ कुफ़्र के
- wahum
- وَهُمْ
- और वो
- qad
- قَدْ
- यक़ीनन
- kharajū
- خَرَجُوا۟
- वो निकल गए
- bihi
- بِهِۦۚ
- साथ उसी के
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- aʿlamu
- أَعْلَمُ
- ज़्यादा जानता है
- bimā
- بِمَا
- उसको जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yaktumūna
- يَكْتُمُونَ
- वो छुपाते
जब वे (यहूदी) तुम लोगों के पास आते है तो कहते है, 'हम ईमान ले आए।' हालाँकि वे इनकार के साथ आए थे और उसी के साथ चले गए। अल्लाह भली-भाँति जानता है जो कुछ वे छिपाते है ([५] अल-माइदा: 61)Tafseer (तफ़सीर )
وَتَرٰى كَثِيْرًا مِّنْهُمْ يُسَارِعُوْنَ فِى الْاِثْمِ وَالْعُدْوَانِ وَاَكْلِهِمُ السُّحْتَۗ لَبِئْسَ مَا كَانُوْا يَعْمَلُوْنَ ٦٢
- watarā
- وَتَرَىٰ
- और आप देखेंगे
- kathīran
- كَثِيرًا
- कसीर तादाद को
- min'hum
- مِّنْهُمْ
- उनमें से
- yusāriʿūna
- يُسَٰرِعُونَ
- वो दौड़ धूप करते हैं
- fī
- فِى
- गुनाह में
- l-ith'mi
- ٱلْإِثْمِ
- गुनाह में
- wal-ʿud'wāni
- وَٱلْعُدْوَٰنِ
- और ज़्यादती में
- wa-aklihimu
- وَأَكْلِهِمُ
- और अपने खाने में
- l-suḥ'ta
- ٱلسُّحْتَۚ
- हराम को
- labi'sa
- لَبِئْسَ
- अलबत्ता कितना बुरा है
- mā
- مَا
- जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yaʿmalūna
- يَعْمَلُونَ
- वो अमल करते
तुम देखते हो कि उनमें से बहुतेरे लोग हक़ मारने, ज़्यादती करने और हरामख़ोरी में बड़ी तेज़ी दिखाते है। निश्चय ही बहुत ही बुरा है, जो वे कर रहे है ([५] अल-माइदा: 62)Tafseer (तफ़सीर )
لَوْلَا يَنْهٰىهُمُ الرَّبَّانِيُّوْنَ وَالْاَحْبَارُ عَنْ قَوْلِهِمُ الْاِثْمَ وَاَكْلِهِمُ السُّحْتَۗ لَبِئْسَ مَا كَانُوْا يَصْنَعُوْنَ ٦٣
- lawlā
- لَوْلَا
- क्यों नहीं
- yanhāhumu
- يَنْهَىٰهُمُ
- रोकते उन्हें
- l-rabāniyūna
- ٱلرَّبَّٰنِيُّونَ
- रब्बानी/रब वाले
- wal-aḥbāru
- وَٱلْأَحْبَارُ
- और उलेमा
- ʿan
- عَن
- उनके क़ौल से
- qawlihimu
- قَوْلِهِمُ
- उनके क़ौल से
- l-ith'ma
- ٱلْإِثْمَ
- गुनाह के
- wa-aklihimu
- وَأَكْلِهِمُ
- और उनके खाने से
- l-suḥ'ta
- ٱلسُّحْتَۚ
- हराम को
- labi'sa
- لَبِئْسَ
- अलबत्ता कितना बुरा है
- mā
- مَا
- जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yaṣnaʿūna
- يَصْنَعُونَ
- वो करते/बनाते
उनके सन्त और धर्मज्ञाता उन्हें गुनाह की बात बकने और हराम खाने से क्यों नहीं रोकते? निश्चय ही बहुत बुरा है जो काम वे कर रहे है ([५] अल-माइदा: 63)Tafseer (तफ़सीर )
وَقَالَتِ الْيَهُوْدُ يَدُ اللّٰهِ مَغْلُوْلَةٌ ۗغُلَّتْ اَيْدِيْهِمْ وَلُعِنُوْا بِمَا قَالُوْا ۘ بَلْ يَدٰهُ مَبْسُوْطَتٰنِۙ يُنْفِقُ كَيْفَ يَشَاۤءُۗ وَلَيَزِيْدَنَّ كَثِيْرًا مِّنْهُمْ مَّآ اُنْزِلَ اِلَيْكَ مِنْ رَّبِّكَ طُغْيَانًا وَّكُفْرًاۗ وَاَلْقَيْنَا بَيْنَهُمُ الْعَدَاوَةَ وَالْبَغْضَاۤءَ اِلٰى يَوْمِ الْقِيٰمَةِۗ كُلَّمَآ اَوْقَدُوْا نَارًا لِّلْحَرْبِ اَطْفَاَهَا اللّٰهُ ۙوَيَسْعَوْنَ فِى الْاَرْضِ فَسَادًاۗ وَاللّٰهُ لَا يُحِبُّ الْمُفْسِدِيْنَ ٦٤
- waqālati
- وَقَالَتِ
- और कहा
- l-yahūdu
- ٱلْيَهُودُ
- यहूद ने
- yadu
- يَدُ
- हाथ
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह का
- maghlūlatun
- مَغْلُولَةٌۚ
- बँधा हुआ है
- ghullat
- غُلَّتْ
- बाँध दिए गए
- aydīhim
- أَيْدِيهِمْ
- हाथ उनके
- waluʿinū
- وَلُعِنُوا۟
- और वो लानत किए गए
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- qālū
- قَالُواۘ
- उन्होंने कहा
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- yadāhu
- يَدَاهُ
- उसके दोनों हाथ
- mabsūṭatāni
- مَبْسُوطَتَانِ
- दोनों खुले हुए हैं
- yunfiqu
- يُنفِقُ
- वो ख़र्च करता है
- kayfa
- كَيْفَ
- जिस तरह
- yashāu
- يَشَآءُۚ
- वो चाहता है
- walayazīdanna
- وَلَيَزِيدَنَّ
- और अलबत्ता वो ज़रूर ज़्यादा कर देगा
- kathīran
- كَثِيرًا
- कसीर तादाद को
- min'hum
- مِّنْهُم
- उनमें से
- mā
- مَّآ
- जो कुछ
- unzila
- أُنزِلَ
- नाज़िल किया गया
- ilayka
- إِلَيْكَ
- तरफ़ आपके
- min
- مِن
- आपके रब की तरफ़ से
- rabbika
- رَّبِّكَ
- आपके रब की तरफ़ से
- ṭugh'yānan
- طُغْيَٰنًا
- सरकशी में
- wakuf'ran
- وَكُفْرًاۚ
- और कुफ़्र में
- wa-alqaynā
- وَأَلْقَيْنَا
- और डाल दी हमने
- baynahumu
- بَيْنَهُمُ
- दर्मियान उनके
- l-ʿadāwata
- ٱلْعَدَٰوَةَ
- अदावत
- wal-baghḍāa
- وَٱلْبَغْضَآءَ
- और बुग़्ज़
- ilā
- إِلَىٰ
- क़यामत के दिन तक
- yawmi
- يَوْمِ
- क़यामत के दिन तक
- l-qiyāmati
- ٱلْقِيَٰمَةِۚ
- क़यामत के दिन तक
- kullamā
- كُلَّمَآ
- जब कभी
- awqadū
- أَوْقَدُوا۟
- उन्होंने भड़काई
- nāran
- نَارًا
- आग
- lil'ḥarbi
- لِّلْحَرْبِ
- जंग के लिए
- aṭfa-ahā
- أَطْفَأَهَا
- बुझा दिया उसे
- l-lahu
- ٱللَّهُۚ
- अल्लाह ने
- wayasʿawna
- وَيَسْعَوْنَ
- और वो दौड़ धूप करते हैं
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- fasādan
- فَسَادًاۚ
- फ़साद की
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- lā
- لَا
- नहीं वो पसंद करता
- yuḥibbu
- يُحِبُّ
- नहीं वो पसंद करता
- l-muf'sidīna
- ٱلْمُفْسِدِينَ
- फ़साद करने वालों को
और यहूदी कहते है, 'अल्लाह का हाथ बँध गया है।' उन्हीं के हाथ-बँधे है, और फिटकार है उनपर, उस बकबास के कारण जो वे करते है, बल्कि उसके दोनो हाथ तो खुले हुए है। वह जिस तरह चाहता है, ख़र्च करता है। जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर उतारा गया है, उससे अवश्य ही उनके अधिकतर लोगों की सरकशी और इनकार ही में अभिवृद्धि होगी। और हमने उनके बीच क़ियामत तक के लिए शत्रुता और द्वेष डाल दिया है। वे जब भी युद्ध की आग भड़काते है, अल्लाह उसे बुझा देता है। वे धरती में बिगाड़ फैलाने के लिए प्रयास कर रहे है, हालाँकि अल्लाह बिगाड़ फैलानेवालों को पसन्द नहीं करता ([५] अल-माइदा: 64)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَوْ اَنَّ اَهْلَ الْكِتٰبِ اٰمَنُوْا وَاتَّقَوْا لَكَفَّرْنَا عَنْهُمْ سَيِّاٰتِهِمْ وَلَاَدْخَلْنٰهُمْ جَنّٰتِ النَّعِيْمِ ٦٥
- walaw
- وَلَوْ
- और अगर
- anna
- أَنَّ
- बेशक
- ahla
- أَهْلَ
- अहले किताब
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- अहले किताब
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाते
- wa-ittaqaw
- وَٱتَّقَوْا۟
- और तक़वा करते
- lakaffarnā
- لَكَفَّرْنَا
- अलबत्ता दूर कर देते हम
- ʿanhum
- عَنْهُمْ
- उनसे
- sayyiātihim
- سَيِّـَٔاتِهِمْ
- बुराईयाँ उनकी
- wala-adkhalnāhum
- وَلَأَدْخَلْنَٰهُمْ
- और अलबत्ता हम दाख़िल करते उन्हें
- jannāti
- جَنَّٰتِ
- बाग़ों में
- l-naʿīmi
- ٱلنَّعِيمِ
- नेअमतों वाले
और यदि किताबवाले ईमान लाते और (अल्लाह का) डर रखते तो हम उनकी बुराइयाँ उनसे दूर कर देते और उन्हें नेमत भरी जन्नतों में दाख़िल कर देते ([५] अल-माइदा: 65)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَوْ اَنَّهُمْ اَقَامُوا التَّوْرٰىةَ وَالْاِنْجِيْلَ وَمَآ اُنْزِلَ اِلَيْهِمْ مِّنْ رَّبِّهِمْ لَاَكَلُوْا مِنْ فَوْقِهِمْ وَمِنْ تَحْتِ اَرْجُلِهِمْۗ مِنْهُمْ اُمَّةٌ مُّقْتَصِدَةٌ ۗ وَكَثِيْرٌ مِّنْهُمْ سَاۤءَ مَا يَعْمَلُوْنَ ࣖ ٦٦
- walaw
- وَلَوْ
- और अगर
- annahum
- أَنَّهُمْ
- बेशक वो
- aqāmū
- أَقَامُوا۟
- क़ायम करते
- l-tawrāta
- ٱلتَّوْرَىٰةَ
- तौरात को
- wal-injīla
- وَٱلْإِنجِيلَ
- और इन्जील को
- wamā
- وَمَآ
- और जो
- unzila
- أُنزِلَ
- नाज़िल किया गया
- ilayhim
- إِلَيْهِم
- तरफ़ उनके
- min
- مِّن
- उनके रब की तरफ़ से
- rabbihim
- رَّبِّهِمْ
- उनके रब की तरफ़ से
- la-akalū
- لَأَكَلُوا۟
- अलबत्ता वो खाते
- min
- مِن
- अपने ऊपर से
- fawqihim
- فَوْقِهِمْ
- अपने ऊपर से
- wamin
- وَمِن
- और नीचे से
- taḥti
- تَحْتِ
- और नीचे से
- arjulihim
- أَرْجُلِهِمۚ
- अपने पाँव के
- min'hum
- مِّنْهُمْ
- उनमें से
- ummatun
- أُمَّةٌ
- एक गिरोह
- muq'taṣidatun
- مُّقْتَصِدَةٌۖ
- मयाना रु है
- wakathīrun
- وَكَثِيرٌ
- और बहुत से
- min'hum
- مِّنْهُمْ
- उनमें से
- sāa
- سَآءَ
- बहुत बुरा है
- mā
- مَا
- जो
- yaʿmalūna
- يَعْمَلُونَ
- वो अमल करते हैं
और यदि वे तौरात और इनजील को और जो कुछ उनके रब की ओर से उनकी ओर उतारा गया है, उसे क़ायम रखते, तो उन्हें अपने ऊपर से भी खाने को मिलता और अपने पाँव के नीचे से भी। उनमें से एक गिरोह सीधे मार्ग पर चलनेवाला भी है, किन्तु उनमें से अधिकतर ऐसे है कि जो भी करते है बुरा होता है ([५] अल-माइदा: 66)Tafseer (तफ़सीर )
۞ يٰٓاَيُّهَا الرَّسُوْلُ بَلِّغْ مَآ اُنْزِلَ اِلَيْكَ مِنْ رَّبِّكَ ۗوَاِنْ لَّمْ تَفْعَلْ فَمَا بَلَّغْتَ رِسٰلَتَهٗ ۗوَاللّٰهُ يَعْصِمُكَ مِنَ النَّاسِۗ اِنَّ اللّٰهَ لَا يَهْدِى الْقَوْمَ الْكٰفِرِيْنَ ٦٧
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ
- l-rasūlu
- ٱلرَّسُولُ
- रसूल
- balligh
- بَلِّغْ
- पहुँचा दीजिए
- mā
- مَآ
- जो
- unzila
- أُنزِلَ
- नाज़िल किया गया
- ilayka
- إِلَيْكَ
- तरफ़ आपके
- min
- مِن
- आपके रब की तरफ़ से
- rabbika
- رَّبِّكَۖ
- आपके रब की तरफ़ से
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- lam
- لَّمْ
- ना
- tafʿal
- تَفْعَلْ
- आपने किया (ऐसा)
- famā
- فَمَا
- तो नहीं
- ballaghta
- بَلَّغْتَ
- पहुँचाया आपने
- risālatahu
- رِسَالَتَهُۥۚ
- पैग़ाम उसका
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- yaʿṣimuka
- يَعْصِمُكَ
- वो बचाएगा आपको
- mina
- مِنَ
- लोगों से
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِۗ
- लोगों से
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- lā
- لَا
- नहीं हिदायत देता
- yahdī
- يَهْدِى
- नहीं हिदायत देता
- l-qawma
- ٱلْقَوْمَ
- उस क़ौम को
- l-kāfirīna
- ٱلْكَٰفِرِينَ
- जो काफ़िर है
ऐ रसूल! तुम्हारे रब की ओर से तुम पर जो कुछ उतारा गया है, उसे पहुँचा दो। यदि ऐसा न किया तो तुमने उसका सन्देश नहीं पहुँचाया। अल्लाह तुम्हें लोगों (की बुराइयों) से बचाएगा। निश्चय ही अल्लाह इनकार करनेवाले लोगों को मार्ग नहीं दिखाता ([५] अल-माइदा: 67)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ يٰٓاَهْلَ الْكِتٰبِ لَسْتُمْ عَلٰى شَيْءٍ حَتّٰى تُقِيْمُوا التَّوْرٰىةَ وَالْاِنْجِيْلَ وَمَآ اُنْزِلَ اِلَيْكُمْ مِّنْ رَّبِّكُمْ ۗوَلَيَزِيْدَنَّ كَثِيْرًا مِّنْهُمْ مَّآ اُنْزِلَ اِلَيْكَ مِنْ رَّبِّكَ طُغْيَانًا وَّكُفْرًاۚ فَلَا تَأْسَ عَلَى الْقَوْمِ الْكٰفِرِيْنَ ٦٨
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- yāahla
- يَٰٓأَهْلَ
- ऐ अहले किताब
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- ऐ अहले किताब
- lastum
- لَسْتُمْ
- नहीं हो तुम
- ʿalā
- عَلَىٰ
- किसी चीज़ पर
- shayin
- شَىْءٍ
- किसी चीज़ पर
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- यहाँ तक कि
- tuqīmū
- تُقِيمُوا۟
- तुम क़ायम करो
- l-tawrāta
- ٱلتَّوْرَىٰةَ
- तौरात को
- wal-injīla
- وَٱلْإِنجِيلَ
- और इन्जील को
- wamā
- وَمَآ
- और जो
- unzila
- أُنزِلَ
- नाज़िल किया गया
- ilaykum
- إِلَيْكُم
- तरफ़ तुम्हारे
- min
- مِّن
- तुम्हारे रब की तरफ़ से
- rabbikum
- رَّبِّكُمْۗ
- तुम्हारे रब की तरफ़ से
- walayazīdanna
- وَلَيَزِيدَنَّ
- और अलबत्ता वो ज़रूर ज़्यादा कर देगा
- kathīran
- كَثِيرًا
- कसीर तादाद को
- min'hum
- مِّنْهُم
- उनमें से
- mā
- مَّآ
- जो कुछ
- unzila
- أُنزِلَ
- नाज़िल किया गया
- ilayka
- إِلَيْكَ
- तरफ़ आपके
- min
- مِن
- आपके रब की तरफ़ से
- rabbika
- رَّبِّكَ
- आपके रब की तरफ़ से
- ṭugh'yānan
- طُغْيَٰنًا
- सरकशी में
- wakuf'ran
- وَكُفْرًاۖ
- और कुफ़्र में
- falā
- فَلَا
- पस ना
- tasa
- تَأْسَ
- आप अफ़सोस कीजिए
- ʿalā
- عَلَى
- इस क़ौम पर
- l-qawmi
- ٱلْقَوْمِ
- इस क़ौम पर
- l-kāfirīna
- ٱلْكَٰفِرِينَ
- जो काफ़िर है
कह दो, ॅ'ऐ किताबवालो! तुम किसी भी चीज़ पर नहीं हो, जब तक कि तौरात और इनजील को और जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर अवतरित हुआ है, उसे क़ायम न रखो।' किन्तु (ऐ नबी!) तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर जो कुछ अवतरित हुआ है, वह अवश्य ही उनमें से बहुतों की सरकशी और इनकार में अभिवृद्धि करनेवाला है। अतः तुम इनकार करनेवाले लोगों की दशा पर दुखी न होना ([५] अल-माइदा: 68)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَالَّذِيْنَ هَادُوْا وَالصَّابِـُٔوْنَ وَالنَّصٰرٰى مَنْ اٰمَنَ بِاللّٰهِ وَالْيَوْمِ الْاٰخِرِ وَعَمِلَ صَالِحًا فَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُوْنَ ٦٩
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और जो
- hādū
- هَادُوا۟
- यहूदी बन गए
- wal-ṣābiūna
- وَٱلصَّٰبِـُٔونَ
- और जो साबी हैं
- wal-naṣārā
- وَٱلنَّصَٰرَىٰ
- और जो नसारा हैं
- man
- مَنْ
- जो कोई
- āmana
- ءَامَنَ
- ईमान लाया
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- wal-yawmi
- وَٱلْيَوْمِ
- और आख़िरी दिन पर
- l-ākhiri
- ٱلْءَاخِرِ
- और आख़िरी दिन पर
- waʿamila
- وَعَمِلَ
- और उसने अमल किए
- ṣāliḥan
- صَٰلِحًا
- नेक
- falā
- فَلَا
- तो ना
- khawfun
- خَوْفٌ
- कोई खौफ़ होगा
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- walā
- وَلَا
- और ना
- hum
- هُمْ
- वो
- yaḥzanūna
- يَحْزَنُونَ
- वो ग़मगीन होंगे
निस्संदेह वे लोग जो ईमान लाए है और जो यहूदी हुए है और साबई और ईसाई, उनमें से जो कोई भी अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाए और अच्छा कर्म करे तो ऐसे लोगों को न तो कोई डर होगा और न वे शोकाकुल होंगे ([५] अल-माइदा: 69)Tafseer (तफ़सीर )
لَقَدْ اَخَذْنَا مِيْثَاقَ بَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَ وَاَرْسَلْنَآ اِلَيْهِمْ رُسُلًا ۗ كُلَّمَا جَاۤءَهُمْ رَسُوْلٌۢ بِمَا لَا تَهْوٰٓى اَنْفُسُهُمْۙ فَرِيْقًا كَذَّبُوْا وَفَرِيْقًا يَّقْتُلُوْنَ ٧٠
- laqad
- لَقَدْ
- अलबत्ता तहक़ीक़
- akhadhnā
- أَخَذْنَا
- लिया हमने
- mīthāqa
- مِيثَٰقَ
- पुख़्ता अहद
- banī
- بَنِىٓ
- बनी इस्राईल से
- is'rāīla
- إِسْرَٰٓءِيلَ
- बनी इस्राईल से
- wa-arsalnā
- وَأَرْسَلْنَآ
- और भेजे हमने
- ilayhim
- إِلَيْهِمْ
- तरफ़ उनके
- rusulan
- رُسُلًاۖ
- कई रसूल
- kullamā
- كُلَّمَا
- जब कभी
- jāahum
- جَآءَهُمْ
- आया उनके पास
- rasūlun
- رَسُولٌۢ
- कोई रसूल
- bimā
- بِمَا
- साथ उसके जो
- lā
- لَا
- नहीं चाहते थे
- tahwā
- تَهْوَىٰٓ
- नहीं चाहते थे
- anfusuhum
- أَنفُسُهُمْ
- नफ़्स उनके
- farīqan
- فَرِيقًا
- एक गिरोह को
- kadhabū
- كَذَّبُوا۟
- उन्होंने झुठलाया
- wafarīqan
- وَفَرِيقًا
- और एक गिरोह को
- yaqtulūna
- يَقْتُلُونَ
- वो क़त्ल करते थे
हमने इसराईल की सन्तान से दृढ़ वचन लिया और उनकी ओर रसूल भेजे। उनके पास जब भी कोई रसूल वह कुछ लेकर आया जो उन्हें पसन्द न था, तो कितनों को तो उन्होंने झुठलाया और कितनों की हत्या करने लगे ([५] अल-माइदा: 70)Tafseer (तफ़सीर )