۞ يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تَتَّخِذُوا الْيَهُوْدَ وَالنَّصٰرٰٓى اَوْلِيَاۤءَ ۘ بَعْضُهُمْ اَوْلِيَاۤءُ بَعْضٍۗ وَمَنْ يَّتَوَلَّهُمْ مِّنْكُمْ فَاِنَّهٗ مِنْهُمْ ۗ اِنَّ اللّٰهَ لَا يَهْدِى الْقَوْمَ الظّٰلِمِيْنَ ٥١
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हो
- lā
- لَا
- ना तुम बनाओ
- tattakhidhū
- تَتَّخِذُوا۟
- ना तुम बनाओ
- l-yahūda
- ٱلْيَهُودَ
- यहूद
- wal-naṣārā
- وَٱلنَّصَٰرَىٰٓ
- और नसारा को
- awliyāa
- أَوْلِيَآءَۘ
- दोस्त
- baʿḍuhum
- بَعْضُهُمْ
- बाज़ उनके
- awliyāu
- أَوْلِيَآءُ
- दोस्त हैं
- baʿḍin
- بَعْضٍۚ
- बाज़ के
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- yatawallahum
- يَتَوَلَّهُم
- दोस्त बनाएगा उन्हें
- minkum
- مِّنكُمْ
- तुम में से
- fa-innahu
- فَإِنَّهُۥ
- पस बेशक वो
- min'hum
- مِنْهُمْۗ
- उन्हीं में से हैं
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- lā
- لَا
- नहीं वो हिदायत देता
- yahdī
- يَهْدِى
- नहीं वो हिदायत देता
- l-qawma
- ٱلْقَوْمَ
- उन लोगों को
- l-ẓālimīna
- ٱلظَّٰلِمِينَ
- जो ज़ालिम हैं
ऐ ईमान लानेवालो! तुम यहूदियों और ईसाइयों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाओ। वे (तुम्हारे विरुद्ध) परस्पर एक-दूसरे के मित्र है। तुममें से जो कोई उनको अपना मित्र बनाएगा, वह उन्हीं लोगों में से होगा। निस्संदेह अल्लाह अत्याचारियों को मार्ग नहीं दिखाता ([५] अल-माइदा: 51)Tafseer (तफ़सीर )
فَتَرَى الَّذِيْنَ فِيْ قُلُوْبِهِمْ مَّرَضٌ يُّسَارِعُوْنَ فِيْهِمْ يَقُوْلُوْنَ نَخْشٰٓى اَنْ تُصِيْبَنَا دَاۤىِٕرَةٌ ۗفَعَسَى اللّٰهُ اَنْ يَّأْتِيَ بِالْفَتْحِ اَوْ اَمْرٍ مِّنْ عِنْدِهٖ فَيُصْبِحُوْا عَلٰى مَآ اَسَرُّوْا فِيْٓ اَنْفُسِهِمْ نٰدِمِيْنَۗ ٥٢
- fatarā
- فَتَرَى
- फिर आप देखेंगे
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन्हें
- fī
- فِى
- दिलों में जिनके
- qulūbihim
- قُلُوبِهِم
- दिलों में जिनके
- maraḍun
- مَّرَضٌ
- बीमारी है
- yusāriʿūna
- يُسَٰرِعُونَ
- वो दौड़ धूप करते हैं
- fīhim
- فِيهِمْ
- उनमें
- yaqūlūna
- يَقُولُونَ
- वो कहते हैं
- nakhshā
- نَخْشَىٰٓ
- हम डरते हैं
- an
- أَن
- कि
- tuṣībanā
- تُصِيبَنَا
- पहुँचेगी हमें
- dāiratun
- دَآئِرَةٌۚ
- कोई गर्दिश/मुसीबत
- faʿasā
- فَعَسَى
- तो उम्मीद है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- an
- أَن
- कि
- yatiya
- يَأْتِىَ
- वो ले आए
- bil-fatḥi
- بِٱلْفَتْحِ
- फ़तह
- aw
- أَوْ
- या
- amrin
- أَمْرٍ
- कोई हुक्म
- min
- مِّنْ
- अपनी तरफ़ से
- ʿindihi
- عِندِهِۦ
- अपनी तरफ़ से
- fayuṣ'biḥū
- فَيُصْبِحُوا۟
- फिर वो हो जाऐं
- ʿalā
- عَلَىٰ
- उस पर
- mā
- مَآ
- जो
- asarrū
- أَسَرُّوا۟
- उन्होंने छुपाया
- fī
- فِىٓ
- अपने नफ़्सों में
- anfusihim
- أَنفُسِهِمْ
- अपने नफ़्सों में
- nādimīna
- نَٰدِمِينَ
- नादिम
तो तुम देखते हो कि जिन लोगों के दिलों में रोग है, वे उनके यहाँ जाकर उनके बीच दौड़-धूप कर रहे है। वे कहते है, 'हमें भय है कि कहीं हम किसी संकट में न ग्रस्त हो जाएँ।' तो सम्भव है कि जल्द ही अल्लाह (तुम्हे) विजय प्रदान करे या उसकी ओर से कोई और बात प्रकट हो। फिर तो ये लोग जो कुछ अपने जी में छिपाए हुए है, उसपर लज्जित होंगे ([५] अल-माइदा: 52)Tafseer (तफ़सीर )
وَيَقُوْلُ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اَهٰٓؤُلَاۤءِ الَّذِيْنَ اَقْسَمُوْا بِاللّٰهِ جَهْدَ اَيْمَانِهِمْۙ اِنَّهُمْ لَمَعَكُمْۗ حَبِطَتْ اَعْمَالُهُمْ فَاَصْبَحُوْا خٰسِرِيْنَ ٥٣
- wayaqūlu
- وَيَقُولُ
- और कहते हैं
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- āmanū
- ءَامَنُوٓا۟
- ईमान लाए
- ahāulāi
- أَهَٰٓؤُلَآءِ
- क्या ये हैं
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिन्होंने
- aqsamū
- أَقْسَمُوا۟
- क़समें खाईं
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह की
- jahda
- جَهْدَ
- पक्की
- aymānihim
- أَيْمَٰنِهِمْۙ
- क़समें अपनी
- innahum
- إِنَّهُمْ
- कि बेशक वो
- lamaʿakum
- لَمَعَكُمْۚ
- अलबत्ता साथ हैं तुम्हारे
- ḥabiṭat
- حَبِطَتْ
- ज़ाया हो गए
- aʿmāluhum
- أَعْمَٰلُهُمْ
- आमाल उनके
- fa-aṣbaḥū
- فَأَصْبَحُوا۟
- पस वो हो गए
- khāsirīna
- خَٰسِرِينَ
- ख़सारा पाने वाले
उस समय ईमानवाले कहेंगे, 'क्या ये वही लोग है जो अल्लाह की कड़ी-कड़ी क़समें खाकर विश्वास दिलाते थे कि हम तुम्हारे साथ है?' इनका किया-धरा सब अकारथ गया और ये घाटे में पड़कर रहे ([५] अल-माइदा: 53)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا مَنْ يَّرْتَدَّ مِنْكُمْ عَنْ دِيْنِهٖ فَسَوْفَ يَأْتِى اللّٰهُ بِقَوْمٍ يُّحِبُّهُمْ وَيُحِبُّوْنَهٗٓ ۙاَذِلَّةٍ عَلَى الْمُؤْمِنِيْنَ اَعِزَّةٍ عَلَى الْكٰفِرِيْنَۖ يُجَاهِدُوْنَ فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ وَلَا يَخَافُوْنَ لَوْمَةَ لَاۤىِٕمٍ ۗذٰلِكَ فَضْلُ اللّٰهِ يُؤْتِيْهِ مَنْ يَّشَاۤءُۗ وَاللّٰهُ وَاسِعٌ عَلِيْمٌ ٥٤
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हो
- man
- مَن
- जो कोई
- yartadda
- يَرْتَدَّ
- फिर जाएगा
- minkum
- مِنكُمْ
- तुम में से
- ʿan
- عَن
- अपने दीन से
- dīnihi
- دِينِهِۦ
- अपने दीन से
- fasawfa
- فَسَوْفَ
- तो अनक़रीब
- yatī
- يَأْتِى
- ले आएगा
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- biqawmin
- بِقَوْمٍ
- ऐसे लोग
- yuḥibbuhum
- يُحِبُّهُمْ
- वो मोहब्बत करेगा उनसे
- wayuḥibbūnahu
- وَيُحِبُّونَهُۥٓ
- और वो मोहब्बत करेंगे उससे
- adhillatin
- أَذِلَّةٍ
- बहुत नर्म (होंगे)
- ʿalā
- عَلَى
- मोमिनों पर
- l-mu'minīna
- ٱلْمُؤْمِنِينَ
- मोमिनों पर
- aʿizzatin
- أَعِزَّةٍ
- बहुत सख़्त
- ʿalā
- عَلَى
- काफ़िरों पर
- l-kāfirīna
- ٱلْكَٰفِرِينَ
- काफ़िरों पर
- yujāhidūna
- يُجَٰهِدُونَ
- वो जिहाद करेंगे
- fī
- فِى
- अल्लाह के रास्ते में
- sabīli
- سَبِيلِ
- अल्लाह के रास्ते में
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के रास्ते में
- walā
- وَلَا
- और ना
- yakhāfūna
- يَخَافُونَ
- वो डरेंगे
- lawmata
- لَوْمَةَ
- मलामत से
- lāimin
- لَآئِمٍۚ
- मलामत करने वाले की
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये
- faḍlu
- فَضْلُ
- फ़ज़ल है
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह का
- yu'tīhi
- يُؤْتِيهِ
- वो देता है उसे
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُۚ
- वो चाहता है
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- wāsiʿun
- وَٰسِعٌ
- वुसअत वाला है
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब इल्म वाला है
ऐ ईमान लानेवालो! तुममें से जो कोई अपने धर्म से फिरेगा तो अल्लाह जल्द ही ऐसे लोगों को लाएगा जिनसे उसे प्रेम होगा और जो उससे प्रेम करेंगे। वे ईमानवालों के प्रति नरम और अविश्वासियों के प्रति कठोर होंगे। अल्लाह की राह में जी-तोड़ कोशिश करेंगे और किसी भर्त्सना करनेवाले की भर्त्सना से न डरेंगे। यह अल्लाह का उदार अनुग्रह है, जिसे चाहता है प्रदान करता है। अल्लाह बड़ी समाईवाला, सर्वज्ञ है ([५] अल-माइदा: 54)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّمَا وَلِيُّكُمُ اللّٰهُ وَرَسُوْلُهٗ وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوا الَّذِيْنَ يُقِيْمُوْنَ الصَّلٰوةَ وَيُؤْتُوْنَ الزَّكٰوةَ وَهُمْ رَاكِعُوْنَ ٥٥
- innamā
- إِنَّمَا
- बेशक
- waliyyukumu
- وَلِيُّكُمُ
- दोस्त तुम्हारा
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह है
- warasūluhu
- وَرَسُولُهُۥ
- और उसका रसूल
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- yuqīmūna
- يُقِيمُونَ
- क़ायम करते हैं
- l-ṣalata
- ٱلصَّلَوٰةَ
- नमाज़
- wayu'tūna
- وَيُؤْتُونَ
- और वो देते हैं
- l-zakata
- ٱلزَّكَوٰةَ
- ज़कात
- wahum
- وَهُمْ
- और वो
- rākiʿūna
- رَٰكِعُونَ
- रुकुअ करने वाले हैं
तुम्हारे मित्र को केवल अल्लाह और उसका रसूल और वे ईमानवाले है; जो विनम्रता के साथ नमाज़ क़ायम करते है और ज़कात देते है ([५] अल-माइदा: 55)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَنْ يَّتَوَلَّ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا فَاِنَّ حِزْبَ اللّٰهِ هُمُ الْغٰلِبُوْنَ ࣖ ٥٦
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- yatawalla
- يَتَوَلَّ
- दोस्ती करेगा
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- warasūlahu
- وَرَسُولَهُۥ
- और उसके रसूलों से
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और उनसे जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- fa-inna
- فَإِنَّ
- तो बेशक
- ḥiz'ba
- حِزْبَ
- गिरोह
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह का
- humu
- هُمُ
- वो ही
- l-ghālibūna
- ٱلْغَٰلِبُونَ
- ग़ालिब आने वाले हैं
अब जो कोई अल्लाह और उसके रसूल और ईमानवालों को अपना मित्र बनाए, तो निश्चय ही अल्लाह का गिरोह प्रभावी होकर रहेगा ([५] अल-माइदा: 56)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تَتَّخِذُوا الَّذِيْنَ اتَّخَذُوْا دِيْنَكُمْ هُزُوًا وَّلَعِبًا مِّنَ الَّذِيْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ مِنْ قَبْلِكُمْ وَالْكُفَّارَ اَوْلِيَاۤءَۚ وَاتَّقُوا اللّٰهَ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِيْنَ ٥٧
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हो
- lā
- لَا
- ना तुम बनाओ
- tattakhidhū
- تَتَّخِذُوا۟
- ना तुम बनाओ
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनको जिन्होंने
- ittakhadhū
- ٱتَّخَذُوا۟
- बना लिया
- dīnakum
- دِينَكُمْ
- तुम्हारे दीन को
- huzuwan
- هُزُوًا
- मज़ाक़
- walaʿiban
- وَلَعِبًا
- और खेल
- mina
- مِّنَ
- उनमें से जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनमें से जो
- ūtū
- أُوتُوا۟
- दिए गए
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब
- min
- مِن
- तुम से पहले
- qablikum
- قَبْلِكُمْ
- तुम से पहले
- wal-kufāra
- وَٱلْكُفَّارَ
- और काफ़िरों को
- awliyāa
- أَوْلِيَآءَۚ
- दोस्त
- wa-ittaqū
- وَٱتَّقُوا۟
- और डरो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- in
- إِن
- अगर
- kuntum
- كُنتُم
- हो तुम
- mu'minīna
- مُّؤْمِنِينَ
- ईमान लाने वाले
ऐ ईमान लानेवालो! तुमसे पहले जिनको किताब दी गई थी, जिन्होंने तुम्हारे धर्म को हँसी-खेल बना लिया है, उन्हें और इनकार करनेवालों को अपना मित्र न बनाओ। और अल्लाह का डर रखों यदि तुम ईमानवाले हो ([५] अल-माइदा: 57)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذَا نَادَيْتُمْ اِلَى الصَّلٰوةِ اتَّخَذُوْهَا هُزُوًا وَّلَعِبًا ۗذٰلِكَ بِاَ نَّهُمْ قَوْمٌ لَّا يَعْقِلُوْنَ ٥٨
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- nādaytum
- نَادَيْتُمْ
- पुकारते हो तुम
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ नमाज़ के
- l-ṣalati
- ٱلصَّلَوٰةِ
- तरफ़ नमाज़ के
- ittakhadhūhā
- ٱتَّخَذُوهَا
- वो बना लेते हैं उसे
- huzuwan
- هُزُوًا
- मज़ाक़
- walaʿiban
- وَلَعِبًاۚ
- और खेल
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये
- bi-annahum
- بِأَنَّهُمْ
- बवजह उसके कि वो
- qawmun
- قَوْمٌ
- ऐसे लोग हैं
- lā
- لَّا
- जो अक़्ल नहीं रखते
- yaʿqilūna
- يَعْقِلُونَ
- जो अक़्ल नहीं रखते
जब तुम नमाज़ के लिए पुकारते हो तो वे उसे हँसी और खेल बना लेते है। इसका कारण यह है कि वे बुद्धिहीन लोग है ([५] अल-माइदा: 58)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ يٰٓاَهْلَ الْكِتٰبِ هَلْ تَنْقِمُوْنَ مِنَّآ اِلَّآ اَنْ اٰمَنَّا بِاللّٰهِ وَمَآ اُنْزِلَ اِلَيْنَا وَمَآ اُنْزِلَ مِنْ قَبْلُۙ وَاَنَّ اَكْثَرَكُمْ فٰسِقُوْنَ ٥٩
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- yāahla
- يَٰٓأَهْلَ
- ऐ अहले किताब
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- ऐ अहले किताब
- hal
- هَلْ
- नहीं
- tanqimūna
- تَنقِمُونَ
- तुम बैर/दुश्मनी रखते
- minnā
- مِنَّآ
- हमसे
- illā
- إِلَّآ
- मगर
- an
- أَنْ
- ये कि
- āmannā
- ءَامَنَّا
- ईमान लाए हम
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- wamā
- وَمَآ
- और जो कुछ
- unzila
- أُنزِلَ
- नाज़िल किया गया
- ilaynā
- إِلَيْنَا
- तरफ़ हमारे
- wamā
- وَمَآ
- और जो कुछ
- unzila
- أُنزِلَ
- नाज़िल किया गया
- min
- مِن
- इससे पहले
- qablu
- قَبْلُ
- इससे पहले
- wa-anna
- وَأَنَّ
- और बेशक
- aktharakum
- أَكْثَرَكُمْ
- अक्सर तुम्हारे
- fāsiqūna
- فَٰسِقُونَ
- फ़ासिक़ हैं
कहो, 'ऐ किताबवालों! क्या इसके सिवा हमारी कोई और बात तुम्हें बुरी लगती है कि हम अल्लाह और उस चीज़ पर ईमान लाए, जो हमारी ओर उतारी गई, और जो पहले उतारी जा चुकी है? और यह कि तुममें से अधिकांश लोग अवज्ञाकारी है।' ([५] अल-माइदा: 59)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ هَلْ اُنَبِّئُكُمْ بِشَرٍّ مِّنْ ذٰلِكَ مَثُوْبَةً عِنْدَ اللّٰهِ ۗمَنْ لَّعَنَهُ اللّٰهُ وَغَضِبَ عَلَيْهِ وَجَعَلَ مِنْهُمُ الْقِرَدَةَ وَالْخَنَازِيْرَ وَعَبَدَ الطَّاغُوْتَۗ اُولٰۤىِٕكَ شَرٌّ مَّكَانًا وَّاَضَلُّ عَنْ سَوَاۤءِ السَّبِيْلِ ٦٠
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- hal
- هَلْ
- क्या
- unabbi-ukum
- أُنَبِّئُكُم
- मैं बताऊँ तुम्हें
- bisharrin
- بِشَرٍّ
- बदतर
- min
- مِّن
- उससे
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- उससे
- mathūbatan
- مَثُوبَةً
- बदले के ऐतबार से
- ʿinda
- عِندَ
- अल्लाह के नज़दीक
- l-lahi
- ٱللَّهِۚ
- अल्लाह के नज़दीक
- man
- مَن
- वो जो
- laʿanahu
- لَّعَنَهُ
- लानत की हो उस पर
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- waghaḍiba
- وَغَضِبَ
- और वो ग़ज़बनाक हुआ
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- उस पर
- wajaʿala
- وَجَعَلَ
- और उसने बनाए
- min'humu
- مِنْهُمُ
- उनमें से
- l-qiradata
- ٱلْقِرَدَةَ
- बन्दर
- wal-khanāzīra
- وَٱلْخَنَازِيرَ
- और ख़िन्ज़ीर
- waʿabada
- وَعَبَدَ
- और जिसने बंदगी की
- l-ṭāghūta
- ٱلطَّٰغُوتَۚ
- ताग़ूत की
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग
- sharrun
- شَرٌّ
- बदतरीन हैं
- makānan
- مَّكَانًا
- दर्जे में
- wa-aḍallu
- وَأَضَلُّ
- और ज़्यादा भटके हुए
- ʿan
- عَن
- सीधे रास्ते से
- sawāi
- سَوَآءِ
- सीधे रास्ते से
- l-sabīli
- ٱلسَّبِيلِ
- सीधे रास्ते से
कहो, 'क्या मैं तुम्हें बताऊँ कि अल्लाह के यहाँ परिणाम की स्पष्ट से इससे भी बुरी नीति क्या है? कौन गिरोह है जिसपर अल्लाह की फिटकार पड़ी और जिसपर अल्लाह का प्रकोप हुआ और जिसमें से उसने बन्दर और सूअर बनाए और जिसने बढ़े हुए फ़सादी (ताग़ूत) की बन्दगी की, वे लोग (तुमसे भी) निकृष्ट दर्जे के थे। और वे (तुमसे भी अधिक) सीधे मार्ग से भटके हुए थे।' ([५] अल-माइदा: 60)Tafseer (तफ़सीर )