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सूरा अल-माइदा - Page: 3

Al-Ma'idah

(मेज़)

२१

يٰقَوْمِ ادْخُلُوا الْاَرْضَ الْمُقَدَّسَةَ الَّتِيْ كَتَبَ اللّٰهُ لَكُمْ وَلَا تَرْتَدُّوْا عَلٰٓى اَدْبَارِكُمْ فَتَنْقَلِبُوْا خٰسِرِيْنَ ٢١

yāqawmi
يَٰقَوْمِ
ऐ मेरी क़ौम
ud'khulū
ٱدْخُلُوا۟
दाख़िल हो जाओ
l-arḍa
ٱلْأَرْضَ
अरदे
l-muqadasata
ٱلْمُقَدَّسَةَ
मुक़द्दस में
allatī
ٱلَّتِى
वो जो
kataba
كَتَبَ
लिख दी
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
walā
وَلَا
और ना
tartaddū
تَرْتَدُّوا۟
तुम फिर जाना
ʿalā
عَلَىٰٓ
अपनी पुश्तों पर
adbārikum
أَدْبَارِكُمْ
अपनी पुश्तों पर
fatanqalibū
فَتَنقَلِبُوا۟
वरना तुम लौट जाओगे
khāsirīna
خَٰسِرِينَ
ख़सारा पाने वाले होकर
'ऐ मेरे लोगो! इस पवित्र भूमि में प्रवेश करो, जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दी है। और पीछे न हटो, अन्यथा, घाटे में पड़ जाओगे।' ([५] अल-माइदा: 21)
Tafseer (तफ़सीर )
२२

قَالُوْا يٰمُوْسٰٓى اِنَّ فِيْهَا قَوْمًا جَبَّارِيْنَۖ وَاِنَّا لَنْ نَّدْخُلَهَا حَتّٰى يَخْرُجُوْا مِنْهَاۚ فَاِنْ يَّخْرُجُوْا مِنْهَا فَاِنَّا دٰخِلُوْنَ ٢٢

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
yāmūsā
يَٰمُوسَىٰٓ
ऐ मूसा
inna
إِنَّ
बेशक
fīhā
فِيهَا
उसमें
qawman
قَوْمًا
एक क़ौम है
jabbārīna
جَبَّارِينَ
बड़े ज़बरदस्त लोगों की
wa-innā
وَإِنَّا
और बेशक हम
lan
لَن
हरगिज़ ना
nadkhulahā
نَّدْخُلَهَا
हम दाख़िल होंगे उसमें
ḥattā
حَتَّىٰ
यहाँ तक कि
yakhrujū
يَخْرُجُوا۟
वो निकल जाऐं
min'hā
مِنْهَا
उससे
fa-in
فَإِن
फिर अगर
yakhrujū
يَخْرُجُوا۟
वो निकल जाऐं
min'hā
مِنْهَا
उससे
fa-innā
فَإِنَّا
तो बेशक हम
dākhilūna
دَٰخِلُونَ
दाख़िल होने वाले हैं
उन्होंने कहा, 'ऐ मूसा! उसमें तो बड़े शक्तिशाली लोग रहते है। हम तो वहाँ कदापि नहीं जा सकते, जब तक कि वे वहाँ से निकल नहीं जाते। हाँ, यदि वे वहाँ से निकल जाएँ, तो हम अवश्य प्रविष्ट हो जाएँगे।' ([५] अल-माइदा: 22)
Tafseer (तफ़सीर )
२३

قَالَ رَجُلَانِ مِنَ الَّذِيْنَ يَخَافُوْنَ اَنْعَمَ اللّٰهُ عَلَيْهِمَا ادْخُلُوْا عَلَيْهِمُ الْبَابَۚ فَاِذَا دَخَلْتُمُوْهُ فَاِنَّكُمْ غٰلِبُوْنَ ەۙ وَعَلَى اللّٰهِ فَتَوَكَّلُوْٓا اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِيْنَ ٢٣

qāla
قَالَ
कहा
rajulāni
رَجُلَانِ
दो आदमियों ने
mina
مِنَ
उसमें से जो
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उसमें से जो
yakhāfūna
يَخَافُونَ
डरते थे
anʿama
أَنْعَمَ
इनाम किया था
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
ʿalayhimā
عَلَيْهِمَا
उन दोनों पर
ud'khulū
ٱدْخُلُوا۟
दाख़िल हो जाओ
ʿalayhimu
عَلَيْهِمُ
उन पर
l-bāba
ٱلْبَابَ
दरवाज़े से
fa-idhā
فَإِذَا
फिर जब
dakhaltumūhu
دَخَلْتُمُوهُ
तुम दाख़िल हो जाओगे उसमें
fa-innakum
فَإِنَّكُمْ
तो बेशक तुम
ghālibūna
غَٰلِبُونَۚ
ग़ालिब आने वाले हो
waʿalā
وَعَلَى
और अल्लाह ही पर
l-lahi
ٱللَّهِ
और अल्लाह ही पर
fatawakkalū
فَتَوَكَّلُوٓا۟
पस तुम तवक्कल करो
in
إِن
अगर
kuntum
كُنتُم
हो तुम
mu'minīna
مُّؤْمِنِينَ
ईमान लाने वाले
उन डरनेवालों में से ही दो व्यक्ति ऐसे भी थे जिनपर अल्लाह का अनुग्रह था। उन्होंने कहा, 'उन लोगों के मुक़ाबले में दरवाज़े से प्रविष्ट हो जाओ। जब तुम उसमें प्रविष्टि हो जाओगे, तो तुम ही प्रभावी होगे। अल्लाह पर भरोसा रखो, यदि तुम ईमानवाले हो।' ([५] अल-माइदा: 23)
Tafseer (तफ़सीर )
२४

قَالُوْا يٰمُوْسٰٓى اِنَّا لَنْ نَّدْخُلَهَآ اَبَدًا مَّا دَامُوْا فِيْهَا ۖفَاذْهَبْ اَنْتَ وَرَبُّكَ فَقَاتِلَآ اِنَّا هٰهُنَا قٰعِدُوْنَ ٢٤

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
yāmūsā
يَٰمُوسَىٰٓ
ऐ मूसा
innā
إِنَّا
बेशक हम
lan
لَن
हरगिज़ नहीं
nadkhulahā
نَّدْخُلَهَآ
हम दाख़िल होंगे उसमें
abadan
أَبَدًا
कभी भी
مَّا
जब तक वो रहेंगे
dāmū
دَامُوا۟
जब तक वो रहेंगे
fīhā
فِيهَاۖ
उसमें
fa-idh'hab
فَٱذْهَبْ
पस जाओ
anta
أَنتَ
तुम
warabbuka
وَرَبُّكَ
और रब तुम्हारा
faqātilā
فَقَٰتِلَآ
पस तुम दोनों जंग करो
innā
إِنَّا
बेशक हम
hāhunā
هَٰهُنَا
यहीं
qāʿidūna
قَٰعِدُونَ
बैठने वाले हैं
उन्होंने कहा, 'ऐ मूसा! जब तक वे लोग वहाँ है, हम तो कदापि नहीं जाएँगे। ऐसा ही है तो जाओ तुम और तुम्हारा रब, और दोनों लड़ो। हम तो यहीं बैठे रहेंगे।' ([५] अल-माइदा: 24)
Tafseer (तफ़सीर )
२५

قَالَ رَبِّ اِنِّيْ لَآ اَمْلِكُ اِلَّا نَفْسِيْ وَاَخِيْ فَافْرُقْ بَيْنَنَا وَبَيْنَ الْقَوْمِ الْفٰسِقِيْنَ ٢٥

qāla
قَالَ
कहा
rabbi
رَبِّ
ऐ मेरे रब
innī
إِنِّى
बेशक मैं
لَآ
नहीं मैं मालिक
amliku
أَمْلِكُ
नहीं मैं मालिक
illā
إِلَّا
मगर
nafsī
نَفْسِى
अपने नफ़्स का
wa-akhī
وَأَخِىۖ
और अपने भाई का
fa-uf'ruq
فَٱفْرُقْ
पस जुदाई डाल दे
baynanā
بَيْنَنَا
दर्मियान हमारे
wabayna
وَبَيْنَ
और दर्मियान
l-qawmi
ٱلْقَوْمِ
उन लोगों के
l-fāsiqīna
ٱلْفَٰسِقِينَ
जो फ़ासिक़ हैं
उसने कहा, 'मेरे रब! मेरा स्वयं अपने और अपने भाई के अतिरिक्त किसी पर अधिकार नहीं है। अतः तू हमारे और इन अवज्ञाकारी लोगों के बीच अलगाव पैदा कर दे।' ([५] अल-माइदा: 25)
Tafseer (तफ़सीर )
२६

قَالَ فَاِنَّهَا مُحَرَّمَةٌ عَلَيْهِمْ اَرْبَعِيْنَ سَنَةً ۚيَتِيْهُوْنَ فِى الْاَرْضِۗ فَلَا تَأْسَ عَلَى الْقَوْمِ الْفٰسِقِيْنَ ࣖ ٢٦

qāla
قَالَ
फ़रमाया
fa-innahā
فَإِنَّهَا
पस बेशक वो
muḥarramatun
مُحَرَّمَةٌ
हराम कर दी गई
ʿalayhim
عَلَيْهِمْۛ
उन पर
arbaʿīna
أَرْبَعِينَ
चालीस
sanatan
سَنَةًۛ
साल
yatīhūna
يَتِيهُونَ
वो भटकते फिरेंगे
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِۚ
ज़मीन में
falā
فَلَا
पस ना
tasa
تَأْسَ
तुम अफ़सोस करो
ʿalā
عَلَى
उन लोगों पर
l-qawmi
ٱلْقَوْمِ
उन लोगों पर
l-fāsiqīna
ٱلْفَٰسِقِينَ
जो फ़ासिक़ हैं
कहा, 'अच्छा तो अब यह भूमि चालीस वर्ष कर इनके लिए वर्जित है। ये धरती में मारे-मारे फिरेंगे तो तुम इन अवज्ञाकारी लोगों के प्रति शोक न करो' ([५] अल-माइदा: 26)
Tafseer (तफ़सीर )
२७

۞ وَاتْلُ عَلَيْهِمْ نَبَاَ ابْنَيْ اٰدَمَ بِالْحَقِّۘ اِذْ قَرَّبَا قُرْبَانًا فَتُقُبِّلَ مِنْ اَحَدِهِمَا وَلَمْ يُتَقَبَّلْ مِنَ الْاٰخَرِۗ قَالَ لَاَقْتُلَنَّكَ ۗ قَالَ اِنَّمَا يَتَقَبَّلُ اللّٰهُ مِنَ الْمُتَّقِيْنَ ٢٧

wa-ut'lu
وَٱتْلُ
और पढ़िए
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
naba-a
نَبَأَ
ख़बर
ib'nay
ٱبْنَىْ
दो बेटों की
ādama
ءَادَمَ
आदम के
bil-ḥaqi
بِٱلْحَقِّ
साथ हक़ के
idh
إِذْ
जब
qarrabā
قَرَّبَا
उन दोनों ने क़ुर्बानी की
qur'bānan
قُرْبَانًا
क़ुर्बानी करना
fatuqubbila
فَتُقُبِّلَ
तो वो क़ुबूल कर ली गई
min
مِنْ
उन दोनों में से एक से
aḥadihimā
أَحَدِهِمَا
उन दोनों में से एक से
walam
وَلَمْ
और ना
yutaqabbal
يُتَقَبَّلْ
वो क़ुबूल की गई
mina
مِنَ
दूसरे से
l-ākhari
ٱلْءَاخَرِ
दूसरे से
qāla
قَالَ
कहा
la-aqtulannaka
لَأَقْتُلَنَّكَۖ
अलबत्ता मैं ज़रूर क़त्ल करुँगा तुझे
qāla
قَالَ
कहा
innamā
إِنَّمَا
बेशक
yataqabbalu
يَتَقَبَّلُ
क़ुबूल करता है
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
mina
مِنَ
मुत्तक़ी लोगों से
l-mutaqīna
ٱلْمُتَّقِينَ
मुत्तक़ी लोगों से
और इन्हें आदम के दो बेटों का सच्चा वृतान्त सुना दो। जब दोनों ने क़ुरबानी की, तो उनमें से एक की क़ुरबानी स्वीकृत हुई और दूसरे की स्वीकृत न हुई। उसने कहा, 'मै तुझे अवश्य मार डालूँगा।' दूसरे न कहा, 'अल्लाह तो उन्हीं की (क़ुरबानी) स्वीकृत करता है, जो डर रखनेवाले है। ([५] अल-माइदा: 27)
Tafseer (तफ़सीर )
२८

لَىِٕنْۢ بَسَطْتَّ اِلَيَّ يَدَكَ لِتَقْتُلَنِيْ مَآ اَنَا۠ بِبَاسِطٍ يَّدِيَ اِلَيْكَ لِاَقْتُلَكَۚ اِنِّيْٓ اَخَافُ اللّٰهَ رَبَّ الْعٰلَمِيْنَ ٢٨

la-in
لَئِنۢ
अलबत्ता अगर
basaṭta
بَسَطتَ
बढ़ाया तूने
ilayya
إِلَىَّ
मेरी तरफ़
yadaka
يَدَكَ
हाथ अपना
litaqtulanī
لِتَقْتُلَنِى
ताकि तू क़त्ल कर दे मुझे
مَآ
नहीं
anā
أَنَا۠
मैं
bibāsiṭin
بِبَاسِطٍ
बढ़ाने वाला
yadiya
يَدِىَ
हाथ अपना
ilayka
إِلَيْكَ
तरफ़ तेरे
li-aqtulaka
لِأَقْتُلَكَۖ
ताकि मैं क़त्ल कर दूँ तुझे
innī
إِنِّىٓ
बेशक मैं
akhāfu
أَخَافُ
मैं डरता हूँ
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह से
rabba
رَبَّ
जो रब है
l-ʿālamīna
ٱلْعَٰلَمِينَ
तमाम जहानों का
'यदि तू मेरी हत्या करने के लिए मेरी ओर हाथ बढ़ाएगा तो मैं तेरी हत्या करने के लिए तेरी ओर अपना हाथ नहीं बढ़ाऊँगा। मैं तो अल्लाह से डरता हूँ, जो सारे संसार का रब है ([५] अल-माइदा: 28)
Tafseer (तफ़सीर )
२९

اِنِّيْٓ اُرِيْدُ اَنْ تَبُوْۤاَ بِاِثْمِيْ وَاِثْمِكَ فَتَكُوْنَ مِنْ اَصْحٰبِ النَّارِۚ وَذٰلِكَ جَزَاۤؤُا الظّٰلِمِيْنَۚ ٢٩

innī
إِنِّىٓ
बेशक मैं
urīdu
أُرِيدُ
मैं चाहता हूँ
an
أَن
कि
tabūa
تَبُوٓأَ
तू पलटे
bi-ith'mī
بِإِثْمِى
साथ मेरे गुनाह के
wa-ith'mika
وَإِثْمِكَ
और अपने गुनाह के
fatakūna
فَتَكُونَ
फिर तू हो जाएगा
min
مِنْ
साथियों में से
aṣḥābi
أَصْحَٰبِ
साथियों में से
l-nāri
ٱلنَّارِۚ
आग के
wadhālika
وَذَٰلِكَ
और ये
jazāu
جَزَٰٓؤُا۟
बदला है
l-ẓālimīna
ٱلظَّٰلِمِينَ
ज़ालिमों का
'मैं तो चाहता हूँ कि मेरा गुनाह और अपना गुनाह तू ही अपने सिर ले ले, फिर आग (जहन्नम) में पड़नेवालों में से एक हो जाए, और वही अत्याचारियों का बदला है।' ([५] अल-माइदा: 29)
Tafseer (तफ़सीर )
३०

فَطَوَّعَتْ لَهٗ نَفْسُهٗ قَتْلَ اَخِيْهِ فَقَتَلَهٗ فَاَصْبَحَ مِنَ الْخٰسِرِيْنَ ٣٠

faṭawwaʿat
فَطَوَّعَتْ
तो आसान कर दिया
lahu
لَهُۥ
उसके लिए
nafsuhu
نَفْسُهُۥ
उसके नफ़्स ने
qatla
قَتْلَ
क़त्ल करना
akhīhi
أَخِيهِ
अपने भाई का
faqatalahu
فَقَتَلَهُۥ
तो उसने क़त्ल कर दिया उसे
fa-aṣbaḥa
فَأَصْبَحَ
पस वो हो गया
mina
مِنَ
ख़सारा पाने वालों में से
l-khāsirīna
ٱلْخَٰسِرِينَ
ख़सारा पाने वालों में से
अन्ततः उसके जी ने उस अपने भाई की हत्या के लिए उद्यत कर दिया, तो उसने उसकी हत्या कर डाली और घाटे में पड़ गया ([५] अल-माइदा: 30)
Tafseer (तफ़सीर )