يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تُقَدِّمُوْا بَيْنَ يَدَيِ اللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ وَاتَّقُوا اللّٰهَ ۗاِنَّ اللّٰهَ سَمِيْعٌ عَلِيْمٌ ١
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हो
- lā
- لَا
- ना तुम क़दम बढ़ाओ
- tuqaddimū
- تُقَدِّمُوا۟
- ना तुम क़दम बढ़ाओ
- bayna
- بَيْنَ
- आगे
- yadayi
- يَدَىِ
- आगे
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह से
- warasūlihi
- وَرَسُولِهِۦۖ
- और उसके रसूल से
- wa-ittaqū
- وَٱتَّقُوا۟
- और डरो
- l-laha
- ٱللَّهَۚ
- अल्लाह से
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- samīʿun
- سَمِيعٌ
- ख़ूब सुनने वाला है
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब जानने वाला है
ऐ ईमानवालो! अल्लाह और उसके रसूल से आगे न बढो और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह सुनता, जानता है ([४९] अल-हुजरात: 1)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تَرْفَعُوْٓا اَصْوَاتَكُمْ فَوْقَ صَوْتِ النَّبِيِّ وَلَا تَجْهَرُوْا لَهٗ بِالْقَوْلِ كَجَهْرِ بَعْضِكُمْ لِبَعْضٍ اَنْ تَحْبَطَ اَعْمَالُكُمْ وَاَنْتُمْ لَا تَشْعُرُوْنَ ٢
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हो
- lā
- لَا
- ना तुम ऊँचा करो
- tarfaʿū
- تَرْفَعُوٓا۟
- ना तुम ऊँचा करो
- aṣwātakum
- أَصْوَٰتَكُمْ
- अपनी आवाज़ों को
- fawqa
- فَوْقَ
- ऊपर
- ṣawti
- صَوْتِ
- आवाज़ के
- l-nabiyi
- ٱلنَّبِىِّ
- नबी की
- walā
- وَلَا
- और ना
- tajharū
- تَجْهَرُوا۟
- तुम बुलन्द आवाज़ से करो
- lahu
- لَهُۥ
- उनसे
- bil-qawli
- بِٱلْقَوْلِ
- बात
- kajahri
- كَجَهْرِ
- मानिन्द बुलन्द करने के
- baʿḍikum
- بَعْضِكُمْ
- तुम्हारे बाज़ के
- libaʿḍin
- لِبَعْضٍ
- बाज़ के लिए
- an
- أَن
- कि
- taḥbaṭa
- تَحْبَطَ
- (ना) ज़ाया हो जाऐं
- aʿmālukum
- أَعْمَٰلُكُمْ
- आमाल तुम्हारे
- wa-antum
- وَأَنتُمْ
- और तुम
- lā
- لَا
- ना शऊर रखते हो
- tashʿurūna
- تَشْعُرُونَ
- ना शऊर रखते हो
ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो! तुम अपनी आवाज़ों को नबी की आवाज़ से ऊँची न करो। और जिस तरह तुम आपस में एक-दूसरे से ज़ोर से बोलते हो, उससे ऊँची आवाज़ में बात न करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे कर्म अकारथ हो जाएँ और तुम्हें ख़बर भी न हो ([४९] अल-हुजरात: 2)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ الَّذِيْنَ يَغُضُّوْنَ اَصْوَاتَهُمْ عِنْدَ رَسُوْلِ اللّٰهِ اُولٰۤىِٕكَ الَّذِيْنَ امْتَحَنَ اللّٰهُ قُلُوْبَهُمْ لِلتَّقْوٰىۗ لَهُمْ مَّغْفِرَةٌ وَّاَجْرٌ عَظِيْمٌ ٣
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- yaghuḍḍūna
- يَغُضُّونَ
- पस्त रखते हैं
- aṣwātahum
- أَصْوَٰتَهُمْ
- अपनी आवाज़ों को
- ʿinda
- عِندَ
- पास
- rasūli
- رَسُولِ
- रसूल अल्लाह के
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- रसूल अल्लाह के
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही वो लोग हैं
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- जो
- im'taḥana
- ٱمْتَحَنَ
- आज़मा लिए
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- qulūbahum
- قُلُوبَهُمْ
- दिल उनके
- lilttaqwā
- لِلتَّقْوَىٰۚ
- तक़्वा के लिए
- lahum
- لَهُم
- उनके लिए
- maghfiratun
- مَّغْفِرَةٌ
- बख़्शिश है
- wa-ajrun
- وَأَجْرٌ
- और अजर है
- ʿaẓīmun
- عَظِيمٌ
- बहुत बड़ा
वे लोग जो अल्लाह के रसूल के समक्ष अपनी आवाज़ों को दबी रखते है, वही लोग है जिनके दिलों को अल्लाह ने परहेज़गारी के लिए जाँचकर चुन लिया है। उनके लिए क्षमा और बड़ा बदला है ([४९] अल-हुजरात: 3)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ الَّذِيْنَ يُنَادُوْنَكَ مِنْ وَّرَاۤءِ الْحُجُرٰتِ اَكْثَرُهُمْ لَا يَعْقِلُوْنَ ٤
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- yunādūnaka
- يُنَادُونَكَ
- आवाज़ देते हैं आपको
- min
- مِن
- बाहर से
- warāi
- وَرَآءِ
- बाहर से
- l-ḥujurāti
- ٱلْحُجُرَٰتِ
- हुजरों के
- aktharuhum
- أَكْثَرُهُمْ
- अक्सर उनके
- lā
- لَا
- नहीं वो अक़्ल रखते
- yaʿqilūna
- يَعْقِلُونَ
- नहीं वो अक़्ल रखते
जो लोग (ऐ नबी) तुम्हें कमरों के बाहर से पुकारते है उनमें से अधिकतर बुद्धि से काम नहीं लेते ([४९] अल-हुजरात: 4)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَوْ اَنَّهُمْ صَبَرُوْا حَتّٰى تَخْرُجَ اِلَيْهِمْ لَكَانَ خَيْرًا لَّهُمْ ۗوَاللّٰهُ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ٥
- walaw
- وَلَوْ
- और अगर
- annahum
- أَنَّهُمْ
- ये कि वो
- ṣabarū
- صَبَرُوا۟
- वो सब्र करते
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- यहाँ तक कि
- takhruja
- تَخْرُجَ
- आप निकलते
- ilayhim
- إِلَيْهِمْ
- तरफ़ उनके
- lakāna
- لَكَانَ
- अलबत्ता होता
- khayran
- خَيْرًا
- बेहतर
- lahum
- لَّهُمْۚ
- उनके लिए
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- ghafūrun
- غَفُورٌ
- बहुत बख़्शने वाला है
- raḥīmun
- رَّحِيمٌ
- निहायत रहम करने वाला है
यदि वे धैर्य से काम लेते यहाँ तक कि तुम स्वयं निकलकर उनके पास आ जाते तो यह उनके लिए अच्छा होता। किन्तु अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है ([४९] अल-हुजरात: 5)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اِنْ جَاۤءَكُمْ فَاسِقٌۢ بِنَبَاٍ فَتَبَيَّنُوْٓا اَنْ تُصِيْبُوْا قَوْمًاۢ بِجَهَالَةٍ فَتُصْبِحُوْا عَلٰى مَا فَعَلْتُمْ نٰدِمِيْنَ ٦
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوٓا۟
- ईमान लाए हो
- in
- إِن
- अगर
- jāakum
- جَآءَكُمْ
- लाए तुम्हारे पास
- fāsiqun
- فَاسِقٌۢ
- कोई फ़ासिक़
- binaba-in
- بِنَبَإٍ
- किसी ख़बर को
- fatabayyanū
- فَتَبَيَّنُوٓا۟
- तो तहक़ीक़ कर लिया करो
- an
- أَن
- कि
- tuṣībū
- تُصِيبُوا۟
- (ना) तुम तक्लीफ़ पहुँचाओ
- qawman
- قَوْمًۢا
- किसी क़ौम को
- bijahālatin
- بِجَهَٰلَةٍ
- जिहालत से
- fatuṣ'biḥū
- فَتُصْبِحُوا۟
- फिर तुम हो जाओ
- ʿalā
- عَلَىٰ
- ऊपर
- mā
- مَا
- उसके जो
- faʿaltum
- فَعَلْتُمْ
- किया तुमने
- nādimīna
- نَٰدِمِينَ
- नादिम
ऐ लोगों, जो ईमान लाए हो! यदि कोई अवज्ञाकारी तुम्हारे पास कोई ख़बर लेकर आए तो उसकी छानबीन कर लिया करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम किसी गिरोह को अनजाने में तकलीफ़ और नुक़सान पहुँचा बैठो, फिर अपने किए पर पछताओ ([४९] अल-हुजरात: 6)Tafseer (तफ़सीर )
وَاعْلَمُوْٓا اَنَّ فِيْكُمْ رَسُوْلَ اللّٰهِ ۗ لَوْ يُطِيْعُكُمْ فِيْ كَثِيْرٍ مِّنَ الْاَمْرِ لَعَنِتُّمْ وَلٰكِنَّ اللّٰهَ حَبَّبَ اِلَيْكُمُ الْاِيْمَانَ وَزَيَّنَهٗ فِيْ قُلُوْبِكُمْ وَكَرَّهَ اِلَيْكُمُ الْكُفْرَ وَالْفُسُوْقَ وَالْعِصْيَانَ ۗ اُولٰۤىِٕكَ هُمُ الرَّاشِدُوْنَۙ ٧
- wa-iʿ'lamū
- وَٱعْلَمُوٓا۟
- और जान लो
- anna
- أَنَّ
- बेशक
- fīkum
- فِيكُمْ
- तुम में
- rasūla
- رَسُولَ
- रसूल हैं
- l-lahi
- ٱللَّهِۚ
- अल्लाह के
- law
- لَوْ
- अगर
- yuṭīʿukum
- يُطِيعُكُمْ
- वो कहा मानें तुम्हारा
- fī
- فِى
- बहुत से
- kathīrin
- كَثِيرٍ
- बहुत से
- mina
- مِّنَ
- मामलात में
- l-amri
- ٱلْأَمْرِ
- मामलात में
- laʿanittum
- لَعَنِتُّمْ
- अलबत्ता मुश्किल में पड़ जाओ तुम
- walākinna
- وَلَٰكِنَّ
- और लेकिन
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह ने
- ḥabbaba
- حَبَّبَ
- महबूब बना दिया
- ilaykumu
- إِلَيْكُمُ
- तुम्हारे लिए
- l-īmāna
- ٱلْإِيمَٰنَ
- ईमान को
- wazayyanahu
- وَزَيَّنَهُۥ
- और उसने मुज़य्यन कर दिया उसे
- fī
- فِى
- तुम्हारे दिलों में
- qulūbikum
- قُلُوبِكُمْ
- तुम्हारे दिलों में
- wakarraha
- وَكَرَّهَ
- और उसने नापसंदीदा कर दिया
- ilaykumu
- إِلَيْكُمُ
- तुम्हारी तरफ़
- l-kuf'ra
- ٱلْكُفْرَ
- कुफ़्र
- wal-fusūqa
- وَٱلْفُسُوقَ
- और गुनाह
- wal-ʿiṣ'yāna
- وَٱلْعِصْيَانَۚ
- और नाफ़रमानी को
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- humu
- هُمُ
- वो
- l-rāshidūna
- ٱلرَّٰشِدُونَ
- जो हिदायत याफ़्ता हैं
जान लो कि तुम्हारे बीच अल्लाह का रसूल मौजूद है। बहुत-से मामलों में यदि वह तुम्हारी बात मान ले तो तुम कठिनाई में पड़ जाओ। किन्तु अल्लाह ने तुम्हारे लिए ईमान को प्रिय बना दिया और उसे तुम्हारे दिलों में सुन्दरता दे दी और इनकार, उल्लंघन और अवज्ञा को तुम्हारे लिए बहुत अप्रिय बना दिया। ([४९] अल-हुजरात: 7)Tafseer (तफ़सीर )
فَضْلًا مِّنَ اللّٰهِ وَنِعْمَةً ۗوَاللّٰهُ عَلِيْمٌ حَكِيْمٌ ٨
- faḍlan
- فَضْلًا
- फ़ज़ल है
- mina
- مِّنَ
- अल्लाह की तरफ़ से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की तरफ़ से
- waniʿ'matan
- وَنِعْمَةًۚ
- और नेअमत
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब इल्म वाला है
- ḥakīmun
- حَكِيمٌ
- ख़ूब हिकमत वाला है
ऐसे ही लोग अल्लाह के उदार अनुग्रह और अनुकम्पा से सूझबूझवाले है। और अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है ([४९] अल-हुजरात: 8)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِنْ طَاۤىِٕفَتٰنِ مِنَ الْمُؤْمِنِيْنَ اقْتَتَلُوْا فَاَصْلِحُوْا بَيْنَهُمَاۚ فَاِنْۢ بَغَتْ اِحْدٰىهُمَا عَلَى الْاُخْرٰى فَقَاتِلُوا الَّتِيْ تَبْغِيْ حَتّٰى تَفِيْۤءَ اِلٰٓى اَمْرِ اللّٰهِ ۖفَاِنْ فَاۤءَتْ فَاَصْلِحُوْا بَيْنَهُمَا بِالْعَدْلِ وَاَقْسِطُوْا ۗاِنَّ اللّٰهَ يُحِبُّ الْمُقْسِطِيْنَ ٩
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- ṭāifatāni
- طَآئِفَتَانِ
- दो गिरोह
- mina
- مِنَ
- मोमिनों में से
- l-mu'minīna
- ٱلْمُؤْمِنِينَ
- मोमिनों में से
- iq'tatalū
- ٱقْتَتَلُوا۟
- वो बाहम लड़ पड़ें
- fa-aṣliḥū
- فَأَصْلِحُوا۟
- तो सुलह करा दो
- baynahumā
- بَيْنَهُمَاۖ
- दर्मियान उन दोनों के
- fa-in
- فَإِنۢ
- फिर अगर
- baghat
- بَغَتْ
- ज़्यादती करे
- iḥ'dāhumā
- إِحْدَىٰهُمَا
- उन दोनों में से एक
- ʿalā
- عَلَى
- दूसरे पर
- l-ukh'rā
- ٱلْأُخْرَىٰ
- दूसरे पर
- faqātilū
- فَقَٰتِلُوا۟
- तो लड़ो
- allatī
- ٱلَّتِى
- उससे जो
- tabghī
- تَبْغِى
- ज़्यादती करे
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- यहाँ तक कि
- tafīa
- تَفِىٓءَ
- वो पलट आए
- ilā
- إِلَىٰٓ
- तरफ़
- amri
- أَمْرِ
- अल्लाह के हुक्म के
- l-lahi
- ٱللَّهِۚ
- अल्लाह के हुक्म के
- fa-in
- فَإِن
- फिर अगर
- fāat
- فَآءَتْ
- वो पलट आए
- fa-aṣliḥū
- فَأَصْلِحُوا۟
- तो सुलह करा दो
- baynahumā
- بَيْنَهُمَا
- दर्मियान उन दोनों के
- bil-ʿadli
- بِٱلْعَدْلِ
- साथ अदल के
- wa-aqsiṭū
- وَأَقْسِطُوٓا۟ۖ
- और इन्साफ़ करो
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- yuḥibbu
- يُحِبُّ
- वो पसंद करता है
- l-muq'siṭīna
- ٱلْمُقْسِطِينَ
- इन्साफ़ करने वालों को
यदि मोमिनों में से दो गिरोह आपस में लड़ पड़े तो उनके बीच सुलह करा दो। फिर यदि उनमें से एक गिरोह दूसरे पर ज़्यादती करे, तो जो गिरोह ज़्यादती कर रहा हो उससे लड़ो, यहाँ तक कि वह अल्लाह के आदेश की ओर पलट आए। फिर यदि वह पलट आए तो उनके बीच न्याय के साथ सुलह करा दो, और इनसाफ़ करो। निश्चय ही अल्लाह इनसाफ़ करनेवालों को पसन्द करता है ([४९] अल-हुजरात: 9)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّمَا الْمُؤْمِنُوْنَ اِخْوَةٌ فَاَصْلِحُوْا بَيْنَ اَخَوَيْكُمْ وَاتَّقُوا اللّٰهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَ ࣖ ١٠
- innamā
- إِنَّمَا
- बेशक
- l-mu'minūna
- ٱلْمُؤْمِنُونَ
- मोमिन तो
- ikh'watun
- إِخْوَةٌ
- भाई-भाई हैं
- fa-aṣliḥū
- فَأَصْلِحُوا۟
- तो सुलह करा दो
- bayna
- بَيْنَ
- दर्मियान
- akhawaykum
- أَخَوَيْكُمْۚ
- अपने दो भाइयों के
- wa-ittaqū
- وَٱتَّقُوا۟
- और डरो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- laʿallakum
- لَعَلَّكُمْ
- ताकि तुम
- tur'ḥamūna
- تُرْحَمُونَ
- तुम रहम किए जाओ
मोमिन तो भाई-भाई ही है। अतः अपने दो भाईयो के बीच सुलह करा दो और अल्लाह का डर रखो, ताकि तुमपर दया की जाए ([४९] अल-हुजरात: 10)Tafseer (तफ़सीर )