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सूरा अल-हुजरात - शब्द द्वारा शब्द

Al-Hujurat

(The Private Apartments, The Inner Apartments)

bismillaahirrahmaanirrahiim

يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تُقَدِّمُوْا بَيْنَ يَدَيِ اللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ وَاتَّقُوا اللّٰهَ ۗاِنَّ اللّٰهَ سَمِيْعٌ عَلِيْمٌ ١

yāayyuhā
يَٰٓأَيُّهَا
ऐ लोगो जो
alladhīna
ٱلَّذِينَ
ऐ लोगो जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए हो
لَا
ना तुम क़दम बढ़ाओ
tuqaddimū
تُقَدِّمُوا۟
ना तुम क़दम बढ़ाओ
bayna
بَيْنَ
आगे
yadayi
يَدَىِ
आगे
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह से
warasūlihi
وَرَسُولِهِۦۖ
और उसके रसूल से
wa-ittaqū
وَٱتَّقُوا۟
और डरो
l-laha
ٱللَّهَۚ
अल्लाह से
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
samīʿun
سَمِيعٌ
ख़ूब सुनने वाला है
ʿalīmun
عَلِيمٌ
ख़ूब जानने वाला है
ऐ ईमानवालो! अल्लाह और उसके रसूल से आगे न बढो और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह सुनता, जानता है ([४९] अल-हुजरात: 1)
Tafseer (तफ़सीर )

يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تَرْفَعُوْٓا اَصْوَاتَكُمْ فَوْقَ صَوْتِ النَّبِيِّ وَلَا تَجْهَرُوْا لَهٗ بِالْقَوْلِ كَجَهْرِ بَعْضِكُمْ لِبَعْضٍ اَنْ تَحْبَطَ اَعْمَالُكُمْ وَاَنْتُمْ لَا تَشْعُرُوْنَ ٢

yāayyuhā
يَٰٓأَيُّهَا
ऐ लोगो जो
alladhīna
ٱلَّذِينَ
ऐ लोगो जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए हो
لَا
ना तुम ऊँचा करो
tarfaʿū
تَرْفَعُوٓا۟
ना तुम ऊँचा करो
aṣwātakum
أَصْوَٰتَكُمْ
अपनी आवाज़ों को
fawqa
فَوْقَ
ऊपर
ṣawti
صَوْتِ
आवाज़ के
l-nabiyi
ٱلنَّبِىِّ
नबी की
walā
وَلَا
और ना
tajharū
تَجْهَرُوا۟
तुम बुलन्द आवाज़ से करो
lahu
لَهُۥ
उनसे
bil-qawli
بِٱلْقَوْلِ
बात
kajahri
كَجَهْرِ
मानिन्द बुलन्द करने के
baʿḍikum
بَعْضِكُمْ
तुम्हारे बाज़ के
libaʿḍin
لِبَعْضٍ
बाज़ के लिए
an
أَن
कि
taḥbaṭa
تَحْبَطَ
(ना) ज़ाया हो जाऐं
aʿmālukum
أَعْمَٰلُكُمْ
आमाल तुम्हारे
wa-antum
وَأَنتُمْ
और तुम
لَا
ना शऊर रखते हो
tashʿurūna
تَشْعُرُونَ
ना शऊर रखते हो
ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो! तुम अपनी आवाज़ों को नबी की आवाज़ से ऊँची न करो। और जिस तरह तुम आपस में एक-दूसरे से ज़ोर से बोलते हो, उससे ऊँची आवाज़ में बात न करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे कर्म अकारथ हो जाएँ और तुम्हें ख़बर भी न हो ([४९] अल-हुजरात: 2)
Tafseer (तफ़सीर )

اِنَّ الَّذِيْنَ يَغُضُّوْنَ اَصْوَاتَهُمْ عِنْدَ رَسُوْلِ اللّٰهِ اُولٰۤىِٕكَ الَّذِيْنَ امْتَحَنَ اللّٰهُ قُلُوْبَهُمْ لِلتَّقْوٰىۗ لَهُمْ مَّغْفِرَةٌ وَّاَجْرٌ عَظِيْمٌ ٣

inna
إِنَّ
बेशक
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जो
yaghuḍḍūna
يَغُضُّونَ
पस्त रखते हैं
aṣwātahum
أَصْوَٰتَهُمْ
अपनी आवाज़ों को
ʿinda
عِندَ
पास
rasūli
رَسُولِ
रसूल अल्लाह के
l-lahi
ٱللَّهِ
रसूल अल्लाह के
ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही वो लोग हैं
alladhīna
ٱلَّذِينَ
जो
im'taḥana
ٱمْتَحَنَ
आज़मा लिए
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
qulūbahum
قُلُوبَهُمْ
दिल उनके
lilttaqwā
لِلتَّقْوَىٰۚ
तक़्वा के लिए
lahum
لَهُم
उनके लिए
maghfiratun
مَّغْفِرَةٌ
बख़्शिश है
wa-ajrun
وَأَجْرٌ
और अजर है
ʿaẓīmun
عَظِيمٌ
बहुत बड़ा
वे लोग जो अल्लाह के रसूल के समक्ष अपनी आवाज़ों को दबी रखते है, वही लोग है जिनके दिलों को अल्लाह ने परहेज़गारी के लिए जाँचकर चुन लिया है। उनके लिए क्षमा और बड़ा बदला है ([४९] अल-हुजरात: 3)
Tafseer (तफ़सीर )

اِنَّ الَّذِيْنَ يُنَادُوْنَكَ مِنْ وَّرَاۤءِ الْحُجُرٰتِ اَكْثَرُهُمْ لَا يَعْقِلُوْنَ ٤

inna
إِنَّ
बेशक
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो लोग जो
yunādūnaka
يُنَادُونَكَ
आवाज़ देते हैं आपको
min
مِن
बाहर से
warāi
وَرَآءِ
बाहर से
l-ḥujurāti
ٱلْحُجُرَٰتِ
हुजरों के
aktharuhum
أَكْثَرُهُمْ
अक्सर उनके
لَا
नहीं वो अक़्ल रखते
yaʿqilūna
يَعْقِلُونَ
नहीं वो अक़्ल रखते
जो लोग (ऐ नबी) तुम्हें कमरों के बाहर से पुकारते है उनमें से अधिकतर बुद्धि से काम नहीं लेते ([४९] अल-हुजरात: 4)
Tafseer (तफ़सीर )

وَلَوْ اَنَّهُمْ صَبَرُوْا حَتّٰى تَخْرُجَ اِلَيْهِمْ لَكَانَ خَيْرًا لَّهُمْ ۗوَاللّٰهُ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ٥

walaw
وَلَوْ
और अगर
annahum
أَنَّهُمْ
ये कि वो
ṣabarū
صَبَرُوا۟
वो सब्र करते
ḥattā
حَتَّىٰ
यहाँ तक कि
takhruja
تَخْرُجَ
आप निकलते
ilayhim
إِلَيْهِمْ
तरफ़ उनके
lakāna
لَكَانَ
अलबत्ता होता
khayran
خَيْرًا
बेहतर
lahum
لَّهُمْۚ
उनके लिए
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
ghafūrun
غَفُورٌ
बहुत बख़्शने वाला है
raḥīmun
رَّحِيمٌ
निहायत रहम करने वाला है
यदि वे धैर्य से काम लेते यहाँ तक कि तुम स्वयं निकलकर उनके पास आ जाते तो यह उनके लिए अच्छा होता। किन्तु अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है ([४९] अल-हुजरात: 5)
Tafseer (तफ़सीर )

يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اِنْ جَاۤءَكُمْ فَاسِقٌۢ بِنَبَاٍ فَتَبَيَّنُوْٓا اَنْ تُصِيْبُوْا قَوْمًاۢ بِجَهَالَةٍ فَتُصْبِحُوْا عَلٰى مَا فَعَلْتُمْ نٰدِمِيْنَ ٦

yāayyuhā
يَٰٓأَيُّهَا
ऐ लोगो जो
alladhīna
ٱلَّذِينَ
ऐ लोगो जो
āmanū
ءَامَنُوٓا۟
ईमान लाए हो
in
إِن
अगर
jāakum
جَآءَكُمْ
लाए तुम्हारे पास
fāsiqun
فَاسِقٌۢ
कोई फ़ासिक़
binaba-in
بِنَبَإٍ
किसी ख़बर को
fatabayyanū
فَتَبَيَّنُوٓا۟
तो तहक़ीक़ कर लिया करो
an
أَن
कि
tuṣībū
تُصِيبُوا۟
(ना) तुम तक्लीफ़ पहुँचाओ
qawman
قَوْمًۢا
किसी क़ौम को
bijahālatin
بِجَهَٰلَةٍ
जिहालत से
fatuṣ'biḥū
فَتُصْبِحُوا۟
फिर तुम हो जाओ
ʿalā
عَلَىٰ
ऊपर
مَا
उसके जो
faʿaltum
فَعَلْتُمْ
किया तुमने
nādimīna
نَٰدِمِينَ
नादिम
ऐ लोगों, जो ईमान लाए हो! यदि कोई अवज्ञाकारी तुम्हारे पास कोई ख़बर लेकर आए तो उसकी छानबीन कर लिया करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम किसी गिरोह को अनजाने में तकलीफ़ और नुक़सान पहुँचा बैठो, फिर अपने किए पर पछताओ ([४९] अल-हुजरात: 6)
Tafseer (तफ़सीर )

وَاعْلَمُوْٓا اَنَّ فِيْكُمْ رَسُوْلَ اللّٰهِ ۗ لَوْ يُطِيْعُكُمْ فِيْ كَثِيْرٍ مِّنَ الْاَمْرِ لَعَنِتُّمْ وَلٰكِنَّ اللّٰهَ حَبَّبَ اِلَيْكُمُ الْاِيْمَانَ وَزَيَّنَهٗ فِيْ قُلُوْبِكُمْ وَكَرَّهَ اِلَيْكُمُ الْكُفْرَ وَالْفُسُوْقَ وَالْعِصْيَانَ ۗ اُولٰۤىِٕكَ هُمُ الرَّاشِدُوْنَۙ ٧

wa-iʿ'lamū
وَٱعْلَمُوٓا۟
और जान लो
anna
أَنَّ
बेशक
fīkum
فِيكُمْ
तुम में
rasūla
رَسُولَ
रसूल हैं
l-lahi
ٱللَّهِۚ
अल्लाह के
law
لَوْ
अगर
yuṭīʿukum
يُطِيعُكُمْ
वो कहा मानें तुम्हारा
فِى
बहुत से
kathīrin
كَثِيرٍ
बहुत से
mina
مِّنَ
मामलात में
l-amri
ٱلْأَمْرِ
मामलात में
laʿanittum
لَعَنِتُّمْ
अलबत्ता मुश्किल में पड़ जाओ तुम
walākinna
وَلَٰكِنَّ
और लेकिन
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह ने
ḥabbaba
حَبَّبَ
महबूब बना दिया
ilaykumu
إِلَيْكُمُ
तुम्हारे लिए
l-īmāna
ٱلْإِيمَٰنَ
ईमान को
wazayyanahu
وَزَيَّنَهُۥ
और उसने मुज़य्यन कर दिया उसे
فِى
तुम्हारे दिलों में
qulūbikum
قُلُوبِكُمْ
तुम्हारे दिलों में
wakarraha
وَكَرَّهَ
और उसने नापसंदीदा कर दिया
ilaykumu
إِلَيْكُمُ
तुम्हारी तरफ़
l-kuf'ra
ٱلْكُفْرَ
कुफ़्र
wal-fusūqa
وَٱلْفُسُوقَ
और गुनाह
wal-ʿiṣ'yāna
وَٱلْعِصْيَانَۚ
और नाफ़रमानी को
ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही लोग हैं
humu
هُمُ
वो
l-rāshidūna
ٱلرَّٰشِدُونَ
जो हिदायत याफ़्ता हैं
जान लो कि तुम्हारे बीच अल्लाह का रसूल मौजूद है। बहुत-से मामलों में यदि वह तुम्हारी बात मान ले तो तुम कठिनाई में पड़ जाओ। किन्तु अल्लाह ने तुम्हारे लिए ईमान को प्रिय बना दिया और उसे तुम्हारे दिलों में सुन्दरता दे दी और इनकार, उल्लंघन और अवज्ञा को तुम्हारे लिए बहुत अप्रिय बना दिया। ([४९] अल-हुजरात: 7)
Tafseer (तफ़सीर )

فَضْلًا مِّنَ اللّٰهِ وَنِعْمَةً ۗوَاللّٰهُ عَلِيْمٌ حَكِيْمٌ ٨

faḍlan
فَضْلًا
फ़ज़ल है
mina
مِّنَ
अल्लाह की तरफ़ से
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की तरफ़ से
waniʿ'matan
وَنِعْمَةًۚ
और नेअमत
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
ʿalīmun
عَلِيمٌ
ख़ूब इल्म वाला है
ḥakīmun
حَكِيمٌ
ख़ूब हिकमत वाला है
ऐसे ही लोग अल्लाह के उदार अनुग्रह और अनुकम्पा से सूझबूझवाले है। और अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है ([४९] अल-हुजरात: 8)
Tafseer (तफ़सीर )

وَاِنْ طَاۤىِٕفَتٰنِ مِنَ الْمُؤْمِنِيْنَ اقْتَتَلُوْا فَاَصْلِحُوْا بَيْنَهُمَاۚ فَاِنْۢ بَغَتْ اِحْدٰىهُمَا عَلَى الْاُخْرٰى فَقَاتِلُوا الَّتِيْ تَبْغِيْ حَتّٰى تَفِيْۤءَ اِلٰٓى اَمْرِ اللّٰهِ ۖفَاِنْ فَاۤءَتْ فَاَصْلِحُوْا بَيْنَهُمَا بِالْعَدْلِ وَاَقْسِطُوْا ۗاِنَّ اللّٰهَ يُحِبُّ الْمُقْسِطِيْنَ ٩

wa-in
وَإِن
और अगर
ṭāifatāni
طَآئِفَتَانِ
दो गिरोह
mina
مِنَ
मोमिनों में से
l-mu'minīna
ٱلْمُؤْمِنِينَ
मोमिनों में से
iq'tatalū
ٱقْتَتَلُوا۟
वो बाहम लड़ पड़ें
fa-aṣliḥū
فَأَصْلِحُوا۟
तो सुलह करा दो
baynahumā
بَيْنَهُمَاۖ
दर्मियान उन दोनों के
fa-in
فَإِنۢ
फिर अगर
baghat
بَغَتْ
ज़्यादती करे
iḥ'dāhumā
إِحْدَىٰهُمَا
उन दोनों में से एक
ʿalā
عَلَى
दूसरे पर
l-ukh'rā
ٱلْأُخْرَىٰ
दूसरे पर
faqātilū
فَقَٰتِلُوا۟
तो लड़ो
allatī
ٱلَّتِى
उससे जो
tabghī
تَبْغِى
ज़्यादती करे
ḥattā
حَتَّىٰ
यहाँ तक कि
tafīa
تَفِىٓءَ
वो पलट आए
ilā
إِلَىٰٓ
तरफ़
amri
أَمْرِ
अल्लाह के हुक्म के
l-lahi
ٱللَّهِۚ
अल्लाह के हुक्म के
fa-in
فَإِن
फिर अगर
fāat
فَآءَتْ
वो पलट आए
fa-aṣliḥū
فَأَصْلِحُوا۟
तो सुलह करा दो
baynahumā
بَيْنَهُمَا
दर्मियान उन दोनों के
bil-ʿadli
بِٱلْعَدْلِ
साथ अदल के
wa-aqsiṭū
وَأَقْسِطُوٓا۟ۖ
और इन्साफ़ करो
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
yuḥibbu
يُحِبُّ
वो पसंद करता है
l-muq'siṭīna
ٱلْمُقْسِطِينَ
इन्साफ़ करने वालों को
यदि मोमिनों में से दो गिरोह आपस में लड़ पड़े तो उनके बीच सुलह करा दो। फिर यदि उनमें से एक गिरोह दूसरे पर ज़्यादती करे, तो जो गिरोह ज़्यादती कर रहा हो उससे लड़ो, यहाँ तक कि वह अल्लाह के आदेश की ओर पलट आए। फिर यदि वह पलट आए तो उनके बीच न्याय के साथ सुलह करा दो, और इनसाफ़ करो। निश्चय ही अल्लाह इनसाफ़ करनेवालों को पसन्द करता है ([४९] अल-हुजरात: 9)
Tafseer (तफ़सीर )
१०

اِنَّمَا الْمُؤْمِنُوْنَ اِخْوَةٌ فَاَصْلِحُوْا بَيْنَ اَخَوَيْكُمْ وَاتَّقُوا اللّٰهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَ ࣖ ١٠

innamā
إِنَّمَا
बेशक
l-mu'minūna
ٱلْمُؤْمِنُونَ
मोमिन तो
ikh'watun
إِخْوَةٌ
भाई-भाई हैं
fa-aṣliḥū
فَأَصْلِحُوا۟
तो सुलह करा दो
bayna
بَيْنَ
दर्मियान
akhawaykum
أَخَوَيْكُمْۚ
अपने दो भाइयों के
wa-ittaqū
وَٱتَّقُوا۟
और डरो
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह से
laʿallakum
لَعَلَّكُمْ
ताकि तुम
tur'ḥamūna
تُرْحَمُونَ
तुम रहम किए जाओ
मोमिन तो भाई-भाई ही है। अतः अपने दो भाईयो के बीच सुलह करा दो और अल्लाह का डर रखो, ताकि तुमपर दया की जाए ([४९] अल-हुजरात: 10)
Tafseer (तफ़सीर )