وَّاُخْرٰى لَمْ تَقْدِرُوْا عَلَيْهَا قَدْ اَحَاطَ اللّٰهُ بِهَا ۗوَكَانَ اللّٰهُ عَلٰى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيْرًا ٢١
- wa-ukh'rā
- وَأُخْرَىٰ
- और दूसरी (ग़नीमतें )
- lam
- لَمْ
- नहीं
- taqdirū
- تَقْدِرُوا۟
- तुम क़ादिर हो
- ʿalayhā
- عَلَيْهَا
- जिन पर
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- aḥāṭa
- أَحَاطَ
- घेर रखा है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- bihā
- بِهَاۚ
- उन्हें
- wakāna
- وَكَانَ
- और है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- ʿalā
- عَلَىٰ
- ऊपर
- kulli
- كُلِّ
- हर
- shayin
- شَىْءٍ
- चीज़ के
- qadīran
- قَدِيرًا
- ख़ूब क़ुदरत रखने वाला
इसके अतिरिक्त दूसरी और विजय का भी वादा है, जिसकी सामर्थ्य अभी तुम्हे प्राप्त नहीं, उन्हें अल्लाह ने घेर रखा है। अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है ([४८] अल-फतह: 21)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَوْ قَاتَلَكُمُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا لَوَلَّوُا الْاَدْبَارَ ثُمَّ لَا يَجِدُوْنَ وَلِيًّا وَّلَا نَصِيْرًا ٢٢
- walaw
- وَلَوْ
- और अगर
- qātalakumu
- قَٰتَلَكُمُ
- जंग करते तुमसे
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- lawallawū
- لَوَلَّوُا۟
- अलबत्ता वो फेर लेते
- l-adbāra
- ٱلْأَدْبَٰرَ
- पुश्तें
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- lā
- لَا
- ना वो पाते
- yajidūna
- يَجِدُونَ
- ना वो पाते
- waliyyan
- وَلِيًّا
- कोई दोस्त
- walā
- وَلَا
- और ना
- naṣīran
- نَصِيرًا
- कोई मददगार
यदि (मक्का के) इनकार करनेवाले तुमसे लड़ते तो अवश्य ही पीठ फेर जाते। फिर यह भी कि वे न तो कोई संरक्षक पाएँगे और न कोई सहायक ([४८] अल-फतह: 22)Tafseer (तफ़सीर )
سُنَّةَ اللّٰهِ الَّتِيْ قَدْ خَلَتْ مِنْ قَبْلُ ۖوَلَنْ تَجِدَ لِسُنَّةِ اللّٰهِ تَبْدِيْلًا ٢٣
- sunnata
- سُنَّةَ
- तरीक़ा
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह का
- allatī
- ٱلَّتِى
- वो जो
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- khalat
- خَلَتْ
- वो गुज़र चुका
- min
- مِن
- इससे पहले
- qablu
- قَبْلُۖ
- इससे पहले
- walan
- وَلَن
- और हरगिज़ ना
- tajida
- تَجِدَ
- आप पाऐंगे
- lisunnati
- لِسُنَّةِ
- तरीक़े को
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- tabdīlan
- تَبْدِيلًا
- बदलने वाला
यह अल्लाह की उस रीति के अनुकूल है जो पहले से चली आई है, और तुम अल्लाह की रीति में कदापि कोई परिवर्तन न पाओगे ([४८] अल-फतह: 23)Tafseer (तफ़सीर )
وَهُوَ الَّذِيْ كَفَّ اَيْدِيَهُمْ عَنْكُمْ وَاَيْدِيَكُمْ عَنْهُمْ بِبَطْنِ مَكَّةَ مِنْۢ بَعْدِ اَنْ اَظْفَرَكُمْ عَلَيْهِمْ ۗوَكَانَ اللّٰهُ بِمَا تَعْمَلُوْنَ بَصِيْرًا ٢٤
- wahuwa
- وَهُوَ
- और वो ही है
- alladhī
- ٱلَّذِى
- जिसने
- kaffa
- كَفَّ
- रोक दिया
- aydiyahum
- أَيْدِيَهُمْ
- उनके हाथों को
- ʿankum
- عَنكُمْ
- तुम से
- wa-aydiyakum
- وَأَيْدِيَكُمْ
- और तुम्हारे हाथों को
- ʿanhum
- عَنْهُم
- उनसे
- bibaṭni
- بِبَطْنِ
- वादी में
- makkata
- مَكَّةَ
- मक्का की
- min
- مِنۢ
- उसके बाद
- baʿdi
- بَعْدِ
- उसके बाद
- an
- أَنْ
- कि
- aẓfarakum
- أَظْفَرَكُمْ
- उसने कामयाब किया तुम्हें
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْۚ
- उन पर
- wakāna
- وَكَانَ
- और है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- bimā
- بِمَا
- उसे जो
- taʿmalūna
- تَعْمَلُونَ
- तुम अमल करते हो
- baṣīran
- بَصِيرًا
- ख़ूब देखने वाला
वही है जिसने उसके हाथ तुमसे और तुम्हारे हाथ उनसे मक्के की घाटी में रोक दिए इसके पश्चात कि वह तुम्हें उनपर प्रभावी कर चुका था। अल्लाह उसे देख रहा था जो कुछ तुम कर रहे थे ([४८] अल-फतह: 24)Tafseer (तफ़सीर )
هُمُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا وَصَدُّوْكُمْ عَنِ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَالْهَدْيَ مَعْكُوْفًا اَنْ يَّبْلُغَ مَحِلَّهٗ ۚوَلَوْلَا رِجَالٌ مُّؤْمِنُوْنَ وَنِسَاۤءٌ مُّؤْمِنٰتٌ لَّمْ تَعْلَمُوْهُمْ اَنْ تَطَـُٔوْهُمْ فَتُصِيْبَكُمْ مِّنْهُمْ مَّعَرَّةٌ ۢبِغَيْرِ عِلْمٍ ۚ لِيُدْخِلَ اللّٰهُ فِيْ رَحْمَتِهٖ مَنْ يَّشَاۤءُۚ لَوْ تَزَيَّلُوْا لَعَذَّبْنَا الَّذِيْنَ كَفَرُوْا مِنْهُمْ عَذَابًا اَلِيْمًا ٢٥
- humu
- هُمُ
- वो ही हैं
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- waṣaddūkum
- وَصَدُّوكُمْ
- और उन्होंने रोका तुम्हें
- ʿani
- عَنِ
- मस्जिदे हराम से
- l-masjidi
- ٱلْمَسْجِدِ
- मस्जिदे हराम से
- l-ḥarāmi
- ٱلْحَرَامِ
- मस्जिदे हराम से
- wal-hadya
- وَٱلْهَدْىَ
- और क़ुर्बानी के जानवरों को
- maʿkūfan
- مَعْكُوفًا
- जो रोके हुए थे
- an
- أَن
- कि
- yablugha
- يَبْلُغَ
- वो पहुँचें
- maḥillahu
- مَحِلَّهُۥۚ
- अपनी हलाल गाह को
- walawlā
- وَلَوْلَا
- और अगर ना होते
- rijālun
- رِجَالٌ
- कुछ मर्द
- mu'minūna
- مُّؤْمِنُونَ
- मोमिन
- wanisāon
- وَنِسَآءٌ
- और औरतें
- mu'minātun
- مُّؤْمِنَٰتٌ
- मोमिन
- lam
- لَّمْ
- नहीं
- taʿlamūhum
- تَعْلَمُوهُمْ
- तुम जानते उन्हें
- an
- أَن
- कि
- taṭaūhum
- تَطَـُٔوهُمْ
- तुम पामाल कर दोगे उन्हें
- fatuṣībakum
- فَتُصِيبَكُم
- फिर पहुँचती तुम्हें
- min'hum
- مِّنْهُم
- उन(की वजह) से
- maʿarratun
- مَّعَرَّةٌۢ
- कोई तक्लीफ़
- bighayri
- بِغَيْرِ
- बग़ैर
- ʿil'min
- عِلْمٍۖ
- इल्म के
- liyud'khila
- لِّيُدْخِلَ
- ताकि दाख़िल करे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- fī
- فِى
- अपनी रहमत में
- raḥmatihi
- رَحْمَتِهِۦ
- अपनी रहमत में
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُۚ
- वो चाहे
- law
- لَوْ
- अगर
- tazayyalū
- تَزَيَّلُوا۟
- वो अलग हो गए होते
- laʿadhabnā
- لَعَذَّبْنَا
- अलबत्ता अज़ाब देते हम
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों को जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- min'hum
- مِنْهُمْ
- उनमें से
- ʿadhāban
- عَذَابًا
- अज़ाब
- alīman
- أَلِيمًا
- दर्दनाक
ये वही लोग तो है जिन्होंने इनकार किया और तुम्हें मस्जिदे हराम (काबा) से रोक दिया और क़ुरबानी के बँधे हुए जानवरों को भी इससे रोके रखा कि वे अपने ठिकाने पर पहुँचे। यदि यह ख़याल न होता कि बहुत-से मोमिन पुरुष और मोमिन स्त्रियाँ (मक्का में) मौजूद है, जिन्हें तुम नहीं जानते, उन्हें कुचल दोगे, फिर उनके सिलसिले में अनजाने तुमपर इल्ज़ाम आएगा (तो युद्ध की अनुमति दे दी जाती, अनुमति इसलिए नहीं दी गई) ताकि अल्लाह जिसे चाहे अपनी दयालुता में दाख़िल कर ले। यदि वे ईमानवाले अलग हो गए होते तो उनमें से जिन लोगों ने इनकार किया उनको हम अवश्य दुखद यातना देते ([४८] अल-फतह: 25)Tafseer (तफ़सीर )
اِذْ جَعَلَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا فِيْ قُلُوْبِهِمُ الْحَمِيَّةَ حَمِيَّةَ الْجَاهِلِيَّةِ فَاَنْزَلَ اللّٰهُ سَكِيْنَتَهٗ عَلٰى رَسُوْلِهٖ وَعَلَى الْمُؤْمِنِيْنَ وَاَلْزَمَهُمْ كَلِمَةَ التَّقْوٰى وَكَانُوْٓا اَحَقَّ بِهَا وَاَهْلَهَا ۗوَكَانَ اللّٰهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيْمًا ࣖ ٢٦
- idh
- إِذْ
- जब
- jaʿala
- جَعَلَ
- रख लिया
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों ने जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- fī
- فِى
- अपने दिलों में
- qulūbihimu
- قُلُوبِهِمُ
- अपने दिलों में
- l-ḥamiyata
- ٱلْحَمِيَّةَ
- हमीयत(ज़िद) को
- ḥamiyyata
- حَمِيَّةَ
- (जैसे) हमीयत
- l-jāhiliyati
- ٱلْجَٰهِلِيَّةِ
- जाहिलियत की
- fa-anzala
- فَأَنزَلَ
- तो नाज़िल की
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- sakīnatahu
- سَكِينَتَهُۥ
- सकीनत अपनी
- ʿalā
- عَلَىٰ
- अपने रसूल पर
- rasūlihi
- رَسُولِهِۦ
- अपने रसूल पर
- waʿalā
- وَعَلَى
- और मोमिनों पर
- l-mu'minīna
- ٱلْمُؤْمِنِينَ
- और मोमिनों पर
- wa-alzamahum
- وَأَلْزَمَهُمْ
- और उसने लाज़िम कर दी उन पर
- kalimata
- كَلِمَةَ
- बात
- l-taqwā
- ٱلتَّقْوَىٰ
- तक़्वा की
- wakānū
- وَكَانُوٓا۟
- और थे वो
- aḥaqqa
- أَحَقَّ
- ज़्यादा हक़दार
- bihā
- بِهَا
- उसके
- wa-ahlahā
- وَأَهْلَهَاۚ
- और अहल उसके
- wakāna
- وَكَانَ
- और है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- bikulli
- بِكُلِّ
- हर
- shayin
- شَىْءٍ
- चीज़ को
- ʿalīman
- عَلِيمًا
- ख़ूब जानने वाला
याद करो जब इनकार करनेवाले लोगों ने अपने दिलों में हठ को जगह दी, अज्ञानपूर्ण हठ को; तो अल्लाह ने अपने रसूल पर और ईमानवालो पर सकीना (प्रशान्ति) उतारी और उन्हें परहेज़गारी (धर्मपरायणता) की बात का पाबन्द रखा। वे इसके ज़्यादा हक़दार और इसके योग्य भी थे। अल्लाह तो हर चीज़ जानता है ([४८] अल-फतह: 26)Tafseer (तफ़सीर )
لَقَدْ صَدَقَ اللّٰهُ رَسُوْلَهُ الرُّءْيَا بِالْحَقِّ ۚ لَتَدْخُلُنَّ الْمَسْجِدَ الْحَرَامَ اِنْ شَاۤءَ اللّٰهُ اٰمِنِيْنَۙ مُحَلِّقِيْنَ رُءُوْسَكُمْ وَمُقَصِّرِيْنَۙ لَا تَخَافُوْنَ ۗفَعَلِمَ مَا لَمْ تَعْلَمُوْا فَجَعَلَ مِنْ دُوْنِ ذٰلِكَ فَتْحًا قَرِيْبًا ٢٧
- laqad
- لَّقَدْ
- अलबत्ता तहक़ीक़
- ṣadaqa
- صَدَقَ
- सच्ची ख़बर दी
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- rasūlahu
- رَسُولَهُ
- अपने रसूल को
- l-ru'yā
- ٱلرُّءْيَا
- ख़्वाब में
- bil-ḥaqi
- بِٱلْحَقِّۖ
- साथ हक़ के
- latadkhulunna
- لَتَدْخُلُنَّ
- अलबत्ता तुम ज़रूर दाख़िल होगे
- l-masjida
- ٱلْمَسْجِدَ
- मस्जिदे
- l-ḥarāma
- ٱلْحَرَامَ
- हराम में
- in
- إِن
- अगर
- shāa
- شَآءَ
- चाहा
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- āminīna
- ءَامِنِينَ
- अमन की हालत में
- muḥalliqīna
- مُحَلِّقِينَ
- मुंडवाए हुए
- ruūsakum
- رُءُوسَكُمْ
- अपने सिरों को
- wamuqaṣṣirīna
- وَمُقَصِّرِينَ
- और तरशवाए हुए
- lā
- لَا
- नहीं तुम्हें ख़ौफ़ होगा
- takhāfūna
- تَخَافُونَۖ
- नहीं तुम्हें ख़ौफ़ होगा
- faʿalima
- فَعَلِمَ
- तो उसने जान लिया
- mā
- مَا
- जो
- lam
- لَمْ
- नहीं
- taʿlamū
- تَعْلَمُوا۟
- तुम जानते थे
- fajaʿala
- فَجَعَلَ
- तो उसने कर दी
- min
- مِن
- अलावा
- dūni
- دُونِ
- अलावा
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- उसके
- fatḥan
- فَتْحًا
- फ़तह
- qarīban
- قَرِيبًا
- क़रीबी
निश्चय ही अल्लाह ने अपने रसूल को हक़ के साथ सच्चा स्वप्न दिखाया, 'यदि अल्लाह ने चाहा तो तुम अवश्य मस्जिदे हराम (काबा) में प्रवेश करोगे बेखटके, अपने सिर के बाल मुड़ाते और कतरवाते हुए, तुम्हें कोई भय न होगा।' हुआ यह कि उसने वह बात जान ली जो तुमने नहीं जानी। अतः इससे पहले उसने शीघ्र प्राप्त होनेवाली विजय तुम्हारे लिए निश्चिंत कर दी ([४८] अल-फतह: 27)Tafseer (तफ़सीर )
هُوَ الَّذِيْٓ اَرْسَلَ رَسُوْلَهٗ بِالْهُدٰى وَدِيْنِ الْحَقِّ لِيُظْهِرَهٗ عَلَى الدِّيْنِ كُلِّهٖ ۗوَكَفٰى بِاللّٰهِ شَهِيْدًا ٢٨
- huwa
- هُوَ
- वो ही है
- alladhī
- ٱلَّذِىٓ
- जिसने
- arsala
- أَرْسَلَ
- भेजा
- rasūlahu
- رَسُولَهُۥ
- अपने रसूल को
- bil-hudā
- بِٱلْهُدَىٰ
- साथ हिदायत
- wadīni
- وَدِينِ
- और दीने हक़ के
- l-ḥaqi
- ٱلْحَقِّ
- और दीने हक़ के
- liyuẓ'hirahu
- لِيُظْهِرَهُۥ
- ताकि वो ग़ालिब कर दे
- ʿalā
- عَلَى
- ऊपर दीन
- l-dīni
- ٱلدِّينِ
- ऊपर दीन
- kullihi
- كُلِّهِۦۚ
- तमाम उसके
- wakafā
- وَكَفَىٰ
- और काफ़ी है
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह
- shahīdan
- شَهِيدًا
- गवाह
वही है जिसने अपने रसूल को मार्गदर्शन और सत्यधर्म के साथ भेजा, ताकि उसे पूरे के पूरे धर्म पर प्रभुत्व प्रदान करे और गवाह की हैसियत से अल्लाह काफ़ी है ([४८] अल-फतह: 28)Tafseer (तफ़सीर )
مُحَمَّدٌ رَّسُوْلُ اللّٰهِ ۗوَالَّذِيْنَ مَعَهٗٓ اَشِدَّاۤءُ عَلَى الْكُفَّارِ رُحَمَاۤءُ بَيْنَهُمْ تَرٰىهُمْ رُكَّعًا سُجَّدًا يَّبْتَغُوْنَ فَضْلًا مِّنَ اللّٰهِ وَرِضْوَانًا ۖ سِيْمَاهُمْ فِيْ وُجُوْهِهِمْ مِّنْ اَثَرِ السُّجُوْدِ ۗذٰلِكَ مَثَلُهُمْ فِى التَّوْرٰىةِ ۖوَمَثَلُهُمْ فِى الْاِنْجِيْلِۚ كَزَرْعٍ اَخْرَجَ شَطْـَٔهٗ فَاٰزَرَهٗ فَاسْتَغْلَظَ فَاسْتَوٰى عَلٰى سُوْقِهٖ يُعْجِبُ الزُّرَّاعَ لِيَغِيْظَ بِهِمُ الْكُفَّارَ ۗوَعَدَ اللّٰهُ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ مِنْهُمْ مَّغْفِرَةً وَّاَجْرًا عَظِيْمًا ࣖ ٢٩
- muḥammadun
- مُّحَمَّدٌ
- मोहम्मद
- rasūlu
- رَّسُولُ
- रसूल हैं
- l-lahi
- ٱللَّهِۚ
- अल्लाह के
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- maʿahu
- مَعَهُۥٓ
- साथ हैं उनके
- ashiddāu
- أَشِدَّآءُ
- सख़्त हैं
- ʿalā
- عَلَى
- काफ़िरों पर
- l-kufāri
- ٱلْكُفَّارِ
- काफ़िरों पर
- ruḥamāu
- رُحَمَآءُ
- मेहरबान हैं
- baynahum
- بَيْنَهُمْۖ
- आपस में
- tarāhum
- تَرَىٰهُمْ
- आप देखेंगे उन्हें
- rukkaʿan
- رُكَّعًا
- रुकूअ करते हुए
- sujjadan
- سُجَّدًا
- सजदा करते हुए
- yabtaghūna
- يَبْتَغُونَ
- वो तलाश करते हैं
- faḍlan
- فَضْلًا
- फ़ज़ल
- mina
- مِّنَ
- अल्लाह की तरफ़ से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की तरफ़ से
- wariḍ'wānan
- وَرِضْوَٰنًاۖ
- और रज़ामंदी
- sīmāhum
- سِيمَاهُمْ
- अलामत उनकी
- fī
- فِى
- उनके चेहरों में है
- wujūhihim
- وُجُوهِهِم
- उनके चेहरों में है
- min
- مِّنْ
- सजदों के असर से
- athari
- أَثَرِ
- सजदों के असर से
- l-sujūdi
- ٱلسُّجُودِۚ
- सजदों के असर से
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये है
- mathaluhum
- مَثَلُهُمْ
- मिसाल उनकी
- fī
- فِى
- तौरात में
- l-tawrāti
- ٱلتَّوْرَىٰةِۚ
- तौरात में
- wamathaluhum
- وَمَثَلُهُمْ
- और मिसाल उनकी
- fī
- فِى
- इन्जील में
- l-injīli
- ٱلْإِنجِيلِ
- इन्जील में
- kazarʿin
- كَزَرْعٍ
- मानिन्द एक खेती के
- akhraja
- أَخْرَجَ
- जिसने निकाली
- shaṭahu
- شَطْـَٔهُۥ
- कोंपल अपनी
- faāzarahu
- فَـَٔازَرَهُۥ
- फिर उसने मज़बूत किया उसको
- fa-is'taghlaẓa
- فَٱسْتَغْلَظَ
- फिर वो सख़्त हो गई
- fa-is'tawā
- فَٱسْتَوَىٰ
- फिर वो खड़ी हो गई
- ʿalā
- عَلَىٰ
- अपने तने पर
- sūqihi
- سُوقِهِۦ
- अपने तने पर
- yuʿ'jibu
- يُعْجِبُ
- वो ख़ुश करती है
- l-zurāʿa
- ٱلزُّرَّاعَ
- काश्तकारों को
- liyaghīẓa
- لِيَغِيظَ
- ताकि वो ग़ज़बनाक कर दे
- bihimu
- بِهِمُ
- उनके ज़रिए
- l-kufāra
- ٱلْكُفَّارَۗ
- काफ़िरों को
- waʿada
- وَعَدَ
- वादा किया
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों से जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- waʿamilū
- وَعَمِلُوا۟
- और उन्होंने अमल किए
- l-ṣāliḥāti
- ٱلصَّٰلِحَٰتِ
- नेक
- min'hum
- مِنْهُم
- उनमें से
- maghfiratan
- مَّغْفِرَةً
- बख़्शिश का
- wa-ajran
- وَأَجْرًا
- और अजर
- ʿaẓīman
- عَظِيمًۢا
- बहुत बड़े का
अल्लाह के रसूल मुहम्मद और जो लोग उनके साथ हैं, वे इनकार करनेवालों पर भारी हैं, आपस में दयालु है। तुम उन्हें रुकू में, सजदे में, अल्लाह का उदार अनुग्रह और उसकी प्रसन्नता चाहते हुए देखोगे। वे अपने चहरों से पहचाने जाते हैं जिनपर सजदों का प्रभाव है। यही उनकी विशेषता तौरात में और उनकी विशेषता इंजील में उस खेती की तरह उल्लिखित है जिसने अपना अंकुर निकाला; फिर उसे शक्ति पहुँचाई तो वह मोटा हुआ और वह अपने तने पर सीधा खड़ा हो गया। खेती करनेवालों को भा रहा है, ताकि उनसे इनकार करनेवालों का भी जी जलाए। उनमें से जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनसे अल्लाह ने क्षमा और बदले का वादा किया है ([४८] अल-फतह: 29)Tafseer (तफ़सीर )