۞ وَاذْكُرْ اَخَا عَادٍۗ اِذْ اَنْذَرَ قَوْمَهٗ بِالْاَحْقَافِ وَقَدْ خَلَتِ النُّذُرُ مِنْۢ بَيْنِ يَدَيْهِ وَمِنْ خَلْفِهٖٓ اَلَّا تَعْبُدُوْٓا اِلَّا اللّٰهَ ۗاِنِّيْٓ اَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيْمٍ ٢١
- wa-udh'kur
- وَٱذْكُرْ
- और ज़िक्र कीजिए
- akhā
- أَخَا
- भाई का
- ʿādin
- عَادٍ
- आद के
- idh
- إِذْ
- जब
- andhara
- أَنذَرَ
- उसने डराया
- qawmahu
- قَوْمَهُۥ
- अपनी क़ौम को
- bil-aḥqāfi
- بِٱلْأَحْقَافِ
- अहक़ाफ़ में
- waqad
- وَقَدْ
- और तहक़ीक़
- khalati
- خَلَتِ
- गुज़र चुके
- l-nudhuru
- ٱلنُّذُرُ
- कई डराने वाले
- min
- مِنۢ
- उससे पहले
- bayni
- بَيْنِ
- उससे पहले
- yadayhi
- يَدَيْهِ
- उससे पहले
- wamin
- وَمِنْ
- और उसके बाद
- khalfihi
- خَلْفِهِۦٓ
- और उसके बाद
- allā
- أَلَّا
- कि ना
- taʿbudū
- تَعْبُدُوٓا۟
- तुम इबादत करो
- illā
- إِلَّا
- मगर
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह की
- innī
- إِنِّىٓ
- बेशक मैं
- akhāfu
- أَخَافُ
- मैं डरता हूँ
- ʿalaykum
- عَلَيْكُمْ
- तुम पर
- ʿadhāba
- عَذَابَ
- अज़ाब से
- yawmin
- يَوْمٍ
- एक बड़े दिन के
- ʿaẓīmin
- عَظِيمٍ
- एक बड़े दिन के
आद के भाई को याद करो, जबकि उसने अपनी क़ौम के लोगों को अहक़ाफ़ में सावधान किया, और उसके आगे और पीछे भी सावधान करनेवाले गुज़र चुके थे - कि, 'अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी न करो। मुझे तुम्हारे बारे में एक बड़े दिन की यातना का भय है।' ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 21)Tafseer (तफ़सीर )
قَالُوْٓا اَجِئْتَنَا لِتَأْفِكَنَا عَنْ اٰلِهَتِنَاۚ فَأْتِنَا بِمَا تَعِدُنَآ اِنْ كُنْتَ مِنَ الصّٰدِقِيْنَ ٢٢
- qālū
- قَالُوٓا۟
- उन्होंने कहा
- aji'tanā
- أَجِئْتَنَا
- क्या आया है तू हमारे पास
- litafikanā
- لِتَأْفِكَنَا
- ताकि तू फेरदे हमें
- ʿan
- عَنْ
- हमारे इलाहों से
- ālihatinā
- ءَالِهَتِنَا
- हमारे इलाहों से
- fatinā
- فَأْتِنَا
- पस ले आ हमारे पास
- bimā
- بِمَا
- जिसकी
- taʿidunā
- تَعِدُنَآ
- तू धमकी देता है हमें
- in
- إِن
- अगर
- kunta
- كُنتَ
- है तू
- mina
- مِنَ
- सच्चों में से
- l-ṣādiqīna
- ٱلصَّٰدِقِينَ
- सच्चों में से
उन्होंने कहा, 'क्या तू हमारे पास इसलिए आया है कि झूठ बोलकर हमको अपने उपास्यों से विमुख कर दे? अच्छा, तो हमपर ले आ, जिसकी तू हमें धमकी देता है, यदि तू सच्चा है।' ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 22)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَ اِنَّمَا الْعِلْمُ عِنْدَ اللّٰهِ ۖوَاُبَلِّغُكُمْ مَّآ اُرْسِلْتُ بِهٖ وَلٰكِنِّيْٓ اَرٰىكُمْ قَوْمًا تَجْهَلُوْنَ ٢٣
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- innamā
- إِنَّمَا
- बेशक
- l-ʿil'mu
- ٱلْعِلْمُ
- इल्म
- ʿinda
- عِندَ
- पास है
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- wa-uballighukum
- وَأُبَلِّغُكُم
- और मैं पहुँचाता हूँ तुम्हें
- mā
- مَّآ
- वो जो
- ur'sil'tu
- أُرْسِلْتُ
- भेजा गया मैं
- bihi
- بِهِۦ
- साथ उसके
- walākinnī
- وَلَٰكِنِّىٓ
- और लेकिन मैं
- arākum
- أَرَىٰكُمْ
- मैं देखता हूँ तुम्हें
- qawman
- قَوْمًا
- ऐसे लोग
- tajhalūna
- تَجْهَلُونَ
- तुम जिहालत बरतते हो
उसने कहा, 'ज्ञान तो अल्लाह ही के पास है (कि वह कब यातना लाएगा) । और मैं तो तुम्हें वह संदेश पहुँचा रहा हूँ जो मुझे देकर भेजा गया है। किन्तु मैं तुम्हें देख रहा हूँ कि तुम अज्ञानता से काम ले रहे हो।' ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 23)Tafseer (तफ़सीर )
فَلَمَّا رَاَوْهُ عَارِضًا مُّسْتَقْبِلَ اَوْدِيَتِهِمْ قَالُوْا هٰذَا عَارِضٌ مُّمْطِرُنَا ۗبَلْ هُوَ مَا اسْتَعْجَلْتُمْ بِهٖ ۗرِيْحٌ فِيْهَا عَذَابٌ اَلِيْمٌۙ ٢٤
- falammā
- فَلَمَّا
- तो जब
- ra-awhu
- رَأَوْهُ
- उन्होंने देखा उसे
- ʿāriḍan
- عَارِضًا
- एक बादल
- mus'taqbila
- مُّسْتَقْبِلَ
- सामने आने वाला
- awdiyatihim
- أَوْدِيَتِهِمْ
- उनकी वादियों के
- qālū
- قَالُوا۟
- उन्होंने कहा
- hādhā
- هَٰذَا
- ये
- ʿāriḍun
- عَارِضٌ
- बादल
- mum'ṭirunā
- مُّمْطِرُنَاۚ
- मींह बरसाने वाला है हम पर
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- huwa
- هُوَ
- ये वो है
- mā
- مَا
- जो
- is'taʿjaltum
- ٱسْتَعْجَلْتُم
- जल्दी मचा रहे थे तुम
- bihi
- بِهِۦۖ
- उसकी
- rīḥun
- رِيحٌ
- हवा है
- fīhā
- فِيهَا
- जिसमें
- ʿadhābun
- عَذَابٌ
- अज़ाब है
- alīmun
- أَلِيمٌ
- दर्दनाक
फिर जब उन्होंने उसे बादल के रूप में देखा, जिसका रुख़ उनकी घाटियों की ओर था, तो वे कहने लगे, 'यह बादल है जो हमपर बरसनेवाला है!' 'नहीं, बल्कि यह तो वही चीज़ है जिसके लिए तुमने जल्दी मचा रखी थी। - यह वायु है जिसमें दुखद यातना है ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 24)Tafseer (तफ़सीर )
تُدَمِّرُ كُلَّ شَيْءٍۢ بِاَمْرِ رَبِّهَا فَاَصْبَحُوْا لَا يُرٰىٓ اِلَّا مَسٰكِنُهُمْۗ كَذٰلِكَ نَجْزِى الْقَوْمَ الْمُجْرِمِيْنَ ٢٥
- tudammiru
- تُدَمِّرُ
- वो तबाह कर देगी
- kulla
- كُلَّ
- हर
- shayin
- شَىْءٍۭ
- चीज़ को
- bi-amri
- بِأَمْرِ
- हुक्म से
- rabbihā
- رَبِّهَا
- अपने रब के
- fa-aṣbaḥū
- فَأَصْبَحُوا۟
- फिर वो हो गए
- lā
- لَا
- कि ना दिखाई देता था (कुछ भी)
- yurā
- يُرَىٰٓ
- कि ना दिखाई देता था (कुछ भी)
- illā
- إِلَّا
- सिवाय
- masākinuhum
- مَسَٰكِنُهُمْۚ
- उनके घरों के
- kadhālika
- كَذَٰلِكَ
- इसी तरह
- najzī
- نَجْزِى
- हम बदला दिया करते हैं
- l-qawma
- ٱلْقَوْمَ
- उन लोगों को
- l-muj'rimīna
- ٱلْمُجْرِمِينَ
- जो मुजरिम हैं
हर चीज़ को अपने रब के आदेश से विनष्ट- कर देगी।' अन्ततः वे ऐसे हो गए कि उनके रहने की जगहों के सिवा कुछ नज़र न आता था। अपराधी लोगों को हम इसी तरह बदला देते है ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 25)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْ مَكَّنّٰهُمْ فِيْمَآ اِنْ مَّكَّنّٰكُمْ فِيْهِ وَجَعَلْنَا لَهُمْ سَمْعًا وَّاَبْصَارًا وَّاَفْـِٕدَةًۖ فَمَآ اَغْنٰى عَنْهُمْ سَمْعُهُمْ وَلَآ اَبْصَارُهُمْ وَلَآ اَفْـِٕدَتُهُمْ مِّنْ شَيْءٍ اِذْ كَانُوْا يَجْحَدُوْنَ بِاٰيٰتِ اللّٰهِ وَحَاقَ بِهِمْ مَّا كَانُوْا بِهٖ يَسْتَهْزِءُوْنَ ࣖ ٢٦
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- makkannāhum
- مَكَّنَّٰهُمْ
- क़ुदरत दी हमने उन्हें
- fīmā
- فِيمَآ
- उसमें जो
- in
- إِن
- नहीं
- makkannākum
- مَّكَّنَّٰكُمْ
- क़ुदरत दी थी हमने तुम्हें
- fīhi
- فِيهِ
- उसमें
- wajaʿalnā
- وَجَعَلْنَا
- और बनाए हमने
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- samʿan
- سَمْعًا
- कान
- wa-abṣāran
- وَأَبْصَٰرًا
- और आँखें
- wa-afidatan
- وَأَفْـِٔدَةً
- और दिल
- famā
- فَمَآ
- तो ना
- aghnā
- أَغْنَىٰ
- काम आए
- ʿanhum
- عَنْهُمْ
- उन्हें
- samʿuhum
- سَمْعُهُمْ
- कान उनके
- walā
- وَلَآ
- और ना
- abṣāruhum
- أَبْصَٰرُهُمْ
- आँखें उनकी
- walā
- وَلَآ
- और ना
- afidatuhum
- أَفْـِٔدَتُهُم
- दिल उनके
- min
- مِّن
- कुछ भी
- shayin
- شَىْءٍ
- कुछ भी
- idh
- إِذْ
- जब
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yajḥadūna
- يَجْحَدُونَ
- वो इन्कार करते
- biāyāti
- بِـَٔايَٰتِ
- आयात का
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की
- waḥāqa
- وَحَاقَ
- और घेर लिया
- bihim
- بِهِم
- उन्हें
- mā
- مَّا
- उसने जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- bihi
- بِهِۦ
- उसका
- yastahziūna
- يَسْتَهْزِءُونَ
- वो मज़ाक़ उड़ाते
हमने उन्हें उन चीज़ों में जमाव और सामर्थ्य प्रदान की थी, जिनमें तुम्हें जमाव और सामर्थ्य नहीं प्रदान की। औऱ हमने उन्हें कान, आँखें और दिल दिए थे। किन्तु न तो उनके कान उनके कुछ काम आए औऱ न उनकी आँखे और न उनके दिल ही। क्योंकि वे अल्लाह की आयतों का इनकार करते थे और जिस चीज़ की वे हँसी उड़ाते थे, उसी ने उन्हें आ घेरा ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 26)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْ اَهْلَكْنَا مَا حَوْلَكُمْ مِّنَ الْقُرٰى وَصَرَّفْنَا الْاٰيٰتِ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُوْنَ ٢٧
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- ahlaknā
- أَهْلَكْنَا
- हलाक कर दिया हमने
- mā
- مَا
- जो
- ḥawlakum
- حَوْلَكُم
- तुम्हारे इर्द-गिर्द है
- mina
- مِّنَ
- बस्तियों में से
- l-qurā
- ٱلْقُرَىٰ
- बस्तियों में से
- waṣarrafnā
- وَصَرَّفْنَا
- और फेर-फेर कर लाए हैं हम
- l-āyāti
- ٱلْءَايَٰتِ
- आयात को
- laʿallahum
- لَعَلَّهُمْ
- ताकि वो
- yarjiʿūna
- يَرْجِعُونَ
- वो लौट आऐं
हम तुम्हारे आस-पास की बस्तियों को विनष्ट कर चुके हैं, हालाँकि हमने तरह-तरह से आयते पेश की थीं, ताकि वे रुजू करें ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 27)Tafseer (तफ़सीर )
فَلَوْلَا نَصَرَهُمُ الَّذِيْنَ اتَّخَذُوْا مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ قُرْبَانًا اٰلِهَةً ۗبَلْ ضَلُّوْا عَنْهُمْۚ وَذٰلِكَ اِفْكُهُمْ وَمَا كَانُوْا يَفْتَرُوْنَ ٢٨
- falawlā
- فَلَوْلَا
- तो क्यों ना
- naṣarahumu
- نَصَرَهُمُ
- मदद की उनकी
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन्होंने जिनको
- ittakhadhū
- ٱتَّخَذُوا۟
- उन्होंने बनाया
- min
- مِن
- सिवाए
- dūni
- دُونِ
- सिवाए
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- qur'bānan
- قُرْبَانًا
- तक़र्रूब के लिए
- ālihatan
- ءَالِهَةًۢۖ
- कुछ इलाह
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- ḍallū
- ضَلُّوا۟
- वो गुम हो गए
- ʿanhum
- عَنْهُمْۚ
- उनसे
- wadhālika
- وَذَٰلِكَ
- और ये
- if'kuhum
- إِفْكُهُمْ
- झूठ था उनका
- wamā
- وَمَا
- और जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yaftarūna
- يَفْتَرُونَ
- वो गढ़ा करते
फिर क्यों न उन बस्तियों ने उसकी सहायता की जिनको उन्होंने अपने और अल्लाह का बीच माध्यम ठहराकर सामीप्य प्राप्त करने के लिए उपास्य बना लिया था? बल्कि वे उनसे गुम हो गए, और यह था उनका मिथ्यारोपण और वह कुछ जो वे घड़ते थे ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 28)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذْ صَرَفْنَآ اِلَيْكَ نَفَرًا مِّنَ الْجِنِّ يَسْتَمِعُوْنَ الْقُرْاٰنَۚ فَلَمَّا حَضَرُوْهُ قَالُوْٓا اَنْصِتُوْاۚ فَلَمَّا قُضِيَ وَلَّوْا اِلٰى قَوْمِهِمْ مُّنْذِرِيْنَ ٢٩
- wa-idh
- وَإِذْ
- और जब
- ṣarafnā
- صَرَفْنَآ
- फेर लाए हम
- ilayka
- إِلَيْكَ
- तरफ़ आपके
- nafaran
- نَفَرًا
- एक गिरोह
- mina
- مِّنَ
- जिन्नों में से
- l-jini
- ٱلْجِنِّ
- जिन्नों में से
- yastamiʿūna
- يَسْتَمِعُونَ
- जो ग़ौर से सुन रहे थे
- l-qur'āna
- ٱلْقُرْءَانَ
- क़ुरआन
- falammā
- فَلَمَّا
- फिर जब
- ḥaḍarūhu
- حَضَرُوهُ
- वो हाज़िर हुए उसके पास
- qālū
- قَالُوٓا۟
- वो कहने लगे
- anṣitū
- أَنصِتُوا۟ۖ
- चुप हो जाओ
- falammā
- فَلَمَّا
- तो जब
- quḍiya
- قُضِىَ
- वो पूरा कर दिया गया
- wallaw
- وَلَّوْا۟
- वो वापस लौटे
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ अपनी क़ौम के
- qawmihim
- قَوْمِهِم
- तरफ़ अपनी क़ौम के
- mundhirīna
- مُّنذِرِينَ
- डराने वाले बन कर
और याद करो (ऐ नबी) जब हमने कुछ जिन्नों को तुम्हारी ओर फेर दिया जो क़ुरआन सुनने लगे थे, तो जब वे वहाँ पहुँचे तो कहने लगे, 'चुप हो जाओ!' फिर जब वह (क़ुरआन का पाठ) पूरा हुआ तो वे अपनी क़ौम की ओर सावधान करनेवाले होकर लौटे ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 29)Tafseer (तफ़सीर )
قَالُوْا يٰقَوْمَنَآ اِنَّا سَمِعْنَا كِتٰبًا اُنْزِلَ مِنْۢ بَعْدِ مُوْسٰى مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ يَهْدِيْٓ اِلَى الْحَقِّ وَاِلٰى طَرِيْقٍ مُّسْتَقِيْمٍ ٣٠
- qālū
- قَالُوا۟
- उन्होंने कहा
- yāqawmanā
- يَٰقَوْمَنَآ
- ऐ हमारी क़ौम
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- samiʿ'nā
- سَمِعْنَا
- सुना हमने
- kitāban
- كِتَٰبًا
- एक किताब को
- unzila
- أُنزِلَ
- जो नाज़िल की गई
- min
- مِنۢ
- बाद
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद
- mūsā
- مُوسَىٰ
- मूसा के
- muṣaddiqan
- مُصَدِّقًا
- तस्दीक़ करने वाली है
- limā
- لِّمَا
- उसकी जो
- bayna
- بَيْنَ
- उससे पहले है
- yadayhi
- يَدَيْهِ
- उससे पहले है
- yahdī
- يَهْدِىٓ
- वो रहनुमाई करती है
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ हक़ के
- l-ḥaqi
- ٱلْحَقِّ
- तरफ़ हक़ के
- wa-ilā
- وَإِلَىٰ
- और तरफ़ रास्ते
- ṭarīqin
- طَرِيقٍ
- और तरफ़ रास्ते
- mus'taqīmin
- مُّسْتَقِيمٍ
- सीधे के
उन्होंने कहा, 'ऐ मेरी क़ौम के लोगो! हमने एक किताब सुनी है, जो मूसा के पश्चात अवतरित की गई है। उसकी पुष्टि में हैं जो उससे पहले से मौजूद है, सत्य की ओर और सीधे मार्ग की ओर मार्गदर्शन करती है ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 30)Tafseer (तफ़सीर )